शौपिंग चाहे कपड़े की हो या सब्ज़ी की गोयल साब को झंझट का काम ही लगता है. ये बात और है की कपड़े अगर मॉल से लें तो पिकनिक का मज़ा आ जाता है. ए सी हॉल में घूमना हो जाता है और फिर कुछ खाना पीना भी हो जाता है. किसी किसी मॉल में सब्जी और फल की दूकान या काउंटर लगा होता है वहां गोयल साब को सब्ज़ी लेना थोड़ा बेहतर लगता है. पर घर के आसपास ठेले वाले से सब्ज़ी लेना बेसुरा काम लगता है पर करना पड़ता है. श्रीमती का आदेश भी मानना जरूरी है क्या किया जाए?
जब गोयल साब थैला लेकर बाज़ार की तरफ चले तो रास्ते में रिटायर्ड दोस्त मनोहर भाई ने पूछा,
- आज क्या लेने जा रहे हो गोयल सा?
- आदेश हुआ है की प्याज और लस्सन ले आना. वही लेने जा रहा हूँ और क्या. ये काम सबसे मुश्किल लगता है मुझे. पर करना तो है ही. बड़े बड़े प्याज लेकर जाउंगा तो कहेगी छोटे लाने थे. अगर छोटे ले जाऊं तो कहेगी गोली जैसे प्याज क्यूँ ले आए? अपनी वाट तो लगनी ही है.
- हेंहेंहें! गोयल सा एक ट्रिक बताता हूँ ये झंझट ख़तम हो जाएगा. प्याज सौ ग्राम और लस्सन एक किलो ले जाओ. घर वापिस पहुंचोगे तो एक बार तो बादल गरजेंगे पर आइन्दा के लिए झंझट समाप्त हो जाएगा. कितनी आसान सी ट्रिक है ना? भाई आज कर डालो.
किया तो वही था पर ट्रिक फ्लॉप हो गई. जोरदार डांट पड़ी. बात श्रीमती मनोहर तक जा पहुंची और मनोहर भाई की भी कान खिंचाई हो गई. आइन्दा के लिए ये रास्ता बंद हो गया.
बात ये है कि गोयल सा को खाने का ज्ञान तो है पर पकाने का ज्ञान नहीं है तो सब्जियों की शौपिंग कैसे होगी? और फिर मोल तोल करना भी नहीं आता. किसी मॉल से कुछ लेना हो या फिर ऑनलाइन मंगानी हो तो मोल भाव का मतलब नहीं है इसलिए ऐसी शौपिंग आसान हो जाती है. लेकिन ऐसे में धनिया या मिर्च बोनस में नहीं मिलता. ये बात पता नहीं अच्छी है या बुरी, पर महिलाओं को ये फ्री का बोनस बहुत पसंद है. कॉलोनी में जो सब्ज़ी बेचने आता है वो भी बड़ा घाघ है. महिलाएं सब्जी लेंगी तो धनिया या हरी मिर्च या दोनों फ्री थमा देगा लेकिन मर्दों को नहीं. मांग लिया तो ठीक और नहीं माँगा तो नहीं देगा. नतीजतन डांट पड़ने की संभावना सौ प्रतिशत बनी रहती है.
परसों की ही बात है कि गोयल सा के कानों में ऊँची कर्कश आवाज़ आई 'सब्ज़ी ले लो'. उसके तुरंत बाद किचन से मधुर मधुर आवाज़ आई 'सुनो कोई सब्ज़ी ले लो मैं बिज़ी हूँ'.
- हूँ ओके ओके! आदेश का पालन करने के लिए गोयल सा ने जेब में पर्स डाला, मुंह पे मास्क चढ़ाया और चप्पल ढूंढी. बाहर देखा तो सब्जी वाला पहुँच चुका था. मिसेज़ जामवाल उस से शिकायत कर रही थी और गोयल सा का हाल भी पूछ रही थी बिना जवाब सुने,
- पहले तुम इस गेट से आते थे अब दूसरे गेट से आते हो. देखो ये कैसी गाजर है? अच्छी वाली सब्जियां बाँट के अब आ रहे हो. नमस्ते गोयल भाईसाब. ये आलू एक किलो और प्याज एक किलो. भाईसाब आज आप आए हो? संध्या ठीक है? टमाटर भी दे दे और हिसाब कर दे. बच्चे ठीक हैं जी? धनिया नहीं डाला? और हरी मिर्च?
तब तक मिसेज़ पालीवाल सर पर तौलिया लपेट कर आ गई. गोयल सा ने दूरी थोड़ी और बढ़ा ली. सबला शक्ति से दूर ही ठीक हैं. अब मिसेज़ पालीवाल गोयल सा से, सब्ज़ी वाले से और मिसेज़ जामवाल से एक साथ बतियाने लगी पर जवाब सुनने की उनकी इच्छा नहीं थी. - अरे तू मेथी लाया कि नहीं? ख़तम? जामवाल जी आप ने तो छाँट छाँट के मेथी ले भी ली! गुड मोर्निंग गोयल साब. लो पालक भी बची खुची पड़ी है. गोभी कैसे दी?
जब गोयल सा की नज़र मेथी पर थी तो वो बिक गई और जब गोभी पसंद आई तो वो भी गई. अब तो बचे थे केवल सिंघाड़े गोयल सा ने सोचा फिलहाल यही ले चलो. सब्जी वाले से पूछा भाई कैसे दिए सिंघाड़े? उसने तो नहीं सुना पर मिसेज़ अग्रवाल ने ठेले के नज़दीक आते आते सुन लिया. तुरंत सिंघाड़े उठा कर टोकरी में डाल दिए - एक किलो कर दे! नमस्ते भाईसाब.
भाईसाब ने नज़र मारी तो ठेले में शकरकंदी ही बची थी. चार शकरकंद लेकर वापिस आ गए. अब खाली हाथ क्या वापिस जाना था. पर वही हुआ जिसका अंदेशा था.
- ये सब्ज़ी लाए आप? ये सब्ज़ी है? तुम्हारे सारे काम ऐसे ही होते हैं!
गोयल सा ने सब्ज़ी खरीदी |