विदिशा भारत के प्राचीनतम शहरों में से एक है. मध्य प्रदेश में स्थित विदिशा की भोपाल से दूरी 56 किमी है और ग्वालियर से 370 किमी है. विदिशा बेतवा नदी के पूर्व में है और साँची से नौ किमी की दूरी पर है.
विदिशा ईसा पूर्व छठी और पांचवीं शताब्दी में एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र था. पाली ग्रंथों में भी विदिशा का जिक्र आया है. अशोक के सम्राट बनने से पहले उनके पिता राजा बिन्दुसार ने अशोक को विदिशा का गवर्नर बनाया था. सम्राट अशोक की पत्नी विदिशा देवी यहीं विदिशा की रहने वाली थी. इसके अलावा विदिशा में ग्रीक
राजदूत हेलिओडोरस - Heliodorus द्वारा ईसा पूर्व 113 में बनवाया गया एक खम्बा मौजूद है जो की विष्णु मंदिर का हिस्सा था. मंदिर तो अब नहीं है पर उसके कुछ प्रमाणिक अवशेष मिले हैं.
जैसा की भारत में अन्य जगहों पर हुआ है यहाँ भी प्राचीन काल से राजनैतिक उथल पुथल चलती रही है. यहाँ मौर्य, नाग, शुंग, गुप्त, सतवाहन, परमार, मुग़ल, मराठा, सिंदिया और ब्रिटिश राज रहा है. धार्मिक नज़र से देखें तो यहाँ के इलाके में बौद्ध, जैन और हिन्दू मूर्तियाँ, मंदिर और गुफाएं हैं. इतिहास का धनी क्षेत्र है और विस्तार से खोज बीन की अपेक्षा रखता है.
विदिशा में एक मंदिर का निर्माण पहले पहल आठवीं शताब्दी में हुआ बताया जाता है जिसे अब बीजामंडल के नाम से जाना जाता है. सन 1094 - 1133 के दौरान मंदिर का पुनर्निर्माण राजा नरवर्मन द्वारा कराया गया था. 1233-34 में गुलाम वंशी सुलतान इल्तुतमिश ने हमला किया और लूटपाट की. 1250 में मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ परन्तु 1293 में अलाउद्दीन खिलजी के मंत्री मालिक काफूर ने लूट खसोट की. 1532 में बहादुर शाह ( गुजरात सल्तनत ) और 1682 में औरंगजेब के हमलों में मंदिर को काफी नुकसान पहुंचा. मंदिर का नाम आलमगीर मस्जिद हो गया. मंदिर के पत्थरों से मीनारें बनी. 1760 में पेशवा ने मस्जिद हटा दी. बाद में फिर बन गई. 1971-74 की खुदाई के दौरान यहाँ महिषासुरमर्दिनी और गणेश की मूर्तियाँ मिलीं. 1991 में तेज़ और भारी वर्षा के कारण मस्जिद का काफी भाग गिर गया और एक बार फिर खुदाई में मूर्तियाँ निकलीं.
मंदिर के चबूतरे में लगे भारी भरकम पत्थरों से लगता है कि मंदिर विशालकाय रहा होगा. एक स्तम्भ पर खुदे अभिलेख के अनुसार यह मंदिर चर्चिका देवी का था. इस देवी का दूसरा नाम शायद विजया या बिजया देवी था जिससे इस मंदिर का नाम बिजया मंदिर कहा गया. कालान्तर में यह बीजामंडल कहलाने लगा.
कुल मिलाकर मंदिर के नाम, निर्माण के समय और निर्माण कराने वालों के बारे में कयास ज्यादा हैं और ये कितने सही हैं पता नहीं. पुराने समय में लिखित रिकॉर्ड तो रखा नहीं जाता था. मंदिर में संस्कृत में खुदे कुछ अभिलेख मिले हैं जिनमें तारीख नहीं है. बहरहाल साँची जाएं तो बीजा मंडल जरूर देख कर आएं.
इस विषय पर और अधिक जानकारी के लिए आप B. L. Nagarch का खोजी लेख
Bijamandal or Vijiyamandira, Vidisha: A Study पढ़ सकते हैं या फिर इन्टरनेट में खोज कर सकते हैं.
कुछ फोटो प्रस्तुत हैं:
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1. बीजामंडल मंदिर और मीनार |
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2. खुदाई में प्राप्त कुछ मूर्तियाँ |
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3. एक नक्काशीदार स्तम्भ |
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4. बगीचे में रखे कुछ अवशेष |
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5. देवियों का सुंदर पैनल |
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6. मंदिर का ऊँचा और बड़ा प्रवेश द्वार |
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7. कुछ और अवशेष |
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8. बाद में बनी मेहराब |
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9. छत पर भी बहुत सा सामान ताले में बंद पड़ा है |
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10. बगीचा |
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11. भारी भरकम और ऊँचा प्लेटफार्म. देख कर लगता है की मंदिर विशाल रहा होगा |
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12. मंदिर के आसपास घनी बस्ती है. अगर कार से जाएं तो पार्किंग मिलना मुश्किल है |
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13. खम्बे और पैनल |
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14. बहुत सी मूर्तियाँ 2002 से शेड में बंद हैं पता नहीं कब खुलेंगीं |
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15. मंदिर का बायाँ भाग |
3 comments:
https://jogharshwardhan.blogspot.com/2019/01/blog-post.html
विदिशा में बीजमंडल , मेरे लिए नई जानकारी है। दिसंबर में एक चक्कर लगा था ललितपुर तक लेकिन विदिशा रह गया। अच्छा ही रहा क्यूंकि अब ये बीजमंडल भी शामिल रहेगा लिस्ट में। धन्यवाद् सर
धन्यवाद Yogi जी. झाँसी से टूर बनाया जा सकता है.
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