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Saturday, 15 August 2020

पिल्ला

बैंक की नौकरी क्या लगी मनोहर नरूला ने अपना गाँव मोर माजरा छोड़ ही दिया. कहाँ गाँव और कहाँ कनॉट प्लेस! बढ़िया बढ़िया रेस्तरां, सजे हुए शोरूम, बार और सिनेमा के इर्द गिर्द मेला वाह क्या बात है कनॉट प्लेस की.  

मनोहर उर्फ़ मन्नू का दिल करता था चौबीस घंटे ब्रांच के आसपास घूमता ही रहूँ. या फिर गोल गोल बरांडे में खटिया गेर के बैठ जाऊं. गोरे काले हिप्पी और फिरंगी देखता रहूँ. पूरे कॉरिडोर में कॉलेज के लड़के लड़कियां मस्त बतियाते घूमते रहते हैं इनमें से किसी छोरी से बात कर लूँ. पर कैसे?

फिर ख़याल आया की इसका समाधान कपूर साब के पास है. बैंक वाला कुंवारा कपूर चालीस साल का है पर कैसा छैला बाबू बना घूमता रहता है. और लेडीज़ को देखो! वो भी उसी कपूर से बात करती हैं मन्नू से नहीं. फिर सोचा - चल मन्नू राय लेने में क्या हर्ज है? 
- कपूर सा आपके आगे पीछे लेडीज़ रहती हैं पर म्हारे को ना पूछती कोई सी. ये क्या बात है?
- बच्चे मन्नू तुझे क्या परेशानी है इसमें? तू अपना काम कर. 
- आप तो बात की जलेबी बणा दो कपूर सा.
- तो तू चाहता क्या है?
- सलाह दो मुझे तो आप. 
- मुफ्त में?
- बियर पिला दूंगा जी. 
- बोल क्या बात है?  
- तड़के को पार्क में सैर करने जाता हूँ जी. पार्क में एक भली सी लड़की आती है पिल्ला लेकर. वो जो वोडाफोन का पिल्ला टीवी पर आता है उसको लेकर. अब उस से बात कैसे हो? मुझे उस कुत्ते से डर लगे है जाने कैसी शकल है सुसरे की. गाय भैंस तो कैसी भी हो संभाल लूँगा पर यो पिल्ला खतरनाक लगे है.
- हूँ! तू भी झुमरू ही है. वो कुत्ता पग कहलाता है. इतने महंगे कुत्ते को तू पिल्ला बता रहा है? अच्छा, पार्क में जाता है तो  क्या पहनता है और वो क्या पहनती है?
- मैं तो जी कुरता पाजामा पहनता हूँ और वो जीन और रंगीन कुर्ती और खेल के जूते. 
- तेरा तो हुलिया बदलना पड़ेगा. सफ़ेद निक्कर, सफ़ेद टी शर्ट और सफ़ेद जॉगिंग वाले शूज़ ले ले. एक पैकेट पैडिग्री ले ले.
- ये कौन सी डिग्री है जी?
- चुप यार. ये कुत्ते के बिस्कुट हैं. पैकेट में से दो-चार छोटे पीस निकाल कर हाफ पैंट की जेब में रख लेना. पहले कुत्ते को हेल्लो बोलना - हेल्लो डोग्गी! फिर लड़की को बोलना - हेल्लो! और उस लड़की से डोग्गी का नाम पूछना. उसके बाद लड़की का नाम पूछना. याद रखना कुत्ते को कुत्ता नहीं बोलना है डोग्गी बोलना है और बोलना है - कितना क्यूट है! पुरानी कहावत सुनी है ना - लैला प्यारी लैला का पिल्ला प्यारा! चल अब दूसरी बियर मंगा ले. 

सफ़ेद निक्कर, सफ़ेद टी और सफ़ेद जूते पहन कर जब मन्नू जी सुबह पार्क में पहुंचे तो अपने आप को मॉडर्न और स्मार्ट समझने लगे. दाहिनी जेब थपथपाई तो उसमें पिल्ले के लिए चुग्गा दाना भी मौजूद था. आश्वस्त हो कर सोचा क्यूँ ना दस मिनट जॉगिंग ही कर ली जाए. दाएं बाएं नज़र मारी तो छोरी अभी आई नहीं थी. नज़र गेट पर ही टिकी थी. जैसे ही लैला पिल्ले के साथ अंदर आती दिखी, मन्नू ने हल्के हल्के क़दमों से उसकी तरफ दौड़ना शुरू कर दिया. इधर दिल ने भी धक् धक् करना शुरू कर दिया. जैसे ही छोरी नज़दीक आने को थी पिल्ले ने मन्नू पर भौंकते हुए हमला बोल दिया. मन्नू हड़बड़ा कर गिर पड़ा.      

पिल्ला मन्नू पर कूद पड़ा. शरीर के पास आते ही शायद उसे डोग्गी बिस्कुट की खुशबू आ गई. अब उसने जेब पर पंजे और दांत मारने शुरू कर दिए. तब तक छोरी ने जंजीर पकड़ ली और पिल्ले को वापिस खींचने लगी.
- ब्रूनो! ब्रूनो! इडियट कम हियर कम हियर!
ब्रूनो चेन के एक दो झटके खा के वापिस लड़की के पास आ गया. मन्नू को ज्यादा नुक्सान नहीं हुआ. बस निक्कर पर मामूली सी खरोंचें और दांत के निशान आ गए थे. और कोहनी पर एक-आध खरोंच गिरने से आ गई. मन्नू मन ही मन बोले,
- स्साले ब्रूनो आज तेरा तो मैं कर देता खूनो और कपूर को करता चकनाचूर
तब तक लड़की बोल पड़ी,
- आपको लगी तो नहीं? चलिए अभी फर्स्ट ऐड कर देती हूँ. घर पास में ही है वो रहा सामने.
आवाज़ सुन कर मन्नू की बेचैनी दूर हुई. घर पहुंचे तो पापा ने डेटोल लगा दी और बोले,
- मनोहर जी ब्रूनो को इंजेक्शन लगे हुए हैं कोई चिंता की बात नहीं है. वैसे भी सिर्फ निक्कर पर ही निशाँ हैं. सॉरी आपको परेशानी हुई. ये बिटिया का शौक है ब्रूनो. आपके पास भी डोग्गी है क्या?
मन्नू इस सवाल से पहले तो हड़बड़ा गया फिर संभल कर बोला,
- जी गाँव में है ना. उसका नाम का‌लू है!    
लड़की बड़ी जोर से हंसी.
- मेरी जेब में डोग्गी का ब्रेकफास्ट भी पड़ा है. ब्रूनो को यहाँ लाइए.
- ओहो इसीलिए ब्रूनो आपकी जेब की तरफ लपका था. आप उसे पेडेग्री पहले ही दे देते तो ये पंगा ही नहीं होता. 
ब्रूनो ने शौक से मन्नू के ब्रेकफास्ट का आनंद लिया. मन्नु और ब्रूनो की दोस्ती हो गई.
- तो आप क्या करते हैं मन्नू जी? बिटिया के पापा ने पूछा.
- जी मैं फलाने बैंक में हूँ.
- वाह वा! और मैं अलाने बैंक में हूँ!

सोफे पर पीठ लगाए और पैर फैलाए मन्नू को पता नहीं चला की लड़की के पापा क्या क्या बोल रहे हैं. ब्रूनो भी कब पैर के पास आकर बैठ गया पता नहीं. लड़की ने चाय का जो प्याला पकड़ाया तो मन्नू जी तो उसी में ही डूब गए. 
मेरा ब्रूनो 



17 comments:

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2020/08/blog-post_15.html

ASHOK KUMAR GANDHI said...

Good

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद Ashok Kumar Gandhi

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 15 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद yashoda Agrawal

Gayatri said...

😄सपनो के सौदागर कपूर साहब 😄😄😄

Harsh Wardhan Jog said...

Thank you Gayatri!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (16-08-2020) को    "सुधर गया परिवेश"   (चर्चा अंक-3795)     पर भी होगी। 
--
स्वतन्त्रता दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
सादर...! 
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
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सुशील कुमार जोशी said...

स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
बढिया :)

Unknown said...

Kya chai abhi pee ja rahi hae....👌👌

मन की वीणा said...

जय हिन्द ।
सुंदर प्रस्तुति।

Onkar said...

बहुत खूब

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद Onkar!

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद मन की वीणा. जयहिंद

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद Unknown!

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद सुशील कुमार जोशी जी. पंद्रह अगस्त की शुभकामनाएं!

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद डॉ रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'चर्चा अंक ३७९५ पर भी हाजिरी अवश्य लगेगी.