नफे सिंह कई बार झिझकते हुए मेरे केबिन के बाहर से अंदर झांकता रहता था. कभी फुर्सत होती तो उसे मैं अंदर बुला लेता था. बचत खाते से दो तीन सो रुपये निकालने के लिए उसे फॉर्म भरवाना होता था तो मैं ही भर देता था. उसका अंगूठा लगवा कर और पूरी कारवाई करके पेमेंट के लिए केशियर के पास भेज देता था. बस इतनी सी बात से उसकी आँखों में चमक आ जाती थी और उसे बड़ा संतोष मिलता था की साहब ने मेरा काम खुद अपने हाथ से कर दिया. उसे किसी और से फॉर्म भरवाने में बेरुखी या झिड़क झेलनी पड़ती थी और कई बार देर भी लगती थी. इसलिए कांउटर पर जाने से कतराता था.
सिर पर बड़ा सा साफा, कुरती, चमड़े के भारी से जूते जिनकी चोंच ऊपर को उठी रहती और घुटनों तक की लांग वाली धोती पहने रखता था. कपड़े किसी जमाने में सफ़ेद रहे होंगे पर अब तो भूरे और मटमैले से ही रहते थे. नफे सिंह इस गाँव के और लोगों की तरह ही था बस केवल आँखें हलके नीले से रंग की थी जिसके कारण अनायास ही मेरी नज़र उस पर टिक जाती थी. अब राजस्थान के धौलपुर जिले में एक छोटे से गाँव कोटड़ा में ये बिल्ली आँखों वाला कहाँ से आ गया? क्या सिकंदर के साथ आया था या फिर वास्को डी गामा के साथ?
एक दिन नफे सिंह किसी लड़के को साथ ले कर आया. लड़के ने तीन कोल्ड ड्रिंक्स की बोतलें पकड़ी हुई थीं जिनके ढक्कन खुले हुए थे पर बोतलों के मुंह पर रखे हुए थे. लड़के ने एक बोतल मेरी तरफ बढ़ाई, एक नफे सिंह को दी और एक खुद पीने लगा. इससे पहले की मैं कुछ कहता नफे सिंह बोला:
- मनीजर साब बोतल पियो जी. आज तो म्हारा राड़ा कट गया जी.
नफे सिंह ने खुलासा किया की उसकी जमीन का एक बड़ा हिस्सा हाईवे में आ गया और उसे 16 लाख का चेक कंपनसेशन के रूप में मिला था. जमीन की पैदावार बारिश पर ही निर्भर थी जो लगभग ना के बराबर थी इसलिए करीब करीब बंजर ही थी. अब उम्र भी 60 पार कर गई थी इसलिए खेती करना और भी मुश्किल हो रहा था.
- नफे सिंह तुम्हारा ये चेक खाते में जमा हो जाएगा. फिर कुछ रकम की फिक्स्ड डिपाजिट करा लेना और कुछ पैसा खाते में रख लेना रोजमर्रा के लिए काम आएगा. और ये बोतलें ना लाया करो. बैंक की तरफ से हम पिला देंगे.
- मनीजर साहब मेरे धोरे चार बेटी हैं जी उनकेइ नाम की फिक्स कर दियो जी.
दुसरे दिन नफे सिंह के साथ चार बेटियां और चार दामाद और उन सबके आठ दस बच्चे आ गए. फॉर्म वगैरा भरने के बाद हरेक बेटी को तीन तीन लाख रुपये की फिक्स्ड डिपाजिट बना कर दे दी गयी.
हफ्ते दस दिन बाद नफे सिंह फिर आया. इस बार उसमें झिझक कम थी. चेहरे पर संतोष का भाव था. सर का साफा और कपड़े उजले से थे और हलकी नीली आँखें और सुंदर लग रही थीं. बतियाने लगा की उसकी पत्नी तो पांचवें बच्चे के जन्म के समय चल बसी थी. जब तक लड़कियां ससुराल नहीं गईं तब तक तो ठीक ठाक चलता रहा. भगवान सब का भला करे जी बाद में भी किसी तरह अकेला ही गुजारा करता रहा था.
- मनीजर साहब थारे गुण गावें हम तो. थारी कलम चली जी बस पीसे आ गए खाते में. इब तो गाँव में राम राम सुरु हो गई जी. पहले तो कोई ना बूझे था जी. अब म्हारा एक काम और कर दो जी मनीजर साहब.
- क्या काम है नफे सिंह?
- म्हारे खाते में एक नाम और चढ़ा दो जी लच्छमी का.
- लच्छमी कौन है?
- दूसरी ले आया जी मैं!
सिर पर बड़ा सा साफा, कुरती, चमड़े के भारी से जूते जिनकी चोंच ऊपर को उठी रहती और घुटनों तक की लांग वाली धोती पहने रखता था. कपड़े किसी जमाने में सफ़ेद रहे होंगे पर अब तो भूरे और मटमैले से ही रहते थे. नफे सिंह इस गाँव के और लोगों की तरह ही था बस केवल आँखें हलके नीले से रंग की थी जिसके कारण अनायास ही मेरी नज़र उस पर टिक जाती थी. अब राजस्थान के धौलपुर जिले में एक छोटे से गाँव कोटड़ा में ये बिल्ली आँखों वाला कहाँ से आ गया? क्या सिकंदर के साथ आया था या फिर वास्को डी गामा के साथ?
एक दिन नफे सिंह किसी लड़के को साथ ले कर आया. लड़के ने तीन कोल्ड ड्रिंक्स की बोतलें पकड़ी हुई थीं जिनके ढक्कन खुले हुए थे पर बोतलों के मुंह पर रखे हुए थे. लड़के ने एक बोतल मेरी तरफ बढ़ाई, एक नफे सिंह को दी और एक खुद पीने लगा. इससे पहले की मैं कुछ कहता नफे सिंह बोला:
- मनीजर साब बोतल पियो जी. आज तो म्हारा राड़ा कट गया जी.
नफे सिंह ने खुलासा किया की उसकी जमीन का एक बड़ा हिस्सा हाईवे में आ गया और उसे 16 लाख का चेक कंपनसेशन के रूप में मिला था. जमीन की पैदावार बारिश पर ही निर्भर थी जो लगभग ना के बराबर थी इसलिए करीब करीब बंजर ही थी. अब उम्र भी 60 पार कर गई थी इसलिए खेती करना और भी मुश्किल हो रहा था.
- नफे सिंह तुम्हारा ये चेक खाते में जमा हो जाएगा. फिर कुछ रकम की फिक्स्ड डिपाजिट करा लेना और कुछ पैसा खाते में रख लेना रोजमर्रा के लिए काम आएगा. और ये बोतलें ना लाया करो. बैंक की तरफ से हम पिला देंगे.
- मनीजर साहब मेरे धोरे चार बेटी हैं जी उनकेइ नाम की फिक्स कर दियो जी.
दुसरे दिन नफे सिंह के साथ चार बेटियां और चार दामाद और उन सबके आठ दस बच्चे आ गए. फॉर्म वगैरा भरने के बाद हरेक बेटी को तीन तीन लाख रुपये की फिक्स्ड डिपाजिट बना कर दे दी गयी.
हफ्ते दस दिन बाद नफे सिंह फिर आया. इस बार उसमें झिझक कम थी. चेहरे पर संतोष का भाव था. सर का साफा और कपड़े उजले से थे और हलकी नीली आँखें और सुंदर लग रही थीं. बतियाने लगा की उसकी पत्नी तो पांचवें बच्चे के जन्म के समय चल बसी थी. जब तक लड़कियां ससुराल नहीं गईं तब तक तो ठीक ठाक चलता रहा. भगवान सब का भला करे जी बाद में भी किसी तरह अकेला ही गुजारा करता रहा था.
- मनीजर साहब थारे गुण गावें हम तो. थारी कलम चली जी बस पीसे आ गए खाते में. इब तो गाँव में राम राम सुरु हो गई जी. पहले तो कोई ना बूझे था जी. अब म्हारा एक काम और कर दो जी मनीजर साहब.
- क्या काम है नफे सिंह?
- म्हारे खाते में एक नाम और चढ़ा दो जी लच्छमी का.
- लच्छमी कौन है?
- दूसरी ले आया जी मैं!
लच्छमी आ गई जी |
3 comments:
https://jogharshwardhan.blogspot.com/2015/07/blog-post_26.html
Wonderful expression and devoting some time to help others with joy.
Thank you Mittal ji.
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