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Sunday, 23 August 2020

प्राचीन विदेशी यात्री - ग्रीक यात्री

भारतीय इतिहास को क्रोनोलॉजी याने कालक्रम के अनुसार मोटे तौर पर चार भागों में बांटा गया है - प्राचीन काल, मध्य काल, आधुनिक काल और 1947 के बाद स्वतंत्र भारत का इतिहास. प्राचीन इतिहास लगभग सात हज़ार ईसापूर्व से सात सौ ईसवी तक माना जाता है. इतने पुराने समय के हालात जानने के लिए खुदाई में मिले बर्तन-भांडे, हथियार, औजार, दबे हुए कंकाल का डीएनए वगैरह की सहायता ली जाती है. इसके अलावा उस समय के यात्रियों के लिखे वर्णन उस समय को समझाने के काम आते हैं.   

भारत में प्राचीन काल में ज्ञान, विज्ञान, धर्म और अध्यात्म बहुत आगे था पर ज्यादातर मौखिक रूप में प्रचलित था. लिपिबद्ध काफी बाद में हुआ. इसके विपरीत पश्चिम की ओर से आने वाले हमलावर जैसे की फारस का दारा ( Darius the great ), ग्रीस का सिकंदर, समरकंद का बाबर और ग़ज़नी का महमूद अपने साथ कवि और लेखक भी लाए. इन लोगों के वर्णन से उस वक़्त के हालात की जानकारी मिलती है.

इसी तरह से यूरोप और मध्य एशिया से विदेशी व्यापारी, पर्यटक, और धार्मिक यात्री आए उन्होंने भी जो नक़्शे बनाए और किताबें लिखीं वो इतिहास जानने में मदद करती हैं. 

सिकंदर से भी पहले के दो ग्रीक-रोमन यात्री काफी मशहूर हैं: पहला है हेरोडोटस: जिसने किताब लिखी 'हिस्टोरिका' जिसमें कई देशों का वर्णन है - ग्रीस, फारस, लीबिया वगैरह. कहा जाता है की वर्णन ज्यादातर लोक कथाओं और कहावतों पर आधारित है. पर इतिहास लिखने की नज़र से यह पहली पुस्तक मानी जाती है. दूसरा है टेसीयस: ये एक राजवैद थे जो उस वक्त के लीबिया और सीरिया के राजा ज़ेरेक्सेस की हाजिरी बजाते थे. इन्होनें भी भारत फारस सम्बन्ध और व्यापार पर काफी कुछ लिखा है. ये दोनों भारत तो नहीं आये पर भारतीय व्यापार पर आधारित जो छवि वहां पेश की वो आकर्षक थी. नतीजतन ईसापूर्व 515 में फ़ारस के राजा दारा प्रथम ( Dariyus the Great ) ने हमला बोल दिया और सिन्धु नदी के पश्चिमी तट तक कंधार से कराची वाला भूभाग कब्जा लिया. ये पहला 'विदेशी' हमला था. 

सम्पन्नता की ख़बरें और आगे फैलीं तो ग्रीक राजा सिकंदर ने लगभग दो सौ साल बाद इस ओर रूख किया. उसने दारा तृतीय को बुरी तरह से हराया. सिकंदर के साथ भी तीन वरिष्ठ सैन्य अधिकारी थे - निर्याकस, अनेसीक्रटस और आस्टिबुलस. इनकी लिखी रिपोर्टें भी उस समय की महत्वपूर्ण जानकारियाँ देती हैं. सिकंदर और पुरु का युद्ध झेलम नदी के किनारे ईसापूर्व मई 326 में हुआ था. 

मैगस्थनीज़ ( Megasthenes ): सिकन्दर के मरने के बाद जनरल सेल्कयुस प्रथम को सीरिया और ईरान का जनरल बनाया गया. पर जल्दी ही उसने खुद को राजा याने निकेटर घोषित कर दिया. उसके 'सेल्युकिड' साम्राज्य में सीरिया, ईरान और झेलम नदी के पश्चिम तक का बड़ा भूभाग शामिल था. सेल्यूकस ने मैगस्थनीज़ नामक ग्रीक को राजदूत नियुक्त कर के भेजा. मैगस्थनीज़ ईसापूर्व 302 से लेकर ईसापूर्व 298 तक चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में रहा. सम्भवतः उत्तरी भारत पधारने वाला ये पहला विदेशी 'सरकारी' यात्री था. उसने उस समय के भारत के बारे में अपने अनुभव 'इंडिका' नामक किताब में कलम बंद किये. इसमें उस वक़्त का भूगोल, समाज, धर्म और शासन तंत्र का वर्णन किया गया है. इस पुस्तक के कुछ ही अवशेष बचे हैं पर इस पुस्तक के कुछ कुछ अंशों को कई अन्य जगहों पर कोटेशन के तौर पर भी पाया गया है. जोड़ तोड़ करके किताब को पुनर्जीवित कर दिया गया है. नीचे लिखा पैरा मैगास्थनीज़ का है जो डायाडोरस ने अपनी किताब में कोट किया है -    

India which is in shape quadrilateral has its eastern as well western side bounded by great sea, but on the northern side it is divided by Mount Ilemodos while fourth or western is bound by the river called Indus

डाईमेकस ( Deimachos ): सीरिया और पश्चिम एशिया के राजा एन्टीयोकस प्रथम ने ( जो सेल्यूकस प्रथम का बेटा था ), डाईमेकस या डायमेचस को राजदूत बना कर राजा बिन्दुसार के दरबार में पाटलिपुत्र भेजा. यह ईसापूर्व तीसरी सदी की बात है.

डायनोसियस: इसके बाद एन्टीयोकस द्वितीय ने डायनोसियस नामक ग्रीक राजदूत को सम्राट अशोक के दरबार में भेजा. अशोक के शिलालेख - 13 में अन्तियोक नाम से यवन राजा का नाम अंकित किया हुआ है. यह शिलालेख अब शाहबाज़गढ़ी, मानसेहरा, पकिस्तान में है. 

हेलिओडोरस: ईसापूर्व 200 के आसपास तक्षशिला के ग्रीक राजा अन्तियलसिदास ने हेलिओडोरस को अपना राजदूत बना कर विदिशा ( मध्य प्रदेश ) भेजा. उस समय उत्तर भारत में शुंग वंश के पांचवें राजा भागभद्र का राज था. हेलिओडोरस भारत में रहते हुए विष्णु भक्त हो गया. कहा जाता है की वह वापिस ही नहीं गया. विदिशा में उसने एक मंदिर भी बनवाया जिसका अब केवल एक खम्बा या दीप स्तम्भ ही बचा है. ये स्थान भोपाल से 62 किमी दूर है. 

इन राजदूतों की वजह से व्यापार और सामाजिक संपर्क फ़ारस, रोम और ग्रीस तक पहुंचा. दूसरी ओर जब सम्पन्नता की खबर फैली तो हमले भी हुए. 

अगले अंक में कुछ और यात्रियों की चर्चा करेंगे.

साँची का स्तूप. कपड़े, टोपियाँ और वाद्य यंत्र बिलकुल अलग हैं संभवत: ग्रीक हैं  


6 comments:

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2020/08/13.html

Kamini Sinha said...

सादर नमस्कार ,

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25 -8 -2020 ) को "उगने लगे बबूल" (चर्चा अंक-3804) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

अच्छा और जानकारीपरक आलेख।

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद कामिनी सिन्हा. चर्चा मंच 3804 भी विजिट होगा.

Meena Bhardwaj said...

ऐतिहासिक तथ्यों की जानकारी भरा सुन्दर आलेख ।

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद Meena Bhardwaj.