किसने शुरू किया योग ?
योग की शुरुआत कब हुई और किसने की इस बारे में पक्की जानकारी नहीं है . वेदों में, उपनिषदों में, गीता में, जैन और बौध ग्रंथों में इसका जिक्र आता है . इस से अंदाज़ा लगाया जा सकता है की 900 से 500 बरस ईसा-पूर्व योग प्रचलित रहा होगा . सिन्धु घाटी की कुछ मूर्तियाँ यौगिक या मिलती जुलती मुद्राओं में पाई गई हैं जिसका मतलब है और भी पहले याने 3300 से 1700 ईसा-पूर्व भी शायद प्रचलित रहा हो . दावे के साथ एक विशेष दिन या बरस निश्चित करना मुश्किल है .
योग के दो सौ से ज्यादा आसन हैं, बहुत सी प्राणायाम की विधियाँ और मुद्राएँ हैं जिनसे लगता है की योग किसी एक व्यक्ति की देन न होकर एक बहुत से लोगों का सामुहिक ज्ञान रहा होगा और है . आसन, उपासन और मुद्राओं की काफी वैरायटी है . कुछ आसन महिलाओं के लिए अलग से भी हैं. कुछ प्राणायाम सर्दी के मौसम के लिए उपयुक्त हैं और कुछ गर्मी के लिए . जो भी हो बहुत से बरसों तक लगातार प्रयोग और परिक्षण करने के बाद ही योगासन और मुद्राएँ लिखी गई लगती हैं .
उन सभी महापुरुषों को नमन जिन्होनें इस विषय में योगदान दिया और बहुत बहुत धन्यवाद ! वो इसलिए की आप योगाभ्यास करेंगे तो महसूस होगा की योग बहुत वैज्ञानिक और सार्थक है . करते करते शरीर को टोन-अप कर देता है . थकावट और टेंशन घटाता है याने स्ट्रेस-बस्टर है . सुबह से शाम तक आप चुस्त दुरुस्त बने रहते हैं क्यूंकि एनर्जी लेवल बरक़रार रहता है. कितने आश्चर्य की बात है की ढाई - तीन हजार साल पहले ये विद्या मौजूद थी !
योग शास्त्र सम्बन्धी प्राचीन ग्रंथो में दो नाम प्रमुख हैं - पातन्जलि द्वारा रचित 'योगसूत्र' और वेदव्यास द्वारा रचित 'योगभाष्य' . स्वामी विवेकानन्द ने देश विदेश में अपने भाषणों में पातंजलि कृत योगसूत्र का कई बार जिक्र किया जिसके कारण इस ग्रन्थ का प्रचलन बढ़ गया . और अब इसी के आधार पर योग किया जा रहा है . और लोगों ने भी पुराने समय में योग संकलन किया है . आधुनिक समय में बी के एस आयंगर के लेख और पुस्तकें देश विदेश में बहुत चल रही हैं . इनमे से कुछ हैं Light on Yoga, Light on Pranayam & Light on Yoga Sutras of Patanjali .
कितने प्रकार के हैं योग ?
इस प्रश्न का एक लाइन में उत्तर देना मुश्किल है . योग के कई शाब्दिक अर्थ हैं और योग को दूसरे शब्दों के योग से भी कई शब्द बन जाते हैं - कर्म योग, भक्ति योग, ज्ञान योग, अनासक्त योग वगैरा . हिन्दू, जैन और बौध साधकों ने इन भिन्न भिन्न क्रियाओं से मोक्ष प्राप्त करने की बात कही है . इनमे से कुछ का शारीरिक योगाभ्यास से कम सम्बन्ध है .
योग साधना के मुख्य तौर पर चार प्रकार के बताये गए हैं - मंत्र योग, हठ योग, लय योग और राज योग . इनका वर्णन 'शिवसंहिता' और 'गोरक्षशतक' में भी आया है . पहली पुस्तक के संकलन कर्ता का नाम या लिखने के समय की जानकारी नहीं है . इसमें शिव योग की व्याख्या कर रहे हैं पार्वती से . दूसरी पुस्तक बाबा गोरखनाथ द्वारा रचित है जिसमे 101 श्लोकों में आसन, प्राणायाम और कुण्डलिनी की चर्चा है . इनका संक्षिप्त रूप इस प्रकार है :
मंत्र योग में बात की गई है मंत्रो द्वारा चंचल मन को संयमित करने की .
हठ योग के वर्णन में कहीं 4 कहीं 7 और कहीं 8 अंग बताये गए हैं . इसमें मुख्य मुद्दा इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ियों का संतुलन है . इड़ा नाड़ी या चन्द्र नाड़ी शरीर के बाएँ हिस्से को कंट्रोल करती है, पिंगला नाड़ी या सूर्य नाड़ी शरीर के दाहिने भाग का नियंत्रण करती है और सुषुम्ना -जो रीढ़ की हड्डी में स्थित है, संतुलन में सहायक है . इन्हें आसन और प्राणायाम से मजबूत करके मोक्ष की और बढ़ने की बात कही गई है .
लय योग में चौबीसों घंटे ब्रह्म में लीन रहने की बात की गई है .
राज योग में आसन, प्राणायाम और वैराग्य जैसी क्रियाओं द्वारा चित्त को संयमित और प्रसन्न रखने की बात की गई है .
आज के सन्दर्भ में गहरे ज्ञान में गोते मारने की फुर्सत किसे है. नौकरी हो या व्यापार कामकाज का समय लम्बा हो गया है . खाना-पीना रहना-सहना प्रकृति से दूर होता जा रहा है और पैसा कमाने की होड़ में दिन और रात एक हो गए हैं . रात को पढ़ने या काम करने या देर से सोने का प्रचलन बढ़ गया है. कल तो रविवार है तो थोड़ा और देर तक सोएंगे ! अरे साहब न समय है न इच्छा है मोक्ष प्राप्त करने की . मोक्ष तो दूर की बात है शरीर स्वस्थ रहे वही काफी है और अगर मन शांत हो जाए तो बोनस है . पर ये होगा कैसे ?
अरे साब पहले आप बिस्तर तो छोड़िये !
योग की शुरुआत कब हुई और किसने की इस बारे में पक्की जानकारी नहीं है . वेदों में, उपनिषदों में, गीता में, जैन और बौध ग्रंथों में इसका जिक्र आता है . इस से अंदाज़ा लगाया जा सकता है की 900 से 500 बरस ईसा-पूर्व योग प्रचलित रहा होगा . सिन्धु घाटी की कुछ मूर्तियाँ यौगिक या मिलती जुलती मुद्राओं में पाई गई हैं जिसका मतलब है और भी पहले याने 3300 से 1700 ईसा-पूर्व भी शायद प्रचलित रहा हो . दावे के साथ एक विशेष दिन या बरस निश्चित करना मुश्किल है .
योग के दो सौ से ज्यादा आसन हैं, बहुत सी प्राणायाम की विधियाँ और मुद्राएँ हैं जिनसे लगता है की योग किसी एक व्यक्ति की देन न होकर एक बहुत से लोगों का सामुहिक ज्ञान रहा होगा और है . आसन, उपासन और मुद्राओं की काफी वैरायटी है . कुछ आसन महिलाओं के लिए अलग से भी हैं. कुछ प्राणायाम सर्दी के मौसम के लिए उपयुक्त हैं और कुछ गर्मी के लिए . जो भी हो बहुत से बरसों तक लगातार प्रयोग और परिक्षण करने के बाद ही योगासन और मुद्राएँ लिखी गई लगती हैं .
उन सभी महापुरुषों को नमन जिन्होनें इस विषय में योगदान दिया और बहुत बहुत धन्यवाद ! वो इसलिए की आप योगाभ्यास करेंगे तो महसूस होगा की योग बहुत वैज्ञानिक और सार्थक है . करते करते शरीर को टोन-अप कर देता है . थकावट और टेंशन घटाता है याने स्ट्रेस-बस्टर है . सुबह से शाम तक आप चुस्त दुरुस्त बने रहते हैं क्यूंकि एनर्जी लेवल बरक़रार रहता है. कितने आश्चर्य की बात है की ढाई - तीन हजार साल पहले ये विद्या मौजूद थी !
योग शास्त्र सम्बन्धी प्राचीन ग्रंथो में दो नाम प्रमुख हैं - पातन्जलि द्वारा रचित 'योगसूत्र' और वेदव्यास द्वारा रचित 'योगभाष्य' . स्वामी विवेकानन्द ने देश विदेश में अपने भाषणों में पातंजलि कृत योगसूत्र का कई बार जिक्र किया जिसके कारण इस ग्रन्थ का प्रचलन बढ़ गया . और अब इसी के आधार पर योग किया जा रहा है . और लोगों ने भी पुराने समय में योग संकलन किया है . आधुनिक समय में बी के एस आयंगर के लेख और पुस्तकें देश विदेश में बहुत चल रही हैं . इनमे से कुछ हैं Light on Yoga, Light on Pranayam & Light on Yoga Sutras of Patanjali .
कितने प्रकार के हैं योग ?
इस प्रश्न का एक लाइन में उत्तर देना मुश्किल है . योग के कई शाब्दिक अर्थ हैं और योग को दूसरे शब्दों के योग से भी कई शब्द बन जाते हैं - कर्म योग, भक्ति योग, ज्ञान योग, अनासक्त योग वगैरा . हिन्दू, जैन और बौध साधकों ने इन भिन्न भिन्न क्रियाओं से मोक्ष प्राप्त करने की बात कही है . इनमे से कुछ का शारीरिक योगाभ्यास से कम सम्बन्ध है .
योग साधना के मुख्य तौर पर चार प्रकार के बताये गए हैं - मंत्र योग, हठ योग, लय योग और राज योग . इनका वर्णन 'शिवसंहिता' और 'गोरक्षशतक' में भी आया है . पहली पुस्तक के संकलन कर्ता का नाम या लिखने के समय की जानकारी नहीं है . इसमें शिव योग की व्याख्या कर रहे हैं पार्वती से . दूसरी पुस्तक बाबा गोरखनाथ द्वारा रचित है जिसमे 101 श्लोकों में आसन, प्राणायाम और कुण्डलिनी की चर्चा है . इनका संक्षिप्त रूप इस प्रकार है :
मंत्र योग में बात की गई है मंत्रो द्वारा चंचल मन को संयमित करने की .
हठ योग के वर्णन में कहीं 4 कहीं 7 और कहीं 8 अंग बताये गए हैं . इसमें मुख्य मुद्दा इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ियों का संतुलन है . इड़ा नाड़ी या चन्द्र नाड़ी शरीर के बाएँ हिस्से को कंट्रोल करती है, पिंगला नाड़ी या सूर्य नाड़ी शरीर के दाहिने भाग का नियंत्रण करती है और सुषुम्ना -जो रीढ़ की हड्डी में स्थित है, संतुलन में सहायक है . इन्हें आसन और प्राणायाम से मजबूत करके मोक्ष की और बढ़ने की बात कही गई है .
लय योग में चौबीसों घंटे ब्रह्म में लीन रहने की बात की गई है .
राज योग में आसन, प्राणायाम और वैराग्य जैसी क्रियाओं द्वारा चित्त को संयमित और प्रसन्न रखने की बात की गई है .
आज के सन्दर्भ में गहरे ज्ञान में गोते मारने की फुर्सत किसे है. नौकरी हो या व्यापार कामकाज का समय लम्बा हो गया है . खाना-पीना रहना-सहना प्रकृति से दूर होता जा रहा है और पैसा कमाने की होड़ में दिन और रात एक हो गए हैं . रात को पढ़ने या काम करने या देर से सोने का प्रचलन बढ़ गया है. कल तो रविवार है तो थोड़ा और देर तक सोएंगे ! अरे साहब न समय है न इच्छा है मोक्ष प्राप्त करने की . मोक्ष तो दूर की बात है शरीर स्वस्थ रहे वही काफी है और अगर मन शांत हो जाए तो बोनस है . पर ये होगा कैसे ?
अरे साब पहले आप बिस्तर तो छोड़िये !
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https://jogharshwardhan.blogspot.com/2015/06/2.html
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