ग्वालियर के किले में स्थित तेली का मंदिर अनूठा मंदिर है. यह मंदिर लगभग तीस मीटर ऊँचा है और इस विशालकाय मंदिर की बनावट में नागर और द्रविड़ शैलियों का मिश्रण है. मंदिर के अगले भाग की बनावट शिखर
^ जैसी है परन्तु उस के ऊपर T की तरह, द्रविड़ शैली का गोपुरम भी है. मंदिर विष्णु, शिव और शक्ति को समर्पित है पर फिलहाल अंदर कोई मूर्ति नहीं है शिवलिंग है. दीवारों पर तरह तरह की नक्काशी है जिनमें गरुड़ प्रमुख है. चार दिशाओं में दरवाज़े हैं परन्तु पूर्वी प्रवेश ही खुला है. बाकी तीन दिशाओं के दरवाज़ों पर एहतियातन पत्थर लगा दिए गए हैं. हज़ार बारह सौ साल पुराने मंदिर में जगह जगह दरारें पड़ी हुई हैं.
तेली का मंदिर कब बना इस के बारे में इतिहासकार सहमत नहीं हैं और सन 700 से लेकर सन 900 तक के अलग अलग समय बताते हैं. शायद इसीलिए बनाने वाले के बारे में भी पुख्ता जानकारी नहीं है. बनावट, डिजाईन और शैली के अनुसार गुर्जर-प्रतिहार काल में बना माना जाता है. कुछ का कहना है की गुर्जर-प्रतिहार राजा मिहिर भोज ( जिन्होंने सन 836 से 885 तक राज किया ) के राज काल में बनाया गया होगा. बहरहाल पहले कुतुबुद्दीन ऐबक और फिर इल्तुतमश के हमले में 1231 में मंदिर को काफी नुकसान पहुंचा. इसके बाद मंदिर का खंडहर झाड़ झंखाड़ से ढक गया. कुछ समय बाद जब किले पर मराठा शासन हुआ तो उस दौरान मंदिर में सुधार किया गया.
फिर किले पर अंग्रेजों ने हमला बोला और अधिकार जमा लिया. फिर मन्दिर छुप गया. किले में ब्रिटिश फ़ौज एक टुकड़ी तैनात कर दी गई. 1881- 82 में मेजर कीथ ने किले के अंदर की तीन इमारतों - मान मंदिर महल, तेली का मंदिर और सहस्त्र बाहू मंदिर का जीर्णोद्धार किया. इस काम पर 7625 रूपए शाही ब्रिटिश खजाने से खर्च हुए और 4000 रुपए महाराजा सिंदिया की और से खर्चे गए.
मंदिर के नामकरण के बारे में भी अलग अलग विचार हैं. मंदिर किसी तेली ने बनाया या फिर तेल के व्यापारियों ने मिलकर बनाया इस सवाल का कोई स्पष्ट उत्तर नहीं है. विकिपीडिया में इसे तेलकी मंदिर भी कहा गया है. हम हिन्दुस्तानी कहाँ अपनी धरोहर पर ध्यान देते हैं जो नाम पर ध्यान दें या खोज कर के सही बात का पता लगाएं. सब चलता है! तेली के मंदिर के पास ही सहस्त्रबाहू मंदिर भी है जिसे आम भाषा में सास बहु मंदिर नाम दे दिया गया है! इत्तेफाक से सहस्त्रबाहु मंदिर असल में दो मंदिर हैं एक बड़ा और दूसरा छोटा. बड़े को सास मंदिर और छोटे को बहू मंदिर पुकारा जाता है.
मंदिर सुबह से शाम तक खुला है. किले के टिकट पर ये मंदिर भी देखा जा सकता है. मंदिर में कोई गाइड हमें मिला नहीं. अगर आपने जाना हो तो दोपहर की धूप से बचें और पानी का इंतज़ाम रखें. अपनी गाड़ी से अगर किले में जा रहे हों तो उरवाई गेट की तरफ से जाएं. सड़क के कुछ हिस्से में खड़ी चढ़ाई है और सड़क संकरी इसलिए सावधानी रखनी होगी. इस मंदिर की ऊँचाई को देखते हुए और ऊँचाई पर की गई नकाशी की फोटो के लिए बेहतर कैमरे की जरूरत है.
प्रस्तुत हैं कुछ फोटो जो मोबाइल और आईपैड से ली गई हैं:
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तेली का मंदिर |
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मंदिर का प्रवेश द्वार जो कभी बाद में बना |
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मंदिर बहुत ऊँचे चबूतरे पर बनाया गया है |
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बचाव के लिए पत्थर के खम्बे और स्लैब लगाए हुए हैं |
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मंदिर के बाएँ भाग का दृश्य |
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मेजर कीथ का लगाया पत्थर |
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अंदर की ओर से नज़र आता तोरण |
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हरियाली में छुपा मंदिर |
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