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Saturday 19 September 2020

प्राचीन विदेशी यात्री - इब्न बतूता

 इब्न बतूता 

प्राचीन काल में भारतीय उपमहाद्वीप में ज्ञान, विज्ञान, व्यापार, धर्म और अध्यात्म का बहुत विकास हुआ. इस विकास की ख़बरें मौखिक रूप में व्यापारियों के माध्यम से फारस,ग्रीस, रोम, चीन तक पहुँच जाती थी. इसकी वजह से व्यापारी, पर्यटक, बौद्ध भिक्खु तो आते ही थे बहुत से हमलावर भी आ जाते थे. इनमें से कुछ यात्रियों ने यात्रा संस्मरण, लेख, किताबें लिखीं या नक़्शे बनाए जो उस समय का इतिहास जानने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण सिद्ध हुए. 

इस श्रृंखला के  पहले भाग में ग्रीक यात्रियों, दूसरे भाग  में चीनी यात्रियों और तीसरे भाग  में अल बेरुनी का जिक्र है. यह लेख एक और यात्री इब्न बतूता के बारे में है जिसने भारत के विभिन्न भागों में कई साल गुज़ारे. 

Disclaimer - लेख के लिए सामग्री इन्टरनेट की फ्री वेबसाइट से एकत्र की है और अधिक जानकारी के लिए कृपया इतिहास की पुस्तकें पढ़ें.  

इब्न बतूता का पूरा नाम मोहम्मद बिन अब्दुल्ला इब्न बतूता था. बतूता का जन्म 1304 में मोरक्को के तान्जियर शहर में हुआ था. इक्कीस वर्ष की आयु में वह मक्का की हज यात्रा पर निकला. यह यात्रा लम्बी होती चली गई और तीस साल बाद वह वापिस मोरक्को पहुंचा. इस दौरान उसने पूर्वी अफ्रीका, दक्षिण अरब, क्रीमिया, ख्रीवा, बुखारा, अफगानिस्तान, दिल्ली, लंका, बंगाल, पश्चिम एशिया, स्पेन वगैरह की लगभग 121000 किमी की यात्रा की जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है.   

इब्न बतूता ने वापिस पहुँच कर मोरक्को के सुलतान को अपनी यात्रा के किस्से सुनाए. सुलतान के कहने पर उसके एक सचिव ने ये यात्रा अरबी में कलमबंद की और किताब का नाम रखा गया - 'तुहफत अल नज़्ज़ार फ़ी गरायब अल अमसार अल अफ़सार'. ये किताब ज्यादातर 'इब्न बतूता का रेहला' के नाम से जानी जाती है. रेहला अर्थात यात्रा संस्मरण. इस किताब की अतिशोक्तियाँ छोड़ दें तो भी उस वक़्त के भारतीय उपमहाद्वीप के बारे में काफी कुछ जानकारी मिल जाती है. इब्न बतूता की मृत्यु 1377 में हुई. 

इब्न बतूता ने हिन्दुकुश, मुल्तान के रास्ते से भारत में प्रवेश किया. मुल्तान में उसने दिल्ली के सुलतान मोहम्मद तुगलक़ के लिए बहुत से उपहार खरीदे. दिल्ली का नाम इब्न बतूता के रेहला में देहली के नाम से दर्ज है. मुल्तान से ही बतूता ने एक हरकारे को एक चिट्ठी देकर सुलतान के पास पहले ही भेज दिया. 1333 में दिल्ली पहुँच कर सुलतान को उपहार दिए, सात बार उसका हाथ चूमा और फारसी बोल कर खुश कर दिया. सुलतान ने इब्न बतूता को दिल्ली का क़ाज़ी नियुक्त किया.
 
उन दिनों तुगलक़ अपनी सल्तनत जमाना चाहता था और उसे अपने दरबार में विश्वासपात्र कवि, लेखक, जज, मंत्री और नौकरशाह चाहिए थे. हिन्दुओं पर उसे शक रहता था की वे कोई षडयंत्र ना रच रहे हों. उसने अब लूटपाट के बजाए हिन्दुओं पर टैक्स लगाना शुरू कर दिया और उनकी जगह बाहर से आए हुए फ़ारसी या तुर्क लोगों को नौकरी देना शुरू कर दिया था. इस कारण से इब्न बतूता का काम बन गया. तुगलक के बारे में बतूता ने लिखा है की वह सनकी सुलतान था. एक सेकंड में वो किसी को मालामाल कर देता था और दूसरे ही क्षण किसी की गर्दन भी कटवा सकता था.
 
शाही दस्तरखान के बारे में इब्न बतूता ने कहा है की खाने से पहले मीठा शरबत और खाने के बाद जौ का पानी पीया जाता था. सुपारी के साथ पान का पत्ता भी कभी कभी चलता था. पतली रोटी के साथ भेड़ या बकरे का गोश्त होता था. गोश्त अदरक और प्याज के साथ घी में पकाया जाता था. चावल और चिकन भी घी में पकाए जाते थे. मोटी मीठी रोटी भी परोसी जाती थी जिसमें अखरोट, बादाम, पिस्ता वगैरह शहद के साथ मिला कर भरे होते थे. साथ में हरे आम का अचार और फल भी रखे जाते थे. एक और चीज़ जो बहुत पसंद की जाती थी वो था समोसा या सम्बुसक. इसे कीमा, प्याज, मेवे और मसाले भर के तला जाता था. 

खाने के साथ साथ शहरों और पेड़ पौधों का भी वर्णन है. अरबी से इंग्लिश में अनुवादित किताब से एक अंश:
We traveled from the city of Multan, and until our arrival in the country of Al Hind, our suite pursued the journey in the same order we have described. The first city that we entered was Abohar. It is the first of cities of Al Hind, it is small, handsome & thickly populated, & possess river & trees. Of the trees of our country there is none there except nabq. But the Al Hind nabq ( zizyphus lotus ) is very big, its stone is equal in volume to that of gall-nut, & is very sweet. The Indians have many trees none of which exists in our or any other country. One of them is amba ( mango ).
एक और रोचक किस्सा चीन से सम्बंधित है. चीन के राजा ने बहुत से गिफ्ट भेजे और एक 'मन्दिर' बनाने का निवेदन किया जो सुल्तान ने मना कर दिया. बदले में और ज्यादा उपहार दे कर सुलतान ने इब्न बतूता को चीन में राजदूत बना कर भेजने का आदेश जारी कर दिया. 
Cause of the despatch of presents to China (al-Sin)and the people who accompanied me and the presents:
The king of China had sent a hundred male & female slaves, five hundred velvet garments - out of which one hundred were made in Zaitan and one hundred in the city of Khansa - five maunds of musk, five garments studded with jewels, five quivers of gold brocade and five swords. He asked the sultan's permission to build an idol temple on the skirts of Qarajil mountain, which has been mentioned before, at a place called Samhal. The inhabitants of China go on pilgrimage to Samhal which the royal Muslim army of India had seized, destroyed and sacked.
When the said presents reached sultan he wrote to him a reply to this effect - Islam does not allow the furthering of such an aim and the permission to build a idol temple in a Muslim country can be accorded only to those who pay jizya....  
जिन जगहों के नाम ऊपर लिए गए हैं यथा सम्हल और क़राजिल पता ही नहीं लगते कहाँ हैं. चीनी से अरबी और अरबी से इंग्लिश के अनुवाद में ये नाम काफी बदल गए - कई अंग्रेजी की किताबों में सम्हल का नाम  सम्भल, सन्हिल, सनहल लिखा है इसी तरह से पहाड़ी का नाम क़रजिल, काराजिल, कारा या कोरा भी लिखा गया है. 
उपहार और लाव लश्कर ले कर बतूता कालीकट की ओर निकला पर रास्ते में डाकुओं ने लूटपाट कर दी. किसी तरह जान बचाते हुए ये लोग कालीकट पहुंचे. वहां से लंका, इंडोनेशिया के रास्ते इब्न बतूता चीन पहुंचा.    
अल बेरुनी और इब्न बतूता के अलावा और बहुत से मुस्लिम यात्री भारत आये और उन्होंने अपनी अपनी यात्राओं के बारे में लिखा भी. पर इनका जिक्र आम तौर पर कम है. इनके नाम हैं - फ़रिश्ता मोहम्मद कासिम( इरानी यात्री 1600 के आसपास ), सुलेमान, अल मसूदी( अरबी यात्री 896 - 956 ), अब्दुल रजाक हेरात, मुल्ला तकिया( अकबर के शासन काल में ), मुल्ला बहबहानी( 1807 में पटना ), तबरी( या अल टबरी ). इनके बारे में फिर कभी. 
इब्न बतूता (चित्र  indiatoday.in से साभार )



4 comments:

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2020/09/4.html

राजेश ढांडा said...

ज्ञानप्रद

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद राजेश

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद डॉ रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'