दतिया शहर ग्वालियर से 75 किमी दूर है और बुन्देलखण्ड क्षेत्र का एक ऐतिहासिक नगर है. इस इलाके में बुंदेला राजपूत राजाओं का राज रहा है तभी ये क्षेत्र बुंदेलखंड कहलाता है. इन बुंदेला शासकों में से राजा बीर सिंह देव का नाम बहुत मशहूर है. राजा बीर सिंह देव ने दतिया और आसपास बावन बड़ी इमारतें बनवाई जिनमें दतिया महल भी शामिल है.
दतिया महल को बीर सिंह महल या जहांगीर महल भी कहा जाता है. राजा बीर सिंह देव और शहज़ादा सलीम में अच्छी दोस्ती थी पर सलीम के पिता बादशाह अकबर अपने बेटे सलीम से खफ़ा थे. अकबर ने अपने विश्वस्त अबुल फज़ल को अचानक दक्षिण की मुहीम से तुरंत वापिस आने का सन्देश भेजा. शहजादा सलीम को अबुल फज़ल का आना नागवार गुज़रा. शहजादे ने राजा बीर सिंह देव को अपने साथ मिला लिया. अबुल फज़ल 1602 में जब वापिस आ रहा था तो रास्ते में राजा बीर सिंह देव से हमला करवा कर मरवा दिया. बदले में शहजादे सलीम से राजा बीर सिंह देव की दोस्ती और पक्की हो गयी. सलीम बाद में जहाँगीर के नाम से गद्दी पर बैठा. राजा बीर सिंह देव ने जहांगीर के सम्मान में सात मंजिला जहांगीर महल या दतिया महल 1614 - 1622 में बनवाया हालांकि जहांगीर कभी इस महल में नहीं आया और ना राजा बीर सिंह देव का परिवार इसमें कभी रहा.
यह विशाकाय महल अस्सी मीटर चौड़ा और अस्सी मीटर लम्बा है. चट्टानी पहाड़ी पर बने महल की पांच मंजिलें ऊपर हैं और दो मंजिलें नीचे तहखाने में हैं. महल के बीच का बुर्ज पैंतीस मीटर ऊँचा है. महल बनाने में लकड़ी या लोहे का इस्तेमाल नहीं किया गया है. महल की बनावट में इस्लामी और बुन्देली वास्तु का मेलजोल है.
ग्वालियर से झाँसी जाते हुए राष्ट्रिय राजमार्ग 44 पर दूर पहाड़ी पर ये महल नज़र आ रहा था. ये कौन सा महल या किला है ऐसी जानकारी हमें नहीं थी. पर फिर भी हमने गाड़ी उस तरफ मोड़ ली कि चलो इस इमारत को भी देखते चलते हैं. इस शानदार महल को गन्दी सी बस्ती ने घेर रखा है. खुली नालियां, तंग गलियाँ जिनमें सूअर, कुत्ते, बकरियां और गाय घूम रहे थे. छोटे छोटे मकान थे जो कुल मिलकर गैर कानूनी अतिक्रमण ही लग रहा था. ऐसा लगा कि लोग इस महल को देखने नहीं आते? या कोई और रास्ता रहा होगा जिसका हमें पता नहीं लगा. खैर गाड़ी दूर खड़ी कर के पैदल गेट तक पहुँच गए. कोई टिकट नहीं और कोई गाइड नहीं था. कुछ लोग महल की ड्योढ़ी में पत्ते खेल रहे थे. उनमें से एक महल दिखाने के लिए तैयार हो गया. दो मंजिलों तक चमगादड़ों और कबूतरों ने कब्ज़ा किया हुआ है और अगर आप इन दो मंजिलों की बदबू और अँधेरा बर्दाश्त कर लें तो ऊपर की तीन मंजिलों में हवा और रौशनी है और बाहर का नज़ारा भी अच्छा है.
शानदार महल को बनाने में नौ साल का समय और तब का पैंतीस लाख रूपये लगा और हम हैं की इतनी कीमती धरोहर को संभाल भी नहीं पा रहे! ऐतिहासिक खज़ाना है इस बुंदेलखंड क्षेत्र में पर रख रखाव बस राम भरोसे है. मध्य प्रदेश में जिन स्थानों की विश्व धरोहर होने की घोषणा हो गई है जैसे खजुराहो या
भीमबेटका वहां तो व्यवस्था ठीक है और दूसरे स्मारकों और किलों महलों की हालात खराब ही लगी. इसके विपरीत कर्णाटक, महांराष्ट्र, तमिलनाडु और केरल में स्मारकों की व्यवस्था बेहतर लगी.
बहरहाल प्रस्तुत हैं कुछ फोटो:
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1. सात मंजिला महल. सात मंजिलों के कारण इसे सतखंडा महल भी कहते हैं |
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2. महल की दूसरी मंजिल से नज़र आता शहर और झील |
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3. मेहराब |
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4. दूसरी मंज़िल की सीढ़ी |
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5. पुरानी जेल |
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6. महल और महल जाने का रास्ता |
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7. महल की एक साइड |
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8.महल की चारदीवारी और बाद में बना मंदिर |
2 comments:
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अति सुंदर
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