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Sunday, 31 January 2016

ऐसे भी और वैसे भी

अगर आप संसद मार्ग पर निकलें तो बहुत सी ऊँची-ऊँची इमारतें मिलेंगी जिनमें से कुछ में बैंक हैं. हमारा बैंक भी वहीँ है. बैंक कई फ्लोर में फैला हुआ है और इन फ्लोर पर बहुत से कर्मचारी, अधिकारी, हाकिम और हुक्काम काम करते हैं. इनमें से कुछ काम करते हैं और कुछ आराम करते हैं. कुछ ऊपर से नीचे आते हैं और कुछ नीचे से ऊपर जाते हैं. कुछ कभी कभी नारे भी लगाते हैं और कुछ नारे सुनते हैं. कभी तो ये सब समझ आता है पर कभी नहीं भी आता.

यहाँ काम करने वाले कई प्रकार के होते हैं. कुछ के हाथ में बन्दूक होती है, कुछ के हाथ में डस्टर या झाड़ू होते हैं, कुछ के हाथ में फाइलें और कुछ के हाथ में प्लास्टिक या लेदर फोल्डर होते हैं. कुछ खाली हाथ चलते हैं पर उनको भी कुछ काम करने पड़ते होंगे या शायद नहीं करने पड़ते होंगे. पता नहीं.

जिनके हाथ में बन्दूक है वो दरवाज़े पर खड़े-खड़े लोगों की शक्लें देखते रहते हैं. जिनके हाथ में डस्टर या झाड़ू है वो एक तरफ सफाई कर के धूल मिट्टी दूसरी तरफ डाल देते हैं. दूसरे दिन वे दूसरी तरफ की सफाई करते हैं और कूड़ा तीसरी तरफ सरका देते हैं. ये कारवाई चलती रहती है.  

जिनके हाथ में फाइल हैं वो छोटे साहब से लेकर बड़े साहब को देने जाते हैं और फिर बड़े साहब से लेकर छोटे साहब को वापस करने जाते हैं. ये लोग ज्यादातर खैनी और तम्बाकू का प्रयोग करते हैं और गलियारों और सीढ़ियों के कोने खराब कर देते हैं. इनमें से कुछ सिगरेट और बीड़ी का धुआं भी उड़ाते हैं और बैंक की कम और सिनेमा और टीवी सीरियल की बातें ज्यादा करते हैं. 

जिनके हाथ में प्लास्टिक या लेदर के फोल्डर होते हैं वे कम मुस्कराते हैं और धीर-गंभीर मुद्रा में होते हैं. नीली या काली स्याही से ये कागजों पर लिखते रहते हैं और उसे लिख कर या पढ़ कर महसूस करते हैं की बैंक, देश और समाज के लिए बड़े बड़े काम कर रहे हैं. बैंक का प्रॉफिट और साथ में देश का जीडीपी बढा रहे हैं. इनमें से एक आधा जब सस्पेंड या डिसमिस होता है तो कुछ समय के लिए बैंक का प्रॉफिट और देश का जीडीपी रुक जाता है.

कुछ नारे लगाने वाले भी हैं जो नेता कहलाते हैं. हर वर्ग में हैं. जो जितना ज्यादा शोर मचाता है वह उतना ही बड़ा नेता बन सकता है. या फिर ज्यादा पंगे खड़ा करता है तो वो भी ऊपर की ओर चढ़ सकता है. कई बार तो कुछ नेता लोगों के सर पर खड़े हो कर भी भाषण दे देते हैं.

नारे सुनने वाले भी बहुत हैं जो शातिर और चालाक हैं. नारे सुन कर १० % बढ़ा कर बड़े हाकिम के कान में फुसफुसाते हैं. बड़े हाकिम की बात को १० % घटा कर नारे लगाने वाले के कान में फुसफुसाते हैं. ये चाय इधर भी बैठ कर पीते हैं और उधर वालों के साथ भी पीते हैं. 

कभी तो ये सब समझ में आता है पर कभी नहीं भी आता. आप समझ लेते हैं क्या ?

हम ऐसे भी हैं 

1 comment:

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2016/01/blog-post_31.html