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Saturday 27 January 2024

मेरठ-बैंगलोर-मेरठ कार यात्रा: 11 बीजापुर, कर्णाटक

बीजापुर कर्णाटक प्रदेश का एक जिला है जो बैंगलोर से 520  किमी और मुंबई से 550 किमी की दूरी पर है. आदिल शाही ( 1490 - 1686 ) ज़माने की बहुत सी सुन्दर इमारतों के कारण बीजापुर मशहूर है. इन इमारतों में से कुछ अधूरी और कुछ पूरी बची हुई हैं पर देखने लायक हैं. आजकल बीजापुर को विजयपुरा कहते हैं. शहर का संक्षिप्त लेकिन रोचक इतिहास कुछ इस तरह से है:

ये शहर बसाया था पश्चिमी चालुक्य राजाओं ने, जिन्होंने 535 से 757 तक राज किया। 

राष्ट्रकूट राजा यहाँ 757 से 973 तक रहे. 

इस से आगे लगभग 1200 तक कलचुरी और होयसला शासन रहा. 

कुछ समय देवगिरि, यादव और उसके बाद 1312 में मुस्लिम शासन शुरू हुआ. 

1347 में बिदर के बहमनी वंश ने बीजापुर पर कब्ज़ा कर लिया और बहमनी राज 1489 तक चलता रहा. 

उसके बाद आदिल शाही वंश शुरू हुआ और यह वंश 1686 तक यहाँ काबिज रहा. 

औरंगजेब ने आदिल शाही सुल्तान को हरा दिया और बीजापुर पर मुग़ल शासन 1723 तक चला. 

1724 में स्वतंत्र हैदराबाद राज्य के निज़ाम ने बीजापुर को अपने राज में मिला लिया। 

1760 में मराठा फ़ौज ने बीजापुर पर अधिकार जमा लिया।

1818  के मराठा - ब्रिटिश युद्ध में अंग्रेजों की जीत के बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने बीजापुर पर अधिकार जमा लिया और सतारा के राजा को दे दिया। 

1848 में अंग्रेजों ने बीजापुर वापिस ले लिया क्यूंकि सतारा के राजा की कोई संतान न थी. 

1885 में बीजापुर को मुख्यालय बना दिया गया.

1956 में बीजापुर मैसूर राज्य में शामिल हुआ जो बाद में कर्णाटक कहलाया।

आदिल शाही वंश का पहला सुलतान युसूफ आदिल शाह था और आखरी सुलतान सिकंदर आदिल शाह था. ये आदिल शाही सुलतान शायद ईरान या तुर्की के ओर से आये थे. यहाँ कभी किसी की फ़ौज में शामिल हो गए और कभी किसी दूसरे की फ़ौज में. फिर एक दिन मौका देख कर खुद सुल्तान बन बैठे। युसूफ आदिल शाह ने बहुत सी इमारतें और पार्क बनवाए। इमारतें इंडो-इस्लामिक  शैली की हैं और कभी बहुत सुन्दर रही होंगी। अब भी खंडहर होते हुए भी सुन्दर लगती हैं. नमूने के तौर पर कुछ तस्वीरें पेश हैं जो बारा कमान, गगन महल और आनंद महल की हैं. 

                                                                        बारा कमान

1. ये कमान अली आदिल शाह की बनवाई हुई है जो पूरी नहीं की गई थी. ना बनाने के कई किस्से बताए जाते हैं - एक कारण ये था की पूरी होने पर इस इमारत की छाया गोल गुम्बज पर पड़ती जो ठीक नहीं था. 

2 . यह इमारत 1672 में शुरू की गई थी और ये अली आदिल शाह का मकबरा बन रहा था. पर बारह कमान बनने के बाद आगे काम नहीं हुआ 

3. बहुत बड़े और ऊँचे चबूतरे पर ये इमारत बनाई जा रही थी. इस तस्वीर में पांच कमान नज़र आ रही हैं 

4. खम्बों में सीमेंट का इस्तेमाल नहीं किया गया पर खम्बों को आपस में जोड़े रखने के लिए लोहे के रिंग रखे गए थे. अली आदिल शाह, बेगम चाँद बीबी और अन्य बेगमों के अलावा बेटी भी यहीं दफ़्न है



5. ये अधूरी इमारत शहर के बीच में है. वास्तुकार था मलिक संदल  

    
6. एक आदिवासी महिला अपनी साज सज्जा के साथ 

                                                                                 गगन महल


7. यह मेहराब किले का एक भाग है जिसे 1561 में बनाया गया था. मेहराब की जमीनी चौड़ाई 60 फुट 9 इंच है 

8. इस किले में रिहाइश, दरबार हाल, पार्क और ऊँची दीवारों की घेरा बंदी थी.

9. इस भाग की दीवारों पर छत नहीं बनाई गई थी. यहीं औरंगज़ेब ने अपनी जीत के बाद  सिकंदर आदिल शाह को चांदी की हथकड़ियों में लाने का हुक्म दिया था

10. किले की बाहरी दीवार जिसके चारों ओर गहरी खाई थी और सुरक्षा के लिए उसमें पानी भरा रहता था 
   
   
11. सुन्दर पार्क के बीच दरबार हाल. अब यहाँ जनता दरबार लगा रहता है 

आनंद महल 

12. आनंद महल का बचा हुआ एक बुर्ज 

13. आनंद महल में मरम्मत का काम चल रहा था. बताया गया की अंदर बहुत खूबसूरत काम है जिसे धीरे धीरे ही किया जा सकता है  

14. आनंद महल और तहखाना 



1 comment:

Harsh Wardhan Jog said...

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