गौतम बुद्ध का परिनिर्वाण अस्सी वर्ष की आयु में ईसा पूर्व सन 483 में हुआ था. गौतम बुद्द के अंतिम संस्कार के बाद उनके अवशेषों को आठ भागों में बाँट कर आठ स्तूपों में राजगृह, वैशाली, कपिलवस्तु, अल्लाकप्पा, पावानगर, कुशीनगर, रामग्राम और वेथापिडा में दबा दिया गया. दो अन्य स्तूपों में कलशों में भस्म दबा दी गई.
समय गुज़रा और मौर्य शासन की बागडोर सम्राट अशोक के हाथ आ गई. सम्राट अशोक ने ईसा पूर्व सन 273 से ईसा पूर्व सन 232 तक राज किया. अशोक ने इस दौरान कलिंगा राज्य पर बड़ी जीत हासिल की, पर युद्ध के भयानक विनाश से दुखी होकर गौतम बुद्ध के बताए मध्य मार्ग की शरण ली. बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए चौरासी हज़ार स्तूप, स्तम्भ, विहार और छोटे बड़े शिलालेख बनवाए. बौद्ध संघों में सुधार करवाया और गौतम बुद्ध के अवशेषों को पुनर्स्थापित करवाया. रामग्राम के स्तूप को छोड़ बाकी स्थानों से बुद्ध के अवशेषों को नए शहरों और सुदूर स्थानों में बनाए गए नए स्तूपों में स्थापित करवाया.
अशोक के सम्राट बनने से पहले उनके पिता महाराजा बिन्दुसार ने अशोक को विदिशा का गवर्नर नियुक्त किया था. विदिशा उस समय का एक समृद्ध व्यापारिक केंद्र था. यहाँ के एक व्यापारी की बेटी विदिशा देवी से सम्राट अशोक की शादी भी हुई थी. दूसरी बात यह की विदिशा के पास साँची में बौद्ध संघ भी थे. इसलिए सम्राट अशोक ने साँची में मुख्य स्तूप बनवाकर गौतम बुद्ध के कुछ अवशेषों को यहाँ स्थापित करवाया.
गौतम बुद्ध के अवशेष इंटों से बने गोलाकार छोटे स्तूप में रखे गए थे. ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में पत्थर लगा कर विस्तार किया गया और ऊपर चपटा कर के छतरी रखी गई. लगभग बारहवीं शताब्दी तक यहाँ के स्तूपों में कुछ न कुछ विस्तार होता रहा. इसके बाद संभवत: यह जगह उपेक्षित रही और मूर्तियों वगैरा को नुक्सान हुआ.
सन 1818 में ब्रिटिश जनरल टेलर ने पहली बार इन स्तूपों का वर्णन किया पर तब भी पुनर्स्थापना का काम नहीं हुआ. 1912 से 1919 तक इस जगह को पुरात्तव विभाग - ASI ने सर जॉन हुबर्ट मार्शल के नेतृत्व में फिर से विकसित करने का प्रयास किया. 1989 में इसे विश्व धरोहर या World Heritage Site का दर्जा मिला.
भोपाल से साँची 46 किमी दूर है और विदिशा से 10 किमी. आने जाने के लिए बसें और टैक्सी उपलब्ध हैं. साँची और विदिशा में हर तरह के होटल उपलब्ध हैं. साँची का यह विश्व धरोहर सुबह से शाम तक खुला है और गाइड मिल जाते हैं. पार्किंग की जगह है और एक म्यूजियम और रेस्तरां भी है. रख रखाव सुंदर है. ढाई हजार साल पहले के जीवन की झलक जरूर देख कर आएं.
साँची के स्तूप - 1/2 की फोटो देखने के लिए यहाँ क्लिक करें.
प्रस्तुत हैं कुछ फोटो:
समय गुज़रा और मौर्य शासन की बागडोर सम्राट अशोक के हाथ आ गई. सम्राट अशोक ने ईसा पूर्व सन 273 से ईसा पूर्व सन 232 तक राज किया. अशोक ने इस दौरान कलिंगा राज्य पर बड़ी जीत हासिल की, पर युद्ध के भयानक विनाश से दुखी होकर गौतम बुद्ध के बताए मध्य मार्ग की शरण ली. बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए चौरासी हज़ार स्तूप, स्तम्भ, विहार और छोटे बड़े शिलालेख बनवाए. बौद्ध संघों में सुधार करवाया और गौतम बुद्ध के अवशेषों को पुनर्स्थापित करवाया. रामग्राम के स्तूप को छोड़ बाकी स्थानों से बुद्ध के अवशेषों को नए शहरों और सुदूर स्थानों में बनाए गए नए स्तूपों में स्थापित करवाया.
अशोक के सम्राट बनने से पहले उनके पिता महाराजा बिन्दुसार ने अशोक को विदिशा का गवर्नर नियुक्त किया था. विदिशा उस समय का एक समृद्ध व्यापारिक केंद्र था. यहाँ के एक व्यापारी की बेटी विदिशा देवी से सम्राट अशोक की शादी भी हुई थी. दूसरी बात यह की विदिशा के पास साँची में बौद्ध संघ भी थे. इसलिए सम्राट अशोक ने साँची में मुख्य स्तूप बनवाकर गौतम बुद्ध के कुछ अवशेषों को यहाँ स्थापित करवाया.
गौतम बुद्ध के अवशेष इंटों से बने गोलाकार छोटे स्तूप में रखे गए थे. ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में पत्थर लगा कर विस्तार किया गया और ऊपर चपटा कर के छतरी रखी गई. लगभग बारहवीं शताब्दी तक यहाँ के स्तूपों में कुछ न कुछ विस्तार होता रहा. इसके बाद संभवत: यह जगह उपेक्षित रही और मूर्तियों वगैरा को नुक्सान हुआ.
सन 1818 में ब्रिटिश जनरल टेलर ने पहली बार इन स्तूपों का वर्णन किया पर तब भी पुनर्स्थापना का काम नहीं हुआ. 1912 से 1919 तक इस जगह को पुरात्तव विभाग - ASI ने सर जॉन हुबर्ट मार्शल के नेतृत्व में फिर से विकसित करने का प्रयास किया. 1989 में इसे विश्व धरोहर या World Heritage Site का दर्जा मिला.
भोपाल से साँची 46 किमी दूर है और विदिशा से 10 किमी. आने जाने के लिए बसें और टैक्सी उपलब्ध हैं. साँची और विदिशा में हर तरह के होटल उपलब्ध हैं. साँची का यह विश्व धरोहर सुबह से शाम तक खुला है और गाइड मिल जाते हैं. पार्किंग की जगह है और एक म्यूजियम और रेस्तरां भी है. रख रखाव सुंदर है. ढाई हजार साल पहले के जीवन की झलक जरूर देख कर आएं.
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प्रस्तुत हैं कुछ फोटो:
1. इस छोटे स्तूप के साथ एक ही तोरण है जिसे पहली शताब्दी में सातवाहन वंश के राज में बनाया गया. इस तोरण की ऊँचाई 17 फुट है और इस पर उकेरी गई आकृतियाँ दूसरे तोरणों से मिलती जुलती हैं |
2. तोरण को यक्षों ने उठाया हुआ है और मध्य पैनल में चैत्य बना हुआ है |
3. सींगों वाला बकरेनुमा काल्पनिक जानवर एक पर महिला और दूसरे पर पुरुष सवार |
4.पंख वाले शेर और तोरण के दाहिनी ओर यक्षिणी |
5. मौर्य या फिर शुंग के समय बनाए गए मंदिर पर दोबारा सातवीं सदी में बनाया गया मंदिर. दसवीं या ग्यारहवीं शताब्दी में भी इसमें और बदलाव किया गया था |
6. गुप्त कालीन पांचवीं सदी के मेहराबदार मंदिर के अवशेष. सातवीं सदी में राजा हर्ष वर्धन के समय पुनर्स्थापना हुई |
7. अशोक स्तम्भ का बचा हुआ भाग |
8. मुस्कुराता यक्ष. Sense of humour तब भी था ! |
9. सर पर एक सींग वाला काल्पनिक जंतु - unicorn |
10. स्तूप नम्बर 1 का पूर्वी तोरण. सबसे ऊपर गोल चक्र बौद्ध चिन्ह है. उपरी दो पनेलों के बीच दायीं ओर यक्षणी है |
11. अशोक स्तम्भ के दो टुकड़े जो चुनार स्तम्भ कहलाते हैं. इनकी सतह बहुत ही चिकनी और चमकदार है |
12. तोरण के पैनल पर सुंदर कारीगरी. बीच में धम्म चक्र है और नीचे खाली आसान बुद्ध का स्थान है |
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