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Sunday 23 June 2024

गोल गुम्बज़ बीजापुर, कर्णाटक

गोल गुम्बज़ बीजापुर का सबसे मशहूर स्मारक है. यह स्मारक सत्रहवीं सदी में बना और मोहम्मद आदिल शाह ( शासन 1627 - 1656 ) के परिवार के सदस्यों का मकबरा है. इस विशालकाय गुम्बद के नीचे कोई स्तम्भ या आधार नहीं है बस एक बहुत बड़ा और बहुत ऊँचा हाल है. इस बनावट के कारण ही इसे 2014 में यूनेस्को ने अपनी अस्थाई विश्व धरोहर की लिस्ट - 'दक्कनी सुल्तानों के किले और स्मारक' में शामिल किया था. 

बीजापुर कर्णाटक प्रदेश का एक जिला है जिस का नाम अब विजयपुरा है. यह शहर बैंगलोर से 520 किमी और मुंबई से 550 किमी दूर है. आदिल शाही ( 1490 - 1686 ) ज़माने की बहुत सी सुन्दर इमारतों के लिए बीजापुर मशहूर है. 

गोल गुम्बज का डिज़ाइन फ़ारसी वास्तुकार याकूत ने तैयार किया था. यह इमारत 1626 में बननी  शुरू हुई और 1656 में मुकम्मल हुई. इसमें हलके पीले रंग का बेसाल्ट पत्थर और चूना- पीसा शंख का पलस्तर किया गया है. चार बड़ी और सात मंजिल ऊँची मीनारें गुम्बद को सपोर्ट करती हैं. इन मीनारों में ऊपर जाने के लिए सीढ़ियां हैं. चारों 'खम्बों' के ऊपर छोटे गुम्बद हैं. छठी मंज़िल से बालकनी या गलियारे में जा सकते हैं और नीचे हाल की कार्रवाई को बखूबी देख सकते हैं. वेटिकन सिटी रोम के आलावा ये दूसरा बड़ा गुम्बज कहा जाता है.

गोल गुम्बज़ की एक और खासियत है acoustics या ध्वनि प्रबंधन. गैलरी में बैठे लोगों की बातचीत या फुसफुसाहट भी सुनी जा सकती है. अर्थात किसी को गला फाड़ कर बोलने की ज़रुरत नहीं थी. और अगर कोई षड्यंत्रकारी किसी के कान में फुसफुसा कर बोल रहा हो तो वो भी सुना जा सकता था और सिपाहियों को सतर्क किया जा सकता था. 

बीजापुर का इतिहास बड़ा उथल पुथल वाला और रोचक रहा है. देखिये कितने राजा, सुल्तान और पेशवा यहाँ आए:

ये शहर बसाया था पश्चिमी चालुक्य राजाओं ने, जिन्होंने 535 से 757 तक राज किया. 

राष्ट्रकूट राजा यहाँ 757 से 973 तक रहे. 

इस से आगे लगभग 1200 तक कलचुरी और होयसला शासन रहा. 

कुछ समय देवगिरि, यादव और उसके बाद 1312 में मुस्लिम शासन शुरू हुआ. 

1347 में बिदर के बहमनी वंश ने बीजापुर पर कब्ज़ा कर लिया और बहमनी राज 1489 तक चलता रहा. 

उसके बाद आदिल शाही वंश शुरू हुआ और यह वंश 1686 तक यहाँ काबिज रहा. 

औरंगजेब ने आदिल शाही सुल्तान को हरा दिया और बीजापुर पर मुग़ल शासन 1723 तक चला. 

1724 में स्वतंत्र हैदराबाद राज्य के निज़ाम ने बीजापुर को अपने राज में मिला लिया. 

1760 में मराठा फ़ौज ने बीजापुर पर अधिकार जमा लिया.

1818  के मराठा - ब्रिटिश युद्ध में अंग्रेजों की जीत के बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने बीजापुर पर अधिकार जमा लिया और सतारा के राजा को दे दिया.

1848 में अंग्रेजों ने बीजापुर वापिस ले लिया क्यूंकि सतारा के राजा की कोई संतान न थी. 

1885 में बीजापुर को मुख्यालय बना दिया गया.

1956 में बीजापुर मैसूर राज्य में शामिल हुआ जो बाद में कर्णाटक कहलाया.

प्रस्तुत हैं गोल गुम्बद की कुछ फोटो और दो वीडियो: 

गोल गुम्बज़. इस गोल गुम्बद का व्यास 44 मीटर है 

दाहिनी ओर का सात मंजिला 'स्तम्भ' 
    
बाईं ओर का सात मंज़िला 'स्तम्भ' जिसके ऊपर एक छोटा गुम्बद है. इस तरह के चार स्तम्भों पर मुख्य गुम्बद टिका हुआ है 

पुरातत्व विभाग का संग्रहालय जो कभी नक़्क़ारखाना हुआ करता था 

म्यूजियम के बाहर आदिल शाही तोप 

गुम्बद के नीचे हॉल जो 41 मीटर X 41 मीटर है 

एक बड़े और ऊँचे चबूतरे पर परिवार की कब्रें 

रौशनी के लिए बनाए गए रौशनदान. फर्श से छत की ऊंचाई 60 मीटर है 

शायद इस फोटो से हॉल का अंदाज़ा लग जाएगा  

लैंप-पोस्ट 

रिसेप्शन जिसमें सुरक्षा व्यवस्था थी. यहाँ से अंदर आने वालों पर नज़र रखी जाती थी और अंदर आने वालों की   जांच भी की जाती थी 

गोल गुम्बज़ का नक्शा विकिपीडिया से सधन्यवाद 

गोल गुम्बज़ पर जारी पुराना डाक टिकट 
   
                                                         गोल गुम्बज़ बीजापुर कर्णाटक  

                                                              गोल गुम्बज बीजापुर कर्णाटक 


बीजापुर कर्णाटक से सम्बंधित अन्य फोटो ब्लॉग :

1. बीजापुर कर्णाटक -https://jogharshwardhan.blogspot.com/2024/01/11.html

2. बीजापुर के स्मारक -- https://jogharshwardhan.blogspot.com/2024/06/blog-post_13.html

                                               मेरठ - बैंगलोर - मेरठ कार यात्रा, भाग - 32 

Friday 21 June 2024

योग दिवस 2024

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस हर साल की तरह 2024 में 21 जून को मनाया जाएगा. इस साल योग दिवस की थीम है Yoga for Self and Society. योग ना केवल अपने लिए बल्कि समाज के लिए भी सहायक है. शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक शांति के लिए बेजोड़ फार्मूला है जो सभी के लिए उपलब्ध है. 

प्राचीन ग्रंथों में योग की कई परिभाषाएँ मिलती हैं जो मुख्य तौर पर दार्शनिक परिभाषाएँ हैं. जैसे कि

  • योगश्चित्तवृतिनिरोधः अर्थात् चित्त की वृत्तियों का निरोध ही योग है (पातंजलि योग दर्शन के अनुसार),
  • पुरुषप्रकृत्योर्वियोगेपि योगइत्यमिधीयते। अर्थात् पुरुष एवं प्रकृति के पार्थक्य को स्थापित कर पुरुष का स्व स्वरूप में अवस्थित होना ही योग है( सांख्य दर्शन के अनुसार),
  • योगः संयोग इत्युक्तः जीवात्म परमात्मने अर्थात् जीवात्मा तथा परमात्मा का पूर्णतया मिलन ही योग है( विष्णु पुराण के अनुसार),
  • सिद्धासिद्धयो समोभूत्वा समत्वं योग उच्चते अर्थात् दुःख-सुख, लाभ-अलाभ, शत्रु-मित्र, शीत और उष्ण आदि द्वन्दों में सर्वत्र समभाव रखना योग है( भागवद्गीता के अनुसार),
  • तस्माद्दयोगाययुज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम् अर्थात् कर्त्तव्य कर्म बन्धक न हो, इसलिए निष्काम भावना से अनुप्रेरित होकर कर्त्तव्य करने का कौशल योग है( भागवद्गीता के अनुसार),
  • मोक्खेण जोयणाओ सव्वो वि धम्म ववहारो जोगो अर्थात् मोक्ष से जोड़ने वाले सभी व्यवहार योग हैं ( जैन आचार्य हरिभद्र के अनुसार),
  • कुशल चितैकग्गता योगः अर्थात् कुशल चित्त की एकाग्रता योग है( बौद्ध धर्म के अनुसार).

योग की उच्चावस्था तक पहुँचने के लिए जो साधन अपनाये गए थे उन्हीं साधनों का वर्णन योग ग्रन्थों में समय समय पर मिलता रहा है। योग की प्रामाणिक पुस्तकों में योग के चार प्रकार का वर्णन मिलता है - 

1. मंत्रयोग: मंत्र योग का सम्बन्ध मन से है, मन को इस प्रकार परिभाषित किया है- मनन इति मनः। जो मनन, चिन्तन करता है वही मन है। मन की चंचलता का निरोध मंत्र के द्वारा करना मंत्रयोग है। 

2 .हठयोगहठ का शाब्दिक अर्थ हठपूर्वक किसी कार्य को करने से लिया जाता है। हठ प्रदीपिका पुस्तक में हठ का अर्थ इस प्रकार दिया है-

ह का अर्थ सूर्य तथा ठ का अर्थ चंद्र बताया गया है। सूर्य और चन्द्र की समान अवस्था हठयोग है। शरीर में कई हजार नस नाड़ियाँ है उनमें तीन प्रमुख नाड़ियों का वर्णन है, वे इस प्रकार हैं। सूर्यनाड़ी अर्थात पिंगला, चन्द्रनाड़ी अर्थात इड़ा और इन दोनों के बीच तीसरी नाड़ी सुषुम्ना है। इस प्रकार हठयोग वह क्रिया है जिसमें पिंगला और इड़ा नाड़ी के सहारे प्राण को सुषुम्ना नाड़ी में प्रवेश करा कर समाधिस्थ किया जाता है।

3. लययोग: चित्त का अपने स्वरूप विलीन होना या चित्त की निरूद्ध अवस्था लययोग के अन्तर्गत आती है। साधक के चित्त् में जब चलते, बैठते, सोते और भोजन करते समय हर समय ब्रह्म का ध्यान रहे इसी को लययोग कहते हैं और  

4. राजयोग: राजयोग सभी योगों का राजा कहलाया जाता है क्योंकि इसमें प्रत्येक प्रकार के योग की कुछ न कुछ सामग्री अवश्य मिल जाती है। राजयोग का विषय चित्तवृत्तियों का निरोध करना है।

भारतीय दर्शन में योग 

मोटे तौर पर भारतीय दर्शन वेदों पर आधारित है जो लगभग 1500 ईसा पूर्व या उस से भी पहले रचे गए. वेदों की प्रभुता को मानते हुए छे दर्शन प्रसिद्द हुए हैं जिन्हें षट-दर्शन भी कहते हैं. ये हैं: 

सांख्य दर्शन - जिसके प्रणेता हैं ऋषि कपिल,

योग दर्शन - जिसके प्रणेता हैं ऋषि पतंजलि,

न्याय दर्शन - जिसके प्रणेता हैं ऋषि गौतम,

वैशेषिक दर्शन - जिसके प्रणेता हैं ऋषि कणाद,

मीमांसा दर्शन - जिसके प्रणेता हैं ऋषि जैमिनी और

वेदान्त दर्शन - जिसके प्रणेता हैं ऋषि बादरायण. 

इनमें से पतंजलि का योग दर्शन, सांख्य दर्शन का पूरक या व्यवहारिक दर्शन कहलाता है. इस के अपनाने से समाधी की और बढ़ा जा सकता है. इसके आठ अंग हैं: 

1.यम, 2. नियम, 3. प्रत्याहार, 4. आसन, 5. प्राणायाम, 6. धारण , 7. ध्यान और 8. समाधी. इन आठ अंगों के कारण इसे अष्टांग योग भी कहा जाता है. पहले सात अंगों को अपनाते हुए आठवें पर पहुंचा जा सकता है. आज के युग में सिर्फ चौथा और पांचवां अंग मिला कर कथा समाप्त कर दी जाती है. पर चलिए आसन और प्राणायाम ही करते रहें तो कम से कम स्वास्थ्य तो सही बना रहेगा!

पतंजलि योग दर्शन में दर्शन या फलसफा तो है परन्तु योगासन, प्राणायाम या मुद्राओं का वर्णन नहीं किया गया है. आसन किस प्रकार करें या प्राणायाम कैसे करें, इसका वर्णन घेरंड संहिता में आया है. 

ये किताब अंदाज़न सत्रहवीं सदी में ऋषि घेरंड द्वारा लिखी गई थी परन्तु समय के बारे में विद्वानों की राय अलग अलग है. पुस्तक संवाद के रूप में है. ऋषि घेरंड से उनका शिष्य चंड कपाली ( कहीं कहीं चंडकपालि या चण्डिका पालि भी लिखा हुआ है और कहीं कहीं पर शिष्य को राजा भी कहा गया है ), प्रश्न पूछता है और ऋषिवर उसे जवाब देते हैं. संहिता में 353 श्लोक हैं. इस पुस्तक में मनुष्य के शरीर को घट या घड़े के सामान बताया गया है जिसे योगाभ्यास के तप से शुद्ध और परिपक्व बनाया जा सकता है. घेरंड संहिता में सात अध्याय हैं. संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है - 

1. षट्कर्म प्रकरण - शरीर की शुद्धि के लिए छे प्रकार के कर्म बताए गए हैं. 

( i ) धौति - अंत:धौति ( वातसार धौति, वारिसार धोती, अग्निसार धौति और बहिष्कृत धौति ), 

       दन्त धौति ( दन्तमूल धौति, जिह्वा धौति, कर्णरन्ध्र धौति और कपालरन्ध्र धौति ),  

       ह्रिद्ध धौति ( दण्ड धौति, वमन धौति और वस्त्र धौति ) और मूल शोधन,

(ii). वस्ति क्रिया ( जल वस्ति और स्थल वस्ति), 

(iii). नेति क्रिया  ( जल नेति और सूत्र नेती ), 

(iv). नौलि क्रिया ( मध्य नौलि, वाम नौलि और दक्षिण नौलि ), 

(v).  त्राटक क्रिया और 

(vi). कपाल भाति ( वात्क्रम कपाल भाति, व्युत्क्रम कपाल भाति और शीतक्रम कपाल भाति ).

2. आसन प्रकरण - इस अध्याय में सुद्ध्र्ढ़ और निरोगी शरीर के लिए आसन बताए गए हैं. ऋषि घेरंड ने कहा है कि जितने जीव जंतु हैं उतने ही आसन हैं अर्थात चौरासी लाख. इनमें से 84 आसन श्रेष्ठ हैं और इन 84 आसनों में से 32 आसन सर्वश्रेष्ठ हैं. इन आसनों का वर्णन संहिता में है और इनके नाम इस प्रकार हैं - 

1. सिद्धासन, 2. पद्मासन, 3. भद्रासन, 4. मुक्तासन, 5. वज्रासन, 6. स्वस्तिकासन, 7. सिंहासन, 8. गोमुखासन, 9. वीरासन,10. धनुरासन, 11. शवासन, 12. गुप्तासन, 13. मत्स्यासन, 14. मत्स्येन्द्रासन, 15. गोरक्षासन, 16. पश्चिमोत्तानासन, 17. उत्कट आसन, 18. संकट आसन, 19. मयूरासन, 20. कुक्कुटासन, 21. कूर्मासन, 22. उत्तानकूर्मासन, 23. मण्डुकासन, 24. उत्तान मण्डुकासन, 25. वृक्षासन, 26. गरुड़ासन, 27. वृषासन, 28. शलभासन, 29. मकरासन, 30. उष्ट्रासन, 31. भुजंगासन और 32. योगासन. 

3. मुद्रा कथनम - तीसरे अध्याय में शरीर की स्थिरता बढ़ाने के लिए इन पचीस मुद्राओं का वर्णन है: 

1.महामुद्रा, 2. नभोमुद्रा, 3. उड्डियान बन्ध, 4. जालन्धर बन्ध, 5. मूलबन्ध, 6. महाबंध, 7. महाबेध मुद्रा, 8. खेचरी मुद्रा, 9. विपरीतकरणी मुद्रा, 10. योनि मुद्रा, 11. वज्रोली मुद्रा, 12. शक्तिचालिनी मुद्रा, 13. तड़ागी मुद्रा, 14. माण्डुकी मुद्रा, 15. शाम्भवी मुद्रा, 16. पार्थिवी धारणा, 17. आम्भसी धारणा, 18. आग्नेयी धारणा, 19. वायवीय धारणा, 20. आकाशी धारणा, 21. अश्विनी मुद्रा, 22. पाशिनी मुद्रा, 23. काकी मुद्रा, 24. मातङ्गी मुद्रा और 25. भुजङ्गिनी मुद्रा. 

4. प्रत्याहार - इस अध्याय में प्रत्याहार के विषय में बताया गया है. प्रत्याहार के पालन से इन्द्रियां अन्तर्मुखी होती हैं और धैर्य में बढ़ोतरी होती है. इन्द्रियों के बहुर्मुखी होने से साधना में विघ्न पड़ सकता है. 

5. प्राणायाम - पांचवें अध्याय में शरीर के आहार और प्राणायाम की चर्चा है. शरीर को हल्का फुल्का रखने के लिए आहार का विशेष ध्यान रखना चाहिए. आहार तीन तरह का बताया गया है - मिताहार, हितकारी या गाह्य आहार और निषिद्ध या अगाह्य आहार. इनमें से मिताहार या अल्पाहार योगियों के लिए उचित माना गया है. संहिता में प्राणायाम के अभ्यास से पहले नाड़ी शोधन करने पर जोर दिया गया है. नाड़ी शोधन क्रिया से इड़ा और पिंगला में बैलेंस स्थापित होता  है. संहिता में निम्न प्राणायामों का वर्णन किया गया है - 1.नाड़ी शोधन, 2. सूर्यभेदी, 3. उज्जयी, 4. शीतली, 5. भस्त्रिका, 6. भ्रामरी, 7. मूर्छा और 8. केवली.

6. ध्यानयोग - इस अध्याय में आतंरिक साक्षात्कार या प्रात्यक्षीकरण के लिए ध्यान लगाने का उल्लेख है. तीन तरह के ध्यान बताए गए हैं - स्थूल ध्यान, ज्योतिर्ध्यान और सूक्ष्म ध्यान. सर्वश्रेष्ठ ध्यान सूक्ष्म ध्यान माना गया है. 

7. समाधियोग - अंतिम अध्याय में समाधि की चर्चा है. समाधी की ऊँची अवस्था में मनुष्य निर्लिप्त और अनासक्त अवस्था को प्राप्त होता है.  

आजकल चलने वाले योगासन, मुद्रा, बांध, प्राणायाम का मुख्य स्रोत्र यही घेरंड संहिता है. घेरंड संहिता के कुछ समय बाद 'शिव' द्वारा  'शिव संहिता' लिखी गई. इसमें पांच अध्याय हैं और 642 श्लोक हैं जिनमें शिव-पार्वती संवाद द्वारा योग समझाया गया है. स्वात्मा राम द्वारा लिखित 'हठयोग प्रदीपिका' में भी आसन और प्राणायाम जैसी क्रियाओं का वर्णन किया गया है. यह संस्कृत में लिखी गई और इसमें चार अध्याय हैं. इनमें शारीरिक और अध्यात्मिक क्रियाओं का मिश्रण है. 

ये तो थी प्राचीन काल की बात जो काफी गहराई से समझने वाली है पर इस आधुनिक युग में योगाभ्यास शारीरिक स्वास्थ्य का माध्यम है. फिर भी लगातार करते रहने से गोलियों की आवश्यकता कम पड़ती है इसमें कोई दो राय नहीं हैं. इसलिए किसी अच्छी संस्था या अच्छे गुरु से सीखें और लाभ उठाएं. 

हमने भारतीय योग संस्थान, दिल्ली से 1997 में सीखी ( yogsansthan.org ) और अब तक जारी है. साल में 365 दिन तो नहीं पर हाँ 300 320 दिन से ज्यादा कर लेते हैं. अगर कहीं दूर यात्रा पर निकलते हैं तो भी योगए किट साथ ही रखते हैं. योग के साथ अगर भोजन भी संतुलित हो तो शरीर हल्का और आलस्य रहित रहता है. 

कुछ आसनों की फोटो प्रस्तुत हैं.  

उष्ट आसन 
कोण आसन 

गोमुख आसन 

प्राणायाम - भ्रामरी गुंजन 

वृक्ष आसन 


Thursday 13 June 2024

बीजापुर के स्मारक

बीजापुर कर्णाटक प्रदेश का एक जिला है जो बैंगलोर से 520  किमी और मुंबई से 550 किमी की दूरी पर है. आदिल शाही ( 1490 - 1686 ) ज़माने की बहुत सी सुन्दर इमारतों के कारण बीजापुर मशहूर है. इन इमारतों में से कुछ अधूरी और कुछ पूरी बची हुई हैं पर देखने लायक हैं. आजकल बीजापुर का नाम विजयपुरा कर दिया गया है. ( वैसे एक बीजापुर छत्तीसगढ़ में भी है ! ). 

आदिल शाही खानदान के लोग शायद ईरान या तुर्की से आए थे. यहाँ कभी किसी की फ़ौज में शामिल हो गए और कभी किसी दूसरे की फ़ौज में. फिर एक दिन मौका देख कर खुद सुल्तान बन बैठे. युसूफ आदिल शाह और इब्राहिम आदिल शाह ने बहुत सी इमारतें और पार्क बनवाए. इमारतें इंडो-इस्लामिक शैली की हैं और कभी बहुत सुन्दर रही होंगी. अब खंडहर होते हुए भी सुन्दर लगती हैं. कुछ फोटो प्रस्तुत हैं. 

इब्राहिम रौज़ा. रौज़ा ( rauza or rawza ) एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ है वो बगीचा जिसमें किसी को दफनाया गया हो. आम तौर पर रौज़ा सूफी संतों के लिए इस्तेमाल होता था पर बाद में ये शब्द सभी के लिए होने लगा. यह रौज़ा 1627 में इब्राहिम आदिल शाह II की बेगम ताज सुल्ताना ने बनवाया था. इसे बनाने में आठ बरस लगे. दो मकबरों के बीच मस्जिद है

मीनारें पतली और नाज़ुक लगती हैं पर लगभग चार सौ सालों से सलामत खड़ी हैं. 

ऊँचे चबूतरे पर बनी इमारतें जिन पर सुन्दर काम किया गया है

इस ऊँचे चबूतरे के नीचे तहखाने में इब्राहिम परिवार की कब्रें हैं 

बड़े खूबसूरत तरीके से छत बनाई गई है. बीजापुर की इमारतों में कमल के फूल की पंखुड़ियों का काफी प्रयोग किया गया है. 

बहुत बारीक और सुन्दर काम. ये परिसर बनने में 'एक लाख हुन' लगे. ऐसा दीवार पर फ़ारसी में लिखा हुआ है. रौज़ा की इमारत पूरी होने से पहले ताज सुल्ताना की मृत्यु हो गई. मलिक संदल जो एक किन्नर था और ताज सुल्ताना का विश्वास पात्र था, उसने '999 हुन' और खर्च कर के रौज़ा पूरा करवाया   

राजस्थानी खिड़कियों और झरोखों से मिलती जुलती बनावट 

काले पत्थर की सुन्दर वास्तु कला. गाइड का कहना था कि सजावटी फूल पत्तों की नक्काशी बौद्ध मूर्तियों और बौद्ध विहारों से ली गई थी   

ड्योढ़ी से लिया गया फोटो  

सूफी संत हज़रत मुर्तुज़ा कादरी की दरगाह 



जोड़ गुम्बज - अठारहवीं सदी में बने दो एक जैसे स्मारक. इसीलिए इन्हें जोड़ गुम्बज कहा जाता है 

गुम्बद पर सुन्दर कारीगरी 
ताज बावड़ी. इब्राहिम आदिल शाह द्वितीय ने अपनी बेगम ताज सुल्ताना के लिए 1690 में बनवाई थी 

ताज बावड़ी 

ताज बावड़ी. अंदर 223 फ़ीट लम्बा और 223 फुट  चौड़ा तालाब है जो 52 फीट गहरा है. 

80 फुट ऊँचा 'उपली बुर्ज' किसकी गोल सीढ़ियां ऊपर छत पर ले जाती है. यहाँ शहर की सुरक्षा के लिए एक बड़ी तोप रखी गई थी  

उपली बुर्ज 1584 में हैदर खान ने बनाई थी इसलिए इसे हैदर बुर्ज भी कहते हैं. आसपास किला था जो अब आबादी के अतिक्रमण में गायब हो चुका है  


बीजापुर की कुछ और फोटो इस लिंक पर देखेंमेरठ-बैंगलोर-मेरठ कार यात्रा: 11 बीजापुर, कर्णाटक



                                                  मेरठ - बैंगलोर - मेरठ कार यात्रा, भाग - 31   



Sunday 9 June 2024

नांदेड़ के गुरूद्वारे

 

गुरुद्वारा तखत सचखंड श्री हज़ूर साहिब, नांदेड़, महाराष्ट्र 


हैदराबाद में दो दिन रुकने के बाद हम नांदेड़ की ओर बढे. निर्मल में एक रात आराम किया ( ये शब्द 'निर्मल' एक जिले का नाम है जो तेलंगाना में है! ). वहां से अगले दिन गुरुद्वारों के शहर नांदेड़ में प्रवेश किया.

नांदेड़ जिला महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र के पूर्वी भाग में गोदावरी नदी के किनारे है. नांदेड़ मुम्बई से 600 किमी, हैदराबाद से 275 किमी और नागपुर से 425 किमी दूर है. रेल और सड़कों से जुड़ा हुआ शहर है. एक छोटा एयरपोर्ट -  इंदिरा गाँधी एयरपोर्ट भी है पर कम ही इस्तेमाल होता है. इसका शहर का नाम नांदेड़-वाघला, अब्चल नगर या अबिचल नगर भी बताया जाता है. नांदेड़ में तेलगु के अलावा हिंदी, मराठी, उर्दू और लम्बाडी भाषाएं भी बोली जाती हैं. 2011 की जनगणना के अनुसार यहाँ की आबादी 33 लाख से ज्यादा थी. 

 नांदेड़ में दसवें सिख गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह का निधन 7 अक्टूबर 1708 में हुआ था. अंतिम दिनों में उन्होंने 'गुरु' की पदवी किसी व्यक्ति को ना दे कर 'ग्रन्थ साहिब' को दी. श्री गुरु गोबिंद सिंह के अंतिम विश्राम स्थल को 'तखत सचखण्ड श्री हज़ूर साहिब' कहा जाता है. सिख धर्म के अन्य चार तखत हैं - 1. अकाल तखत अमृतसर, 2. तखत केशगढ़ साहिब आनंदपुर, 3. तखत पटना साहिब बिहार और 4. तखत दमदमा साहिब भटिंडा.

पहला गुरुद्वारा यहाँ महाराजा रणजीत सिंह ( 1780 - 1839 ) ने बनवाया था. इसके लिए पैसे, सामान, कारीगर और और मजदूर पंजाब से भेजे गए थे. इनमें से ज्यादातर लोग यहीं बस गए. आसपास के इलाके में काफी संख्या में सिख आबादी है. ऑटो ड्राइवर ने बताया कि जिले में 28 बड़े गुरूद्वारे हैं. स्थानीय लोग इन्हें 'नानक टेम्पल' कहते हैं. 

नांदेड़ में रहने के लिए होटल भी हैं और बहुत से लॉज और धर्मशाला भी हैं जिनमें अच्छी व्यवस्था है और बहुत कम पैसों में कमरे उपलब्ध हैं. ऑटो से शहर के सभी गुरुद्वारे देख सकते हैं. पूरे दिन की टैक्सी कर लें तो दूर दूर के गुरुद्वारों में भी जा सकते हैं. कुछ फोटो प्रस्तुत हैं.

शाम के समय का दृश्य 
   
बुरका पहने कुछ दर्शनार्थी भी गुरूद्वारे में दिखे 

गुरुद्वारा नानक सर साहिब 

द्वार 4. विशालकाय परिसर में इस तरह के कई द्वार हैं 

द्वार 5 

द्वार 6 

गुरुद्वारा श्री लंगर साहिब. गोदावरी नदी के किनारे बना हुआ है जहाँ 24 x 7 खाने की सेवा सभी को दी जाती है 

गुरुद्वारा श्री गोबिंद बाग साहिब जी. यहाँ बहुत बड़ा हरा भरा पार्क, जिम और लेज़र शो की व्यवस्था है 

गुरुद्वारा श्री बंदा घाट साहिब. ये स्थान माधो दस बैरागी का आश्रम हुआ करता था. 1708 में गुरु गोबिंद सिंह से मुलाकात के बाद वो बंदा सिंह बहादुर कहलाए. उन्हीं के नाम पर यह गुरुद्वारा बना. 

गुरुद्वारा साहिब नांदेड़ 

गुरुद्वारा साहिब नांदेड़ 

गुरुद्वारा साहिब नांदेड़ 

गुरुद्वारा श्री नगीना घाट. यहाँ एक बंजारे ने एक नायाब कीमती नगीना गुरु साहिब को भेंट किया. गुरु साहिब ने नगीना नदी में फेंक दिया और कहा की इस पत्थर से ज्यादा कीमत जीवन की है. बंजारे ने तुरंत नदी में छलांग लगा दी. वहां उसे और कई नगीने मिल गए. उस बंजारे को गुरु साहिब के कथन का दर्शन समझ आ गया  

गुरुद्वारा बाउली दमदमा साहिब. ये छोटा सा दो कमरों का गुरुद्वारा है जिसके परिसर में एक मीठे पानी की बाउली या कुआँ है. 1708 में यहाँ गुरु गोबिंद सिंह जी की मुलाकात शहज़ादा मुअज़्ज़म से हुई जो बाद में बहादुर शाह ज़फर के नाम से दिल्ली के तख़्त पर बैठा था.   
   
नांदेड़ शहर का एक दृश्य 

                                                    गुरूद्वारे के आसपास का एक दृश्य 

  
                                                   स्थानीय कलाकार गुरूद्वारे के आँगन में  



                                                मेरठ - बैंगलोर - मेरठ कार यात्रा, भाग - 30