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Sunday 19 May 2024

अहिल्याबाई होल्कर

 

1. अहिल्या वाड़ा का गेट. यहाँ महारानी अहिल्या बाई होल्कर का निवास, राज दरबार और मंत्रालय हुआ करते थे. ये किला नर्मदा के किनारे महेश्वर में बना हुआ है  

2. राजवाड़े का द्वारपाल आपके स्वागत के लिए तैयार है. किले का निर्माण 1767 के आसपास हुआ था 


अहिल्याबाई होल्कर मराठा महारानी थी जिन्होनें 1765 से 1796 तक मालवा प्रदेश पर शासन किया. उन्होंने महेश्वर को होल्कर वंश की राजधानी बनाया. प्रसिद्द मराठा सूबेदार मल्हारराव होल्कर के बेटे खांडेराव होल्कर से उनकी शादी हुई. मल्हारराव मालवा के पेशवा बालाजी बाजी राव की सेना में उच्च पद पर थे. अहिल्याबाई ने पति की मृत्यु के बाद होल्कर वंश का राजपाट अपने हाथ में ले लिया. शासन को व्यवस्थित किया और न्याय पद्धति में सुधार किया. अहिल्याबाई ने न केवल अपने राज्य में बल्कि भारत के बहुत से स्थानों में, मन्दिर, धर्मशालाएं, कुँए - बावड़ियां, गरीबों के लिए अन्न क्षेत्र वगैरह बनवाए. इस कारण से इन्हें देवी, राजमाता या 'दार्शनिक महारानी' भी कहा जाता था.

अहिल्याबाई ने 1767 में अपने मालवा राज्य की राजधानी नर्मदा के किनारे महेश्वर को बनाया. यह स्थान इंदौर से लगभग 95 किमी दूर है और ओम्कारेश्वर से लगभग 70 किमी है. प्राकृतिक रूप से सुन्दर जगह है और सुरक्षित भी. अपने घाट और माहेश्वरी साड़ियों के लिए ये एक प्रसिद्द शहर है. पर गर्मी काफी पड़ती है इसलिए मानसून के बाद जाना अच्छा रहेगा. 

अहिल्याबाई की जीवन कथा बड़ी रोचक और नाटकीय है. इनका जन्म 1725 में अहमदनगर ( इस शहर का नाम बदल कर अहिल्यानगर कर दिया गया है ), महाराष्ट्र में हुआ था. कहावत है की मल्हारराव पुणे जाते हुए रास्ते में चौंडी गांव में रुके. वहां मंदिर में अहिल्या सेवा कर रही थी. बड़े ध्यान से उसे देखते रहे और फिर उसे वो अपने साथ घर ले आए. घर ला कर बेटे खांडेराव से 1733 में उसकी शादी करवा दी. 1745 - 48 में पुत्र मालेराव और पुत्री मुक्ताबाई का जन्म हुआ. 1754 में पति खांडेराव की मृत्यु हो गई.  

लोक कथा के अनुसार ससुर मल्हारराव ने अहिल्या को सती होने से रोका और राजकाज सिखाया. पर 1766 में मल्हारराव का स्वर्गवास हो गया. पुत्र मालेराव दिमागी तौर पर कमजोर था और उसकी मृत्यु 1767 में हो गई. इसके बाद अहिल्या ने राजगद्दी सम्भाल ली. रानी को कमजोर मान कर अराजकता फैलने लगी. अहिल्याबाई ने कमर कस के तलवार उठा ली और डाकू लुटेरों का सफाया कर दिया. सीमाएं सुरक्षित करने के बाद न्याय व्यवस्था में सुधार किया. विधवा महिलाओं की स्थिति अच्छी नहीं थी. अहिल्याबाई ने विधवा विवाह कराए. कपडा उद्योग का विस्तार किया ताकि लोगों को रोज़गार मिले और व्यापार में वृद्धि हो. महिलाओं को भी काम दिलवाया. खेती की ओर भी ध्यान दिया. अफीम की खेती पर शिकंजा कस दिया. इस सब से होल्कर राज्य की आमदन बढ़ने लगी. 

महिला का राजगद्दी पर बैठना बहुत से लोगों को पसंद नहीं आया. इसका तोड़ ये निकाला गया कि राज्य के हर आदेश पर शिव लिंग की मोहर लगाई जाने लगी और साथ ही ये भी लिखा जाने लगा कि 'भगवान् शिव का आदेश है कि .....'. इसी तरह दरबार लगाने से पहले हर रोज़ तीन ब्राह्मण नर्मदा के बालू से एक हजार शिव लिंग बनाते और फिर नर्मदा में बहा देते. इस कार्य का भी सकारत्मक प्रभाव पड़ा. 

स्वयं अहिल्याबाई बड़ी सादगी से रहती और उनके रहने का महल या राजवाड़ा भी बहुत तड़क भड़क वाला नहीं था. अहिल्याबाई दान पुण्य के काम बहुत करती थी. केदार नाथ से रामेश्वरम तक 29 शहरों में मंदिर, धर्मशाला बनवाईं, कुँए और बावड़ियां खुदवाईं और गरीबों के खाने की व्यवस्था के लिए 'अन्न क्षेत्र' बनाए. 1795 में अहिल्याबाई का स्वर्गवास हो गया.

अहिल्याबाई का नाम तो सुना था पर उनके द्वारा किये गए सामाजिक बदलाव के बारे में इतनी जानकारी नहीं थी जितनी महेश्वर किले में जा कर और गाइड से बात करके प्राप्त हुई. आजकल देवी अहिल्याबाई के नाम पर बहुत सी संस्थाएं स्कूल, कॉलेज और विश्विद्यालय चलाए जा रहे हैं. 

महेश्वर में निमाड़ी भाषा बोली जाती है. यह मराठी, गुजराती और हिंदी का मिश्रण है. निमाड़ी कहावतें देखिये - 
- खाया बिना रयि जाणू पण कया बिना नी रयणु अर्थात खाए बिना तो रहा जा सकता है पर कहे बिना नहीं !
- लाव लुटी जाव खुटी अर्थात लूट की कमाई वैसे ही जाएगी  

किले और राजवाड़े की कुछ फोटो प्रस्तुत हैं.

3. अहिल्या बाई का राजनिवास 

4. साधारण और सादगी वाला निवास 

5. राजवाड़े का आँगन 

6. राजवाड़ा 

7. राजवाड़े  की कुछ मुर्तिया 


8. 18 वीं शताब्दी की बंदूकें 

9. हाथी की सवारी के लिए महारानी का हौदा 

10. महारानी की पालकी 

11. ढाल, तलवारें और छोटी तोपों के गोले 

12. अहिल्या वाड़ा अब एक हेरिटेज होटल में बदल दिया गया है 

13. उस समय की एक तोप 

14. राजवाड़े का एक दृश्य 

15. किला काफी बड़ा है और घूम लेने के बाद यहाँ बिराजें और जलपान करें !

16. चाय नाश्ता और खाना किले की सेटिंग में 

17. नर्मदा नदी का घाट और नदी में मंदिर 

18. किले में देवी अहिल्या मंदिर 

19. किले का एक भाग 

20. किले का एक भाग और नर्मदा 

21. किले का एक भाग 

22. किले में सैलानी 

23. किले में मंदिर 

24. नर्मदा की ओर किले की दीवार 

25. ख़ास तरह की वास्तु शैली में बना मंदिर 

26. देवी अहिल्या बाई की प्रतिमा और सैलानी 



Thursday 16 May 2024

ऐतिहासिक शहर बुरहानपुर

हमारी कार नांदेड़ से बुरहानपुर मध्य प्रदेश की तरफ चली. बुरहानपुर का नाम तो सुना था और लग रहा था की मध्य प्रदेश का  कोई खोया सा और सोया सा शहर होगा. शहर की मैन रोड पर एम्. पी. टूरिज्म का होटल नज़र आया तो अंदर खाना खाने चले गए. कमरे अच्छे थे और पता लगा की कई पर्यटन स्थल भी हैं तो वहीँ दो दिन के लिए डेरा डाल दिया. 

छोटा सा शहर है और ऑटो ले कर दिन में किला वगैरह देखा. शाम को शाही किले में साउंड और लाइट शो देखा जिसमें हम दोनों के अलावा दो दर्शक और थे! बहुत काम टूरिस्ट आते हैं यहाँ. शहर पुराना है और पुराने इलाके में तंग गलियां और भीड़ तो होती ही है. किले के अंदर भी बसावट है और बाज़ार हैं. किले के साथ ही ताप्ती नदी बहती है. दो छोटी नदियां और भी हैं - उतावली और मोहना. पावर लूम, कॉटन मिल और कपड़े का काफी व्यापार है. यहाँ की केले और उड़द की दाल मशहूर हैं.  

सन 753 से 982 तक यहाँ राष्ट्रकूट राज रहा. उस समय के सिक्के और छोटी मूर्तियां यहाँ मिली हैं. बाद में यहाँ फारूकी खानदान, मुग़ल, हैदरबाद के निज़ाम, मराठा होल्कर, सिंदिया और ब्रिटिश राज रहा. यहाँ शाहजहां बतौर सूबेदार रहा और उसकी बेगम मुमताज़ महल भी यहीं के अमीर परिवार की बताई जाती है. बुरहानपुर का नाम सूफी संत बुरहानउद्दीन के नाम पर है. दो दिन के पड़ाव में देखे पर्यटन स्थलों की कुछ फोटो प्रस्तुत हैं.

1. शाही किले का महल शाम के लाइट और साउंड शो में सुन्दर नज़र आता है. पंद्रहवीं शताब्दी में फारूक़ी शासक आदिल शाह प्रथम द्वारा बनवाया गया ये किला ताप्ती नदी के दाहिने किनारे पर है  

2. 'आहूखाना' सोलहवीं शताब्दी में शाहजहां के लिए आरामगाह या शिकारगाह के तौर पर बनाया गया था. उस वक़्त शाहजहां दक्खिन की ओर हमला करने के लिए तैयारी कर रहा था. यहाँ बहुत बड़ा तालाब, बारादरी और हिरन पार्क भी था. फ़ारसी में हिरन को आहू कहते हैं  

3. आहूखाने में सैलानी 

4 . आहूखाने के अंदर 

5. आहूखाने की बारादरी 

6. बारादरी की छत अब नहीं है. बारादरी और आहूखाना के बीच तालाब था. ऐसा भी कहा जाता है की मुमताज़ महल को इसी पार्क में दफनाया गया था. शाहजहां का प्लान था की बेगम की याद में बहुत बड़ा और बहुत खूबसूरत मकबरा बनाया जाए. पर वास्तुकारों ने बताया की ना तो यहाँ सफ़ेद संगमरमर मिलता है और न ही यह जमीन बड़ी इमारत बनाने लायक है. बाद में मुमताज़ को आगरा के ताजमहल में दोबारा दफनाया गया 

7. शाही किले का दरवाज़ा 

8. किले में संगमरमर से बना शाही हमाम 

9. ताप्ती नदी से पानी लाने के लिए सिस्टर्न का उपयोग किया जाता था और पानी की निकासी के लिए अच्छा प्रबंध किया हुआ था 

10. किले की मस्जिद की मीनार

11. शाही किला. यहाँ शाहजहां कुछ समय के लिए सूबेदार की हैसियत से रहा था  

12. शाही किला 

13. शाही किला 

14. शाही किले के महल का एक हिस्सा 

15. किले के साथ बहती ताप्ती नदी 

16. किले की छत से ताप्ती नदी का एक दृश्य 

17. शहर का जलेबी सेंटर. यहाँ की ख़ास जलेबी है पनीर जलेबी. बड़ी और मोटी पर टेस्टी. ऑटो चालक ने इसकी बड़ी तारीफ़ की और हमें यहाँ ले आया. हमारे लिए तो 1/2  ही काफी थी. पर यहाँ खूब चलती है

18. शाही जामा मस्जिद. शहर के बीच में बनी है और ज्यादातर काला पत्थर इस्तेमाल किया गया है. अंदर एक दीवार पर संस्कृत के कुछ श्लोक छत के नज़दीक दीवार पर लिखे हुए हैं पर न तो पढ़ पाए न मोबाइल से फोटो आ पाई 

19. शाही जामा मस्जिद बुरहानपुर 

20. ये आम जनता के लिए हमाम हुआ करता था

                                                                               21. हमाम 


22. शाह शुजा का मकबरा 

23. इस मकबरे को शाहजहां ने सोलहवीं शताब्दी में अपने बेटे शाह शुजा की बेगम बिलकिस बानो के लिए बनवाया था. अंदर शंख के गारे से पलस्तर किया गया है जिस पर सुन्दर चित्रकारी है 

24. शाह शूजा का मकबरा जिसे आम तौर से खरबूजी मकबरा कहा जाता है. ऊपर का कलश कुछ कुछ हिन्दू शैली से मेल खाता है 

25. सत्रहवीं शताब्दी में बना शाह नवाज़ खान का मकबरा जिसे 'काला ताजमहल' भी कहा जाता है क्यूंकि इसमें काला पत्थर इस्तेमाल किया गया है. इसे शाह नवाज़ खान के पिता अब्दुल रहीम खान-ए-खाना ने बनवाया था. अब्दुल रहीम इस सूबे का नौ साल मुग़ल सूबेदार रहा   

26. काले पत्थर के खम्बे 

27. जाली और कोर्निस का काम 

28. 'काला ताजमहल' और सैलानी 

29. गुरुद्वारा श्री बड़ी संगत साहिब बुरहानपुर. सोलह एकड़ में फैला विशालकाय ऐतिहसिक गुरुद्वारा. मई-जून 1708 में नान्देड़ जाते हुए गुरु गोबिंद सिंह जी यहाँ ठहरे थे. एक हस्तलिखित गुरु ग्रन्थ साहिब की 'बीर' यहाँ रखी हुई है जो संग्रांद और गुरुपुरब के दिन दर्शन के लिए रखी जाती है  

30. दाऊदी बोहरा समाज की मस्जिद. दाउदी बोहरा, शिया मुस्लिम की इस्माइली शाखा के तैय्यबी उप-सम्प्रदाय का एक उप-समूह है. इनकी संख्या दस से पंद्रह लाख है और ये भारत के अलावा पाकिस्तान, यमन, मिस्र आदि देशों में रहते हैं. इनकी भाषा 'लिसान अल-दावत' में अरबी, फ़ारसी, गुजराती और संस्कृत के शब्द भी शामिल हैं. बोहरा महिलाएं रंगीन बुर्के पहनती हैं और काफी पढ़ी लिखी हैं. 

31. दरगाह-ए -हकीमी. ये दरगाह 17 वीं सदी के सैय्यद अब्दुल कादिर हकीमुद्दीन मौला ( 1665-1730 ) की याद में बनवाई गई थी. वे एक धर्म गुरु थे और इसलिए यह एक तीर्थ है और यहाँ बोहरा समाज के काफी लोग दूर दूर से आते हैं. 

32. दरगाह में शांत वातावरण रहता है. तीर्थ यात्रियों के लिए रहने और खाने की व्यवस्था है 

33. दरगाह के आसपास सुन्दर बगीचे 

34. बुरहानपुर शाही किले का गेट 

35. शाही किले की दीवार 

36. असीरगढ़ का किला. ये ऐतिहासिक किला बुरहानपुर से लगभग 20 किमी दूर है. सतपुड़ा पहाड़ी पर स्थित यह किला 'दक्खिन की चाबी' कहलाता था. समुद्री स्तर से 701 मी ऊँचे किले में एक महल, शिव मंदिर और मस्जिद बने हुए हैं. तीन बार में विकसित किले के तीन भाग हैं: असिर्ग गढ़, कमगर गढ़  और मलय गढ़. पर अब इसे असीरगढ़ के नाम से ही जाना जाता है  

37. असीरगढ़ किले का एक हिस्सा 

38. बुरहानपुर से दूरियां - हैदराबाद 625 किमी, नागपुर 442 किमी, उज्जैन 245 किमी