गुजरी महल, ग्वालियर |
आप महल देखने जाएं या किला, किस्से कहानियां जरूर सुनने को मिलेंगे. राजा लोगों के पास दौलत थी, ताकत थी और रानियों के पास समय था. ऐसे में प्यार मोहब्बत के किस्से, छोटी बड़ी घटनाएं और वारदातें होती ही रहती थीं. पिछले दिनों ग्वालियर का किला देखने गए तो वहां से नीचे देखने पर बड़ी सी इमारत नज़र आई. गाइड ने बताया कि वो बिल्डिंग गुजरी महल है. गाइड से पूछा की किले से बाहर महल क्यूँ बनाया गया था? जवाब में गुजरी महल का किस्सा उसने कुछ इस तरह सुनाया:
पंद्रहवीं सदी के आसपास ग्वालियर पर तोमर वंश का राज था. तोमर या तंवर लोग अपने को चंद्रवंशी राजपूत मानते हैं. 1486 में ग्वालियर की राज गद्दी पर मान सिंह तोमर विराजमान हुए. मान सिंह प्रतापी राजा थे. युद्ध कला में निपुण, संगीत और वास्तु में दिलचस्पी लेने वाले थे. एक दिन राजा मान सिंह अपनी टोली के साथ शिकार खेलने निकले. किले से 16 किमी दूर राई नदी के पास वाले जंगल में हर तरह का शिकार मिलता था. उसी ओर कूच कर दिया.
नदी से कुछ पहले दो गुस्सैल बैल सींग से सींग लड़ाते नज़र आए. दोनों में से कोई पीछे हटने को तैयार नहीं था और बार बार एक दूसरे पर हमला कर रहे थे. दोनों बैलों ने राजा साब का रास्ता जाम कर दिया था. राजा और उनके कारिंदे वहीँ रुक कर तमाशा देखने लगे और रास्ता साफ़ होने का इंतज़ार करने लगे. तभी एक लड़की वहां आई. उसने दोनों बैलों को छुड़ा दिया. राजा उस लड़की की बहादुरी से बहुत खुश हुए. उसका रूपरंग देखकर राजा के मन में विचार आ गया कि ऐसी सुंदर और बहादुर लड़की को अपनी पटरानी बनाएंगे. संतान भी बहादुर होगी.
पूछने पर लड़की ने अपना नाम निन्नी उर्फ़ मृगनयनी बताया. सैनिक निन्नी को लेकर उसके गाँव पहुँच गए जो गूजरों का गाँव था. निन्नी के माता पिता को सारी बात बताई और दरबार में हाजिर होने को कहा. लड़की भी निडर थी और उसने संदेसा भिजवा दिया कि शादी तब करुँगी जब मेरी तीन शर्तें मानी जाएंगीं :
पहली शर्त ये कि मैं राई नदी का पानी पीकर बड़ी हुई हूँ इसलिए मुझे ता-उम्र राई का पानी पीने को मिलना चाहिए. दूसरी ये कि मैं पर्दों या बंद कमरों में नहीं रहूंगी खुली जगह में रहूंगी उसका इंतज़ाम किया जाना चाहिए और तीसरी शर्त ये कि जब भी राजा किले से बाहर जाएंगे तो मैं उनके साथ जाउंगी चाहे वो शिकार पर जा रहे हों या युद्ध करने.
राजा के फैसले से रनिवास में भी खलबली मच गई. गूजर लड़की से कैसी शादी? पर राजा मान सिंह तोमर भी अपनी बात पर डटे रहे और शादी हो ही गई. पानी के लिए नहरिया बनी और गुजरिया के लिए गुजरी महल.
इस प्रेम कथा पर वृन्दावन लाल वर्मा ने 'मृगनयनी' नाम से एक नावेल भी लिखा है जिसमें ग्वालियर का इतिहास भी विस्तार से लिखा गया है. वैसे 1922 में अंग्रेजों ने गुजरी महल को म्यूजियम बना दिया था. ग्वालियर और आसपास के इलाकों में पाई गई हजारों ऐतिहासिक वस्तुओं का संग्रह है यहाँ. म्यूजियम सुबह ग्यारह बजे से पांच बजे तक खुला है और प्रवेश के लिए टिकट है.
ग्वालियर के किले का एक दृश्य |
3 comments:
Wah wah -badi rochak jankari. Pahle kabhi nahi suni. Excellent.
https://jogharshwardhan.blogspot.com/2018/12/blog-post_29.html
धन्यवाद सक्सेना जी
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