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Sunday, 24 January 2016

औकात

सागर किनारे पेड़ों का एक झुरमुट था. उस झुरमुट में बैठे एक कौवे की नज़र रेत में बैठे कुछ मछुवारों पर थी. मछुवारों ने आग जला रखी थी और जोर जोर से बतियाते हुए मछली भून रहे थे. दारु पीने और मछली की दावत के बाद एक दो मछुवारे वहीँ लेट गए और कुछ नाचने गाने लगे. कौवे ने उड़ान भरी और वहीँ जा उतरा.

उतरते ही मछली का पिंजर नज़र आ गया. चोंच में पकड़ लिया और थोडा दूर हट गया. पिंजर को पैर में दबाया और चोंच से मांस नोच नोच कर खाने लगा. खाकर हंसा और पेड़ों के झुरमुट की ओर ख़ुशी से कांव-कांव करते हुए उड़ा. वहां उसकी अर्धांगिनी बैठी उंघ रही थी.
- अरे ओ कव्वी उंघती रहेगी क्या ? चल आजा तेरी मस्त दावत कराता हूँ.
दोनों ने खूब मछली खाई और पानी पीने के लिए वहां पड़ी एक बोतल गिरा दी जिसमें दारु थी. पानी के बजाए दारु पी ली और दोनों मस्त होकर हवा हवाई होने लगे. तब कव्वी बोली :
- चल कौवे आज समंदर में तैरते हैं ?
- चल तैरते हैं.
पर एक ऊँची लहर आई जिसने कव्वी को उठाकर पटक दिया और मछली ने जल्दी से उसे लपक लिया. कौवे ने ऊपर उड़ कर बुरी तरह से 'कव्वी कव्वी' चिल्लाना शुरू कर दिया. झुरमुट से और बहुत से दोस्तों यारों के ले आया. सबने मिल कर कांव कांव का शोर मचाया पर कव्वी ना मिलनी थी न मिली.
झुरमुट में दुबारा कौव्वों की मीटिंग हुई. बहुत से विचार दिए गए - कुछ दुःख के, कुछ सहनुभूति के और कुछ गुस्से में:
- बड़ी सुंदर कव्वी थी जी. चोंच कितनी शानदार थी जी.
- बहुत सुरीली आवाज़ में कांव कांव किया करती थी.
- समंदर ने ये अच्छा नहीं किया. हमारी सुंदरी डुबो दी.
- हमें समंदर के खिलाफ कुछ करना चाहिए.
- इस समंदर को अपने पानी पर बड़ी ऐंठ है. हमें तो इसका पानी निकाल कर फेंक देना चाहिए. ना होगा बांस ना बजेगी बांसुरी.
- चलो, चलो, चलो का शोर मच गया. सब कौव्वे मिल कर कांव कांव करते हुए समंदर पर टूट पड़े. अपनी अपनी चोंचों में पानी भर कर दूर फेंकने लगे. कुछ ही देर में थकने लगे, आँखें लाल हो गयीं, मुंह में खारा पानी भरने के कारण कांव कांव बंद होने लगी.
समंदर ने कुछ देर कौव्वों की हरकत देखी. फिर मुस्कराया और एक ऊँची लहर झुण्ड पर दे मारी. कुछ कौवे लहर की चपेट में आ गए और बाकी जान बचा कर झुरमुट की ओर उड़ गए.  

आज दावत है
यह किस्सा एक जातक कथा पर आधारित है और इस किस्से में अपनी औकात में रहने के लिए कहा गया है. जातक कथाएँ 2500 वर्ष पूर्व गौतम बुद्ध के समय से प्रचलित हुईं. गौतम बुद्ध 35 वर्ष की आयु से लेकर 80 की आयु तक ज्ञान का प्रचार करते रहे. अपने प्रवचनों में अपने जीवन के अनुभव और बहुत सी छोटी छोटी कथाएँ उदहारण के तौर पर बताया करते थे. कुछेक कथाएँ दुसरे अरहंतों की भी हैं. धम्म प्रचार के साथ साथ ये जातक कथाएँ बहुत से देशों - श्रीलंका, म्यामार, कम्बोडिया, तिब्बत, चीन और ग्रीस तक पहुँच गयीं.

इस कहानी के और भी रूपान्तर हैं :
- एक बार समुंदर चिड़ियों के अंडे बहा कर ले गया. सब चिड़ियों ने मिलकर गरुड़ देवता से अपील की. गरुड़ के कहने पर समुंदर ने अंडे वापस लौटा दिए.
- कुत्तों के झुण्ड को नदी के तल में हड्डियाँ दिखाई पडीं. उनको पाने के लिए कुत्तों ने सोचा की नदी का पूरा पानी पीकर ख़त्म कर देते हैं (अरबी लोक कथा ).



1 comment:

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2016/01/blog-post_24.html