ग्वालियर का किला ग्वालियर शहर के पास एक ऊँची पथरीली पहाड़ी पर है. पहाड़ी आसपास के मैदान से सौ मीटर ऊँची है और इसका नाम गोपाचल पहाड़ी है. गेरुए लाल रंग के बलुए पत्थरों से बना किला तीन वर्ग किमी में फैला हुआ है. दीवारों की लम्बाई दो मील है. किले की अंदरूनी चौड़ाई दो सौ मीटर से लेकर एक हज़ार मीटर तक है. किले के अंदर मंदिर, महल, पानी के तालाब, जेल और अब म्यूजियम भी है.
ये किला कब बनाया गया और किसने बनवाया इसकी पक्की जानकारी नहीं है. माना जाता है की छठी शताब्दी में यहाँ मूल रूप से किला बना था. किले से सम्बन्धित नवीं और दसवीं शताब्दी के सम्बन्धित अवशेष भी मिले हैं जिससे लगता है की किला तब भी मौजूद था.
किले के बारे में एक किस्सा मशहूर है कि राजा सूरज सेन इस पहाड़ी पर पीने के लिए पानी ढूँढ रहे थे. उन्हें एक संत ग्वालिपा ( कहीं कहीं ऋषि गलवा भी लिखा हुआ है ), नज़र आये जो उन्हें सूरज कुंड तक ले गए. राजा ने पानी पिया तो उनकी प्यास तो बुझी ही साथ में उनके शरीर का कोढ़ भी दूर हो गया. राजा ने यहाँ किला बनवाया और उसका नाम ग्वालियर किला रख दिया.
भारत में बने दूसरे किलों की तरह यह किला भी कई शासकों के आधीन रहा. कई राजाओं ने हमले किये और कई राजाओं ने इसे बनाया संवारा.
दसवीं शताब्दी में यहाँ कच्छपघात राजा राज कर रहे थे.
1022 में महमूद ग़ज़नी ने किले पर चार दिन का कब्ज़ा जमाए रखा और 35 हाथियों के बदले किला खाली किया.
1196 में कुतुबद्दीन ऐबक ने किला कब्जा लिया.
1232 में किला इल्तुतमिश के हाथ में चला गया.
1398 में यहाँ तोमर वंश ने अधिकार जमा लिया. तोमर वंश में राजा मान सिंह तोमर का नाम बहुत प्रसिद्द है. मान सिंह ने यहाँ किले में मान मंदिर महल और अपनी गूजर रानी मृगनयनी के लिए
गुजरी महल बनवाया.
1516 में इब्राहिम लोदी के हमले में राजा मान सिंह हार गए और मारे गए.
1526 में बाबर ने किला हथिया लिया.
1542 में शेर शाह सूरी ने किला जीत लिया. सूरी सल्तनत के जनरल हेमू या हेमचन्द्र ने यहाँ किलेदारी की.
1558 में अकबर ने किला जीत लिया.
1707 में औरंगजेब के मरने के बाद ग्वालियर किले पर गोहद राणा छतर सिंह ने कब्जा कर लिया. टैक्स वसूली के झगड़े में मराठा सेनापति ने छतर सिंह पर हमला बोल कर किला वापिस ले लिया.
1780 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने किला जीत लिया पर गोहद के राणा को वापिस कर दिया.
1784 में शिन्दे ने फिर से राणा छतर सिंह से किला जीत लिया.
1808 से 1844 के बीच किले पर कभी अंग्रेजों का और कभी मराठों का अधिकार रहा. 1844 में किला अंग्रेजों ने अपने संरक्षण में शिंदे ( या सिंदिया ) परिवार को दे दिया.
1857 में जब स्वाधीनता संघर्ष का बिगुल बजा तो किले के फौजियों ने अंग्रेजों के खिलाफ 'बगावत' कर दी. पर जयाजी शिंदे अंग्रेजों के खिलाफ नहीं गए.
1858 में फिर से किले पर अंग्रेजों ने अधिकार जमा लिया.
1886 तक अंग्रेजों की हालत उत्तर भारत में काफी मजबूत हो गई थी और उन्हें अब किले की जरूरत नहीं रही थी. किला एक बार फिर से सिंदिया परिवार को दे दिया गया. सिंदिया परिवार ने किले में काफी काम कराए और 1947 तक किला उन्हीं के पास रहा.
ग्वालियर का सालाना तापमान 5 डिग्री से लेकर 46 डिग्री तक हो सकता है. अक्टूबर से मार्च तक का समय किला देखने के लिए आरामदेह है. यहाँ दोपहर की धूप तीखी है और पथरीली सतह के कारण गर्मी तेज़ हो जाती है. किले में पैदल जाने के लिए ग्वालियर गेट है. गाड़ी ले जानी हो तो उरवाई गेट से ले जा सकते हैं. पर गेट से पहले सड़क बहुत संकरी है और चढ़ाई अचानक आ जाती है इसलिए गाड़ी सावधानी से चलानी होगी.
पार्किंग और किले के अंदर जाने का टिकट है जो सभी स्मारकों में मान्य है. अंदर छोटा सा रेस्टोरेंट भी है. किले के अलावा आप उसी टिकट में
सहस्त्रबाहू मंदिर,
तेली का मंदिर और
गुरुद्वारा दाता बंदी छोड़ भी देख सकते हैं.
अपनी रूचि के मुताबिक किले में चार पांच घंटे भी लगा सकते हैं या फिर दो तीन दिन भी. ग्वालियर शहर में रोड, रेल या हवाई जहाज से आसानी से पहुंचा जा सकता है. सभी तरह के होटल और सुविधाएं उपलब्ध हैं.
प्रस्तुत हैं किले की कुछ फोटो:
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1. ग्वालियर का किला. किले के बाएँ बुर्ज का ऊपर वाला हिस्सा तोप के गोलों से नष्ट हो गया था |
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2. किले का मुख्य प्रवेश द्वार |
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3. किले की वास्तु हिन्दू शैली में है. नीली टाइलें विदेशी बताई जाती है. इनका रंग अब फीका पड़ रहा है |
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4. किले के क्षतिग्रस्त भाग को सीधे सपाट लाल पत्थरों से ढक दिया गया है |
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5. अंदर महल में सुंदर झरोखे और नक्काशी |
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6. लाल बलुए पत्थर पर शानदार कारीगरी |
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7. तहखाना यहाँ रानियों के रहने का इंतजाम था. हवा के लिए रोशनदान और नहाने के लिए पानी का बड़ा हौज़ था जो अब कवर कर दिया गया है |
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8. रनिवास के झरोखे, नक्काशीदार खम्बे |
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9. छत पर की गई शानदार नक्काशी |
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10. फर्श के कुछ पत्थरों में फूल पत्ते भी हमेशा के लिए स्थापित हैं |
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11. सुंदर कारीगरी |
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12. राजा रानी का बेडरूम और आगे का दालान |
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13. बेडरूम. बेडरूम के तीन ओर परिक्रमा बनी हुई है. इस परिक्रमा में अगर सीधे खड़े होकर चलेंगे तो कुछ नहीं दिखेगा. अलार्म बजाने के लिए दासियां पैर में घुंघरू बाँध कर इस परिक्रमा से निकलती थी. |
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14. गाइड आपकी भी इस तरह की फोटो खींच देगा |
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15. तहखाने का एक और कमरा |
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16. जहाँगीर महल का वरांडा |
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17. किले से नज़र आता शहर |
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18. गोपाचल पहाड़ी पर बना किला. इस किले की दीवारें पहाड़ी के सिरे पर बनाई गई हैं. इसलिए एकसार ना होकर आड़ी तिरछी हैं |
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19. किले का दूसरा छोर और शहर. किले की दीवार की लम्बाई लगभग दो मील है |
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20. किले से नीचे जाने का रास्ता |
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21. ब्रिटिश तोप |
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22. जौहर कुण्ड. इस कुण्ड में लकडियाँ डाल कर आग जला दी जाती और बहुत सी रानियाँ और विवाहित औरतें यहाँ कूद पड़ती थी. कुण्ड में से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं है |
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23. करण महल |
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24. किले का जेल. अकबर और औरंगजेब ने यहाँ अपने विरोधियों को बंदी बना कर रखा था. जहाँगीर ने सिखों के छठे गुरु हरगोबिंद सिंह जी महाराज को इस जेल में बंद कर रखा था |
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25. सहस्त्रबाहू मंदिर की एक झलक |
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26. म्यूजियम का प्रवेश. किले और ग्वालियर के आसपास के इलाकों में पाई गई मूर्तियाँ और अन्य अवशेष यहाँ रखे हुए हैं |
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27. किले में एक छोटा सा नौवीं सदी का चतुर्भुज मंदिर है जहाँ एक अभिलेख में ज़ीरो या शून्य का 'इस्तेमाल' किया गया है जैसे की पचास - '50' मालाएं. पहले ये ज़ीरो का प्राचीनतम लेख माना जाता था. परन्तु कुछ समय पहले बख़शाली, पेशावर में सन 224 - 383 की पेड़ की छाल पर लिखी पाण्डुलिपि मिली है जिसमें शून्य का प्रयोग मिला है |
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28. उरवाई गेट से किले की ओर जाती सड़क और ऊपर नज़र आता किला |
5 comments:
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यह जानकारी बहुत ज्यादा उपयोगी लगी। धन्यवाद।
धन्यवाद Hindisuccess
अति महत्वपूर्ण।
Thank you Mittal ji.
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