जैसलमेर का किला भाटी राजपूत महाराजा जैसल द्वारा 1156 में बनवाया गया था. थार रेगिस्तान में बसा जैसलमेर शहर जयपुर से लगभग 560 किमी दूर है और दिल्ली से 780 किमी. रेगिस्तान होने के कारण गर्मियों में तापमान 50 के नज़दीक पहुँच जाता है और सर्दियों में शून्य के नज़दीक पहुँच सकता है. एक पुरानी कहावत जैसलमेर के हालात बयान करती है:
बख्तर कीजे लोहे का,
पग कीजे पाषाण !
घोड़ा कीजे काठ का,
तब देखो जैसान !
याने यात्री कपड़ों के बजाए लोहे का बख्तर पहन लें जो ना मैला हो और ना फटे, पैर पत्थर के बना लें जो तपती रेत में झुलसे नहीं और ना ही थकें, घोड़ा लकड़ी का ले लें जो ना कभी थके और ना पानी मांगे और तब जैस्सल राजा का स्थान देखने निकलें ! अब बख्तर और घोड़ा तो पुरानी बात हो गई पर आप जैसलमेर जाते समय अपनी गाड़ी का कूलैंट और ए.सी. जरूर चेक कर लें !
अठारहवीं सड़ी तक इराक, ईरान, अफगानिस्तान, चीन जैसे देशों से व्यापारी ऊँटों के कारवां लेकर चलते थे और जैसलमेर सिल्क रूट के व्यापारियों का एक पड़ाव था. अफीम, सोने, चांदी, हीरे जवाहरात, सूखे मेवों वगैरा का व्यापार हुआ करता था. यहाँ के राजा इन व्यापारियों से टैक्स वसूला करते थे.
त्रिकुटा पहाड़ी पर बने किले की चौड़ाई 750 फुट है और लम्बाई 1500 फुट. त्रिकुटा पहाड़ी की ऊंचाई जमीन से लगभग 250 फुट है. किला बनने के बाद 1276 में और फिर 1306 में किले की मरम्मत हुई और कई बदलाव किये गए. किले की सुरक्षा के लिए चारों ओर तीन ऊँची और चौड़ी दीवारों का घेरा है. चार बड़े दरवाज़े हैं और पचास से ज्यादा बुर्जियां और परकोटे हैं. इनमें साढ़े तीन हज़ार से ज्यादा सैनिक रहते थे.
किले के अंदर महल हैं, दुकानें हैं, सात जैन मंदिर हैं, पचास के करीब रेस्तरां हैं और लगभग 4000 लोग अब भी रहते हैं. इसलिए ये किला 'जीता जागता' किला है! 2013 में इसे World Heritage Site बना दिया गया है. किले में स्थानीय हलके पीले पत्थर का खूब प्रयोग किया गया है. सुबह और शाम के सूरज की किरणों में ये पत्थर सुनहरे लगते हैं जिसके कारण इस किले को सोनार किल्ला भी कहा जाता है.
प्रस्तुत हैं कुछ फोटो:
बख्तर कीजे लोहे का,
पग कीजे पाषाण !
घोड़ा कीजे काठ का,
तब देखो जैसान !
याने यात्री कपड़ों के बजाए लोहे का बख्तर पहन लें जो ना मैला हो और ना फटे, पैर पत्थर के बना लें जो तपती रेत में झुलसे नहीं और ना ही थकें, घोड़ा लकड़ी का ले लें जो ना कभी थके और ना पानी मांगे और तब जैस्सल राजा का स्थान देखने निकलें ! अब बख्तर और घोड़ा तो पुरानी बात हो गई पर आप जैसलमेर जाते समय अपनी गाड़ी का कूलैंट और ए.सी. जरूर चेक कर लें !
अठारहवीं सड़ी तक इराक, ईरान, अफगानिस्तान, चीन जैसे देशों से व्यापारी ऊँटों के कारवां लेकर चलते थे और जैसलमेर सिल्क रूट के व्यापारियों का एक पड़ाव था. अफीम, सोने, चांदी, हीरे जवाहरात, सूखे मेवों वगैरा का व्यापार हुआ करता था. यहाँ के राजा इन व्यापारियों से टैक्स वसूला करते थे.
त्रिकुटा पहाड़ी पर बने किले की चौड़ाई 750 फुट है और लम्बाई 1500 फुट. त्रिकुटा पहाड़ी की ऊंचाई जमीन से लगभग 250 फुट है. किला बनने के बाद 1276 में और फिर 1306 में किले की मरम्मत हुई और कई बदलाव किये गए. किले की सुरक्षा के लिए चारों ओर तीन ऊँची और चौड़ी दीवारों का घेरा है. चार बड़े दरवाज़े हैं और पचास से ज्यादा बुर्जियां और परकोटे हैं. इनमें साढ़े तीन हज़ार से ज्यादा सैनिक रहते थे.
किले के अंदर महल हैं, दुकानें हैं, सात जैन मंदिर हैं, पचास के करीब रेस्तरां हैं और लगभग 4000 लोग अब भी रहते हैं. इसलिए ये किला 'जीता जागता' किला है! 2013 में इसे World Heritage Site बना दिया गया है. किले में स्थानीय हलके पीले पत्थर का खूब प्रयोग किया गया है. सुबह और शाम के सूरज की किरणों में ये पत्थर सुनहरे लगते हैं जिसके कारण इस किले को सोनार किल्ला भी कहा जाता है.
प्रस्तुत हैं कुछ फोटो:
किले के अंदर महल |
प्रवेश द्वार |
प्रवेश से पहले पूजा |
संकरा रास्ता और ऊपर रक्षा चौकियां |
सुंदर कारीगरी - लक्ष्मी नाथ जी का मंदिर |
किले की संकरी गलियाँ |
किले की दीवार से नज़र आता शहर |
जैन मंदिर |
जैन मंदिरों की नक्काशी अद्भुत है |
जैन मंदिर की दीवार |
जैन मंदिर कमाल की कारीगरी |
नीचे एक दुकान और ऊपर ख़ास राजस्थानी शैली में छज्जा |
ऊँची नीची राहें |
किले के निवासियों की महफ़िल |
गाइड के साथ गपशप |
तोप के बगैर तो किला अधूरा है |
प्रवेश के पास किले की दीवार. ढलान पर रोड़े पत्थरों का ढेर सुरक्षा के लिए अच्छा है |
5 comments:
https://jogharshwardhan.blogspot.com/2017/09/blog-post_3.html
Good fort
Thank you 'Unknown'
Worth watching this fort....
I would like to visit again n again....
Thank you Meena Kuthari. Yes it is beautiful.
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