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Saturday 19 January 2019

साँची के स्तूप -1/2

गौतम बुद्ध का परिनिर्वाण अस्सी वर्ष की आयु में ईसा पूर्व सन 483 में हुआ था. गौतम बुद्द के अंतिम संस्कार के बाद उनके अवशेषों को आठ भागों में बाँट कर आठ स्तूपों में राजगृह, वैशाली, कपिलवस्तु, अल्लाकप्पा, पावानगर, कुशीनगर, रामग्राम और वेथापिडा में दबा दिया गया. दो अन्य स्तूपों में कलशों में भस्म दबा दी गई.

समय गुज़रा और मौर्य शासन की बागडोर सम्राट अशोक के हाथ आ गई. सम्राट अशोक ने ईसा पूर्व सन 273 से ईसा पूर्व सन 232 तक राज किया. अशोक ने इस दौरान कलिंगा राज्य पर बड़ी जीत हासिल की, पर युद्ध के भयानक विनाश से दुखी होकर गौतम बुद्ध के बताए मध्य मार्ग की शरण ली.  बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए चौरासी हज़ार स्तूप, स्तम्भ, विहार और शिलालेख बनवाए. बौद्ध संघों में सुधार करवाया और गौतम बुद्ध के अवशेषों को पुनर्स्थापित करवाया. रामग्राम के स्तूप को छोड़ बाकी स्थानों से बुद्ध के अवशेषों को नए शहरों और सुदूर स्थानों में बनाए गए नए स्तूपों में स्थापित करवाया.

अशोक के सम्राट बनने से पहले उनके पिता महाराजा बिन्दुसार ने अशोक को विदिशा का गवर्नर नियुक्त किया था. विदिशा उस समय का एक समृद्ध व्यापारिक केंद्र था. यहाँ के एक व्यापारी की बेटी विदिशा देवी से सम्राट अशोक की शादी भी हुई थी. दूसरी बात यह की विदिशा के पास साँची में बौद्ध संघ भी थे. इसलिए सम्राट अशोक ने साँची में मुख्य स्तूप बनवाकर गौतम बुद्ध के कुछ अवशेषों को यहाँ स्थापित करवाया.

मुख्य स्तूप जिसे स्तूप नम्बर 1 भी कहते हैं सम्राट अशोक द्वारा ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में बनाया गया था. गौतम बुद्ध के अवशेष इंटों से बने गोलाकार छोटे स्तूप में रखे गए थे. ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में इसका पत्थर लगा कर विस्तार किया गया और ऊपर चपटा कर के छतरी रखी गई. स्तूप की उंचाई 54 फुट है और व्यास 120 फुट. सातवाहन वंश के समय तोरण और परिक्रमा जोड़ी गईं. लगभग बारहवीं शताब्दी तक यहाँ के स्तूपों में कुछ न कुछ विस्तार होता रहा और मंदिर भी बने. इसके बाद संभवत: यह जगह उपेक्षित रही, मूर्तियों को नुक्सान हुआ और ये जगह जंगल में खो गई.

सन 1818 में ब्रिटिश जनरल टेलर ने पहली बार इन स्तूपों का वर्णन किया पर तब भी पुनर्स्थापना का काम नहीं हुआ. 1912 से 1919 तक इस जगह को पुरात्तव विभाग - ASI ने सर जॉन हुबर्ट मार्शल के नेतृत्व में फिर से विकसित करने का प्रयास किया. 1989 में इसे विश्व धरोहर या World Heritage Site का दर्जा मिला. अब यहाँ एक म्यूजियम भी है और इस स्थान का रख रखाव सुंदर है.

भोपाल से साँची 46 किमी दूर है और विदिशा से 10 किमी. आने जाने के लिए बसें और टैक्सी उपलब्ध हैं. साँची और विदिशा में हर तरह के होटल उपलब्ध हैं. साँची का यह विश्व धरोहर सुबह से शाम तक खुला है और गाइड मिल जाते हैं. पार्किंग की जगह है और एक छोटा सा रेस्तरां भी है. ढाई हजार साल पहले के जीवन की झलक जरूर देख कर आएं. प्रस्तुत हैं कुछ फोटो:

1. मुख्य स्तूप के चार दिशाओं में सुंदर नक्काशीदार चार तोरण या गेट हैं जो कि साँची स्मारकों की पहचान बन चुके हैं  

2. गौतम बुद्ध के अवशेषों का प्रमुख स्तूप. पाली में स्तूप को थुपा, संस्कृत में स्तूप, चीनी में शेलिता, जापानी में शरितो, कोरियाई में सोडोल्फा और मंगोलिन भाषा में सुवर्गा कहते हैं. सबसे ऊपर क्षत्रप या छतरी है. छत के बाएँ हिस्से में किया हुआ दो हज़ार साल से ज्यादा पुराना पलस्तर अभी भी कायम है   

3. तोरण चौकोर खम्बों पर टिके हुए हैं और पत्थरों को एक दुसरे में फंसा दिया गया है. खम्बों पर चारों  तरफ सुंदर नक्काशी हैं जिनमें उस समय की घटनाएं, जातक कथाएँ, पशु, पक्षी, पेड़ पौधे वगैरा उकेरे गए हैं. इनमें हाथियों पर सवार महावत महिलाएं भी हैं  

4. खम्बे पर उकेरा गया लुम्बिनी का एक दृश्य. कुछ लोग काम पर जा रहे हैं और कुछ खिड़कियों और झरोखों में बातचीत कर रहे हैं.  ऊपर बाएँ कोने में एक गर्भवती महिला लेटी हुई है. वह रानी महामाया है और प्रजा बच्चे के जन्म की सूचना आने की इंतज़ार में हैं.

5. ऊपर वाले चित्र नम्बर 4 का एडिट किया हुआ भाग. राजमहल में गर्भवती रानी महामाया सपने में ऐरावत हाथी देख रही हैं. सिद्धार्थ के जन्म लेने का समय आ गया है 

6. गौतम बुद्ध के प्रवचन सुनने के लिए साधक बैठे हैं. बीच में वट वृक्ष है और खाली स्थान बुद्ध का आसन है. पूरे परिसर में मूर्तियों की नक्काशी बहुत है पर बुद्ध का केवल आसन ही बनाया गया कोई मूर्ति नहीं बनाई गई है. और जैसा कि हर क्लास या गोष्ठी में होता है निचली लाइन में तीन साधक बैक-बेन्चर्स की तरह बतिया भी रहे हैं

7. महल से राजा की सवारी निकल रही है. माना जाता है की ये दृश्य राजा बिम्बिसार का है जो राजगृह से गिद्धकूट पर्वत की ओर जा रहा था जहां गौतम बुद्ध विराजमान थे   

8. कुछ विदेशी शायद ग्रीक संगीतकार हैं यहाँ. इनका पहनावा, जूते, चेहरे, सिर के कपड़े, ढोल और वाद्ययंत्र बिलकुल अलग हैं  

9. गाँव का एक सुंदर दृश्य. ऊपर बाएँ कोने में पति पत्नी बतिया रहे हैं. पास में एक महिला कूट रही है, दूसरी कुछ पीस रही है और तीसरी सूप से छटाई कर रही है. दाईं ओर दो महिलाएं बालकनी में बैठी बतिया रही हैं. एक खाली आसन गौतम बुद्ध का है जिसके पीछे दो पुरुष हाथ जोड़े खड़े हैं. नीचे दाहिनी ओर एक महिला पौधों में मटके से पानी डाल रही है  

10. फूल, पत्ते और लताओं का सुंदर चित्रण 

11. खम्बे पर नक्काशी. गौतम बुद्ध के चरण, उनमें चक्र और सुंदर फूल मालाएं 

12. अभिलेख 

13. छोटे साधकों के स्तूप 

14. शेर का एक सिर है पर शरीर दोनों तरफ हैं 

15. कुछ अन्य अरहंतों के स्तूप 

17. यहाँ एक बौद्ध विहार या मोनेस्ट्री थी. आप देख सकते हैं की ये जगह सुंदर और शांत है और पहाड़ियां बहुत ऊँची नहीं हैं. पास में ही नदी भी है और जमीन उपजाऊ है. साधकों के लिए बहुत अच्छी जगह रही होगी  



4 comments:

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2019/01/12.html

राहुल रतन said...

Thanks for information

राहुल रतन said...

https://m.facebook.com/BuddhaDhamma.India/

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद राहुल रतन. फेसबुक पेज भी देखूंगा.