Pages

Saturday 25 August 2018

पटरी पर

लापरवाही मनोहर नरूला के चेहरे से और हाव भाव से झलकती रहती थी. बाल अगर पंखे की हवा में तितर बितर हो गए तो हो गए तो नरूला ने कंघी नहीं करनी है. अगर किसी दिन एक जूते की लेस खुली रह गई तो रह गई कसनी नहीं है. कई बार बैंक में काम करते करते नरूला जूते उतार देता था और फाइल लेकर हॉल के दूसरे कोने तक नंगे पैर या फिर जुराबों में ही घूम आता था या फिर केबिन में भी आ जाता था. उसका रुमाल जेब में ना होकर कभी टेबल पर, कभी कुर्सी पर और कभी फर्श पर पड़ा होता था. लोग देख कर मुस्करा देते या कमेन्ट मार देते पर मनोहर नरूला उर्फ़ मन्नू को कोई फर्क नहीं पड़ता. सुबह बैंक आता तो कमीज़ पेंट के अंदर होती पर शाम तक कभी थोड़ी तो कभी पूरी कमीज़ पेंट के बाहर निकल चुकी होती थी. ये तो भला हो झुमरी तलैय्या के ग्राहकों का जो किसी तरह की कोई शिकायत नहीं करते हैं.

पर ऐसी ग़लतफ़हमी भी नहीं रखनी चाहिए कि मन्नू समझदार नहीं है. बन्दा डायरेक्ट अफसर लगा है बैंक में इसलिए इंटेलिजेंस की कमी नहीं है. और अभी है भी कंवारा इसलिए बे लगाम भी है. जो भी आएगी वो मन्नू की मुश्कें कस देगी क्यूँ जी ? आप से क्या छिपा है जी ? अब आप और हम तो एक ही कश्ती में सवार हैं ! केबिन में बैठा जब भी मन्नू को देखता तो मिक्स फीलिंग होती थी. कभी उस पर हंसी आती थी और कभी खीझ भी होती थी. कमबख्त अच्छी तनखा लेता है, बैंक में पब्लिक डीलिंग करता है पर ढंग से क्यूँ नहीं रह सकता ? खोया खोया ही रहता है.

उधर रीजनल ऑफिस को हमारी ब्रांच में एक ऑफिसर या मैनेजर पोस्ट करने की डिमांड भेजी हुई थी. उन्होंने एक कन्या ऑफिसर भेज दी. वैसे तो कन्या होने से कोई फर्क नहीं पड़ता पर कन्या को लेट बैठाना या डांट लगाना अटपटा लगता है. खैर झुमरी तल्लैय्या ब्रांच के सभी चौंतीस लोगों ने नई ऑफिसर का स्वागत किया. स्वभाव में नई ऑफिसर मन्नू नरूला के उलट निकली. नई ऑफिसर की टेबल साफ़ सुथरी रहती और वो खुद भी चाक चौबंद नज़र आती थी. बातें भी बिंदास ही करती थी और मन्नू की तरह झेंपू नहीं थी. खैर जो भी हो मन्नू का काम थोड़ा हल्का हो गया. उसकी सीट का काफी काम नई ऑफिसर के पास चला गया.

हफ्ते दस दिन में मन्नू नरूला में थोड़ा थोड़ा बदलाव दिखने लगा. आखिर तो कंवारा इंसान ही था और पता लगा कि नई ऑफिसर भी कंवारी थी. अब मन्नू के बाल कंघी किये हुए और सेट से लगते थे. शायद तेल वेल लगाना शुरू कर दिया था. अब तो बेल्ट कसी हुई और कमीज़ तरीके से टक-इन की हुई लगती थी. अगर कमीज़ बाहर निकलती तो तुरंत मन्नू उसे वापिस अंदर ठूंस देता. जूते भी बेहतर पोलिश किये हुए लगते और लेस तरीके से बंधी हुई नज़र आती थी. अब जब वो केबिन में आता तो किसी परफ्यूम की हलकी सी खुशबू भी आती थी. ऐसा लगने लगा कि श्री मनोहर नरूला की गाड़ी पटरी पर आ रही थी !

विश्वस्त सूत्रों ने इस बात की पुष्टि भी कर दी थी कि मन्नू ने नई ऑफिसर की फाइल लेकर उसका जन्मदिन नोट किया था. शायद मन्नू अपनी और नई ऑफिसर की कुंडली मिलवाना चाहता होगा. मन्नू मेरठ का रहने वाला था और नई ऑफिसर देहरादून की. अब दोनों इस शहर झुमरी में अकेले अकेले रह रहे थे. बहुत सारी संभावनाएं नज़र आ रहीं थीं. ख़बरें धीरे धीरे फैलती हैं और आप तो जानते ही हैं कि इश्क और उसकी मुश्क छिपाए नहीं छिपते हैं !

शनिवार को पास के बाज़ार से 'कमल साड़ीज़' का एक बंदा सीधा केबिन में घुस आया. हाथ में एक बड़ा सुंदर सा पैक किया हुआ डिब्बा था. नमस्ते करके बोला,
- साब ये सेठ जी ने भेजा है.
- किस के लिए भेजा है भई ये ? दिवाली तो अभी दूर है !
- सेठ जी ने ये कोने में कुछ लिख कर दिया है. नहीं तो आप मोबाइल से सेठ जी से बात कर लीजिए.
- हूँ ठीक है आप जाओ.
पढ़ा तो उस डिब्बे पे छोटा सा 'नरूला साब' लिखा हुआ था. इण्टरकॉम पर मन्नू को अंदर बुलाया.
- 'कमल साड़ीज़' से कोई गिफ्ट आया है आपके लिए ये लो.
मन्नू ने झेंपते हुए गिफ्ट पैक पकड़ लिया और थैंक यू कह कर भाग लिया. ऐसा लगा कि मन्नू की गाड़ी धीरे धीरे पटरी पर आ रही थी.

पर सोमवार को अच्छी खबर नहीं मिली. हमारा शहर झुमरी तल्लैय्या छोटा सा ही है. दिल्ली से तो शर्तिया छोटा है. चाय के अड्डे तो बहुत हैं यहाँ पर बढ़िया रेस्तरां एक ही है. उसका अकाउंट हमारे यहाँ है और जाहिर है कि उसका मैनेजर लेन देन के लिए ब्रांच में आता रहता है. सोमवार को कैश जमा कराने आया तो उसने कुछ यूँ बताया:

- शनिवार शाम नरूला जी और साथ में नई ऑफिसर रेस्तरां में आए थे. दोनों कोने वाली टेबल पर बैठे, पानी पिया और फिर नरूला जी ने खड़े होकर गिफ्ट पैक नई ऑफिसर को प्रेजेंट किया. नई ऑफिसर ने ले लिया और तुरंत खोल कर देख भी लिया कि अंदर साड़ी है. साड़ी की फोटो लेते हुए बोली,
- शुक्रिया नरूला जी. आप लाए हो तो रख लेती हूँ. आज की कॉफ़ी मेरी तरफ से या फिर जल्दी डिनर कर सकें तो अच्छा है डिनर कर लेते हैं. पर मैं नौ बजे के बाद नहीं रुक सकती.
- तो सर नरुला साब ने चिकेन बिरयानी, दाल फ्राई, रायता, सलाद, पापड़ और तंदूरी रोटी का आर्डर दिया. बाद में दोनों ने कॉफ़ी ली. दोनों एन्जॉय कर रहे थे सर. जब बिल आया तो तुरंत नई अफसर ने बिल पकड़ लिया और उन्होंने ही पे किया और नरूला जी से कहा,
- गिफ्ट के लिए फिर से शुक्रिया. साड़ी बहुत पसंद आई मुझे. मैंने तो अपने मंगेतर को इसकी फोटो भी भेज दी है. अगले महीने वो आने वाले हैं तो उनके साथ एक बार फिर डिनर करेंगे. थैंक्यू & गुड नाईट.

गुड नाईट 



Wednesday 22 August 2018

मानसून के बादल

भारत में मानसून बहुत बड़ी घटना है हालांकि हर साल ही मानसून घटित हो जाता है. पेड़ पौधे, किसान, सरकार, व्यापारी सभी को अच्छे दिन आने का बूस्टर लग जाता है. गर्मी से छुटकारे की उम्मीद से लोगों का मूड भी बदलने लग जाता है. वैसे तो उत्तर भारत में चार मौसम होते हैं गर्मी, बारिश, सर्दी और बसंत. पर देश के काफी बड़े हिस्से में याने विन्ध्याचल से नीचे सर्दी बहुत ही कम होती है, वहां तो तीन ही मौसम हैं - बारिश से पहले, बारिश और बारिश के बाद!

मानसून के जानकार बताते हैं की मई जून में जब भारतीय उपमहाद्वीप की धरती गरम हो जाती है तो हिन्द महासागर की और से ठंडी हवाएं उत्तर की और चल पड़ती हैं. कन्याकुमारी से हवा दो भागों में बंट जाती है. पश्चिम वाली हवा अरब सागर से भी पानी ले लेती है और पूरब वाली बंगाल की खाड़ी से. केरल में पहली बारिश पहली जून, मुंबई में दस जून और कोलकाता में सात जून के आसपास आती है.  मानसूनी बादल दिल्ली पहुंचते हैं तीस जून के आसपास और फिर सारे देश में फ़ैल जाते हैं.

ऐसा देखा गया है की बादलों की छटा और घटा नाज़ुक दिलों को बड़ा प्रभावित करती है और बरसात में तरह तरह की कविताओं, गीतों और कहानियों का भी जनम होने लगता है. कविता और गीत लिखने तो बड़े मुश्किल लगते हैं इसलिए फिलहाल मानसून पर हमारा ये फोटो ब्लॉग पेश है. भारत दर्शन के दौरान जगह जगह बादलों को कैमरे में बंद किया था उन में से कुछ को यहाँ बाहर निकाल दिया है:

अलेप्पी, केरल में अरब सागर तट. मानसून को अंग्रेजी में monsoon, पुर्तगाली में मोनसाओ और डच में मोनसन कहते हैं. इन सबका मूल शायद अरबी भाषा के मौसेम शब्द में है

नरेंद्र नगर, उत्तराखंड. नीचे नंदी और ऊपर बादल 

अरब सागर तट मुरुदेश्वर, कर्नाटक. मछुआरों का एक गाँव और ऊपर काले बादल  

नई टेहरी, उत्तराखंड. तैरते बादल  

नई टेहरी, उत्तराखंड. बादलों के झुरमुट से झांकता सूरज 

मैसूर महल पर मानसूनी बादल 

सुबाथू, हिमाचल में छाई काली घटा 

गुप्तकाशी, उत्तराखंड. बादल ऊपर उठने की तैयारी में  

माँ काली मंदिर, चैल, शिमला हिल्स. बादलों का जमावड़ा  

चांग ला, लद्दाख. मानसूनी हवा जितना भी जोर लगा ले पर हिमालय की बर्फीली चोटियों को नहीं पार कर पाती और अंत में बचा हुआ पानी यहीं बरसा जाती है  

नाशिक महाराष्ट्र. आसमान में मानसून की काली घटाएं 

चंबा, उत्तराखंड में धुंआधार बारिश 

सर्किट हाउस पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड. बारिश वाले बादल 

परवानू रोप वे हिमाचल. उड़नखटोले से ली बारिश की तस्वीर  

स्टेशन रोड दिल्ली कैंट में सुबह सुबह की बारिश का नज़ारा 




Monday 20 August 2018

हस्तिनापुर के जैन मंदिर

हस्तिनापुर एक छोटा सा शहर है जो मेरठ जिले में है और दिल्ली से लगभग 110 किमी की दूरी पर है. मेरठ-मवाना रोड NH 119 पर स्थित हस्तिनापुर, मेरठ शहर से 35 किमी की दूरी पर है. हस्तिनापुर का मुख्य आकर्षण जम्बुद्वीप और यहाँ के जैन मंदिर हैं. वैसे तो भगवान के मंदिर हैं कभी भी जा सकते हैं पर सितम्बर से मार्च तक मौसम खुशगवार होता है.
महाभारत से जुड़े हस्तिनापुर का उस समय का कोई भी अवशेष अब यहाँ नहीं है. शायद भविष्य में कभी खोजबीन की जाए तो किले और महलों से सम्बंधित कोई वस्तु मिले. बहरहाल इन्टरनेट में मिली जानकारी के अनुसार पंडित नेहरु ने 6 फरवरी 1949 को इस शहर की पुनर्स्थापना की थी.
यहाँ 1965 में प्रमुख आर्यिका शिरोमणि ज्ञानमती माताजी को पूरे ब्रह्माण्ड के दर्शन हुए जिसका विवरण जैन ग्रंथों से मिलता था. उन्होंने ही 1972 में जम्बुद्वीप की स्थापना शुरू करवाई और कार्य 1985 में संपन्न हुआ. जम्बुद्वीप परिसर में जैन वास्तु पर आधारित बहुत से मंदिर, ध्यान कक्ष, धर्मशालाएं और शाकाहारी भोजनालय हैं.
जैन धर्म सम्बंधित कुछ रोचक जानकारी:
* जैन धर्म भारत का छठा बड़ा धर्म है जिसके लगभग 45 लाख अनुयायी हैं.
* जैन समुदाय की साक्षरता दर 94% है.
* जैन धर्म के प्रवर्तक और पहले तीर्थंकर ऋषभदेव थे तथा 24 वें और अंतिम तीर्थंकर महावीर थे.
* राजा दधिवाहन की पुत्री चंपा पहली जैन भिक्षुणी मानी जाती हैं.
* जैन मंदिरों में भगवान की मूर्ती न होकर तीर्थंकरों, अर्हन्तों और सिद्धों की मूर्तियाँ हैं.
* जैन दर्शन के अनुसार सृष्टि को बनाने वाला या चलाने वाला कोई नहीं है ना ही सृष्टि का कोई आदि या अंत है.
* जैन दर्शन के मुख्य नियम हैं - अहिंसा, अनेकान्तवाद और अपरिग्रह.
* जैन धर्म का मुख्य मन्त्र है णमोकार मन्त्र जिसे नमोकार मंत्र या नमस्कार मन्त्र या पञ्च परमेष्ठी मन्त्र भी कहा जाता है. प्राकृत भाषा में यह मन्त्र इस प्रकार है :

णमों अरिहंताणं            (अरिहंतों को नमस्कार है)
णमों सिद्धाणं                (सिद्धों को नमस्कार है)
णमों आयरियाणं           (आचार्यों को नमस्कार है)
णमों उवज्झायाणं          (उपाध्यायों को नमस्कार है)
णमों लोए सव्व साहूणं    (लोक के सभी साधुओं को नमस्कार है)

* जैन मुनियों की पांच प्रतिज्ञाएँ हैं - अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह.
* जैन शब्द का उद्गम है 'जिन' याने विजेता से अर्थात जिसने अपनी काया, मन और वाणी पर जीत हासिल कर ली हो.
जम्बुद्वीप की कुछ फोटो :

मुख्य मंदिर समूह 
हर छोटे मंदिर में अलग मूर्ति स्थापित है 
त्रिमूर्ति मन्दिर

तीर्थंकर ऋषभदेव मन्दिर

सुंदर तोरण

कमल मंदिर. बांयी ओर 101 फीट ऊँची मीनार है जिसे कहते हैं 'सुमेरु पर्वत'

ध्यान का स्थान 
'सुमेरु पर्वत' के ऊपर से लिया गया चित्र. पीछे है छे मंजिला जैन प्रतीक  













'सुमेरु' से दिखता विहंगम दृश्य

तीर्थंकर महावीर मंदिर 
जैन धर्म पताका इस तरह की है:
Jain flag
जैन पताका - विकिपीडिया से साभार 
जैन प्रतीक का रेखाचित्र जिसके निचले भाग में सात नरक हैं, मध्य्लोक में जीव जंतु रहते हैं, स्वास्तिक वाले भाग में देवी देवता निवास करते हैं और सब से ऊपर सिद्ध जन हैं. इनके छोटे छोटे मॉडल बने हुए हैं जिनमें से कुछ फोटो नीचे दी गयी हैं.
Jain Prateek Chihna.svg
जैन धर्म का प्रतीक - विकिपीडिया से साभार 
सबसे ऊपर सिद्ध जन 

मध्य में जीव-जंतु और फल-फूल
सबसे नीचे सात नरक लोकों में से एक 



Sunday 19 August 2018

हंसने की चाह

काफी बरस पहले शायद 1993 में स्वर्गीय श्री एस.एन. गोयनका जी द्वारा तिहाड़ जेल, नई दिल्ली में कैदियों के लिए विपासना कैम्प की शुरूआत की थी. उस वक़्त के अखबारों में उस विपासना कैम्प की काफी चर्चा हुई और फिर स्वाभाविक था की घर पर भी चर्चा हो. तब मुझे ऐसा लगा था कि गोयनका जी कोई मनोवैज्ञानिक होंगे और अपराधियों और कैदियों को 'विपासना' द्वारा सुधारने की कोशिश कर रहे होंगे. हमारे जैसे लोगों को गोयनका जी से या फिर विपासना से क्या लेना देना? बात आई-गई हो गई.

कई साल बाद अचानक यूट्यूब में गोयनका जी का प्रवचन सुना. अब चूँकि रिटायरमेंट के बाद समय था तो फिर से विपासना के बारे में इन्टरनेट पर खोजबीन शुरू की. पता लगा कि विपासना या विपश्यना तो मैडिटेशन या ध्यान या समाधि लगाने की एक प्राचीन विधि है जिसे गौतम बुद्ध ने पुनर्जीवित किया था और इसी विधि को अपनाकर निर्वाण का रास्ता खोज निकाला था. विपासना शब्द गूगल करने से आप बहुत सी जानकारी ले सकते हैं. भारत और विश्व के बहुत से शहरों में विपासना शिविर चलते हैं जिनमें ये विद्या सिखाई जाती है. आप इन प्रोग्राम की जानकारी भी इन्टरनेट में ले सकते है. इस जानकारी लेने के बाद हम दो बार दस दस दिन के शिविर में देहरादून में शामिल हुए. थोड़ा सा मुश्किल जरूर है पर किया जा सकता है. कोई फीस नहीं है हाँ कोर्स ख़त्म करने के बाद आप जो भी दान देना चाहें वो दे सकते हैं. किसी वर्ग, मत या धर्म विशेष के लिए ना होकर सभी के लिए है.

पस्सना या विपस्सना पाली भाषा के शब्द हैं और पश्यना या विपश्यना संस्कृत भाषा के. पश्यना का शाब्दिक अर्थ है देखना और विपश्यना का अर्थ है ठीक से देखना. जो जैसा है उसे ठीक वैसा ही देखना ना घटाना ना बढ़ाना याने reality check. आजकल पस्सना या विपस्सना के मुकाबले विपासना शब्द लोकप्रिय हो गया है.

आज के मनुष्य का शरीर, उसकी इन्द्रियां, शरीर की जरूरतें और मन में आते विचार वैसे ही हैं जैसे बुद्ध के समय में या उनसे भी पहले थे. मन में लगाव, राग-द्वेष, इर्ष्या, भय, लालच, आसक्ति, गुस्सा और प्रतिशोध की भावनाएं वैसी ही हैं. आज भी मन की इच्छा न पूरी होने पर हम दुखी होते हैं, आज भी अनहोनी से भय लगता है और आज भी अपनों से बिछड़ने में दुःख घेर लेता है. सब कुछ ठीक चल रहा हो तो अचानक नई समस्या बिन बुलाए आन खड़ी हो जाती है. और कुछ नहीं तो सफ़ेद बाल निकल आना या प्रमोशन ना होना ही ब्लड प्रेशर बढ़ा देता है.

और ये समस्याएँ केवल मेरी या आपकी नहीं हैं बल्कि हर एक की हैं. हर कोई इन्हीं में उलझा हुआ है. और इन समस्याओं के आने का कारण कोई ख़ास उम्र, या ख़ास स्थान या घटना या ख़ास व्यक्ति नहीं है बल्कि ये एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है. अंतर्मन की ये प्रक्रिया ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेती. एक के बाद एक उलझनें मन में जमा होती जाती हैं और परेशान करती हैं. और इसके साथ ही शुरू हो जाती हैं धार्मिक गुरुओं और स्थानों की तलाश जहाँ से कुछ सुकून मिल सके. कभी मन की शांति मिल भी जाती है कभी नहीं भी और कभी कुछ देर के लिए. और कभी ऐसा भी हो जाता है कि गुरुजी भी घोटाला कर जाते हैं. निकले तो थे खुशी ढूंढने पर दुःख पीछा करने लगे. इस पर कपिल कुमार की लाइनें याद आ गई:
'हंसने की चाह ने कितना मुझे रुलाया है,
कोई हमदर्द नहीं दर्द मेरा साया है!'

ऐसा नहीं है की जीवन के दुःख समाप्त करने का रास्ता ही नहीं है. गौतम बुद्ध के अनुसार:
- जीवन में दुःख है,
- दुःख का कारण है,
- दुःख का अंत है और
- दुःख के अंत करने का रास्ता है.
बुद्ध ने मन का अशांत और विचलित रहने का सबसे बड़ा कारण मन में तृष्णा का होना बताया और तृष्णा के निवार.ण के लिए रास्ता भी बताया - अष्टांगिक मार्ग. ये अष्टांग हैं -
1. सम्यक दृष्टि - किसी भी बात, व्यक्ति या वस्तु जैसी है वैसी ही देखना,
2. सम्यक संकल्प - सही मानसिक और नैतिक मार्ग पर चलने का संकल्प,
3. सम्यक वाक - सदा सत्य बोलने का प्रयत्न,
4. सम्यक कर्म - हिंसा, चोरी और हानिकारक कर्म ना करना,
5. सम्यक जीविका - हानिकारक या अनैतिक व्यापार से कमाई ना करना,
6. सम्यक प्रयास - स्वयं सुधरने की कोशिश करना,
7. सम्यक स्मृति - भूत, भविष्य को छोड़ वर्तमान की सच्चाई में रहना
8. सम्यक समाधी - ऊपर के सात नियमों पर चल कर दुःख से निर्वाण.

और मुक्ति भी इसी जनम में !

सब का मंगल होय 



                                                                       

Friday 17 August 2018

Chennakesava Temple Belur, Karnataka - 2 of 2

Chennakesava Temple is situated in a small taluka Belur in Hassan district of Karnataka. It is 220 km from Bangaluru & about 40 km from Hassan City. Nearest railway station is 22 km away. Its average height is 3200 ft above sea level. Breezy weather is similar to Bangaluru. Best time to visit is Oct-Mar when humidity level is low. 
Chennakesava Temple is situated in a small taluka Belur in Hassan district of Karnataka. It is 220 km from Bangaluru & about 40 km from Hassan City. Nearest railway station is 22 km away. Its average height is 3200 ft above sea level. Breezy weather is similar to Bangaluru. Best time to visit is Oct-Mar when humidity level is low. 

Belur together with Halebidu which is 16 km away, were the early capital of the Hoysala Empire. There is a legend about the name Hoysala. It is said that Sala & his guru Sudatta Muni were performing a ritual in a temple of Vasantha Parameshwari in nearby Sosevur & a tiger attacked them. Sudatta Muni gave a call of ‘Hoye” to Sala who struck the tiger (some say it was a lion) down. Thus began Hoysala dynasty which ruled for 300 years with Sala as first ruler. The scene of fight between Sala & the tiger has been carved out of stone beautifully & it became an emblem of Hoysalas.


Sala fighting with tiger - Hoysala Emblem

Of the Hoysala kings two names are very prominent King Vishnuvardhana & his grandson King Veera Ballala II. King Vishnuvardhana was great patron of art & is said to have commissioned 1500 temples of which 100 have survived. He started building the Chennakesava temple in 1117 to commemorate victory over Cholas & his grandson king Veera Ballala II completed the task after 103 years.

The temple is dedicated to Chenna-Kesava that is handsome Kesava or Krishna another avatar of Vishnu. The walls & the pillars of the temple are full of intricate & fine engravings & sculptures. Hardly any space is left blank. Besides elephants, horses & tigers, stories from ancient Hindu scriptures have been carved with great care, intricacy of design & poetic depiction.

Soap stone has been used extensively in the temple which is easy to work for creating ornate designs. Jakanachari & his son Dankanchari were main sculptors. Others have also been mentioned in inscriptions or have signed the statues. Some of them are Ruvari Mallitamma (over 40 sculptures), Dasoja and his son Chavana (10 madanikas), Malliyanna and Nagoja (birds and animals) Chikkahampa and Malloja (other than main temple).

The temple is built on a large platform or Jagati 300 ft by 300 ft in star shape & provides for a walk-around or pradikshinapatha. The hall or mantapama is open & has three entrances while the top shikhar has been lost to elements. Ornate pillars inside the hall are a unique feature of the temple. Each of them has lots of engravings & intricate carvings which are technically brilliant. Smooth surfaces, geometrically perfect designs are magnificent. Guide informed that these heavy stone pillars were rotated with the help of elephants & while rolling they were hand-chiselled & hand polished. The result is fantastic & they look as if they have been smoothed & shined on mechanical lathes.

Another remarkable feature is delicate & beautiful bracket figures or madanika’s or Shilbalika’s at the top of pillars. They look so fine & fragile that it is difficult to imagine them to be carved out of stone.

The temple complex also has has Kappe Chennigraya temple built by queen Shantala Devi, Somyanayki(Lakshmi) temple, Ranganayaki temple & Pushkarni. 

More photos are available on the following link:

http://jogharshwardhan.blogspot.com/2016/08/visit-to-chennakesava-temple-belur.html
Chennakesava Temple, Belur, Karnataka - 1 of 2

Gopuram at the entrance

Ancient well in the foreground, Dhwaj Stambh on the right & the Temple 

Main entrance with mini Bhumija shrines on either side

Jagti or the platform of the temple also has fabulous relief sculpture 

Shilbalika inside the temple

Outer walls also have carvings

Narsimha in relief sculpture 

On one side of the temple 

On the other side of the temple 

Arjuna ready to shoot arrow

Intricate & beautiful carvings

Raja & his Darbar 



Sunday 12 August 2018

बारिश


गुप्तकाशी
42 डिग्री की गर्मी से बचने के लिए और पहाड़ों की ठंडी हवा खाने के लिए घूमते घूमते गुप्तकाशी पहुँच गए जहां से केदारनाथ केवल 50 किमी ही दूर था. वहीँ एक विलेज रिट्रीट रिसोर्ट में डेरा डाल दिया. हरी भरी सुंदर जगह, ठंडा मौसम, दिन का तापमान लगभग 18-20 डिग्री जो दिल्ली के तापमान का आधा था. हरियाली और शांत वातावरण देखकर अच्छा लगा और मन बना लिया कुछ दिन ठहरने का और आस पास घूमने का. पर अगली सुबह बारिश आ गई. 5.30 बजे योगा के लिए लॉन में दरी बिछाई थी 5.40 पर लपेटी और कमरे में वापिस भागे.

आसमान काला हो गया, चिड़ियाँ शांत हो गईं और अँधेरा छा गया. काले बादलों की गड़गड़ाहट के साथ ही तड़ तड़ करती बारिश आ गई. टीन की छत पर बारिश का ताबड़तोड़ डांस होने लगा. खिड़की के बाहर बारिश की चादर तन गई थी और  कुछ नहीं दिख रहा था. छत का पानी कमरे के आगे जहाँ गिर रहा था वहां पथरीली रोड़ी बिछी हुई थी वहां से भी छप छप आवाज़ आने लगी. दिल्ली में ऐसी बारिश कम ही देखने में आई. कुछ समय बाद बारिश धीमी हुई, शोर कम हुआ और टिपक टिपक होने लगी.

उस दिन और अगले दिन बारिश थमी ही नहीं सिलसिला जारी रहा. दो दिन सूरज भी दिखाई नहीं पड़ा. दोनों दिन हम दोनों रेस्तरां में ही बैठे रहे. वहां बैठे बैठे बाहर का पैनोरमिक नज़ारा देखते रहे. अच्छा लग रहा था. चौदह कमरों के रिसोर्ट में हम दो यात्री, एक शेफ और एक अदद मैनेजर बस. कभी चाय, कभी कॉफ़ी, पकौड़े और कभी बियर साथ में गप्पें. बस यही चलता रहा. दोनों दिन बादलों को, बारिश को और हरियाली को ही देखते रहे. कभी बारिश की फुहार पड़ी और कभी बारिश धुआंधार पड़ी. कभी काले बादल दिखे और कभी भूरे, कभी तैरते हुए और कभी रुके हुए. ये भी अलग सा ही मौज भरा अनुभव रहा.

अपनी ड्यूटी पर 

रिसोर्ट के पीछे कोई गाँव था और उसका छोटा सा रास्ता रिसोर्ट की दीवार के साथ साथ गुज़रता था. ज्यादा हलचल नहीं थी इस रास्ते पर. बस बच्चे स्कूल जाते या वापिस आते दिख जाते थे. या बीच बीच में घास ले जाती महिलाएं नज़र आ जाती थीं. बच्चों से बात करने की कोशिश कई बार की पर शर्मा कर कट जाते थे. दूर दूर से कैमरा देख कर मुस्करा देते थे या फिर हाथ हिला देते थे पर बातचीत नहीं करते थे.

ऐसा लगा की गाँव के हर घर में गाय या भैंस होगी तभी इतना महिलाएं चारा ले जा रही होंगी. कुछ तो दो बार भी टोकरी भर के ले जा रही थीं. भरी हुई टोकरी का वज़न भी अंदाज़न दस किलो के आसपास तो रहा होगा. फिर भी पीठ पर उठा कर ऊँचाई और ढलान पर बतियाते हुए आराम से चल रही थीं. बात करना इनसे भी आसान नहीं था. इनमें  झिझक थी और शायद भाषा का भी अंतर था.

यहाँ बिजली का लगातार होना बड़े सुकून की बात है. पानी भी नगर निगम सप्लाई करता है. गलियाँ और सीढ़ियाँ पक्की कर दी गई हैं. चूँकि पानी पहाड़ी इलाका होने से यहाँ रुकता नहीं है तो कीचड़ नहीं होता और सफाई रहती है. घरेलू शौचालय 100% तो नहीं हैं पर जल्दी ही हो जाएँगे. रसोई गैस मिल जाती है हालांकि चूल्हे में और सर्दी भगाने में लकड़ी का उपयोग आम है. मोबाइल के सिगनल मुख्य रूटों पर तो खूब हैं. उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड अलग होने में यहाँ के लोगों को फायदा ही रहा है. 

गौशाला या बाड़ा या छन्न. प्राय: गाँव के हर परिवार के पास गाय, भैंस या बकरियां हैं जिनका छन्न घर से थोड़ा दूर बनाते हैं  

बारिश लगातार होती रही और दिन में शेफ से भी बतियाते रहे और उसने स्थानीय कुज़ीन के बारे में बताया. चावल यहाँ ज्यादा खाया जाता है. सब्जियों के अलावा बकरा, मुर्गा और मछली भी खूब प्रचलित हैं. यहाँ ब्राह्मण और राजपूत ज्यादा हैं पर मीट मच्छी से परहेज़ नहीं है. हमारी रिक्वेस्ट पर उसने सुबह के नाश्ते में स्पेशल परांठे खिलाए. ये बाजरे से मिलते जुलते 'मंडुए' के आटे के बनते हैं. मंडुए को कोदू या रागी भी कहते हैं. परांठा बनाने के लिए एक हिस्सा गेहूँ का आटा और तीन हिस्से मंडुए का आटा मिलाया गया. फिर उबले मसालेदार आलू डाल कर भरवाँ बनाया गया. ये परांठा पकने में थोड़ा ज्यादा टाइम लेता है. आलू की सब्ज़ी, अचार, मक्खन और चाय के साथ परोसा गया. स्वादिष्ट और ज़ायकेदार लगा.

मंडुए का भरवां परांठा 
.
बारिश हो या ना हो खाना पीना कैसे रुक सकता है. और अगर गाय भैंस पाली हो तो उनका उपवास तो हो ही नहीं सकता. इस इलाके में गाय भैंस को बाहर भी नहीं भेजा जा सकता खो जाने या किसी खड्ड में गिरने का भी खतरा रहता है. इसलिए उनके चारे का इंतज़ाम भी खुद ही करना पड़ता है. गाँव की महिलाएं इसलिए थोड़ी बहुत फुहार की तो परवाह ही नहीं कर रही थीं. भीगते भीगते भी काम चल रहा था. खेत की गुड़ाई निराई के बाद वापसी में चारा या लकड़ियाँ भी लेकर जा रही थीं. घास के अलावा कुछ स्थानीय पेड़ों के पत्ते भी यहाँ चारे का काम करते हैं इन पेड़ों के नाम हैं - तिम्ला,बुरांश, बाँझ, भ्युंल आदि. वीडियो में देखिये काम आसान नहीं है.





दो दिन की लगातार बारिश की खबर बच्चों और और दोस्तों यारों तक तक पहुंची. साथ ही टीवी पर उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में एक बस गिरने की खबर भी दिखाई गई. दिल्ली या बैंगलोर में बैठे शुभचिंतकों को लगा कि हम गलत मौसम में उत्तराखंड की सैर कर रहे हैं. लगातार फोन और मेसेज आते रहे की अपना खयाल रखना और ड्राइविंग मत करना. वहां तो बारिश में रास्ते ब्लाक हो जाते हैं और पहाड़ गिरने लगते हैं वगैरा वगैरा. पर यहाँ तो हम बारिश का आनंद ले रहे थे. असल में भूगोल की जानकारी ना होना या उत्तराखंड को छोटा सा दुर्गम प्रदेश समझ लेना भी ठीक नहीं है. गुप्तकाशी से वो जगह जहां बस गिरी थी, लगभग आठ नौ घंटे की ड्राइव है याने काफी दूर. पर बैंगलोर या दिल्ली में बैठ कर इस बात का अन्दाज़ा नहीं लगता जब तक की खुद उत्तराखंड ना देखा हो. जो भी हो दबाव बढ़ने लगा और अगली सुबह सूरज भी निकल आया. नाश्ता कर के सामान कार में डाला और वापिस ऋषिकेश की राह पकड़ ली.

दस्वीदानिया गुप्तकाशी - फिर मिलेंगे