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Wednesday 27 December 2023

मेरठ-बैंगलोर-मेरठ कार यात्रा: 7. झालरा पाटन

झालरापाटन या पाटन एक रियासत थी जो हाड़ौती क्षेत्र, राजस्थान में आती थी. हाड़ौती में झालावाड़, कोटा, बारां और बूंदी शामिल थे. झालरा पाटन और झालावाड़ जुड़वां शहरों की तरह हैं. झालरा पाटन के पूर्व में चंद्रभागा नदी है और ये शहर पहले बड़ा व्यापारिक केंद्र हुआ करता था.  

झालावाड़ की स्थापना 1791 में झाला ज़ालिम सिंह ने की थी जो कोटा रियासत के दीवान थे. उस वक़्त ये जगह छावनी उम्मेदपुरा कहलाती थी. 1838 में झालावाड़ को कोटा से अलग कर दिया गया. उसके बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी झालावाड़ से सालाना आठ हज़ार रूपए की चौथ या ट्रिब्यूट की वसूली करती थी! इस छोटी सी रियासत में झाला मदन सिंह, झाला पृथ्वी सिंह और राणा भवानी सिंह ने राज किया।

आस पास के इलाके में काफी बारिश होती है इसलिए यहाँ ताल तल्लैय्या हैं और चंद्रभागा नदी के अलावा छोटी नदियां जैसे कालीसिंध और आहु भी हैं. इसलिए सारा क्षेत्र हरा भरा रहता है और ख़ास तौर पर मानसून में बहुत सुन्दर हो जाता है. पाटन बहुत बड़ा नहीं है और ऑटो ले कर घुमा जा सकता है. पतन और झालावाड़ में बहुत से दर्शनीय स्थान हैं जिनमें से कुछ की फोटो प्रस्तुत हैं. 

1. सूर्य मंदिर का शिखर जिस के बाहर और अंदर दोनों तरफ सुन्दर नक्काशी है. फूल पत्तों के अलावा, यक्ष-यक्षिणी, और देवी-देवताओं का सुन्दर चित्रण है. मंदिर झालरा पाटन शहर के बीच भीड़ भाड़ वाले बाजार में बना हुआ है.

2. सूर्य मंदिर 11वीं / 12वीं शताब्दी में बना बताया जाता है. कहा जाता है कि इस मंदिर के आगे पत्थर का रथ भी बना हुआ था जो अब नहीं है

3. लाल बलुआ पत्थरों से बने खम्बों पर भी सुन्दर मूर्तियां उकेरी गई हैं. 

4. ये भाग बाद में 19वीं शताब्दी में जोड़ा गया है.
 
5. मंदिर के तीन प्रवेश द्वार हैं जिन पर सुन्दर तोरण बनी हुई हैं 

6. मंदिर के गर्भगृह में विष्णु की मूर्ति है जिसे 19वीं शताब्दी में स्थापित किया गया था 

7. खम्बे पर नक्काशी 

8. झालावाड़ में राजस्थान सरकार का संग्रहालय भी है जहाँ आस पास की खुदाई में निकलीं मूर्तियां भी रखी गई हैं. ये मूर्ति शीतला देवी की है जिनकी सवारी गर्दभ है

9. अर्धनारीश्वर की सुन्दर प्रतिमा। शिव और शक्ति का एक ही शरीर में मिलन 

10. चामुण्डा जिसे देखते ही भय उत्पन्न हो जाए. असुरों के सेनापतियों चण्ड और मुण्ड का वध करके चामुण्डा कहलाई

11. सिद्धपीठ आनंद धाम का मुख्य द्वार। यह मंदिर नौलखा किले के अंदर स्थित है

12. नौलखा किले का एक भाग 

13. नौलखा किला बहुत बड़ा नहीं है. इसे झाला पृथ्वी सिंह द्वारा 1860 में बनवाया गया था

14. नौलखा किला बनवाने में नौ लाख रूपए खर्च हुए थे इस कारण से इसका नाम नौलखा किला रख दिया गया


15. द्वारकाधीश झाला राजपूतों के कुल देवता थे. यह द्वारकाधीश मंदिर झाला ज़ालिम सिंह ने 1800 के आस पास बनवाया था. 

16. द्वारकाधीश मंदिर से लगा गोमती सागर 

 
17. चंद्रभागा नदी पर बना घाट. इस नदी को पहले चंद्रावती भी कहा जाता था. इसके किनारे बसे  शहर को चंद्रावती नगरी कहा जाता था. यहाँ आठवीं शताब्दी के कुछ मंदिर भी हैं जिन्हें मालवा नरेश ने बनवाया था 


18. आठवीं शताब्दी का शिव मंदिर 

19. मंदिर परिसर में 

20. मंदिर परिसर में प्राचीन चौखम्बा 

21. बाय बाय झालावाड़ कहने से पहले गागरों किला भी देखना है 




Sunday 24 December 2023

मेरठ-बैंगलोर-मेरठ कार यात्रा: 6. सुख महल और रुडयार्ड किपलिंग

बूंदी से कुछ ही दूर सुख महल है. ये छोटा सा महल या शिकारगाह जैत सागर झील के किनारे है जिसे राजा विष्णु सिंह ने 1776 में बनवाया था. बूंदी राज्य के दीवान और वास्तुविद सुखराम की देख रेख में महल बनवाया गया था इसलिए इसका नाम सुख महल रख दिया गया. सुन्दर, शांत और मनोरम जगह है ये. आस पास के घने जंगल में शिकार करने शाही परिवार आया करता था. ऑटो वाला लगभग बीस मिनट में पहुंचा देगा और कार में कुछ ज्यादा समय लगेगा।

सुख महल की प्रसिद्धि का एक और कारण रुडयार्ड किपलिंग भी हैं. रुडयार्ड किपलिंग ( 1865 - 1936 ) ब्रिटिश लेखक, कवि, लघु कथाकार और पत्रकार थे और इस सुख महल में 1899 में दो दिन रहे थे. किपलिंग का जन्म मुंबई में हुआ था और पढ़ाई लिखाई इंग्लैंड में. उनकी लघु कथाएं काफी लोकप्रिय हुईं थीं और 'जंगल बुक' उनकी लोकप्रिय पुस्तक है. वाल्ट डिसने ने इस किताब पर फिल्म भी बनाईं वो भी खूब पसंद की गई. कुछ लोगों का ख्याल है की यहाँ किपलिंग ने 'जंगल बुक' लिखी और कुछ का कहना है की यहाँ 'किम' लिखी जिस पर बाद में हॉलीवुड में फिल्म भी बनी. बहरहाल किपलिंग को यहाँ सुख महल में राजा रजवाड़ों और शिकार के बारे में काफी किस्से कहानियां सुनने को मिली होंगी। 

सुख महल परिसर में एक संग्रहालय भी बनाया गया है जिसमें बूंदी और आस पास से मिली मूर्तियाँ और हथियार औज़ार भी रखे गए हैं. ज्यादातर वस्तुएं दसवीं शताब्दी से लेकर सत्रहवीं शताब्दी से सम्बंधित हैं. प्रस्तुत हैं कुछ फोटो:

1. सुख महल का शानदार नज़ारा। मन को शांति और ठंडक देने वाला

2. ये झील तीन तरफ से पहाड़ियों से घिरी हुई है जिन पर घने जंगल हैं इसलिए ये राजा सा की शिकारगाह भी थी 

3. झील में कमल के पौधों की भरमार है. ऋतु आने पर एक साथ खिलते होंगे तो और भी अच्छा लगता होगा 

 
4. सुख महल 

 
5. सुख महल 

 
6. सुख महल 


7. सुख महल के बगीचे में बनी सुन्दर बारादरी 

8. गणेश नृत्य करते हुए. नीचे पैरों के पास संगीतकार भी हैं - दसवीं शताब्दी   

9. इन्द्र अपनी पत्नी के साथ - बारहवीं शताब्दी 

10. सप्त मातृका पैनल का टुटा हुआ भाग - बारहवीं शताब्दी 

11. प्रेमी युगल और राजा रानियों की मूर्तियां - दसवीं शताब्दी  

12. पुरानी पिस्तौल 


13. ढाल और छोटे हथियार 


14. जैत सागर में नागरी शैली में बना मंदिर 



Thursday 21 December 2023

मेरठ-बैंगलोर-मेरठ कार यात्रा: 5. बूंदी का किला

बूंदी राज्य की स्थापना 1342 में हाड़ा राजपूत राव देवा सिंह हाड़ा ने की थी. इससे पहले यहाँ की बागडोर सरदार बूंदा मीणा के हाथ में थी और इस क्षेत्र को 'बूंदा का नाल' कहा जाता था. कहा जाता है कि बूंदा मीणा के पौत्र जैत मीणा से छल पूर्वक राज ले लिया गया था. इसके बाद बूंदी और आसपास का इलाका हाड़ौती कहलाने लगा. 1544 के बाद बूंदी राज्य मेवाड़ के आधीन, 1569 में मुग़लों के आधीन और 1818 में ब्रिटिश के आधीन हो गया. 1947 में बूंदी का भारत में विलय हो गया. किला 1342 में बनना शुरू हुआ था और धीरे धीरे बढ़ता गया. बनावट केवल राजस्थानी शैली में है. अंदर सुन्दर महल, मंदिर हैं. पानी की शानदार व्यवस्था है. किले में पत्थर काट कर बनाई हुई झील भी है. कुछ फोटो प्रस्तुत हैं.

1. हाथी पोल याने हाथी दरवाज़ा, राजा सा हाथी पर बैठे बैठे अंदर या बाहर आ जा सकते थे 


2. किला काफी बड़ा है और सबसे ऊँची बुर्ज पर पहुंचना भी एक एडवेंचर है 

3. हिण्डोला ! झूला डालने के लिए बने खम्बे 

4. राजा सा का सिंहासन 

5. दरबार हॉल 

6. दरबार हॉल 

7. महिला दीर्घा। यहाँ से दरबार हाल देखा जा सकता था 

8. ऊपरी मंज़िल 

9. महिला निवास का एक दृश्य 

10. बादल महल 

11. बदल महल के सुन्दर खम्बे 

12. छोटा सा पूल. महल में गर्म और ठन्डे पानी की व्यवस्था थी 

13. फूल महल 

14. शाही शौचालय 


15. ना घर तेरा ना घर मेरा चिड़िया रैन बसेरा

16. पहरेदार की बुर्जी 

17. अस्तबल 

18. चित्रशाला की ओर ऊपर  जाता रास्ता 

19. किले के प्रवेश से पहले गणेश मंदिर 

20. किले की एक छत से नज़र आता बूंदी शहर 

21. हाथी पोल के अंदर 

22. राजा सा अपने सिंहासन पर बैठे बैठे हाथी पोल से आने जाने वालों को देख सकते थे