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Friday, 25 September 2020

मीठी बोली

जनरल मैनेजर( रिटायर्ड ) गोयल साब ने शाम की तैयारी शुरू कर दी. नहा धो के चकाचक कुरता पायजामा पहन लिया. सिर पर जुल्फों के नाम पर गिनती के चार बाल बचे थे, उन पर प्यार से कंघी फेरी क्यूंकि बेशकीमती जो हैं. डाइनिंग टेबल पर दो बियर के गिलास, एक प्लेट में चखना और फ्रिज में से चिल्ड बोतल निकल कर रख ली. मोबाइल उठा कर नंबर लगाया,

- आजा भाई मन्नू!  आज की शाम तेरे नाम!

मन्नू उर्फ़ मनोहर आ गया और बोला - वाह वा! गोयल यार दिल खुश कर दिया. पर ये बताओ ये शाम मेरे नाम क्यूँ? और भाभी सा कहाँ हैं?

- भाभी गई है अपनी बहन के पास. मुझे तो लगता नहीं की वो वापिस आएगी अब तो सुबह ही आएगी. इशारा कर गई थी की फ्रिज में सब कुछ तैयार है भूख लगे तो माइक्रो कर लेना. ये लो अपना ग्लास चियर्स.

- चियर्स गोयल सा! पास में ही तो गई हैं कौन सा दूर है?

- अरे भई मुझे पता है दोनों बहनों में घंटों बातें चलेंगी. मतलब की कम और बेमतलब की ज्यादा बातें होंगी. कभी हँसेंगी, कभी फुसफुसाएंगी और कभी रोएंगी. मुझे आज तक ये समझ नहीं आया की ये बहनें जब इकट्ठी बैठती हैं तो कितनी बातें करती हैं? क्या बातें करती हैं? जाने किस बात पर तो हंसती हैं और ना जाने किस बात पर रोती हैं. मेरी समझ के बाहर है. अगर दोनों बतिया रहीं हों और मैं पहुँच जाऊं तो दोनों मिल कर मुझ पर ही टूट पड़ती हैं - लो आ गए पी के? ये पेट कहाँ जा रहा है? बोतल ख़तम कर दी होगी? चश्मा तो साफ़ कर लेते? अरे इनकी कथा वैसी है जैसे हरी अनन्त हरी कथा अनन्ता. ये लो खाते भी रहो साथ साथ.  

- आपने तो लम्बी हांक दी. हालांकि मेरी वाली तो अकेली बिटिया है अपने माँ बाप की पर आम तौर पर ऐसा ही होता है. जब कभी उसकी कोई कज़न वज़न आ जाती है तो बातें नॉन स्टॉप चलती हैं इनकी. पर गोयल सा ये तो आज की बात है ना जब हम और आप सठियाए हुए हैं हाहाहा. जब तीस पैंतीस के थे तब की बात करो ना आप!  

- और मैं क्या कह रहा हूँ भई. शुरू में जब ये बाइक के पीछे बैठती थी तो कुछ ना कुछ स्वीट स्वीट बोलती रहती थी और मुझे भी स्वीट स्वीट फीलिंग आती थी. कुछ दिनों बाद में इस मीठी मीठी बोली की मिठास कम हो गई. और कुछ दिन गुज़रने के बाद मीठी बोली फीकी हो गई और फीकी बोली कांय कांय में बदलने लग गई. और तब मैंने तो हेलमेट ले लिया, कान बंद. और फिर भी बोलती तो स्पीड बढ़ा देता फटफट-फुररर. अब बोलती रह.

- भाई जवानी तो जवानी थी. फटफटिया दौड़ाता था मैं. कितना पेट्रोल फूंक दिया कसम से इनकी सेवा में. सैकड़ों बार तो इंडिया गेट पर इन्हें आइस क्रीम खिला दी. इतनी खिला दी की बस उलटे मुझे ही शुगर हो गई कमबख्त! कभी कभी दोनों बहनों को बैठा कर भी घुमाया और कभी होली भी खूब खेली. फिर बस धीरे धीरे रस्ते अलग अलग हो गए. पता ही नहीं चला.

- वाह गोयल सा वाह! पुराने खिलाड़ी हो.

- अरे यार नौकरी लगने के बाद जिंदगी की चरखी ऐसी घूमी की कुछ पता ही नहीं चला. शादी, फिर बालक आ गए, कभी ट्रान्सफर और कभी प्रमोशन हो गई. अब मुड़ कर देखो तो और ही नज़ारा दिखता है.

 - घंटी बजी गोयल सा? किसी ने आना था?

- देखता हूँ कहीं वापिस तो नहीं आ गई? हाँ वापिस आ गई है शैतान को याद किया तो उसकी खाला आ गई. आप तो बैठो यार.  

- नमस्ते भाभी जी. बस अभी आपको याद कर रहे थे गोयल सा.

- नमस्ते जी. याद कर रहे थे? ये कहाँ याद करते हैं मुझे?

- ओहो मैं तो अभी इस को कह रहा था की जब तक भाभी की मधुर मधुर आवाज़ सुनाई ना दे तब तक यहीं बैठो. 

- गोयल सा अब आप मधुर मधुर आवाज़ सुनो और मैं चला अपनी बुलबुल की आवाज़ सुनने! 

बुलबुल 


15 comments:

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2020/09/blog-post_25.html

राजेश ढांडा said...

बढ़िया। आपके निजी अनुभव झांक रहे हैं।

A.K.SAXENA said...

बहुत खूब। मजेदार प्रसंग। मीठी बोली काय काय में बदल गयी। अब बचने को हेल्मेट लगा रहे हो। येह तो झेलना ही पड़ेगा।
मुसीबत कौन झेलेगा,
लुत्फ तो हमने उठाये हैं।

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद राजेश. कुछ आप बीती कुछ जग बीती!

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद A.K.Saxena साब. कोई उपाय भी बता देते

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (27-09-2020) को    "स्वच्छ भारत! समृद्ध भारत!!"    (चर्चा अंक-3837)    पर भी होगी। 
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
सादर...! 
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
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Rakesh said...

हा हा बहुत रोचक और हास्य से परिपूर्ण

सुशील कुमार जोशी said...

सुन्दर

Onkar said...

सुन्दर प्रस्तुति

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद Onkar

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद सुनील कुमार जोशी

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद hindiguru

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद डॉ रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'. चर्चा अंक 3387 पर भी उपस्थिति होगी.

Marmagya - know the inner self said...

आदरणीय हर्षवर्धन जोग जी, नमस्ते 👏! आपकी यह हास्यमय कहानी बहुत अच्छी लगी। कहानी शिल्प और कथ्य दोनों में अतिउत्तम है। सादर साधुवाद!
मैंने आपका ब्लॉग अपने रीडिंग लिस्ट में डाल दिया है। कृपया मेरे ब्लॉग "marmagyanet.blogspot.com" अवश्य विजिट करें और अपने बहुमूल्य विचारों से अवगत कराएं।
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सादर!--ब्रजेन्द्रनाथ में अतिउत्तम है। सादर साधुवाद!

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद Marmagya - know the inner self.
आपके ब्लॉग पर भी विजिट होगी और आपकी यू ट्यूब चैनल पर भी. आपकी प्रोफाइल भी देखी.
राग दरबारी कुछ ही दिनों पहले पढ़ी थी. शेक्सपियर और पैसे बहुत पहले पढ़े थे.
आशा है मुलाकात होती रहेगी.