Pages

Monday 18 January 2016

पेंशन के नोट

नफे सिंह ने अपनी सफ़ेद मूंछो पर ताव दिया और बैंक की पास-बुक दिखा कर पूरे भारत की जनता के सामने घोषणा कर दी:
- पेंसन चढ़ गई भई खाते में इब चिंता किस बात की ?

नफे सिंह नें बैंक खाते से एक हजार तीन सौ रुपये निकाले. नोट तीन बार गिने कहीं कम तो न दे दिए खजांची ने ?
- भई नूं है की आजकल बिस्वास करने का जमाना नइ है.

नोट गिन कर कोट के नीचे का स्वेटर ऊपर किया, स्वेटर की नीचे की कमीज़ ऊपर उठाई और बनियान में बने स्पेशल जेब में 1000 जमा कर दिए. नफे सिंह इस बनियान को लॉकर वाली बनियान कहता था. तीन सौ रुपए कोट के पॉकेट में डाल दिए. दो एक बार थपथपा कर जेब सेट कर दी, कपड़े सीधे कर लिए और फिर घर की ओर प्रस्थान कर दिया.

रास्ते में उसका पहला पड़ाव था ठेका जहाँ से उसने रम का एक पउव्वा ख़रीदा और झोले में डाल लिया. सब्जी वाले से गाजर, मूली, टमाटर, आलू और प्याज ले लिए. आखिर में पोती के लिए टाफियां लीं और झोले में गेर लीं. अब नफे सिंह के चहरे पर से तनाव हट गया और संतोष झलकने लगा. हलकी सी मुस्कराहट आ गई और चाल मस्तानी हो गई. आज शाम की दावत तो फिट हो गई दुनियादारी गई भाड़ में.

घर पहुँच कर टाफियां पोती को दी तो वो खुश हो गई. सब्जियां खटिया पर डाल दीं और धीरे धीरे सीढियाँ चढ़ कर अपने कमरे में आ गया. पहले रम का पउव्वा संभाला फिर जूते उतारे और कमर सीधी करने के लिए खटिया पर लेट गया. 

उठा तो 6 बज रहे थे. कम्बखत बहु ने आज तो खाना भी नहीं पुछा. जोर से बोला:
- रे आज ते तैने रोटी टिक्कड़ भी ना पूछी ? कित गई ?
- अजी कई बेर वाज लगा ली सोए पड़े थम तो. इब मोहल्ले को थोड़ा ही जगाणा था ? रोटी तो रोज मैं-इ खिलाऊं और कुण खिलाएगी थमें ? ये राखी थाली.

- चल ठीक है जरा मरा प्याज टमाटर काट दे नमक लगा के और पानी की बोतल दे दे.
- ये ल्लो.

बहु के जाने का बाद तकिये की नीचे से पउव्वा निकला और दबी आवाज़ में किलकारी भरी. जल्दी से स्टील के गिलास में रम डाली पानी मिलाया और एक घूँट पिया

- वाह ! वाह ! गला तर हो गया. स्साले दो-दो छोरे तीन-तीन जंवाई, एक नहीं कहता की नफे सिंह म्हारे बाप, दो घूँट लगा ले चैन से बैठ के. हाल-इ ना पूछते निकम्मे स्साले ! इनसे तो घरवाली ठीक थी. वो भी पहले निकल गई कमबखत. मेरे जाने के बाद चली जाती. इब ज्यादा याद आती है सुसरी ! ये ले दूसरा घूँट तेरे नाम का बस तू खुस रह जहाँ भी है तू.

तब तक नीचे बहु को भी भनक लग चुकी थी उसकी आवाज़ भी आने लगी :
- सत्तर साल की उमर हो ली पर बताओ बोतल ना छोड्डी. बुढ़िया भी मना करते करते चली गयी और नाती पोते हो लिए पर बोतल न छोड्डी. क्या सिखाओगे थम बालकां ने ? रोटी टाइम ते चइये. रोटी बनाने में पैसा लगे है म्हेनत लगे है.

- रे अपने पैसे से पियूँ मैं. अपनी रोटी के पैसे दूं मैं. पेंसन मिले है पेंसन.

- ना अबकी बेर थम पेंसन के नोट खा लियो, कच्चे कागज़ खा लियो. ना तो बोतल में पेंसन के नोट घोल के पी लियो.

चलो घर चलें 

3 comments:

Anonymous said...

कितनी सटीक observation है ! प्रस्तुति गजब की

Anonymous said...

सटीक और अच्छी कहानी है जी ☝🏻
बहुत सुंदर जी नफे सिंह जी

Anonymous said...

Nefey Singh get pension but what happened with us. Beautiful observation about pension.