क्या है योग ?
आजकल मीडिया में योग योगा ही छाया हुआ है . योग का अंग्रेजीकरण हो गया है "योगा" और आसन बन गए हैं "आसनाज़" . सुना है की २१ जून की योगा जम्बूरी में ॐ शब्द का उच्चारण हटा दिया गया है और आसनों में से "सूर्य नमस्कार" भी हटा दिया गया है . ये दोनों ही चीजें योग का अभिन्न अंग हैं इसलिए ॐ का उच्चारण और सूर्य नमस्कार आसन करना अच्छा ही रहेगा .
पर खैर योग से हमारी मुलाकात संयोग से ही हुई . '98 की गर्मियों में दिल्ली में हुई . भारतीय योग संस्थान ने कोलोनी में फ्री योग शिविर लगाया और पहले ही दिन 60 लोग पहुँच गए . जब हमने सैर करते हुए देखा "अरे इतने लोग" तो अगले दिन हमने भी दरी बिछा दी . हालाँकि मन में कई सवाल थे - की एक दरी पर ही लोटपोट करने से स्वास्थ्य सही हो सकता है क्या ? कितने दिन लगेंगे सीखने में ? रोज सुबह 5.30 बजे जाना होगा तो पांच बजे बिस्तर भी छोड़ना होगा वो कैसे होगा ? कैसे कैसे विचित्र नाम हैं आसनों के - उष्ट्र-आसन, सर्प-आसन, ताड़-आसन !
एक महीने बाद साधकों की संख्या 20 रह गयी और तीन महीने बाद केवल 7. पर हम तो जमे रहे और लगातार योगाभ्यास करने से बात समझ में आने लगी. शरीर चैतन्य रहने लगा और मन भी थोडा सा शांत हुआ . बस साहब उसके बाद से आज तक हम दोनों ने योगाभ्यास नहीं छोड़ा . बीच बीच में यात्रा या शादी ब्याह वगैरा में दैनिक अभ्यास नहीं कर पाए अन्यथा योगाभ्यास अब तक जारी है और आगे भी जारी रहेगा . '98 से अब तक एलोपैथिक गोलियों से दूर ही रहे . चोट लग जाने पर बात दूसरी है . इस दौरान हुए अनुभवों को आप से शेयर कर लेते हैं . आपके विचारों का स्वागत है .
योग को परिभाषित करना आसान नहीं है . शाब्दिक अर्थ तो जोड़ या जोड़ना या मिलन है . सरल शब्दों में कहें तो योग का मतलब शरीर, श्वास और मन की ट्यूनिंग है. इससे भी आगे चलें तो " स्वयं में स्थित होना, अन्तर्मुखी होना, स्वयं से मिलना ही योग है" . इस विषय पर इन्टरनेट में और नई पुरानी पुस्तकों में बहुत विस्तार से चर्चा मिलेगी और इनमें से आप मनपसंद परिभाषा चुन सकते हैं :
योगश्चित्तवृत्त निरोधः - पातंजलि योग दर्शन के अनुसार चित्त की व्रतियों का निरोध ही योग है .
योगः संयोग इत्युक्तः जीवात्म परमात्मने - विष्णुपुराण के अनुसार जीवात्मा और परमात्मा का मिलन ही योग है .
कुशल चितैकग्गता योगः - बौध चिंतन के अनुसार कुशल चित्त की एकाग्रता ही योग है .
सिद्दध्यसिद्दध्यो समोभूत्वा समत्वंयोग उच्चते - भाग्वदगीता के अनुसार दुःख-सुख, लाभ-हानि,शत्रु-मित्र, गर्म-सर्द के द्वंदों में समभाव रखना ही योग है .
परिभाषा तय करने के बाद आगे चलें तो योग साधना करने के कुछ नियम कानून भी हैं जैसे की किसी भी दूसरी प्रक्रिया में होते हैं . पातंजलि योग सूत्र के अनुसार योग साधना के आठ अंग बताए गए हैं :
1. यम - इसके आगे पांच अंग माने गए हैं - अहिंसा, सत्य, अस्तेय(चोरी से नहीं वरन परिश्रम से कमाना), ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह(जरूरत से अधिक धन संग्रह न करना) .
पर खैर योग से हमारी मुलाकात संयोग से ही हुई . '98 की गर्मियों में दिल्ली में हुई . भारतीय योग संस्थान ने कोलोनी में फ्री योग शिविर लगाया और पहले ही दिन 60 लोग पहुँच गए . जब हमने सैर करते हुए देखा "अरे इतने लोग" तो अगले दिन हमने भी दरी बिछा दी . हालाँकि मन में कई सवाल थे - की एक दरी पर ही लोटपोट करने से स्वास्थ्य सही हो सकता है क्या ? कितने दिन लगेंगे सीखने में ? रोज सुबह 5.30 बजे जाना होगा तो पांच बजे बिस्तर भी छोड़ना होगा वो कैसे होगा ? कैसे कैसे विचित्र नाम हैं आसनों के - उष्ट्र-आसन, सर्प-आसन, ताड़-आसन !
एक महीने बाद साधकों की संख्या 20 रह गयी और तीन महीने बाद केवल 7. पर हम तो जमे रहे और लगातार योगाभ्यास करने से बात समझ में आने लगी. शरीर चैतन्य रहने लगा और मन भी थोडा सा शांत हुआ . बस साहब उसके बाद से आज तक हम दोनों ने योगाभ्यास नहीं छोड़ा . बीच बीच में यात्रा या शादी ब्याह वगैरा में दैनिक अभ्यास नहीं कर पाए अन्यथा योगाभ्यास अब तक जारी है और आगे भी जारी रहेगा . '98 से अब तक एलोपैथिक गोलियों से दूर ही रहे . चोट लग जाने पर बात दूसरी है . इस दौरान हुए अनुभवों को आप से शेयर कर लेते हैं . आपके विचारों का स्वागत है .
योग को परिभाषित करना आसान नहीं है . शाब्दिक अर्थ तो जोड़ या जोड़ना या मिलन है . सरल शब्दों में कहें तो योग का मतलब शरीर, श्वास और मन की ट्यूनिंग है. इससे भी आगे चलें तो " स्वयं में स्थित होना, अन्तर्मुखी होना, स्वयं से मिलना ही योग है" . इस विषय पर इन्टरनेट में और नई पुरानी पुस्तकों में बहुत विस्तार से चर्चा मिलेगी और इनमें से आप मनपसंद परिभाषा चुन सकते हैं :
योगश्चित्तवृत्त निरोधः - पातंजलि योग दर्शन के अनुसार चित्त की व्रतियों का निरोध ही योग है .
योगः संयोग इत्युक्तः जीवात्म परमात्मने - विष्णुपुराण के अनुसार जीवात्मा और परमात्मा का मिलन ही योग है .
कुशल चितैकग्गता योगः - बौध चिंतन के अनुसार कुशल चित्त की एकाग्रता ही योग है .
सिद्दध्यसिद्दध्यो समोभूत्वा समत्वंयोग उच्चते - भाग्वदगीता के अनुसार दुःख-सुख, लाभ-हानि,शत्रु-मित्र, गर्म-सर्द के द्वंदों में समभाव रखना ही योग है .
परिभाषा तय करने के बाद आगे चलें तो योग साधना करने के कुछ नियम कानून भी हैं जैसे की किसी भी दूसरी प्रक्रिया में होते हैं . पातंजलि योग सूत्र के अनुसार योग साधना के आठ अंग बताए गए हैं :
1. यम - इसके आगे पांच अंग माने गए हैं - अहिंसा, सत्य, अस्तेय(चोरी से नहीं वरन परिश्रम से कमाना), ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह(जरूरत से अधिक धन संग्रह न करना) .
2. नियम - इसके आगे भी पांच अंग माने गए हैं - शौच याने शरीर और मन की शुद्धी, संतोष, तप याने हर अवस्था में मन को साधना, स्वाध्याय और आत्म-समर्पण .
3. आसन - कई प्रकार के आसन हैं जिनसे शरीर एवं मन में सुख और स्थिरता आती है .
4. प्राणायाम - साँस को स्थगित करना या नियंत्रण में लाना.
5. प्रत्याहार - बाहरी विषयों को छोड़ कर इन्द्रियों का अन्तर्मुखी हो जाना.
6. धारणा - किसी भी बाहरी वस्तु या विषय पर एकाग्रता से ध्यान लगाना.
7. ध्यान - शरीर स्थिर और मन शांत होने के बाद मन के विचार शून्य होना.
8. समाधी - याने विमुक्ति.
8. समाधी - याने विमुक्ति.
नियम बड़े कड़े हैं और पढ़ कर तो ऐसा लगता है की बहुत कठिन है डगर पनघट की ! नौकरी चाकरी और परिवार छोड़ कर ही योगाभ्यास कर पाएंगे . पर ऐसा नहीं हैं हमने कामकाज भी करना है परिवार भी देखना है और योगाभ्यास भी करना है . ऊपर लिखे आठ अंगो में से जितने ज्यादा कर सकें कर लें . शरीर स्वस्थ और मन शांत रहेगा तो परिवार और समाज में भी शांति बढ़ेगी . और अंतिम यात्रा शांतिपूर्वक संपन्न होगी ! तो चलिए बिस्तर छोड़िये और पहुंचिए योग की क्लास में . पांच बजे अगर बिस्तर त्याग दिया तो आधी समस्याएं तो वैसे ही उड़नछू हो जाएँगी .
.....to be continued in योग - 2.
.....to be continued in योग - 2.
1 comment:
https://jogharshwardhan.blogspot.com/2015/06/1.html
Post a Comment