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Saturday, 24 November 2018

भीमबेटका

भीमबेटका की गुफाएं भोपाल के दक्षिण में लगभग 45 किमी दूर हैं. इसे भीमबैठका भी कहते हैं. वैसे ये स्थान जिला रायसेन, मध्य प्रदेश में है और रातापानी वन्यप्राणी अभ्यारण्य - Ratapani Wildlife Sanctuary से घिरा हुआ है. यहाँ विन्ध्याचल पर्वत माला लगभग ख़तम सी हो जाती है.

* भीमबेटका की जैसी यहाँ आस पास छे और पहाड़ियां हैं - विनायक, भोरांवली, लाखा जुआर पूर्वी, लाखा जुआर पश्चिमी, झोंडरा और मुनि बाबा की पहाड़ी. ये इलाका बीस किमी के दायरे में फैला हुआ है और यहाँ लगभग सात सौ से ज्यादा चट्टानी आश्रय - rock shelters हैं. हरे भरे जंगल में बड़ी बड़ी और आड़ी तिरछी गुलाबी quartz की चट्टाने भी कम मज़ेदार नहीं हैं अजूबा ही लगती हैं. ये छोटी बड़ी और आड़ी टेढ़ी कुदरती गुफाएं आदि मानव को सिर छुपाने के काम आती थीं. ASI याने पुरातत्व विभाग ने इस इलाके में 1892 हेक्टेयर जमीन सुरक्षित घोषित कर दी है. अभी भी यहाँ कई गाँव हैं जिनमें गोंड और किरकु आदिवासी रहते हैं.

* भीमबेटका में लगभग 250 शेल्टर्स हैं जिनमें अधिकाँश में आदि मानव ने अलग अलग समय पर चित्रकारी की हुई है. गुफाओं में बने कुछ चित्र 30,000 साल पहले के माने जाते हैं. इन शेल्टेर्स में से 15 गुफाएं जिनमें चित्रकारी है, जनता के देखने के लिए अलग कर दी गई हैं. चूँकि जंगल और पथरीला इलाका है इसलिये करीबन 1.5 किमी लंबा एक घुमावदार रास्ता बना दिया गया है ताकि इन 15 गुफाओं में चलते चलते चित्रकारी देखने में सुविधा हो. चित्र तो ऐसे हैं जैसे बच्चे दीवारों पर खुरच के बना देते हैं इसलिये थोड़ा ध्यान से देखना होगा. बादल छाए हों तो चित्रकारी देखना मुश्किल होगा. फोटो में शायद उतना साफ़ ना नज़र आए. इनमें से कुछ में हरा या लाल रंग भी भरा गया है जो अब तक थोड़ा बहुत बचा हुआ है.

* भीमबेटका की ये चित्रकारी काकाड़ू नेशनल पार्क, ऑस्ट्रेलिया, लास्कौ केव पेंटिंग्स, फ्रांस और कालाहारी रेगिस्तान के बुशमैन की चित्रकारी से काफी कुछ मिलती जुलती हैं.

* 1957 में भीमबेटका की इन गुफाओं की खोज archeologist श्री विष्णु श्रीधर वाकणकर ने की. काफी समय बाद 1970 तक बड़े पैमाने पर खोजबीन हुई और आस पास की पहाड़ियों में 700 से ज्यादा गुफाएं रिपोर्ट की गईं. 1990 में ASI ने ये स्थान सम्भालना शुरू किया और 2003 में यूनेस्को द्वारा भीमबेटका को World Heritage Site घोषित किया गया.

* अगर आप जाना चाहें तो भोपाल से सुबह भीमबेटका पहुँच सकते हैं और देखने का बाद वापिस भी जा सकते हैं. सुबह सात से शाम पांच बजे खुलता है.गाइड मिल जाता है. लगभग एक से चार घंटे देखने में लग सकते हैं. वैसे ये विषय आपको कितना रोचक लगता है उस पर भी निर्भर करता है. प्रवेश का टिकट है और गाड़ी का टिकट महंगा है. उमस भरी दोपहर से बचें. आसपास कोई होटल, रेस्तरां या ढाबा नहीं है इसलिए खाने पीने का इंतज़ाम करके चलना ठीक रहेगा.
प्रस्तुत हैं कुछ फोटो:

1. चट्टानों का रंगमंच 
2. इस चट्टान का नाम रखा गया है boar rock   

3. हरियाली और रास्ता 

4. आदि मानव का गाँव     
5. तरह तरह की गुफाएं  

6. जानवरों के चित्रों की वजह से इस चट्टान का नाम Zoo Rock रख दिया गया है 

7. घोडा और हाथी. यह चित्रण प्रागैतिहासिक ना होकर ऐतिहासीक काल का है.  

8. एक मानव ढोलक जैसा कुछ बजा रहा है और नाच हो रहा है 

9. ये चित्रण बेहतर लग रहा है 

10. पौधे का चित्र 

11. Boar या वराह या जंगली सूअर आक्रामक हो गया है और कोई मानव भागने की कोशिश कर रहा है. गोल सींग और छोटे कान भी हैं. कुछ लोग नीचे खड़े हैं. इस चित्र में रंग भी भरा गया है    

12. पक्षी शायद मोर बनाने का प्रयास 
13. आस पास के जंगल में कई तरह के पेड़ पौधे हैं. उस वक़्त आदिवासियों को यहाँ फल, कन्द-मूल और शिकार आसानी से मिल जाते होंगे. यहाँ देखिये 'कारी' के पेड़ के तने पर 'पापड़ा' का पेड़ उगा हुआ है 

14. ASI का नोटिस बोर्ड 

15. गेट खुलने का इंतज़ार. यहाँ से लगभग तीन किमी अंदर हैं भीमबेटका की चट्टानों पर पेंटिंग   

16. यहाँ कुछ 'आधुनिक' चित्रण है. छोटे हाथी पर एक सवार भी है और उसके हाथ में भाला भी है 
17. सीधी सीधी लाइनों वाले चित्र 

18. चट्टानों और गुफाओं में आदिवासी जीवन की झलक 

19. डायनोसोर जैसी चट्टानें 





5 comments:

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2018/11/blog-post_24.html

Subhash Mittal said...

Very nice

Unknown said...

Salute to ur research and analysis

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद 'Unknown'

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद Subhash Mittal जी.