बैंक के अंदर प्रवेश करते ही बांये हाथ पर मेरा केबिन था. उससे लगा हुआ एक लम्बा काउंटर था और उसके बाद खजान्चियों के लिए तीन जालीदार केबिन बने हुए थे. पहले दो में कैश जमा होता था और तीसरे केबिन में हैड कैशियर याने प्रधान रोकड़िया बैठता था. आप कभी मिले हमारे हैड कैशियर से या नहीं? तो चलिए मैं ही आपका परिचय करा देता हूँ.
हैड केशियर का नाम मनोहर है पर ज्यादातर स्टाफ के लोग प्यार से उसे 'हैड' पुकारते थे. 'हैड ये पेमेंट कर देना', 'हैड ये नोट बदल देना' वगैरा. हैड का कद छोटा पर गठा हुआ शरीर और रंग गोरा था. हैड अपने सिर के बालों में कोई सुगन्धित सा तेल लगा कर बाल पीछे की ओर कर के रखता था. उमर 60 के नजदीक थी पर बाल घने और बहुत कुछ काले थे. हर वक़्त मुंह में पान वो भी 300 नंबर तम्बाकू वाला रखता था. हैड के पान की एक ख़ास तरह की सुगंध आती थी जो मुझे नापसंद थी. उसके होटों के दोनों कोरों में हमेशा लाली रहती थी. कभी कभी आँखों में सुरमा या काजल सी कोई चीज़ डाल कर आता था. कई बार पूछने पर भी हैड ने आँखों के काले रंग का राज़ नहीं बताया बस हंस कर टाल दिया.
इत्तेफाक से एक बार हैड ने घर में एक धार्मिक अनुष्ठान किया तो सारी ब्रांच को निमंत्रण मिला. उस दिन पहली बार उसके घर जाने का मौका मिला. चावड़ी बाज़ार से गली चूड़ी वालान और उसके अंदर कोई और पतली गली कभी बाएँ और कभी दाएं. आगे आगे हैड चलता जा रहा था और गली मोहल्ले के इतिहास का व्याख्यान करता जा रहा था. मुझे लग रहा था कि अभी कोई इस भूल भुलैया में से बाहर निकलेगा और कहेगा मैं यहाँ का बादशाह हूँ! पता नहीं कभी इन गलियों में धूप भी आई थी या नहीं? हैड की भाषा भी ध्यान देकर समझनी पड़ती थी 'विसने कई' याने उसने कहा और 'आरिया' याने आ रहा हूँ. स्टाफ वाले उसका मज़ाक भी उड़ाते थे 'हैड ना आरिया ना जारिया खड़ा खड़ा मुस्करा रिया'.
दो मंजिले घर में पहुंचे तो धुप अगरबत्ती की खुशबू फैली हुई थी और पंडित जी मन्त्र पढ़ रहे थे. घर में बेटे से मुलाकात हुई. पता लगा कि दसवीं पास करके खाली बैठा था और आदतें बिगड़ रहीं थीं. शकल से और बात करने से भी वह चालाक सा ही लग रहा था. बेटा हैड की चिंता का विषय था. हैड उसके लिए काफी दौड़ भाग कर रहा था. खैर कथा समाप्त हुई प्रशाद बनता और सबनें घर की और प्रस्थान किया. कुछ महीनों बाद जब हैड ने लड्डू बांटे तो पता लगा की हैड ने जनरल मैनेजर से कह कहा के किसी तरह बेटे को भी बैंक में कैशियर लगवा दिया था.
बेटे की नौकरी के बाद हैड संतुष्ट सा नज़र आता था. अब उसे लगता था की बेटे की जल्दी शादी करके फिर रिटायर होकर आराम से जी सकूँगा. आजकल हैड कुछ ज्यादा ही तैयारी से ब्रांच में आने लगा था. प्रेस किये हुए चकाचक कपड़े और कुछ परफ्यूम भी. उड़ती उड़ती खबर पहुंची की हैड ने फिर से मुजरा देखना शुरू कर दिया था और शनिवार को जीबी रोड के कोठों पर जाना शुरू कर दिया था. मुजरों की आड़ में वहां तो हर तरह के काम होते थे. पर इन बातों से मैनेजर को क्या लेना देना था और फिर हैड के काम में भी तो कोई शिकायत नहीं थी.
एक शनिवार शाम को हैड मुजरा देखने पहुंचा गया. चकाचक कपड़े, मुंह में पान की गिल्लोरी और जेब में नोट. गाने की धुन और घुंघरू की छन छन पर दरी पर बैठ और मसनद पर कुहनी टिका के हैड मस्ती में सिर हिला रहा था. सुरूर धीरे धीरे बढ़ रहा था. इस बीच मुजरे के दौरान दरवाज़ा खुला तो हैड ने उत्सुकता वश कनखियों से दरवाज़े की ओर देखा. कौन कमबखत बीच में आ टपका? पर नज़र पड़ते ही हैड की सांस रुक गई और शरीर ठंडा पड़ने लगा. हैड का बेटा ही अंदर आ रहा था. बेटे को अंदर आता देख कर घबराहट से आँखों के आगे अँधेरा छा गया. कुछ पलों बाद संभला और तेज़ी से चोर दरवाज़े से दूसरी तरफ निकल गया.
बेटे की नौकरी के बाद हैड संतुष्ट सा नज़र आता था. अब उसे लगता था की बेटे की जल्दी शादी करके फिर रिटायर होकर आराम से जी सकूँगा. आजकल हैड कुछ ज्यादा ही तैयारी से ब्रांच में आने लगा था. प्रेस किये हुए चकाचक कपड़े और कुछ परफ्यूम भी. उड़ती उड़ती खबर पहुंची की हैड ने फिर से मुजरा देखना शुरू कर दिया था और शनिवार को जीबी रोड के कोठों पर जाना शुरू कर दिया था. मुजरों की आड़ में वहां तो हर तरह के काम होते थे. पर इन बातों से मैनेजर को क्या लेना देना था और फिर हैड के काम में भी तो कोई शिकायत नहीं थी.
एक शनिवार शाम को हैड मुजरा देखने पहुंचा गया. चकाचक कपड़े, मुंह में पान की गिल्लोरी और जेब में नोट. गाने की धुन और घुंघरू की छन छन पर दरी पर बैठ और मसनद पर कुहनी टिका के हैड मस्ती में सिर हिला रहा था. सुरूर धीरे धीरे बढ़ रहा था. इस बीच मुजरे के दौरान दरवाज़ा खुला तो हैड ने उत्सुकता वश कनखियों से दरवाज़े की ओर देखा. कौन कमबखत बीच में आ टपका? पर नज़र पड़ते ही हैड की सांस रुक गई और शरीर ठंडा पड़ने लगा. हैड का बेटा ही अंदर आ रहा था. बेटे को अंदर आता देख कर घबराहट से आँखों के आगे अँधेरा छा गया. कुछ पलों बाद संभला और तेज़ी से चोर दरवाज़े से दूसरी तरफ निकल गया.
बाहर निकल कर देखा तो नंगे पैर था. जूते तो लेने अब नहीं जा सकता. नंगे पैर ही चल पड़ा. जाने कब तक इधर उधर भटकता रहा. फिर दिल्ली स्टेशन पर जा कर एक बेंच पर लुढ़क गया. क्रोध, ग्लानि, खीझ, और शर्म से उसका सिर घूम रहा था. बहुत देर तक सर पे हाथ रख कर ऐसे ही पड़ा रहा और फिर सिसकने लगा. आंसू निकल आये तो मन कुछ हल्का हुआ. हरिद्वार जाने वाली गाड़ी प्लेटफार्म पर आई तो अनजाने ही उस में बैठ गया.
महीने भर तक परिवार और पुलिस को उसका कोई सुराग नहीं मिला. तरह तरह की अटकलबाजी लगीं - आत्महत्या? एक्सीडेंट? पर कोई खबर नहीं. एक दिन मैं ऑफिस में लेट बैठा हुआ था की फोन की घंटी बजी. हैड बोल पड़ा. रोते रोते उस ने अपनी कथा और व्यथा सुनाई.
अगले दिन हैड के कहे अनुसार उसकी पत्नी को बुलवाया. हैड का भी फोन आ गया और दोनों की बात भी करा दी. कुछ पैसे पत्नी को दे दिए.
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