मध्य प्रदेश का छोटा सा शहर खजुराहो अपने मंदिरों के कारण विश्व प्रसिद्द है. भोपाल से इसकी दूरी 380 किमी है और यह छतरपुर जिले का हिस्सा है. खजुराहो के संस्थापक चन्देल राजा चंद्र्वर्मन थे जिन्होंने इसे अपने राज्य की राजधानी बनाया था. चन्देल राजवंश ने लगभग नौवीं शताब्दी से लेकर तेरहवीं शताब्दी तक बुंदेलखंड के कुछ हिस्सों और उसके आस पास राज किया. इस दौरान पहले राजधानी खजुराहो में बनी और फिर महोबा में बना दी गई थी.
खजुराहो के ज्यादातर मंदिर सन 850 से सन 1150 के बीच चंदेल राजाओं द्वारा बनवाए गए थे. बीस वर्ग किमी में फैले क्षेत्र में पच्चासी मंदिरों का निर्माण हुआ था जिनमें से केवल पच्चीस मन्दिर ही बचे हैं. इनमें से पहला मंदिर
चौंसठ योगिनी मंदिर माना जाता है जो 850 - 860 में बना और आखिरी मंदिर - दुलादेव मंदिर लगभग 1110 - 1125 में बना माना जाता है.
चतुर्भुजा मंदिर खजुराहो के दक्षिण में तीन किमी दूर गाँव जटकारा में है जिसके कारण इस मंदिर को जटकारी मंदिर भी कहा जाता है. इस मंदिर का निर्माण का श्रेय चंदेल राजा लक्षवर्मन को दिया जाता है. इन्टरनेट में कहीं कहीं मंदिर बनवाने वाले राजा का नाम यशोवर्मन भी लिखा हुआ है परन्तु यशोवर्मन का राज 925 से 950 तक रहा था. इस अंतर को इतिहासकार ही बता सकते हैं.
चतुर्भुजा मंदिर खजुराहो का अकेला ऐसा मंदिर है जिसमें मिथुन या कामुक मूर्तियों का अभाव है. दूसरे मंदिरों की तरह इस मंदिर की बाहरी दीवारों पर भी मूर्तियों की तीन श्रंखलाएं हैं जिसमें अप्सराएं, विद्याधर और भगवान् की मूर्तियाँ हैं. ये मूर्तियाँ भी उतनी ही खूबसूरत हैं जैसे की खजुराहो के अन्य मंदिरों में हैं. पर एक्सपर्ट्स का कहना है कि इन मूर्तियों में भाव भंगिमा कम हैं. इस मंदिर में गर्भगृह से पहले का मंडप या अर्ध मंडप और मुख्य मूर्ति की परिक्रमा नहीं बनी हुई है. चतुर्भुजा मूर्ति का रुख भी दक्षिण की ओर है. बाहरी दीवार पर कई मूर्तियाँ अधूरी भी रह गई हैं. सन 1125 के आसपास का ये समय चंदेल वंश के सूर्यास्त का दौर था.
प्रस्तुत हैं कुछ फोटो:
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1. ऊँचे चबूतरे पर बना चतुर्भुजा मंदिर |
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2. प्रवेश द्वार. आम तौर पर मंदिर पूर्वमुखी होते हैं पर इस मंदिर का प्रवेश दक्षिण की ओर है |
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3. नौ फुट ऊँची चतुर्भुजा विष्णु की मूर्ति. वहां के पुजारी के अनुसार ये त्रिदेव मूर्ति है और इसमें शिव, विष्णु और कृष्ण तीनों का समावेश है. मुकुट से ऊपर शिव की जटाएं हैं, चार भुजाएं विष्णु की हैं और दो टांगों पर खड़े होने का विशेष अंदाज़ बंसी बजाते कृष्ण का है |
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4. मूर्ति का ऊपरी भाग. मुकुट के ऊपर जटाएं भी हैं |
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5. मंदिर की बाहरी दीवार पर मूर्तियों की तीन श्रृंखलाएं |
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6. इस मंदिर में खजुराहो के अन्य मंदिरों की तरह मिथुन या कामुक मूर्तियाँ नहीं हैं. पर पुरुष हो या महिला साज सज्जा, स्टाइल और जेवरों में कोई कमी नहीं है |
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7. कुछ टूटे हुए हिस्से सादे सपाट पत्थर लगाकर दुरुस्त कर दिए गए हैं |
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8.अर्धनारीश्वर |
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