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Saturday 1 August 2020

बगीचा

बैंक से रिटायर हुए गोयल सा को तीन महीने हो गए था. वजन पहले ही ज्यादा था अब मशीन में चेक करते हैं तो पता लग रहा है की और बढ़ रहा है. बकौल पत्नी के 'सारा दिन खाते रहते हो और बिस्तर पर पड़े टीवी देखते रहते हो तो वजन कैसे घटेगा?' इस तरह के शब्द चुभते थे इसलिए बड़ी हिम्मत करके सात बजे उठ कर, तैयार हो कर पार्क की तरफ सैर करने निकले. पर तब तक दोस्त यार सैर कर के वापिस आ रहे थे. सारे खिंचाई करने लगे, 
- अरे मियां ज़रा जल्दी उठा करें. सूरज सर पर आ गया है.
- सोने दो यार गोयल साब को आराम बड़ी चीज़ है! 
- भाभी ने हाथ पकड़ लिया होगा साब का?
- अरे किसी ने जूते छुपा दिए होंगे क्यूँ गोयल? 

गोयल सा कन्नी काट गए. सुबह सुबह कौन भिड़े इन कमबख्तों से! पर दिल से आवाज़ आ रही थी गोयल कुछ कर ले सेहत के लिए. सुबह जल्दी उठा नहीं जाता, दिन में कोई काम नहीं है इसलिए नींद आती रहती है और शाम की बियर तो बंद नहीं हो सकती. क्या किया जाए? उधेड़बुन में शाम हो गई और बियर खुल गई. दो घूंट मारे और दिमाग की बत्ती जल उठी और प्लान तैयार हो गया.

सुबह नाश्ते की टेबल पर गोयल सा ने नए प्लान की घोषणा कर दी,
- देखो ये सामने जो जगह है ना जिसमें तुमने आलतू फ़ालतू पौधे और गमले लगा रखे हैं सब हटवा दो. मेरी प्लान के मुताबिक यहाँ सब्जियां लगेंगी. और वो भी आर्गेनिक.
- लो आपके दिमाग में ये क्या नई लहर आ गई? गमले क्यूँ हटाने हैं? हैं? पैसे लगे हैं उन पे सुंदर सुंदर फूल निकलते हैं. कमाल है आज तक तो कभी इस बगीची की तरफ नज़र भी नहीं डाली अब खेती बाड़ी याद आ गई.
- नहीं नहीं हमें अच्छी ताज़ी आर्गेनिक सब्जियां खानी चाहिए. और देश को भी आर्गेनिक चीज़ों की ज़रुरत है. 
- ओहो परिवार की तरफ तो कभी देखा नहीं और अब देश याद आ गया. वाह मुझे नहीं हटाने गमले. 
- देखो जगह तो तुम्हें देनी ही पड़ेगी. मैं आज पूसा रिसर्च में  जाता हूँ बढ़िया बीज और एक ट्रेंड माली लाता हूँ.

लम्बी बहस के बाद पचास फुट के बगीचे का बँटवारा हो गया. बाईं बगीची साब के नाम हो गई और दाईं बगीची मेमसाब के गमलों के लिए छोड़ दी गई. एक माली इधर सब्जी वाला एक उधर फूल वाला. सब्जी वाला नया माली आया तो खेत का साइज़ देख कर हंसा फिर बोला, 
- साब इतने बड़े खेत में क्या लगाऊं और क्या ना लगाऊं?  इसमें लौकी की बेल लगा देता हूँ वो ऊपर रेलिंग पर चली जाएगी और बची हुई जमीन पर कुछ मिर्चें लगा देता हूँ?
- बिलकुल बिलकुल, गोयल सा बोले.      

लौकी की बेल ने बारिश होते ही रफ़्तार पकड़ ली. बहुत जल्दी पहले माले पर पहुँच गई. सारी रेलिंग पर छा गई. देखते देखते नन्हीं सी लौकी भी निकल आई. गोयल सा फुटा ले कर रोज सुबह लौकी की लम्बाई नापते और लौकी का गुणगान करते, 
- 6 इंच, क्या बात है 12 इंच, वाह अब गोल हो रही है. क्या कुदरती रंग है! ओहो 16 इंच! देखो बेल में कितने फूल आ गए हैं.
- इसे तोड़ लो मैं सब्जी बना देती हूँ.
- नहीं नहीं अभी बढ़ने दो. बियर की बोतल जितनी होने दो फिर तोड़ेंगे तब तक दूसरी भी बढ़ जाएगी फिर तीसरी .....
- तुम तो नौकरी में ही ठीक थे!

सुबह सुबह श्रीमती ने उठा दिया,
- उठो जी जल्दी उठो. तुम्हारी लौकी तो गई. दोनों लौकियां गईं.
साब हड़बड़ा कर उठे और बगीचे की तरफ लपके. देखा तो बेल नीचे बिखरी पड़ी है दो गमले भी टूटे पड़े हैं और मिर्च के पौधे तहस नहस हो चुके हैं. चारों तरफ देखा कोई भी नहीं है. गुस्से और खीझ में बोले,
- स्साले को छोडूंगा नहीं.
- किसे पकड़ोगे? अरे लौकी तो गई चोर की हंडिया में. अब शान्त हो जाओ. शोर मत करो अब कोई नहीं पकड़ में आएगा.
-हुंह!
जब दोस्त लोगों के पास खबर पहुंची तो सारे मातम मनाने आ गए.
- ये बड़ा बुरा हुआ. चोरी करना अच्छी बात नहीं है. मांग के ले लेता गोयल साब ने मना थोड़े ही करना था?
- मैं तो कहता हूँ गोयल साब पुलिस को रिपोर्ट कर दो. उनके पास खोजी कुत्ते होते हैं वो चोर को ढूंढ निकालेंगे. यहीं का तो है कोई.
- अरे नहीं यार. ये तो पुरानी कहावत है की 'बोए कोई खाए कोई'. कोई बात नहीं दिल छोटा ना करें जी. गई तो गई.
- भई गोयल जी सीसी टीवी तो लगवा ही लो. लो हम तो बातों में लगे हैं भाभी सा तो चाय भी ले आईं. बहुत बहुत शुक्रिया भाभी सा.

इधर चाय चल रही थी उधर भाभी सा ने छूरी लेकर लौकी की बेल का तना ही काट दिया. ना रहा बांस ना बजेगी बांसुरी. 
लौकी की बेल 

7 comments:

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2020/08/blog-post.html

ASHOK KUMAR GANDHI said...

Good

Harsh Wardhan Jog said...

Thank you Ashok Gandhi

Unknown said...

Goel sir has become very popular. Your blogs are so live as if coming of our own life

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद Meena Bhardwaj. चर्चा अंक -3782 पर भी हाजिरी लगेगी.

सुशील कुमार जोशी said...

अबकी बार कद्दू लगाइयेगा :) बढ़िया।

Harsh Wardhan Jog said...

हाहाहा धन्यवाद जोशी जी। लौकी ही ना बची तो कद्दू कहाँ बचेगा!