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Tuesday 30 January 2024

मेरठ-बैंगलोर-मेरठ कार यात्रा: 12. बैराट, राजस्थान

बैराट या विराट नगर एक प्राचीन शहर है जो अब राजस्थान के कोटपूतली-बहरोड़ जिले में है. जयपुर से विराट नगर लगभग 60 किमी की दूरी पर है. इसे बेरट या बैराठ भी कहा जाता था और ये स्थान ( विराट नगर ) प्राचीन मत्स्य जनपद की राजधानी था. किसी समय यहाँ विराट नाम के राजा का राज हुआ करता था. 

2. एक किवदंती प्रचलित है जब पांडवों को जब बारह साल का वनवास और दो साल का अज्ञात वास दे कर निष्कासित कर दिया गया था तो उन्होंने यहाँ एक वर्ष याने तेरहवां वर्ष गुप्त रूप से व्यतीत किया था. बाद में महाभारत के युद्ध में राजा विराट और उनके पुत्र अपनी सेना के साथ पाण्डवों की ओर से शामिल हुए परन्तु राजा और पुत्र मारे गए. राजा विराट की पुत्री उत्तरा से अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु का विवाह हुआ था. अभिमन्यु और उत्तरा का पुत्र परीक्षित था जिसने महाभारत युद्ध के बाद राजकाज संभाला। 

3. यह ऐतिहासिक जगह की चर्चा अब इसलिए भी होती है क्यूंकि यहाँ पुरातत्व विभाग की खुदाई में बुद्ध कालीन गोल मंदिर और बौद्ध विहार के पुरातन अवशेष मिले हैं और साथ ही सम्राट अशोक का एक अभिलेख यहाँ प्राप्त हुआ है. 250 BCE अर्थात सामान्य काल से 250 वर्ष पूर्व मौर्य कालीन अवशेषों के अलावा मुग़ल और राजपूत राजाओं से सम्बंधित अवशेष भी मिले हैं. मुग़ल समय में अकबर ने यहाँ ताम्बे के सिक्के ढालने की टकसाल भी लगाई थी. यहाँ बड़ी मात्रा में ताम्बे के सिक्के भी मिले हैं. यहाँ की पहाड़ियों में बड़े बड़े हलके गुलाबी रंग की चट्टानें और पत्थर हैं. इन पहाड़ियों में ताम्बे की खानें भी थीं. 

4. पुरातत्व विभाग ने विराट नगर की पहाड़ी में खुदाई की थी जिसमें बौद्ध मंदिर, अशोक का शिलालेख और बौद्ध विहार के अवशेष मिले थे. सम्राट अशोक का अभिलेख कोलकाता के म्यूजियम में रखा हुआ है. जिस पहाड़ी पर यह अवशेष पाए गए उसे बीजक की पहाड़ी कहते हैं ( बीजक = अभिलेख ).

5. बुद्ध कालीन भारत में अर्थात सामान्य युग से 600 वर्ष पहले वाले युग में, उत्तर भारत में सोलह जनपद हुआ करते थे जिनमें से एक था मत्स्य जनपद या मत्स्य देश। इस मत्स्य जनपद में अलवर, जयपुर और भरतपुर के कुछ हिस्से शामिल थे. इस जनपद की राजधानी विराट नगर हुआ करती थी और इस जनपद की एक सीमा एक ओर कुरु देश की राजधानी इंद्रप्रस्थ से और दूसरी ओर शूरसेन जनपद से मिलती थी. शूरसेन जनपद की राजधानी मधुरा ( आजकल मथुरा ) थी. मत्स्य जनपद का नाम भगवान् बुद्ध के प्रवचन 'जनवसभ सुत्त' ( दिग्घ निकाय सुत्त 18 ) में भी आया है. 

6. बैराट के बारे में चीनी बौद्ध यात्री हुएन त्सांग ने भी अपने संस्मरण The Great Tang Dynasty Record of the Western Regions में बैराट का जिक्र किया है. वह मथुरा जाते हुए सन 634 के आसपास यहाँ आया था. उसने लिखा है की यहाँ आठ बौद्ध विहार थे जो खस्ता हाल में थे और कुछ भिक्खु यहाँ रह रहे थे जो हीनयान बौद्ध धर्म का अध्ययन कर रहे थे. इसके अलावा हुएन त्सांग ने लिखा है की यहाँ दस देव मंदिर भी थे और एक हजार से ज्यादा देव भक्त भी रहते थे. 

7. एक और ऐतिहासिक जिक्र अबू रशीद का है जिसने बताया की 1009, 1014 और 1022 में महमूद गज़नी के हमले यहाँ भी हुए और उसके सिपहसालार आमिर अली ने 1022 में खूब लूटपाट की और शहर हथिया लिया। ये बात एलेग्जेंडर कन्निंघम ने 1862-63-64 और 65 की रिपोर्ट में दर्ज की है. 

8. बीजक पहाड़ी दो सौ फ़ीट ऊँची है जिस पर दो सपाट तल बनाए गए हैं. इनमें से एक तल पर गोल बौद्ध मंदिर या चैत्य बनाया गया और आसपास भिखुओं के रहने के लिए कमरे बनाए गए थे. कमरे और दीवारों के लिए बड़े साइज की पकाई हुई ईंटें इस्तेमाल की गई हैं. 

9. यहाँ मिले अशोक अभिलेख को कोलकाता में रखा गया है और उसका नाम Kolkata-Bairat Minor Rock Edict III है. अभिलेख का अनुवाद इस प्रकार है जो कि इस किताब से लिया गया है:

'The Edicts of King Asoka' by Ven. S. Dhammika.

'Piyadasi, King of Magadha, saluting the Sangha and wishing them good health and happiness, speaks thus: You know, reverend sirs, how great my faith in the Buddha, the Dhamma and the Sangha is. Whatever, reverend sirs, has been spoken by Lord Buddha, all that is well-spoken. I consider it proper, reverend sirs, to advise on how the good Dhamma should last long.

'These Dhamma texts- Extracts from the Discipline, the Noble Way of Life, the fears to Come, the Poem on the Silent Sage, the Discourse on the Pure Life, Uptisa's Questions, and the advice to Rahula, which was spoken by the Buddha concerning false speech - these Dhamma texts, reverend sirs, I desire that all the monks and nuns may constantly listen to and remember. Likewise the laymen and laywomen. I have had this written that you may know my intentions'.

10. इस अभिलेख की खोज कप्तान बर्ट ने 1840 में की थी. इस अभिलेख को भब्रु या भाबरा अभिलेख भी कहा जाता था. अभिलेख की नक़ल और अनुवाद मरख़म किट्टो ने पंडित कमल कांत की सहायता से किया था. बाद में इस अनुवाद को एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ बंगाल के जर्नल में भी प्रकाशित किया गया था. यहाँ पुरातत्व विभाग की खुदाई में मिट्टी के दिये, घड़े और बर्तन भी प्राप्त हुए थे. अभिलेख की भाषा प्राकृत है और लिपि ब्राह्मी। 

ऐतिहासिक स्थान होते हुए भी यहाँ बहुत कम सैलानी यहाँ आते हैं. बीजक पहाड़ी ग्रामीण इलाके में है और आसपास कोई रेस्तरां नहीं है बस एक चाय की टपरी है. वैसे आप दिन में कभी भी जा सकते हैं पर कोई गाइड नहीं है. पहाड़ी पर एक मंदिर भी बना है. बनावट देख कर लगता है की बाद में बनाया गया होगा। जब हम पहुंचे तो वहां भी कोई पुजारी या अन्य व्यक्ति नहीं था. चढ़ाई चढ़ने के लिए एक रैंप - रास्ता- बना दिया गया है. दोपहर में तीखी धूप और गर्मी हो जाती है. जाने से पहले पानी की व्यवस्था कर लें. 

कुछ फोटो प्रस्तुत हैं.

गोलाकार बौद्ध चैत्यगृह 


बीजक की पहाड़ी पर बौद्ध विहार के अवशेष 

यहाँ पर शायद भिक्खुओं के रहने का स्थान होगा 

सम्राट अशोक के समय की पकाई हुई ईंटें इस्तेमाल की गई हैं 

प्राचीन ईंटों का साइज अलग है 

नोटिस बोर्ड 

ऐसा लगता है चट्टान पर की बैठने की जगह बनाई हो 

आसपास ऐसी बड़ी बड़ी चट्टानें और पत्थर हैं 

आसपास की पहाड़ियां 

नोटिस बोर्ड 

भारी भरकम चट्टान जिसे स्थानीय लोग 'तोप' चट्टान कहते हैं 

चट्टानों का एक दृश्य। यहाँ स्तूप के अवशेष मिले
 
      
सम्राट अशोक के अभिलेख की प्रति ब्राह्मी लिपि में 


'तोप' चट्टान के नीचे बना मंदिर 





Saturday 27 January 2024

मेरठ-बैंगलोर-मेरठ कार यात्रा: 11 बीजापुर, कर्णाटक

बीजापुर कर्णाटक प्रदेश का एक जिला है जो बैंगलोर से 520  किमी और मुंबई से 550 किमी की दूरी पर है. आदिल शाही ( 1490 - 1686 ) ज़माने की बहुत सी सुन्दर इमारतों के कारण बीजापुर मशहूर है. इन इमारतों में से कुछ अधूरी और कुछ पूरी बची हुई हैं पर देखने लायक हैं. आजकल बीजापुर को विजयपुरा कहते हैं. शहर का संक्षिप्त लेकिन रोचक इतिहास कुछ इस तरह से है:

ये शहर बसाया था पश्चिमी चालुक्य राजाओं ने, जिन्होंने 535 से 757 तक राज किया। 

राष्ट्रकूट राजा यहाँ 757 से 973 तक रहे. 

इस से आगे लगभग 1200 तक कलचुरी और होयसला शासन रहा. 

कुछ समय देवगिरि, यादव और उसके बाद 1312 में मुस्लिम शासन शुरू हुआ. 

1347 में बिदर के बहमनी वंश ने बीजापुर पर कब्ज़ा कर लिया और बहमनी राज 1489 तक चलता रहा. 

उसके बाद आदिल शाही वंश शुरू हुआ और यह वंश 1686 तक यहाँ काबिज रहा. 

औरंगजेब ने आदिल शाही सुल्तान को हरा दिया और बीजापुर पर मुग़ल शासन 1723 तक चला. 

1724 में स्वतंत्र हैदराबाद राज्य के निज़ाम ने बीजापुर को अपने राज में मिला लिया। 

1760 में मराठा फ़ौज ने बीजापुर पर अधिकार जमा लिया।

1818  के मराठा - ब्रिटिश युद्ध में अंग्रेजों की जीत के बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने बीजापुर पर अधिकार जमा लिया और सतारा के राजा को दे दिया। 

1848 में अंग्रेजों ने बीजापुर वापिस ले लिया क्यूंकि सतारा के राजा की कोई संतान न थी. 

1885 में बीजापुर को मुख्यालय बना दिया गया.

1956 में बीजापुर मैसूर राज्य में शामिल हुआ जो बाद में कर्णाटक कहलाया।

आदिल शाही वंश का पहला सुलतान युसूफ आदिल शाह था और आखरी सुलतान सिकंदर आदिल शाह था. ये आदिल शाही सुलतान शायद ईरान या तुर्की के ओर से आये थे. यहाँ कभी किसी की फ़ौज में शामिल हो गए और कभी किसी दूसरे की फ़ौज में. फिर एक दिन मौका देख कर खुद सुल्तान बन बैठे। युसूफ आदिल शाह ने बहुत सी इमारतें और पार्क बनवाए। इमारतें इंडो-इस्लामिक  शैली की हैं और कभी बहुत सुन्दर रही होंगी। अब भी खंडहर होते हुए भी सुन्दर लगती हैं. नमूने के तौर पर कुछ तस्वीरें पेश हैं जो बारा कमान, गगन महल और आनंद महल की हैं. 

                                                                        बारा कमान

1. ये कमान अली आदिल शाह की बनवाई हुई है जो पूरी नहीं की गई थी. ना बनाने के कई किस्से बताए जाते हैं - एक कारण ये था की पूरी होने पर इस इमारत की छाया गोल गुम्बज पर पड़ती जो ठीक नहीं था. 

2 . यह इमारत 1672 में शुरू की गई थी और ये अली आदिल शाह का मकबरा बन रहा था. पर बारह कमान बनने के बाद आगे काम नहीं हुआ 

3. बहुत बड़े और ऊँचे चबूतरे पर ये इमारत बनाई जा रही थी. इस तस्वीर में पांच कमान नज़र आ रही हैं 

4. खम्बों में सीमेंट का इस्तेमाल नहीं किया गया पर खम्बों को आपस में जोड़े रखने के लिए लोहे के रिंग रखे गए थे. अली आदिल शाह, बेगम चाँद बीबी और अन्य बेगमों के अलावा बेटी भी यहीं दफ़्न है



5. ये अधूरी इमारत शहर के बीच में है. वास्तुकार था मलिक संदल  

    
6. एक आदिवासी महिला अपनी साज सज्जा के साथ 

                                                                                 गगन महल


7. यह मेहराब किले का एक भाग है जिसे 1561 में बनाया गया था. मेहराब की जमीनी चौड़ाई 60 फुट 9 इंच है 

8. इस किले में रिहाइश, दरबार हाल, पार्क और ऊँची दीवारों की घेरा बंदी थी.

9. इस भाग की दीवारों पर छत नहीं बनाई गई थी. यहीं औरंगज़ेब ने अपनी जीत के बाद  सिकंदर आदिल शाह को चांदी की हथकड़ियों में लाने का हुक्म दिया था

10. किले की बाहरी दीवार जिसके चारों ओर गहरी खाई थी और सुरक्षा के लिए उसमें पानी भरा रहता था 
   
   
11. सुन्दर पार्क के बीच दरबार हाल. अब यहाँ जनता दरबार लगा रहता है 

आनंद महल 

12. आनंद महल का बचा हुआ एक बुर्ज 

13. आनंद महल में मरम्मत का काम चल रहा था. बताया गया की अंदर बहुत खूबसूरत काम है जिसे धीरे धीरे ही किया जा सकता है  

14. आनंद महल और तहखाना 



Tuesday 9 January 2024

Asoka and Third Buddhist Council

Gautam Buddha before passing away told his closest disciple Ananda that:

Now, Ānanda, if it occurs to any of you that the teaching has lost its arbitrator, we are without a teacher- do not view it in that way. Whatever Dhamma and Vinaya I have pointed out and formulated for you, that will be your teacher when I am gone.

But as soon as Buddha achieved Mahaparinirwana a monk named Subhadda voiced his relief : ‘We are well rid of this great recluse the Buddha’. He showed his resentment on the way strictness was applied on the monks in the Buddhist Sangha. ‘Enough he said, enough of these rules – ‘this is allowed, that is not allowed’. 

The elder monk Mahakassapa heard about this, he was alarmed as to sanctity and purity of Dhamma being in danger of corruption. He decided that teachings and discipline must be protected and called for a council of five hundred enlightened monks. 

The First Council was held near Saptvarni Cave in Rajgir in modern day Bihar under the patronage of King Ajatsattu.

Venerable Ananda was very close to the Buddha, had excellent memory and had just reached Arhantship, Venerable Upali was well versed in rules and affairs of Sangha.

During this Council meeting both Ananda and Upali recited the sermons of Buddha as also rules applicable to Dhamma and Vinaya respectively. All sermons were properly recited and agreed to unanimously. 

Second Council 

This council was a historical event and was held after one hundred years of the first one. This was held at Vesali in modern day Bihar under the patronage of King Kalasoka. This Council was presided over by Sabbakami. Seven hundred Arhants participated in the Council.

The Council had an agenda whether Vinaya rules could be relaxed. Of the Ten Points two were serious issues. One serious item was that monks were collecting money, gold and silver jewellery while going for alms from lay people. Second was following certain practice which allowed the monks to ignore Vinaya as their teacher did so.

Those monks who were not following the Vinaya and calling themselves liberal were called Sthaviras but were in minority. Orthodox monks who were abiding by the Vinaya were in majority and were called Mahasanghikas. 

Four monks of each group deliberated the issue and subsequently Second Council decided unanimously that Vinaya rules will not be relaxed.

The Third Council

The third Buddhist council took place in Asokarama, Patliputta under the royal patronage of King Asoka. This was held in about 250 BCE which was 17th year of rule of King Asoka. The meeting was presided over by Venerable Mogalliputta Tissa. One thousand monks participated in the council and the proceedings took nine months to complete.

Background of the third council is as follows. As interest of King Asoka deepened in teachings of Buddha he started supporting Dhamma. Monk Nigrodha is said to have influenced King Asoka considerably in to Dhamma. King Asoka used his enormous wealth to build 84000 pagodas, viharas, stupas and to support prominent monks. 

This caused many unethical persons to join Sangha and corrupt practices increased. Generosity of King Asoka was misused. Besides there were about 18 different schools of Buddhism at that time and their practices differed. 

As these things came to light genuine monks refused to perform Upostha ceremony in presence of heretic monks. King Asoka sent a minister to see that ceremony is completed. However, minister killed non-performing monks but dared not kill Tissa. He rushed back to inform king. 

King Asoka heard all this and asked Mogallana Tissa to set the house in order. Tissa wanted all heretics to be thrown out and requested for third council to be convened. In this background the council was held. Bogus and heretic members were expelled. Emperor Ashoka himself took great interest in the proceedings and helped in cleaning up the Sangha. 

This third council achieved a number of results. Corrupt persons were remove and Tissa compiled a book Kathavattu refuting heretical charges on Dhamma & Vinaya. This book was included as fifth of the seven books of Abhidhamma Pitaka. .

Later King Asoka selected learned monks and sent them to nine different regions for missionary work. He sent his own daughter Sanghmitta and son Mahindra to Srilanka. Dhamma missions to Srilanka, Kashmir and Gandhara were very successful. 



Sunday 7 January 2024

मेरठ-बैंगलोर-मेरठ कार यात्रा: 10. चोरल बाँध जलाशय में बोटिंग

चोरल बाँध नर्मदा नदी के 'बैक वाटर' पर बनाया गया है. ये बाँध मध्य प्रदेश के मऊ ( डॉ अम्बेडकर नगर ) के ग्रामीण इलाके में है. यह बाँध इंदौर से लगभग 50 किमी दूर है. इस बाँध के कारण बना जलाशय बीस वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है. यह जलाशय तीन तरफ से पहाड़ियों से घिरा हुआ है. आस पास छोटे बड़े गांव हैं. पूरे क्षेत्र में हरियाली छाई रहती है. मानसून और उसके तुरंत बाद नज़ारा और भी सुन्दर हो जाता है. जुलाई से नवम्बर तक यहाँ पधारें तो ज्यादा आनंद आएगा। 

शनिवार और रविवार को इंदौर और आस पास से काफी लोग आते हैं। सप्ताह के अन्य दिनों में टूरिस्ट कम होते हैं.  इनमें से ज्यादातर सुबह आ कर शाम तक पिकनिक मना कर वापिस चले जाते हैं. रुकने के लिए मध्य प्रदेश टूरिज्म का सुन्दर रिसोर्ट है. आस पास कुछ प्राइवेट रिसोर्ट भी हैं. यहाँ जलाशय में बड़ी नाव और स्पीड बोट का आनंद लिया जा सकता है ( बोटिंग करते हुए लाइफ जैकेट जरूर पहनें ). पानी ठंडा और साफ़ है और आसमान नीला नज़र आता है. सीनरी बहुत सुन्दर है. इस मज़ेदार जगह का नाम भी नहीं सुना था. चलते चलते कार में ही जीपीएस में देखा और कार मोड़ ली. खाने पीने की असुविधा हो सकती है क्यूंकि अच्छे रेस्टोरेंट नहीं हैं. हाँ पीने के लिए दारु के ठेके आस पास जरूर हैं.😍 

कुछ फोटो प्रस्तुत हैं. कुछ वीडियो के लिंक भी नीचे दिए जा रहे हैं जिन पर बोटिंग के दृश्य देखे जा सकते हैं.

1. जलाशय का एक दृश्य 

2. तैरता 'ऑफिस' जहाँ से इंजीनियर बाँध और जलाशय की देख रेख करते हैं 

3. बोटिंग के लिए तैयार हो जाइये 

4. जलाशय और बंध 
 
  
5. यहाँ देसी माहौल है 

6. यहाँ देसी माहौल है!
  
7. रिसोर्ट से नज़र आता जलाशय 

बोटिंग वीडियो के लिंक:

Saturday 6 January 2024

मेरठ-बैंगलोर-मेरठ कार यात्रा: 9. लाल बाग़ और राजवाड़ा, इंदौर

मध्य प्रदेश का इंदौर शहर होल्कर वंश का बसाया हुआ है. इंदौर शहर के दो प्रमुख आकर्षण हैं  नेहरू केंद्र लाल बाग़ और राजवाड़ा. दोनों ही शहर के बीच में हैं और आस पास भीड़ वाले बाज़ार हैं. इंदौर मध्य प्रदेश राज्य का सबसे ज्यादा और घनी आबादी वाला शहर है पर फिर भी राज्य का और देश का सबसे साफ़ शहर है. शहर में नगर निगम की जीप घूमती नज़र आती है और कोई कूड़ा फेंकता नज़र आ जाए तो तुरंत लाउड स्पीकर पर चेतावनी हो जाती है. जीप में बैठे अधिकारी की सीटी भी बजनी शुरू हो जाती है. पर ट्रैफिक का हाल वही है जो देश के दूसरे शहरों में है. सफाई में तो नागरिक सहयोग यहाँ है पर ट्राफिक में नहीं है. 

1. लाल बाग़ 

शहर के बीच बने और 72 एकड़ के विशाल परिसर में फैले हुए लाल बाग़ नेहरू केंद्र में एक महल और बड़े उद्यान हैं. ये लाल बाग़ होल्कर वंश द्वारा बनाया गया था. बनवाने वाले होल्कर नरेश थे:  तुकोजी राव द्वितीय ( 1844  - 1886 ), शिवाजी राव ( 1886 - 1903 ) और तुकोजी राव तृतीय ( 1903 - 1926  ). तुकोजी राव तृतीय 1976 तक यहीं रहे. 1980 के दशक में महल की हालत खराब हो गई. 1988 में प्रदेश सरकार ने लाल बाग़ का अधिग्रहण कर लिया और इसे सांस्कृतिक केंद्र बना दिया. 

परिसर के बहत्तर में से चार एकड़ में 45 कमरों का महल बना हुआ है. लाल बाग़ का गेट लंदन के बकिंघम पैलेस की तर्ज पर बनवाया गया और उस पर होल्कर राज का चिन्ह भी लगाया गया है. गेट पर अष्ट धातु के दो शेर भी बैठाए गए हैं. महल में रोमन, फ्रेंच और बारोक शैली में निर्माण है. इटली की मूर्तियां, बेल्जियम से मंगवाया गया कांच का सामान और कई यूरोपियन देशों से मंगाई गई पेंटिंग्स लगाईं हुई हैं. कमरों की छतों पर सुन्दर चित्रांकन है और फर्श पर सुन्दर कालीन बिछे हुए हैं. कई छोटे बड़े मीटिंग रूम, डाइनिंग हाल इत्यादि हैं. 

कुछ फोटो प्रस्तुत हैं:

2. लाल बाग़ का गेट 

3. गेट से अंदर महल की ओर जाती सड़क 

4. लाल बाग़ महल 

5. सूबेदार मल्हार राव होल्कर की प्रतिमा ( 1693- 1766 ) 

6. दरबार हाल के दरवाज़े पर देवी अहिल्या बाई होल्कर की फोटो 

7. महल का एक गलियारा 

8. शाही शौक की निशानी 

9. मीटिंग हॉल 

10. मीटिंग हॉल 

11. मीटिंग हॉल 

12. रानी विक्टोरिया की मूर्ति 

13. डांस हॉल 

2. राजवाड़ा 

राजवाड़ा या होल्कर महल इंदौर शहर के घनी आबादी के बीच में बना हुआ है. इसे इस तरह भी कह सकते हैं की इंदौर शहर इसी भवन के आस पास बनता चला गया. शुरुआत 1747 में सूबेदार मल्हार राव होल्कर ने अपने परिवार के निवास बनाने के लिए की और बाद में महल बनाया गया और समय समय पर महल में फेर बदल होते रहे. लकड़ी का काफी काम हुआ था जिसके कारण कई बार आग भी लग चुकी है. पेशवा बाजी राव ने मल्हार राव को ये जागीर दी थी जिसमें मालवा, खानदेश और इंदौर के आस पास के बहुत से गांव शामिल थे. महल सात मंज़िल का है और इसकी बनावट में मुग़ल, मराठा और यूरोपियन शैली शामिल हैं. कुछ फोटो प्रस्तुत हैं:

 
14. महल के अंदर मंदिर 

15. महल में अलग अलग शैली के भवन 

16. सुन्दर खम्बों से सज्जित गलियारा 

17. महल के पहले माले का एक भाग 

18. एक और अलग तरह का गलियारा 

19. आँगन 

20. राजस्थानी शैली के छज्जे 

21. मुख्य दरवाज़ा 

22. बाहर सड़क से एक दृश्य 

23. अंदर आँगन से एक फोटो 


24. लकड़ी के सुन्दर नक्काशीदार खम्बे 
 
25. राजवाड़े का इतिहास