बटेसर के मंदिर, मोरेना |
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बटेसर या बटेश्वर मंदिरों का एक बड़ा ग्रुप जिला मोरेना, मध्य प्रदेश में हैं. इनमें से एक बड़े मंदिर को भूतेश्वर मंदिर भी कहा जाता है. ये मंदिर मोरेना शहर से लगभग 30 किमी और ग्वालियर से लगभग 40 किमी दूर हैं. इस ग्रुप या समूह में 200 से ज्यादा मंदिर थे जो 25 एकड़ के इलाके में फैले हुए हैं. आसपास घना जंगल और पहाड़ियां हैं. ये स्थान चम्बल घाटी के पुराने किले के अंदर है. किला तो लगभग गायब ही हो चुका है.
आना जाना ग्वालियर से आसान है पर बसों की कमी है और सर्विस भरोसेमंद भी नहीं हैं. अपनी गाड़ी या टैक्सी बेहतर रहेगी. आस पास कोई रेस्तरां या ढाबा भी नहीं है इसलिए खाने पीने का अपना इंतज़ाम करके चलना ठीक रहेगा. दोपहर की धूप यहाँ तीखी है और अगर उमस भरा मौसम हो तो परशानी हो सकती है. आप चाहें तो एक दिन में बटेसर मंदिरों के अलावा गढ़ी पड़ावाली, चौंसठ योगिनी मंदिर, मोरेना और शनिचरा भी देख सकते हैं. अफ़सोस है की इन सुंदर धरोहरों पर गाइड नहीं मिलते माली या गार्ड जो बता दें वही सुन कर संतोष करना पड़ता है!
सभी मंदिर हल्के लाल बलुआ पत्थर याने sand stone के बने हुए हैं. मंदिर छोटे छोटे हैं और शिव, शक्ति और विष्णु को समर्पित हैं. कई मंदिरों में शिवलिंग है और मंदिर के सामने नंदी बैठा हुआ है परन्तु ज्यादातर क्षत विक्षत हैं. इन मंदिरों में से जो ठीक ठाक नज़र आ रहे हैं वो पुरातत्व विभाग याने ASI द्वारा पुनर्स्थापित किये गए हैं.
इतिहासकारों के अनुसार ये मंदिर सन 750 से लेकर सन 1100 तक के दरम्यान बने होने की सम्भावना है. लेकिन कैसे ये मंदिर गिरे या टूटे या तोड़े गए इस के बारे में पुख्ता जानकारी नहीं है. करीबन तेरहवीं शताब्दी के बाद से ये मंदिर झाड़ झंखाड़ और जंगलों से ढके रहे. 1882 में अलेक्ज़ंडर कन्निन्घम ने पड़ावली की पहाड़ियों में 100 से ज्यादा सुंदर मंदिरों के बारे में बताया था. 1920 में पुरातत्व विभाग अर्थात ASI ने इसे संरक्षित जगह घोषित किया. 1968 में एक फ़्रांसिसी इतिहासकार ने मंदिरों पर विस्तृत पेपर प्रकशित किया. 2005 में पुरातत्व विभाग के भोपाल क्षेत्र के अधिकारी श्री के के मोहम्मद की पचास आदमियों की टीम ने लगभग साठ मंदिरों को फिर से स्थापित करना शुरू किया.
वहां के एक कर्मचारी ने एक किस्सा बताया जो की स्थानीय अखबारों में भी छपा था, की जब काम शुरू हुआ तो एक आदमी वहां बीड़ी के सुट्टे मारता हुआ कारवाई देखने लगा. मोहम्मद साब ने उसे डांट दिया कि मंदिर में बीड़ी ना पिए. इस पर उनकी टीम के सदस्य ने बताया की इस आदमी से ना उलझें ये चम्बल का नामी डाकू है! पर जब डाकू को पूरी बात पता लगी तो उसने और उसकी 'टीम' ने भी मंदिर के काम में सहयोग दिया.
ये मंदिर गुर्जर-प्रतिहार शैली के हैं. नक्काशी का काम खजुराहो के मंदिरों जैसा सुघड़ नहीं हैं. शायद ये गुर्जर-प्रतिहार कला का शुरुआती दौर रहा होगा. श्री के के मोहम्मद के अनुसार इन मंदिरों की वास्तु संस्कृत में लिखे दो पुराने ग्रंथों के अनुसार है - मानसारा वास्तु शास्त्र और मायामत वास्तु शास्त्र जो की चौथी और सातवीं शताब्दी के हैं. उनकी टीम ने खंडहरों के टूटे, बिखरे पत्थर तरतीब से एक पहेली याने jig saw puzzle की तरह जोड़ना शुरू किया पर बहुत सा काम अभी बाकी है.
फिलहाल इन मंदिरों में कोई पूजा पाठ नहीं होता है. बीच में एक बड़े पत्थर पर बनी हनुमान की गेरुए रंग से रंगी मूर्ति जरूर है जो बिलकुल अलग ही नज़र आती है. शायद बाद में रखी गई होगी. और हाँ गूगल में ढूंढेंगे तो एक और बटेसर या बटेश्वर मंदिर मिलेगा जो की उत्तर प्रदेश में है.
प्रस्तुत हैं कुछ फोटो और वीडियो. वीडियो ब्लॉग में पोस्ट नहीं हो पाए. इनको अपनी यूट्यूब चैनल में पोस्ट किया है और लिंक अंत में दिए हैं:
घने जंगल और पहाड़ियों के बीच मंदिरों के खंडहर |
ये सुंदर मंदिर दूसरे मन्दिरों से थोड़ा दूर है और बड़ा है. चार हिरन सड़क पार कर रहे थे पर जब तक मोबाइल से फोटो क्लिक की तब तक तीन तेज़ी से दूसरी तरफ निकल गए. यहाँ मोर भी बहुत हैं |
इन खम्बों पर शायद कभी बड़े मंदिर की छत रही हो |
बनावट छोटे किले या गढ़ी जैसी है. रहने का स्थान रहा होगा |
सभी मन्दिर ऊँचे चबूतरों पर बने हैं और इनमें दरवाज़े नहीं हैं |
फिर से जोड़ कर बनाया गया मंदिर |
छोटे से मंदिर में शिवलिंग |
मूर्तियाँ जाने क्या कहती हैं |
यूट्यूब के वीडियो लिंक:
https://youtu.be/NuUV9vXXejY
https://youtu.be/HT4EZk9_n4o
https://youtu.be/qaz8XvF64-s
https://youtu.be/02_wNq_IMqQ
https://youtu.be/HT4EZk9_n4o
https://youtu.be/qaz8XvF64-s
https://youtu.be/02_wNq_IMqQ
3 comments:
https://jogharshwardhan.blogspot.com/2018/11/blog-post_14.html
Very nice description.
Very nice Vijay Nishchal
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