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Saturday, 8 August 2020

घंटी

जनरल मैनेजर गोयल साब बैंक से रिटायर हो चुके थे. इस ख़ुशी में पार्टियां दे भी दी और पार्टियां ले भी लीं. अब किसी तरह की नौकरी करने का कतई मन नहीं था. दोनों बच्चे अमरीका चले गए और अब क्या कमाना. पेंशन के मज़े ले रहे हैं. सुबह अखबार के पन्ने उलट पुलट कर रहे थे तभी घंटी बजी. कॉलोनी की सुधार समिति के प्रधान जी दो साथियों के साथ आ गए. 
- नमस्कार जी. गोयल साब कैसे दिन कट रहे हैं? 
- मजे में हैं भई. कभी कभी देश विदेश घूम लेते हैं और कहीं ना जाना हो तो मैगज़ीन अखबार पढ़ लेते हैं. दोस्तों यारों से मोबाइल पर गप्पें मार लेते हैं. 
- बहुत बढ़िया है जी. बहुत बढ़िया. बच्चे सेटल हो जाएं तो बड़ा सुकून रहता है. नौकरी में तो आप व्यस्त रहते होंगे. पर अब तो समय है तो कभी कुछ समाज सेवा की भी इच्छा हुई गोयल साब? बैंक में भी सी एस आर चलता ही होगा?
- कैसी समाज सेवा प्रधान जी? वैसे तो हमारे क्लब में चलती रहती है. बैंक में भी चलती थी. कभी पेड़ लगवा दिए, कभी किसी स्कूल में कंप्यूटर लगवाए, सफाई अभियान, या गेम्स कराने का कार्यक्रम चलता रहता था. 
- हम तो सर इस कॉलोनी में आपका सहयोग चाहते हैं. चाहें तो आप प्रेसिडेंट या सेक्रेटरी की पोस्ट ले लें. आपके आने से एक बड़ा फायदा होगा की हमारी चिठ्ठी पत्री बेहतर हो जाएगी. कभी कमिश्नर को, कभी लोकल अखबार में या कभी थाने वगैरह में चिट्ठी पत्री भेजनी हो तो आलस आ जाता है. पर ये काम आप बढ़िया ढंग से कर लोगे. बाकी तो हम हैं ही. कॉलोनी की बिजली, पानी या सफाई हमारे जिम्मे रहेगी. आपकी लिखी चिठ्ठी में ज्यादा वजन होगा.
- वजन तो इनका पहले से ही ज्यादा है भाई साब, मिसेज़ गोयल ने चाय रखते हुए कहा. 
- हें हें हें भाभी सा भी खूब मज़ाक करती हैं, प्रधान जी बोले.
   
पर तब तक गोयल सा मन ही मन देख रहे थे की वे खुद ऊँची कुर्सी पर बैठे हैं और कॉलोनी की सारी जनता उन्हें सुन रही है और तालियां बजा बजा कर दाद दे रही है. उन्हें लगा की प्रेसिडेंट बनने से उनका नाम होगा. क्या पता कल को एम एल ए या एम पी बनने का चांस मिल जाए? ये सोच के उन्होंने सहमति दे दी. पर उनके जाने के बाद मिसेज़ गोयल ने चेतावनी दे दी,
- छोड़ो जी आप इनकी बातों में ना आओ. हम लोगों को ये काम सूट नहीं करता. 

पर साब ने मन बना लिया था. अगले दिन ही समिति के ऑफिस में जाकर फ़ाइल वगैरा ठीक ठाक कीं, चार चिट्ठियाँ ईमेल कर दीं, नया शिकायत रजिस्टर बनवाया और सभी महकमों के नंबर अपने मोबाइल से खोजकर रजिस्टर में नोट कर दिए. सभी पदाधिकारियों को बात पसंद आई और साब ने वाह वाह लूटी. और अब तो रोज ही मोबाइल या फोन या घर की घंटी बज जाती है - साब ज़रा दस मिनट के लिए आ जाएं!

एक दिन सुबह फोन की घंटी बजी तो साब बाथरूम में थे. मिसेज़ गोयल ने जवाब दे दिया. दस मिनट बाद फिर गेट की घंटी बजी तो मिसेज़ गोयल ने कहा,
- वो बाथरूम में हैं.
- पहले भी आपने कहा था की बाथरूम में हैं? कितनी देर लगाते हैं गोयल साब बाथरूम में?
- क्या? आप कौन?
- सूद.
- जब बाहर आएँगे मैं बात करा दूंगी, बैठना है तो बैठ जाएं. 
- जी नहीं मैं जा रहा हूँ.
साब को मैडम ने सारी बात बताई और बोली - ये कैसा आदमी है सूद? ये कैसे कैसे लोग आते हैं परधान जी!
- हूँ! 

एक बार दोनों ब्रेकफास्ट करने बैठे ही थे गेट की घंटी बजी. बाहर देखा तो मेहरा जी गुस्से में खड़े थे. मैडम बोली,
- आप ही जाओ मेहरा जी बड़े गुस्से में लग रहे हैं.
गोयल साब ने अंदर आने को कहा तो जवाब मिला,
- मैं नहीं अंदर आ रहा गोयल साब. आप बाहर आइये जल्दी से. आपने जो चिट्ठी लिखी थी उसकी वजह से कुत्ते पकड़ने वाली गाड़ी आ गई है. बताइये मेरा टॉमी को भी पकड़ कर गाड़ी में डाल दिया है. उसका पट्टा भी नहीं देखा. छुड़वाने गया तो बोलते हैं प्रधान जी को बुलाओ. वो कहेंगे तब छोड़ेंगे. नगर निगम की गाड़ी मेरे बेटे ने गेट पर रोकी हुई है. आप तुरंत चलो!
मैडम बोली, 
- जाओ परधान जी पहले कुत्ता बचाओ. ब्रेकफास्ट जरूरी नहीं है फिर कभी कर लेना.
- हूँ! 

एक दिन शाम को सात बजे घंटी बजी. 
- प्रेसिडेंट साब घर पर हैं?
- जी हैं बुलाती हूँ.
- कहिये? गोयल साब ने पूछा.
- सर वो एटीएम से पैसे निकाले थे. दो दो हज़ार के पांच नोट निकले. मैंने सोचा आपके पास सौ सौ के होंगे? आप तो बैंक में रहे हैं ना.
- देखता हूँ कितने हैं. ये लीजिये चार हज़ार हैं.
- थैंक यू थैंक यू. मेरा काम बन गया प्रधान जी.

अब परधान जी के प्रति मैडम की तल्खी बढ़ रही थी. वो बोली - उसका काम तो बन गया मेरा बिगड़ गया. अब आप कल सुबह सुबह मुझे चिल्लर ला कर देना परधान जी.
- हूँ!

एक शाम तो गजब हो गया. रात के पौने दस बजे गेट का गार्ड भागता हुआ आया,
- परधान जी गेट पर दो गार्ड आपस में गुत्थम गुत्था हो रे. एक दूसरे पर डंडे चला रहे जी. एक के तो खून बह रहा है. आप जल्दी आ जाओ.
गोयल साब जल्दी से तैयार हुए, कुछ लोगों को मोबाइल से बुलाया और जाकर सुलह सफाई कराई. घर वापिस पहुँच कर घंटी बजाई तो ग्यारह बज रहे थे. बड़े बेमन से और गुस्से में मिसेज़ गोयल ने दरवाज़ा खोला,
- आ गए परधान जी? आइये! बड़े बड़े केस सुलझा रहे हो रात के ग्यारह बजे. एक ये भी सुलझा देना. अभी इसी वक़्त एक डंडा मैं भी चलाती हूँ.

ये कह कर मैडम बाथरूम से वाइपर ले आई. पूरी ताकत से काल बेल पर वाइपर मार दिया. घंटी बेचारी नीचे लटक गई पर मैडम का गुस्सा शांत नहीं हुआ. दुबारा, तिबारा वाइपर मारा तो घंटी फर्श पर गिर पड़ी. अभी भी गुस्सा कम नहीं हुआ तो गिरी हुई घंटी पर फिर वाइपर मारा.

- बोलो परधान जी! इस्तीफ़ा देते हो या नहीं?
बज गई घंटी 

  

17 comments:

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2020/08/blog-post_8.html

सुशील कुमार जोशी said...

बढ़िया है :)

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद सुशील कुमार जोशी साब.

Rakesh said...

बहुत खूब

A.K.SAXENA said...

Jiske sar pe taaj uske sar men khhaj.
Madam ne apni bhadas ghaanti pe naikal kar last warning de dali. Bach gaye goyal sahab nahin to retired life kharab ho jaati. Manoranjak prasang.

Onkar said...

बहुत सुंदर

Meena Bhardwaj said...

बहुत बढ़िया पोस्ट.

शुभा said...

वाह!बहुत खूब!

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद डॉ रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'.
चर्चा अंक - 3788 पर भी हाजिरी लगेगी.

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद hindiguru

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद A.K.Saxena जी.

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद Onkar

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद Meena Bhardwaj

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद शुभा

मन की वीणा said...

वाह लाजवाब!
👋🏻👋🏻

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद 'मन की वीणा'

Anonymous said...

बहुत बढ़िया