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Sunday 25 October 2020

लेखा जोखा

बैंक में ऑडिट बहुत होता है. जितनी ज्यादा बिज़नेस होगा उतनी बड़ी ब्रांच होगी और उतने ही ज्यादा ऑडिटर आएँगे. एक तो घरेलू या इंटरनल ऑडिटर होते हैं ये साल में एक बार आते हैं. एक और इंटरनल ऑडिटर भी हैं जिन्हें कनकरंट ऑडिटर कहते हैं. ये बड़ी ब्रांच में बारहों महीने बैठे रहते हैं और बीच बीच में करंट मारते रहते हैं. कहीं कहीं कनकरंट ऑडिट बाहर से आये चार्टर्ड अकाउंटेंट करते हैं. हर अप्रैल में रिज़र्व बैंक अपने पैनल में से चार्टर्ड अकाउंटेंट को भेजता है जाओ ब्रांच के हालात देख कर आओ और रिपोर्ट भेजो. कभी कभी रिज़र्व बैंक अपने ही अधिकारी भी भेज देता है. क्षेत्रीय कार्यालय या अंचल कार्यालय या प्रधान कार्यालय से भी अधिकारीगण दौरा लगाते रहते हैं. पर फ्रॉड और घपले फिर भी होते रहते हैं कारण है पैसा. क्यूंकि बैंक में पैसा जमा होने के लिए आएगा और लोन देने में जाएगा तो गड़बड़ कहीं भी हो सकती है. दूसरे शब्दों में जहाँ गुड़ होगा तो वहां मक्खियाँ भी आएंगी और ततैये भी आएँगे!

अब झुमरी तलैय्या ब्रांच को ही लें. इस ब्रांच में छोटे बड़े लोन बहुत हैं, लाकर बहुत हैं और तिजोरियां भी बहुत हैं. इस कारण से स्टाफ भी बहुत है. जाहिर है की ऐसी ब्रांच में ऑडिट करने के लिए बड़ा अनुभवी ऑडिटर भेजा जाता है. इस काम के लिए हमारे प्रिय बॉस चीफ ऑडिटर गोयल साब बिलकुल फिट हैं. हेड ऑफिस ने उन्हें सन्देश भेजा जिसमें कहा गया के झुमरी जाएं और ऑडिट करें. 

हमारे गोयल साब बड़े धाकड़ और ज्ञानी ऑडिटर हैं. सही लेखा जोखा करते हैं. बड़ी बड़ी और टेढ़ी ब्रांचों का ऑडिट आसानी से निपटा देते हैं. गोयल साब के ऊपर जो बड़े साब हैं उनका पूरा पूरा आशीर्वाद गोयल साब को प्राप्त है. जब ब्रांच का ऑडिट हो जाएगा, कच्ची रिपोर्ट बन जाएगी तो गोयल साब बड़े साब से फोन पर बात कर लेंगे. बड़े साब के स्वादानुसार रिपोर्ट में नमक, मिर्च और मसाले डाल दिए जाएंगे. फिर उस रिपोर्ट पर मन मुताबिक कारवाई की जा सकती है.

इस ब्रांच के बारे में बड़े सा ने इशारा कर दिया था कि बहुत स्टाफ बैठा है वहां और फिर भी ब्रांच का बिज़नेस बढ़ नहीं रहा है. वहां मनोहर नरूला बैठा बैठा क्या कर रहा है? शाखा में अनुशासन नहीं है जरा चेक किया जाए. अब गोयल सा ऑडिट की काली किताब और अपना ब्रीफ केस लेकर झुमरी ब्रांच में पहुंच गए और शाखा प्रबंधक से बोले, 

- मनोहर जी दस बज चुके हैं और अभी पूरा स्टाफ नज़र नहीं आ रहा? सीटें खाली पड़ी हैं?

- सर आप देख रहे हैं इस सड़क पर कितना ट्रैफिक है? पार्किंग आधा किमी दूर है और बस स्टॉप दो सौ मीटर. वहां से पैदल आना पड़ता है. आप भी तो बीस मिनट बाद पहुंचे हैं. खैर मैं दोबारा बोलता हूँ सबको. 

- हुंह! कल से जो दस बजे तक नहीं पहुंचे आप उसका क्रॉस लगाइए. कल से मैं देखूंगा हाजिरी रजिस्टर. और इस रजिस्टर में तो 56 नाम हैं. ये तो बहुत ज्यादा हैं. बिजनेस तो इतना है नहीं. 

- हुंह! आपने ब्रांच की फिगर्स तो देखी नहीं फिर आप कैसे कह सकते हो बिज़नेस बढ़ा नहीं? कमाल है!

- हुंह!

- हुंह!

जाहिर था की ऑडिटर और ब्रांच मैनेजर की तलवारें खिंच गईं थीं. ऑडिट अब आसान नहीं होने वाला था. अगले दिन गोयल सा और मनोहर सा और स्टाफ ने पौने दस बजे हाजिरी लगाने की ठान ली. गोयल सा ने पार्किंग में पहुँच कर अपनी गाड़ी लगानी चाही पर जगह मिलने में देर लगी. गाड़ी लगा कर तुरंत ब्रीफ केस उठाया और तेज़ी से ब्रांच की तरफ लपके. पर मोटापा तेज़ चलने में ब्रेक का काम कर रहा था. कितनी बार पत्नी कह चुकी है वजन घटाओ पर गोयल सा सुनते ही नहीं. हाँफते हुए पसीने में तर-बतर केबिन में पहुंचे तो दस बज के पांच मिनट हो चुके थे. इससे पहले कि गोयल सा हाजिरी लगाएं मनोहर जी ने उनके नाम के आगे वाले कॉलम में क्रॉस लगा दिया. बात हॉल में पहुंची तो स्टाफ खुश हुआ और कोरस में आवाज़ आई - काटा लगा! इधर मनोहर साब बोले,

- गोयल सा ठंडा लोगे या चाय मंगाऊं?

- हुंह!

- और ये देखिये बिज़नेस फिगर्स. दस परसेंट जमा राशी बढ़ गई है और सोलह परसेंट लोन, मनोहर जी ने कागज़ आगे बढ़ा दिया. 

- हुंह!

उसके बाद तो ब्रांच का ऑडिट करना और भी मुश्किल हो गया. मूछ का सवाल था हालांकि दोनों मुछ-मुंडे थे. गोयल सा ने अपनी गाड़ी छोड़ कर बस में आना शुरू कर दिया. पर फिर भी दो चार मिनट ऊपर हो जाते थे. दफ्तर दस बजे से पहले पहुंचना भारी पड़ रहा था. लोन फाइलें और बाकी काम काज भी ठीक ठाक ही था कुछ गड़बड़ नहीं निकल रही था. उधर बड़े साब ऑडिट रिपोर्ट जल्दी चाहते थे. जैसे तैसे काम ख़तम कर के गोयल सा ने रिपोर्ट तैयार कर दी और बड़े साब को फोन पर बताया.  

रिपोर्ट में लिख दिया की ब्रांच में छप्पन आदमी काम कर रहे हैं जबकि छत्तीस ही काफी थे. बिजनेस आंकड़ा और बढ़ सकता था उतना नहीं बढ़ा है जितना की स्कोप था. गोयल सा की रिपोर्ट बड़े सा को पसंद आ गई. पर साथ ही एक और ख़ुशी की बात हुई. बड़े सा का प्रमोशन हो गया और ट्रान्सफर भी आ गई. वहां अब नए साब बैठ गए. नए साब और मनोहर साब हमप्याला थे. मनोहर साब ने फोन लगाया और ऑडिट के बारे में नए सा को कथा सुनाई. बड़े सा ने रिपोर्ट देखी और बोले, 

- हूँ बहुत नाइंसाफी है रे गोयल! 

अब बड़े सा ने मानव संसाधन विभाग में फोन लगाया और गोयल सा की डट कर तारीफ़ कर दी. गोयल जैसा आदमी ही इस ब्रांच को चला सकता है. बहुत काबिल आदमी है वगैरा. और फिर गोयल सा की पोस्टिंग उसी झुमरी ब्रांच में करा दी. गोयल सा ने ना नुकुर तो की पर ब्रांच ज्वाइन करनी पड़ी. अब बड़े साब ने फोन लगाया, 

- गोयल साब अब जल्दी से स्टाफ छप्पन से घटा कर छत्तीस करो और बिज़नेस बढ़ाओ. 

 ऑडिट


3 comments:

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2020/10/blog-post_25.html

जितेन्द्र माथुर said...

बहुत अच्छा व्यंग्य लेख । मैं स्वयं लेखापालन एवं अकेक्षण के कार्यक्षेत्र से जुड़ा होने के कारण इसका अधिक आनंद उठा सका । अभिनंदन आपका हर्ष वर्धन जी ।

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद जितेन्द्र माथुर. ऑडिटर और मैनेजर की नोंक झोंक नई नहीं है. कई कारण हैं जिनमें से एक ईगो भी है. बहरहाल आपको ज्यादा पता होगा !