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Wednesday, 26 August 2020

प्राचीन विदेशी यात्री - चीनी यात्री

चीनी यात्री 

प्राचीन काल में भारतीय उपमहाद्वीप में ज्ञान, विज्ञान, व्यापार, धर्म और अध्यात्म का बहुत विकास हुआ. इस विकास की ख़बरें मौखिक रूप में व्यापारियों के माध्यम से फारस, ग्रीस, रोम तक पहुँच जाती थी. इसकी वजह से व्यापारी, पर्यटक, बौद्ध भिक्खु, और बहुत से हमलावर भी आते रहते थे. इनमें से कुछ ने संस्मरण लिखे. कुछ हमलावर जैसे सिकन्दर, बाबर या गज़नवी अपने साथ कवि और लेखक भी लाए जिन्होंने उस समय के उत्तरी भारत पर लेख लिखे. इस तरह के लेख, किताबें और नक़्शे इतिहास जानने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण सिद्ध हुए हैं. इस लेख के पहले भाग में ग्रीक यात्रियों के बारे में लिखा था अब इस लेख में चीनी यात्रियों का जिक्र है. यह जानकारी इन्टरनेट से एकत्र की है. और अधिक जानकारी के लिए कृपया इतिहास की पुस्तकें पढ़ें.


चीनी यात्रीयों में मुख्यतः बौद्ध भिक्खु ही थे जिन के आने का मुख्य कारण बौद्ध धर्म की जानकारी और गहन अध्ययन था. पर उनका उस समय के रास्ते, गाँव, शहरों और शासन तंत्र के बारे में लिखना इतिहास जानने का अच्छा साधन है. 

फा हियान ( Fa Hien or Faxian ): ये भारत में आने वाला प्रथम चीनी यात्री था. उसका जन्म सन 337 में और मृत्यु सन 422 में हुई थी. फा हियान कम उम्र में ही बौद्ध भिक्खु बन गया था. उसकी बड़ी इच्छा थी की बौद्ध ग्रन्थ 'त्रिपिटक' को मूल भाषा में पढ़ा जाए. इसके लिए अपने साथियों हुई-चिंग, ताओचेंग, हुई-मिंग और हुईवेई के साथ गोबी रेगिस्तान और बर्फीले दर्रे पार करता हुआ पाटलिपुत्र पहुंचा. फा हियान जब पाटलिपुत्र पहुंचा उस समय चन्द्रगुप्त (द्वितीय ) विक्रमादित्य का राज था. ये राज ईस्वी 380 - 412 तक चला था.

हमारे सीनियर सिटीज़न साथी नोट करें की फा हियान 65 बरस की उम्र में चीन से चला था और जब वापिस पहुंचा तो उसकी उम्र 77 साल की हो चुकी थी. फा हियान का रास्ता बड़ा ही दुर्गम था और कैसे उसने यात्रा की होगी इसकी कल्पना करना भी मुश्किल है. उसने अपनी यात्रा शेनशेन, दुनहुआंग, खोटान, कंधार और पेशावर के रास्ते की. वह उत्तरी भारत के बहुत से बौद्ध मठों में रहा और संस्कृत भी सीखी. वापसी में श्रीलंका से समुद्री यात्रा की. रास्ते में तूफ़ान आ गया और लगभग सौ दिनों के बाद जहाज़ जावा ( इंडोनेशिया ) में जा लगा. वहां से चीन पहुँच कर बहुत से बौद्ध ग्रंथों का अनुवाद किया. साथ ही फा हियान ने काफी विस्तार से प्राचीन सिल्क रूट, धर्म, समाज, रीति रिवाजों की चर्चा अपनी पुस्तक 'फा हियान की यात्रा' में की है. इस पुस्तक को 'बौद्ध देशों का अभिलेख' के नाम से भी जाना जाता है. ये पुस्तकें सन 414 में प्रकाशित हुईं. 

चन्द्रगुप्त ( द्वितीय ) विक्रमादित्य के शासन के बारे में उसने लिखा है कि जनता सुखी थी, टैक्स कम थे, शारीरिक या मृत्यु दण्ड नहीं दिया जाता था केवल आर्थिक सजा ही दी जाती थी. 

संयुगन: ये 518 ईस्वी में भारत आया था. इसने तीन वर्ष उत्तरी भारत में स्थित बौद्ध मठों की यात्रा की.  

हूएन त्सांग ( HuenTsang or Xuanzang ): हुएन त्सांग या यवन चांग एक और महत्वपूर्ण चीनी बौद्ध भिक्खु यात्री था जिसके लेखन में उस समय के भारत, धर्म, समाज और रिवाजों की चर्चा मिलती है. अंदाजा लगाया जाता है की इसका जन्म सन 600 के आस पास चीन में हुआ था और लगभग 664 में मृत्यु हुई. मात्र बीस साल की आयु में बौद्ध भिक्खु बन गया था. 

हुएन त्सांग बौद्ध स्थलों की तीर्थ यात्रा के उद्देश्य से 29 साल की आयु में भारत की ओर निकला. हुएन त्सांग का रूट थोड़ा अलग था. वो तुरफान, कूचा, ताशकंद, समरकंद और वहां से हिन्दुकुश होते हुए उत्तर भारत में आया. वो 629 से 645 तक भारत के विभिन्न भागों - कश्मीर, पंजाब, मगध में रहने के बाद दक्षिण भारत में भी गया. हुएन ने नालंदा में संस्कृत और  बौद्ध धर्म का अध्ययन किया. इस कारण हुएन त्सांग का नाम राजा हर्ष वर्धन ( जन्म ईस्वी 590, राजा बना 606 में और मृत्यु 647 ) तक पहुंचा और राजा के निमंत्रण पर उसने काफी समय कन्नौज में बिताया. 

राजकीय पहचान मिलने के कारण हुएन त्सांग का आगे का सफ़र आसान हो गया. वापिस जाते हुए अपने साथ 657 लेख, पुस्तकें और ग्रन्थ ले गया. सन 645 के आसपास हुएन त्सांग ने अपनी 442 पेज की किताब 'हुएनत्सांग की भारत यात्रा' प्रकाशित की. सम्राट हर्ष वर्धन के बारे में उसने लिखा है की उस के राज में अपराध कम थे और अपराधियों को दण्ड में सामाजिक बहिष्कार या आर्थिक दण्ड ही दिए जाते थे. सम्राट की सेना में पचास हजार सैनिक, एक लाख घुड़सवार और साठ हज़ार हाथी थे. वर्ष में कई बार राजा निरीक्षण यात्रा करता था. दिन के पहले भाग में राज कार्य और दूसरे भाग में धार्मिक कार्य करता था. हुएन त्सांग की किताब के हिंदी अनुवाद से एक अंश -

 " टचाशिलो ( तक्षशिला ): तक्षशिला का राज्य 2000 मी विस्तृत है और राजधानी का क्षेत्रफल 10 मी है. राज्यवंश नष्ट हो गया है. बड़े बड़े लोग बलपूर्वक अपनी सत्ता स्थापन करने में लगे रहते हैं. पहले ये राज्य कपीसा के आधीन था परन्तु थोड़े दिन हुए जब से कश्मीर के अधिकार में हुआ है. यह देश उत्तम पैदावार के लिए प्रसिद्द है. फसलें अच्छी होती हैं. नदियाँ और सोते बहुत हैं. मनुष्य बली और साहसी हैं तथा रत्नत्रयी को मानने वाले हैं. यद्यपि संघ बहुत हैं परन्तु सबके सब उजड़े और टूटे फूटे हैं जिनमें साधुओं की संख्या भी नाम मात्र को है. ये लोग महायान सम्प्रदाय के अनुयायी हैं."

इत्सिंग ( I Ching ):

इत्सिंग एक चीनी बौद्ध भिक्खु था जो सन 675 ईस्वी में भारत आया था. उसने अपनी यात्रा पहाड़ों के रास्ते ना करके सुमात्रा से समुद्री यात्रा से की. चीन से यात्रा की शुरुआत तो उसने 37 भिक्खुओं के साथ की थी परन्तु समुद्री यात्रा के समय इत्सिंग अकेला रह गया. इत्सिंग दस वर्षों तक नालंदा विश्विद्यालय में रहा जहां उसने संस्कृत सीखी और बौद्ध धर्म का अध्ययन किया. वापसी में वह अपने साथ सुत्त पीटक, विनय पीटक और अभिधम्म पीटक की 400 प्रतियां ले गया.  सन 700 से 712 ईस्वी तक इत्सिंग ने 56 ग्रंथों का अनुवाद प्रकाशित किया. उसकी एक प्रमुख पुस्तक थी 'भारत और मलय द्वीप पुंज में प्रचलित बौद्ध धर्म का विवरण'. 

पहले चीनी यात्रियों की तरह उसने उत्तर भारत का राजनैतिक और शासन तंत्र का वर्णन नहीं किया लेकिन बौद्ध धर्म और उस समय के संस्कृत साहित्य पर महत्वपूर्ण चर्चा की. उसने लिखा की नालंदा से कुछ दूर नदी तट पर राजा श्रीगुप्त ने एक चीनी मंदिर बनवाया था. राजा हर्ष वर्धन की दानशीलता और धर्म प्रेम की प्रशंसा की है.  

हुएन त्सांग ( चित्र सधन्यवाद khabar.ndtv.com  के सौजन्य से ) 


23 comments:

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2020/08/2.html

सुशील कुमार जोशी said...

सुन्दर आलेख

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद सुशिल कुमार जोशी जी. आपका दिन शुभ हो!

Yogi Saraswat said...

बढ़िया जानकारी ! 

Sunil Agrawal said...

अति अति उत्तम और सुन्दर

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 27.8.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
धन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क

Ravindra Singh Yadav said...

नमस्ते,

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 27 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!


दिगम्बर नासवा said...

भारत महात्मा बुद्ध की नगरी है इसलिए बहुत से यात्री चीन से आते रहे और बहुत कुछ लिखा है उन्होंने भारत के बारे में ...
अच्छा आलेख ...

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद दिगम्बर नासवा जी. बहुत दिनों बाद मुलाकात हुई. बुद्ध का प्रभाव सर्वविदित है.

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद Ravindra Singh Yadav. पांच लिंकों का आनंद भी लेंगे.

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद दिलबाग सिंह विर्क. चर्चा मंच पर भी उपस्थिति होगी.

विश्वमोहन said...

बहुत ही ज्ञानवर्द्धक आलेख। हृदयतल से आभार।

mai yayavar said...

फ़ाहयान के बारे मे पहली बार कुछ नया पता लगा, बहुत खूब लिखा है भैया

शुभा said...

वाह!बहुत ज्ञानवर्धक लेख ।धन्यवाद ।

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद Yogi Saraswat.

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद Sunil Agrwal

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद विश्वमोहन

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद mai yayawar

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद शुभा. शुभा का समय शुभ हो!

SUJATA PRIYE said...

वाह बहुत बढ़िया वर्णन।सुंदर प्रस्तुति

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद SUJATA PRIYE. आपका दिन शुभ हो.

Meena Bhardwaj said...

ऐतिहासिक तथ्यों का बोध कराता ज्ञानवर्धक और रोचक आलेख ।

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद Meena Bhardwaj