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Saturday 26 January 2019

दूल्हादेव मंदिर खजुराहो

मध्य प्रदेश का छोटा सा शहर खजुराहो अपने मंदिरों के कारण विश्व प्रसिद्द है. ये सभी मंदिर विश्व धरोहर - World Heritage Site में आते हैं. भोपाल से खजुराहो की दूरी 380 किमी है और यह छतरपुर जिले का हिस्सा है. खजुराहो की स्थापना करने वाले चन्देल राजा चंद्र्वर्मन थे जिन्होंने इसे अपने राज्य की राजधानी बनाया था. चन्देल राजवंश ने लगभग नौवीं शताब्दी से लेकर तेरहवीं शताब्दी तक बुंदेलखंड के कुछ हिस्सों और उसके आस पास राज किया था. इस दौरान पहले राजधानी खजुराहो में बनी और फिर महोबा में बना दी गई थी.

खजुराहो के ज्यादातर मंदिर सन 850 से सन 1150 के बीच चंदेल राजाओं द्वारा बनवाए गए थे. बीस वर्ग किमी में फैले क्षेत्र में पच्चासी मंदिरों का निर्माण हुआ था जिनमें से केवल पच्चीस मन्दिर ही बचे हैं. इनमें से पहला मंदिर चौंसठ योगिनी मंदिर माना जाता है जो 850 - 860 में बना और आखिरी मंदिर - दुलादेव मंदिर लगभग 1110 - 1125 में चंदेल राजा मदन वर्मन द्वारा बनवाया गया माना जाता है. दुलादेव मन्दिर को दुल्हादेव मंदिर या फिर कुंवरनाथ मठ भी कहा जाता है. मंदिर पांच फुट ऊँचे, 69 फुट लम्बे और 40 फुट चौड़े चबूतरे पर स्थापित है और भगवान शिव को समर्पित है. प्रस्तुत हैं कुछ फोटो:

1. दुलादेव मंदिर का प्रवेश मंडप. चंदेल वंश के राजा मदनवर्मन की दें है ये शिव मंदिर 

 2. दुलादेव मंदिर. मंदिर का काफी हिस्सा ढह गया है और पत्थर के बड़े बड़े ब्लाक एक दूसरे पर फंस कर टिके हुए हैं. मंदिर का मुख पूर्व की ओर है. निर्माण का समय सन 1000 से 1150 तक के मध्य माना जाता है 

3. पिछली ओर का भाग कुछ बचा हुआ है. नीचे के पांच शिखरों में से बांये हाथ वाला सीधे सपाट पत्थरों से पूरा किया गया है. पांच छोटे शिखरों पर तीन और उन के उपर तीन और उनके ऊपर एक शिखर खूबसूरत तरीके से बनाया गया है   

4. मंदिर के गर्भ गृह में मूर्ति ना होकर शिवलिंग है. इसे भी खंडित मूल शिवलिंग की जगह लगाया गया है. इसकी खासियत है के इस पर 999 छोटे छोटे शिवलिंग उकेरे गए हैं. अर्थात एक परिक्रमा 1000 परिक्रमाओं के बराबर हो जाती है 

5. खजुराहो के दूसरे मंदिरों की तरह दुलादेव मंदिर की बाहरी दीवार पर तीन श्रंखलाओं में मूर्तियाँ गढ़ी गई है. सबसे ऊपर उड़ते हुए मस्त युगल हैं. अप्सराएं हैं जो दो या तीन के ग्रुप में स्वछन्द उड़ रही हैं. दूसरी लाइन में नंदी, शिव और पार्वती हैं और तीसरी में कई राजा रानियाँ और शिव-पार्वती हैं. बीच बीच में कामुक मूर्तियाँ भी हैं 

6. बाहरी दीवार में शिव 

7. पूरा मंदिर एक सप्तरथ की तरह बना है और ऊँचे चबूतरे पर स्थित है जिस पर परिक्रमा की जा सकती है. इस दीवार की मूर्तियाँ क्षतिग्रस्त हैं   

8. मिथुन 

9. सभी मूर्तियों में सुंदर और बारीक भाव भंगिमा और तरह तरह के जेवर हैं. इस तरह के आभूषण खजुराहो के मंदिरों की खासियत है

10. बीच में कामुक जोड़े 

11. हर मूर्ति कुछ कहती है 


12. भारी भरकम पत्थर जरूर हैं पर उतनी ही महीन कारीगारी भी है. चाहे फूल पत्ते हों, जानवर हों, पुरुष हों या महिलाएं बहुत सुंदर, बारीक और शानदार काम किया गया है. पत्थरों के कोने, घुमाव, एक दूसरे में फासला बहुत ही नपा तुला और सटीक है. ये सब कुछ एक हजार साल पहले बिना मशीन के! जितनी तारीफ़ की जाए उतनी ही कम है 





2 comments:

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2019/01/blog-post_26.html

Noble.07 said...

Great, sublime depiction of desire,accomplishment and salvation, the ultimate aim of birth and life🙏