सितम्बर 1979 में बैंक में बतौर क्लर्क काम कर रहा था और तभी कम्युनिस्ट पार्टी भी ज्वाइन कर ली थी. इन्हीं दिनों बैंक में प्रमोशन का टेस्ट भी हुआ और नवम्बर 1979 में ऑफिसर बन गया था. इस ख़ुशी में बुलेट 350 मोटर साइकिल भी खरीद ली.
उन दिनों राजनीति में भी काफी उथल पुथल हो रही थी. 1977 में जनता पार्टी की सरकार आपसी झगड़ों में लड़खड़ा कर गिर गई. जून 1979 में प्रधान मंत्री चरण सिंह की सरकार को इस्तीफा देना पड़ा था क्यूंकि बहुमत नहीं था. और जनवरी 1980 में सातवीं लोक सभा का चुनाव होना तय हो गया था.
सितम्बर 1979 में कम्युनिस्ट पार्टी ज्वाइन करने के बाद दो तीन मीटिंग में शामिल हुआ. लोक सभा के चुनाव आ रहे थे और दिल्ली सदर से कामरेड प्रेम सागर गुप्ता ने पर्चे दाखिल करने थे. प्रचार के लिए पैसे, बन्दे, पर्चे, पोस्टर वगैरा की तैयारी हो रही थी. मुझे प्रचार के लिए पार्टी के करमपुरा दफ्तर में जाने के लिए कहा गया.
बुलेट पर किक मारी और वहां जा पहुंचे. ऑफिस एक गोदाम में था और वहां तीन वालंटियर बैठे थे. हावभाव और कपड़ों से तीनों किसी फैक्ट्री के वर्कर लग रहे थे. मैंने परिचय दिया तो उन्होंने मुझे ऊपर से नीचे देखा. जीन, सफ़ेद शर्ट और मोटर साइकिल देख कर एक बोला
- यहाँ तो हम लोग संभाल लेंगे आप ऐसा करो की राजौरी गार्डन ऑफिस चले जाओ वहां के लोगों से आप ढंग से बात कर लोगे.
फिर बुलेट को किक मारी और फटफट करते अपन वहां पहुँच गए. राजौरी गार्डन इलाका थोड़ा सा पॉश और बेहतर इनकम वालों का था. पंजाबी लोग ज्यादा थे. ऑफिस किसी के घर के वरांडे में बना रखा था. वहां तीन लोगों की टीम बनी, हैण्ड बिल्स लिए और चल पड़े घर घर की घंटी बजाने. वहां के लोगों से हुई वार्तालाप के कुछ नमूने पेश हैं.
***
घंटी बजाई तो माताजी निकलीं. हैण्ड बिल दिया और अपने उमीदवार को वोट डालने का निवेदन किया. माताजी ने हैण्ड बिल तो नहीं पढ़ा पर बोलीं -
- काका हमारी तो नालियाँ कोई साफ़ ही नहीं करता. देखो ना कितने मच्छर हो रहे हैं.
इतने में फिर दरवाज़ा खुला और माताजी का 40-45 साल का बेटा आया और माताजी के हाथ से हैण्ड बिल ले कर पढने लगा. पढ़ कर बोला -
- माताजी इन बिचारों ने कभी राज तो किया नहीं ना करना है ये नालियाँ क्या साफ़ कराएंगे.
***
एक गेट पर घंटी बजाई तो सरदार जी निकले. हैण्ड बिल पढ़ते ही तमतमा गए.
- आप यहाँ से जाते हैं या कुत्ते खोल दूं?
***
एक सज्जन निकले, हैण्ड बिल पढ़ा और हंसने लगे.
- आप लोग इतनी मेहनत कर रहे हो पर कुछ होना नहीं है. चाय वाय पीनी है तो आ जाओ. आपको वोट तो हमने देना नहीं है.
***
एक गेट पर नाम के साथ स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया भी लिखा हुआ था. हमें लगा कि यहाँ दाल गल जाएगी. सज्जन बाहर निकले हैण्ड बिल पढ़ा और बोले-
- भई मैं यूनियन में जरूर हूँ पर ये मतलब नहीं की मैं कम्युनिस्ट हूँ. हाँ जब भी यूनियन कहती है तो मैं स्ट्राइक पर भी जाता हूँ. पर वोट की बात अलग है. मेरी पार्टी तो जनता पार्टी है और वोट तो उसी को ही देना है.
उस चुनाव में कामरेड प्रेम सागर गुप्ता को लगभग 30 हजार वोट मिले और शायद जमानत भी जब्त हो गई थी. जगदीश टाईटलर भारी बहुमत से जीते. उस सातवीं लोक सभा में स्कोर था > कांग्रेस(INC) - 353, सीपीएम - 37, सीपीआई - 10 और जनता पार्टी (सेक्युलर) - 41.
उन दिनों राजनीति में भी काफी उथल पुथल हो रही थी. 1977 में जनता पार्टी की सरकार आपसी झगड़ों में लड़खड़ा कर गिर गई. जून 1979 में प्रधान मंत्री चरण सिंह की सरकार को इस्तीफा देना पड़ा था क्यूंकि बहुमत नहीं था. और जनवरी 1980 में सातवीं लोक सभा का चुनाव होना तय हो गया था.
सितम्बर 1979 में कम्युनिस्ट पार्टी ज्वाइन करने के बाद दो तीन मीटिंग में शामिल हुआ. लोक सभा के चुनाव आ रहे थे और दिल्ली सदर से कामरेड प्रेम सागर गुप्ता ने पर्चे दाखिल करने थे. प्रचार के लिए पैसे, बन्दे, पर्चे, पोस्टर वगैरा की तैयारी हो रही थी. मुझे प्रचार के लिए पार्टी के करमपुरा दफ्तर में जाने के लिए कहा गया.
बुलेट पर किक मारी और वहां जा पहुंचे. ऑफिस एक गोदाम में था और वहां तीन वालंटियर बैठे थे. हावभाव और कपड़ों से तीनों किसी फैक्ट्री के वर्कर लग रहे थे. मैंने परिचय दिया तो उन्होंने मुझे ऊपर से नीचे देखा. जीन, सफ़ेद शर्ट और मोटर साइकिल देख कर एक बोला
- यहाँ तो हम लोग संभाल लेंगे आप ऐसा करो की राजौरी गार्डन ऑफिस चले जाओ वहां के लोगों से आप ढंग से बात कर लोगे.
फिर बुलेट को किक मारी और फटफट करते अपन वहां पहुँच गए. राजौरी गार्डन इलाका थोड़ा सा पॉश और बेहतर इनकम वालों का था. पंजाबी लोग ज्यादा थे. ऑफिस किसी के घर के वरांडे में बना रखा था. वहां तीन लोगों की टीम बनी, हैण्ड बिल्स लिए और चल पड़े घर घर की घंटी बजाने. वहां के लोगों से हुई वार्तालाप के कुछ नमूने पेश हैं.
***
घंटी बजाई तो माताजी निकलीं. हैण्ड बिल दिया और अपने उमीदवार को वोट डालने का निवेदन किया. माताजी ने हैण्ड बिल तो नहीं पढ़ा पर बोलीं -
- काका हमारी तो नालियाँ कोई साफ़ ही नहीं करता. देखो ना कितने मच्छर हो रहे हैं.
इतने में फिर दरवाज़ा खुला और माताजी का 40-45 साल का बेटा आया और माताजी के हाथ से हैण्ड बिल ले कर पढने लगा. पढ़ कर बोला -
- माताजी इन बिचारों ने कभी राज तो किया नहीं ना करना है ये नालियाँ क्या साफ़ कराएंगे.
***
एक गेट पर घंटी बजाई तो सरदार जी निकले. हैण्ड बिल पढ़ते ही तमतमा गए.
- आप यहाँ से जाते हैं या कुत्ते खोल दूं?
***
एक सज्जन निकले, हैण्ड बिल पढ़ा और हंसने लगे.
- आप लोग इतनी मेहनत कर रहे हो पर कुछ होना नहीं है. चाय वाय पीनी है तो आ जाओ. आपको वोट तो हमने देना नहीं है.
***
एक गेट पर नाम के साथ स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया भी लिखा हुआ था. हमें लगा कि यहाँ दाल गल जाएगी. सज्जन बाहर निकले हैण्ड बिल पढ़ा और बोले-
- भई मैं यूनियन में जरूर हूँ पर ये मतलब नहीं की मैं कम्युनिस्ट हूँ. हाँ जब भी यूनियन कहती है तो मैं स्ट्राइक पर भी जाता हूँ. पर वोट की बात अलग है. मेरी पार्टी तो जनता पार्टी है और वोट तो उसी को ही देना है.
उस चुनाव में कामरेड प्रेम सागर गुप्ता को लगभग 30 हजार वोट मिले और शायद जमानत भी जब्त हो गई थी. जगदीश टाईटलर भारी बहुमत से जीते. उस सातवीं लोक सभा में स्कोर था > कांग्रेस(INC) - 353, सीपीएम - 37, सीपीआई - 10 और जनता पार्टी (सेक्युलर) - 41.
इंदिरा गाँधी 1980 के चुनाव में भाषण देते हुए . चित्र khabar.ibnlive.in.com के सौजन्य से |
1 comment:
https://jogharshwardhan.blogspot.com/2015/08/blog-post_13.html
Post a Comment