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Saturday, 1 August 2015

चुनरिया

फटफटिया चलाने का जो मज़ा बुलेट में है बस किसी और में नहीं है. बाकी फटफट तो बस बच्चों के खिलौने हैं और चलाने वाले चिड़ीमार! बुलेट चाहे 20 पर चले या 100 की स्पीड पर इसकी एक खास आवाज़ आती है धग धग धग धग. ये आवाज़ तो बस म्यूजिक है म्यूजिक. जैसे जैसे स्पीड बढ़ती है आवाज़ में एक रिदम बन जाती है. कमीज़ के कालर फड़फड़ करने लग जाते हैं और जुल्फें लहराने लग जाती हैं. वाह जनाब वाह! पर उस प्राचीन काल में हेलमेट नहीं हुआ करते थे और ट्रैफिक भी कम था तो लम्बी सड़क में राइड मज़ेदार होती थी.

15 अगस्त को सोमवार था. कमाल का वीकेंड ढाई दिन का - शनिवार आधा दिन, इतवार और सोमवार तो फिर क्यों न लम्बी रेस लगाई जाए. और अगर इस सफ़र में कोई साथ चले तो सफ़र सुहाना हो जाए. मनोहर नरूला उर्फ़ मन्नू भाई ने निचले फ्लोर पर लोन सेक्शन में इण्टरकॉम लगाया. कर्कश आवाज़ आई
- गोयल  बोल रहा हूँ.
फोन बंद कर दिया अरे यार तुमसे बात नहीं करनी गोयल साब. ये साब भी बस अपनी सीट और फ़ोन दोनों से चिपके रहते हैं. दस मिनट बाद फिर घंटी बजाई. वाह कैसी मधुर आवाज़ आई,
- हेलो
- कैसी हैं आप मिस संध्या ?
- ओ आप ! मैं तो ठीक हूँ आप ही सुर में नहीं लग रहे !
- हें हें हें! जी वो सुर तो बदल जाएगा. इस बार दो दिन का वीकेंड है ना. 15 अगस्त तो सोमवार को है ना.
- ओहो तो आप 15 को लाल किले पर बैंड बजाने वाले हैं?
- हें हें हें! ना जी ना. चलिए आपको 15 अगस्त को अपनी बुलेट पर सैर कराता हूँ. मूर्थल के ढाबे के परांठे बड़े मशहूर हैं.
- आप खाएं और अपनी बुलेट को भी खिलाएं.
- हें हें हें! अच्छा अच्छा. तो फिर मिस कोटपुतली की तरफ चलते हैं दाल, बाटी चूरमा?
- हमें तो दाल में कुछ काला नज़र आ रहा है?
- हें हें हें! जी नहीं जी नहीं. फिर आप ही फरमाएं किधर को चलें.
- फरमा देंगे.
फोन बंद. मस्का फेल. परांठे मुरझा गए और दाल बाटी चूरमा ठंडा हो गया. पर मन्नू कोशिश करना अपना फ़र्ज़ है बिना कोशिश के कुछ भी मिलने वाला नहीं है. ये ही तो लिखा है गीता में. और अगले दिन कोशिश जारी रही. घंटी का जवाब मधुर आवाज ने दिया.
- हेल्लो मिस संध्या कैसी हैं आप? तो फिर 15 को ना मूर्थल ना कोटपुतली. पर बंगाली मार्किट के गोलगप्पे के बारे में क्या विचार है जी आपका?
- अच्छा विचार है शाम 4 बजे.
गजब! अरे ये तो गजब हो गया जी! वो तो सामने केबिन में खड़ूस गोयल मैनेजर बैठा था वर्ना जोरदार सिटी बजा दी होती! 15 तारीख 4 बजे से 6 बजे तक गप्पें, गोलगप्पे, गप्पें और गोलगप्पे के दौर चलते रहे. 
- चलिए जनाब अपनी फटफटिया स्टार्ट कीजिए. 
- ओ हाँ हाँ.
बुलेट को किक मारी और विनम्र निवेदन किया,
- आइये बैठिये घर छोड़ देता हूँ.
फटफटिया इंडिया गेट होते हुए किदवई नगर की ओर दौड़ पड़ी. शाम की सुनहरी धूप में इंडिया गेट का खुलापन, पेड़ों की क़तार और हरे भरे लॉन कमाल के लगते हैं. फटफट की आवाज़ और पिछली सीट पर मिस संध्या ! बस गजब का सफ़र! सुहाना सफ़र किदवई नगर के सरकारी क्वार्टरों में समाप्त होने को था. बच्चे खेल रहे थे और कुछ लोग सैर कर रहे थे. बुलेट धीरे कर ली. पर इतने लोगों को देख मिस संध्या कुछ हड़बड़ाईं. पिछली सीट पर कुछ हलचल हुई और अचानक से चुन्नी का एक कोना बाइक की चेन में फंस गया. चुन्नी का बाकी हिस्सा सड़क पर बुलेट के पीछे पीछे लटकता हुआ आने लगा. कमबख्त बच्चों ने तुरंत शोर मचा दिया 
- ओ चुन्नी! चुन्नी!
- अरे चुन्नी फंस गई!
- आंटी की चुन्नी! 
सैर करने वाले लोगों में से कुछ मुस्कराए और कुछ हँसे. कुछेक ने तालीयां भी बजा दी. शोर सुन कर मिस संध्या के मम्मी पापा भी बालकनी से झाँकने लगे. 

ये हिन्दुस्तानी कपड़े भी कमबख्त उलझते रहते हैं ख़ास तौर पर लेडीज़ के. पर आप एक बार बंगाली मार्केट के गोलगप्पे ज़रूर खाएँ और अगर मेरी सलाह मानें तो अकेले ही मजा लें. 





1 comment:

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2015/08/blog-post.html