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Tuesday, 28 July 2015

कांवड़ यात्रा और पुरामहादेव

सावन का महीना आने के साथ ही कांवड़ यात्रा की तैयारी शुरू हो जाती है. लाखों की संख्या में कांवड़िये हरिद्वार से गंगाजल ला कर अपने अपने गाँव के शिव मंदिरों में जल चढ़ाते हैं. पर ज्यादातर कांवड़िये जल चढ़ाने के लिए पुरामहादेव मंदिर पहुँचते हैं. इसे परशुरामेश्वर मंदिर भी कहा जाता है. यह मंदिर बागपत जिले के बालैनी क्षेत्र में है और मेरठ से लगभग 25 किमी की दूरी पर है. मंदिर तक अपने स्कूटर या कार से भी आसानी से पहुँचा जा सकता है. मंदिर में साल में दो बार सावन और फाल्गुन में मेले लगते हैं.

संक्षेप में इस मंदिर की स्थापना की कथा इस प्रकार है. हिंडन नदी के किनारे बने इस मंदिर का इलाका कजरी वन के नाम से जाना जाता था. यहाँ ऋषि जमदाग्नि अपनी पत्नी रेणुका तथा परिवार के साथ रहते थे. एक दिन ऋषि की अनुपस्थिति में राजा सहस्त्रबाहू शिकार पर आये और रेणुका को उठवा कर ले गए. पर रानी ने जो रेणुका की बहन थी, मौक़ा पाते ही रेणुका को वापिस आश्रम भिजवा दिया.

ऋषिवर ने रेणुका को आश्रम में रखने से इंकार कर दिया. क्रोध में पुत्रों को आदेश दिया की रेणुका का सर धड़ से अलग कर दिया जाए. तीन पुत्रों ने मना कर दिया जिस पर ऋषिवर ने उन्हें पत्थर बना दिया. चौथे ने जिसका नाम राम था, आज्ञा मान ली और माँ का वध कर दिया. पर इस कर्म से राम को बड़ी पीड़ा और ग्लानि हुई. प्रायश्चित करने के लिए राम ने शिवलिंग की स्थापना की और तपस्या शुरू कर दी. घोर तपस्या के बाद भगवान् प्रकट हुए. राम ने माँ को जीवित करने का आग्रह किया जो पूरा हुआ. भगवान ने दुष्टों का नाश करने के लिया एक परशु या फरसा प्रदान किया और उसकी वजह से राम का नाम परशुराम पड़ गया. परशुराम ने इस फरसे से राजा सहस्त्रबाहू और अन्य दुष्टों का सफाया कर दिया. माना जाता है की परशुराम ने गंगा जल से शिवलिंग का अभिषेक किया इसलिए वे पहले कांवड़िये कहलाये.

पर कालान्तर में यह मंदिर जंगल में विलुप्त हो गया. एक दिन लंढौरा की रानी हाथी पर सवार हो कर घुमने निकली तो रानी का हाथी यहाँ पहुँच कर अड़ गया. बहुत कोशिशों के बाद भी वह टस से मस ना हुआ. रानी ने खुदाई शुरू कराई तो शिवलिंग प्रकट हुआ और फिर रानी ने इस स्थान पर मंदिर बनवा दिया जो अब परशुरामेश्वर मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है. मंदिर परिसर में इस बारे में छपी पुस्तिका उपलब्ध है हालाँकि रानी के आने का दिन या वर्ष की जानकारी नहीं दी गई है. प्रस्तुत हैं कुछ चित्र :

परशुरामेश्वर मंदिर

पीपल और नंदी

नंदी की जोड़ी 

शिवलिंग

मंदिर का पिछला आँगन

मंदिर के पिछले आँगन में पाठशाला भी है

मुस्कान भरा स्वागत

मंदिर से लगभग 50 मीटर दूर हिन्डन नदी का एक दृश्य . ये नदी मुज़फ्फर नगर की और से आती हुई नॉएडा के पास यमुना में जा मिलती है. कहते हैं की पहले इस का नाम हरनन्दी था और प्राचीन काल में पंचतीर्थी . प्रदूषण, खर पतवार और हायसिंथ की बहुतायत से नदी संकट में है. मानसून में भी इसके पानी में बहाव नहीं है. जबकि स्थानीय लोगों का कहना है की 15 - 20 बरस पहले लोग इसमें स्नान भी करते थे  



Sunday, 26 July 2015

दूसरी शादी

नफे सिंह कई बार झिझकते हुए मेरे केबिन के बाहर से अंदर झांकता रहता था. कभी फुर्सत होती तो उसे मैं अंदर बुला लेता था. बचत खाते से दो तीन सो रुपये निकालने के लिए उसे फॉर्म भरवाना होता था तो मैं ही भर देता था. उसका अंगूठा लगवा कर और पूरी कारवाई करके पेमेंट के लिए केशियर के पास भेज देता था. बस इतनी सी बात से उसकी आँखों में चमक आ जाती थी और उसे बड़ा संतोष मिलता था की साहब ने मेरा काम खुद अपने हाथ से कर दिया. उसे किसी और से फॉर्म भरवाने में बेरुखी या झिड़क झेलनी पड़ती थी और कई बार देर भी लगती थी. इसलिए कांउटर पर जाने से कतराता था.

सिर पर बड़ा सा साफा, कुरती, चमड़े के भारी से जूते जिनकी चोंच ऊपर को उठी रहती और घुटनों तक की लांग वाली धोती पहने रखता था. कपड़े किसी जमाने में सफ़ेद रहे होंगे पर अब तो भूरे और मटमैले से ही रहते थे. नफे सिंह इस गाँव के और लोगों की तरह ही था बस केवल आँखें हलके नीले से रंग की थी जिसके कारण अनायास ही मेरी नज़र उस पर टिक जाती थी. अब राजस्थान के धौलपुर जिले में एक छोटे से गाँव कोटड़ा में ये बिल्ली आँखों वाला कहाँ से आ गया? क्या सिकंदर के साथ आया था या फिर वास्को डी गामा के साथ?

एक दिन नफे सिंह किसी लड़के को साथ ले कर आया. लड़के ने तीन कोल्ड ड्रिंक्स की बोतलें पकड़ी हुई थीं जिनके ढक्कन खुले हुए थे पर बोतलों के मुंह पर रखे हुए थे. लड़के ने एक बोतल मेरी तरफ बढ़ाई, एक नफे सिंह को दी और एक खुद पीने लगा. इससे पहले की मैं कुछ कहता नफे सिंह बोला:
- मनीजर साब बोतल पियो जी. आज तो म्हारा राड़ा कट गया जी.
नफे सिंह ने खुलासा किया की उसकी जमीन का एक बड़ा हिस्सा हाईवे में आ गया और उसे 16 लाख का चेक कंपनसेशन के रूप में मिला था. जमीन की पैदावार बारिश पर ही निर्भर थी जो लगभग ना के बराबर थी इसलिए करीब करीब बंजर ही थी. अब उम्र भी 60 पार कर गई थी इसलिए खेती करना और भी मुश्किल हो रहा था.
- नफे सिंह तुम्हारा ये चेक खाते में जमा हो जाएगा. फिर कुछ रकम की फिक्स्ड डिपाजिट करा लेना और कुछ पैसा खाते में रख लेना रोजमर्रा के लिए काम आएगा. और ये बोतलें ना लाया करो. बैंक की तरफ से हम पिला देंगे.
- मनीजर साहब मेरे धोरे चार बेटी हैं जी उनकेइ नाम की फिक्स कर दियो जी.

दुसरे दिन नफे सिंह के साथ चार बेटियां और चार दामाद और उन सबके आठ दस बच्चे आ गए. फॉर्म वगैरा भरने के बाद हरेक बेटी को तीन तीन लाख रुपये की फिक्स्ड डिपाजिट बना कर दे दी गयी.

हफ्ते दस दिन बाद नफे सिंह फिर आया. इस बार उसमें झिझक कम थी. चेहरे पर संतोष का भाव था. सर का साफा और कपड़े उजले से थे और हलकी नीली आँखें और सुंदर लग रही थीं. बतियाने लगा की उसकी पत्नी तो पांचवें बच्चे के जन्म के समय चल बसी थी. जब तक लड़कियां ससुराल नहीं गईं तब तक तो ठीक ठाक चलता रहा. भगवान सब का भला करे जी बाद में भी किसी तरह अकेला ही गुजारा करता रहा था.
- मनीजर साहब थारे गुण गावें हम तो. थारी कलम चली जी बस पीसे आ गए खाते में. इब तो गाँव में राम राम सुरु हो गई जी. पहले तो कोई ना बूझे था जी. अब म्हारा एक काम और कर दो जी मनीजर साहब.
- क्या काम है नफे सिंह?
- म्हारे खाते में एक नाम और चढ़ा दो जी लच्छमी का.
- लच्छमी कौन है?
- दूसरी ले आया जी मैं!

लच्छमी आ गई जी 




Thursday, 23 July 2015

घरआली

- आपने म्हारा बैंक ना देख्या जी? नू है की इकबालपुर का जो बजार सै उसके परले कोणे में लछमन पंसारी बैठा बस उसी के धोरे म्हारा बैंक सै जी. इब बाजार जाओगे ते दूर सेइ बैंक का नाम चमक जाओगा जी. ना फेर बूझ लियो जी.
- हाँ हाँ बैंक देखा हुआ है. तो काम क्या है तुम्हारा? खाता खुलवाना है?
- खाता तो कई दिन हो लिए खुलवा लिया था जी. और जी अंगूरी का भी खाता खुलवा दिया था. और भगवान भला करे नफे और गजे के खाते भी खुलवा राखे. हम तीनों भाइयों के धोरे बैंक की किताब है जी थोड़ा घणा गेर दें खाते में. यो रइ जी चारों किताबें म्हारे झोले में.
- तो फिर?
- इब थोड़ा घणा लोन मिल जाता तो एक भैंस लेणी थी जी. दो तो हैं जी पर एक कई दिनां ते दूध ना दे रइ.
- अरे बैंक चले जाओ रिसाल सिंह आजकल लोन मिलने में कोई दिक्कत नहीं है. मैनेजर से मिल लेना हो जाएगा.
- ना जी कागत सा थमा दें. इब भरनाइ तो ना आता. नफे और गजे दोनों इ बाहर सिकोरटी डूटी में जा रए जी. इब आपइ भर सको. हम तो जी अँगूठा टेक.
- लाओ मैं भर देता हूँ. पर बच्चों को तो पढ़ा रहे हो या नहीं?
- ना जी बच्चन को तो पढाना जरूरी है. वे तो जावें हैं जी इसकूल़.
- पिताजी का नाम क्या है और परिवार के सभी सदस्यों का नाम भी बता दो.
- जी बाप का नाम सुलतान सिंह और घरआली का नाम अंगूरी और जी मुन्ना और मुन्नी.
- ठीक है ये फॉर्म भर दिया है और काग़ज़ों के साथ बैंक ले जाओ.

****

- क्या बात है रिसाल सिंह?
- जी फारम लाया था बैंक का लोन लेणा था जी. जरा कलम सी चला दो जी.
- अरे पिछले महीने ही तो फॉर्म भरा था अब फिर?
- ना जी यो तो नफे के नाम है जी. एक भैंस और लेणी जी.
-  वाह रिसाल सिंह ये तो बहुत बढ़िया काम कर रहे हो. और पैसा कमाओगे तो परिवार फले फूलेगा. लाओ फॉर्म भर देता हूँ. पिताजी और नफे के परिवार के सभी सदस्यों का नाम और उम्र लिखवाओ. नफे सिंह कहाँ है?
- नफे तो सिकोरटी डूटी में सहारनपुर जा रा जी. बाप का नाम आप जाणो सुलतान सिंह और घरआली का नाम अंगूरी और जी राजू और गुड्डी.
- ये लो फॉर्म भर दिया है. अपने कागज़ लेकर बैंक पहुँचो जाओ.

****

- आओ रिसाल सिंह क्या हाल है. लोन हो गया था?
- जी आप फारम भरोगे तो होणाइ था. इबके गजे के नाम लेणा था लोन. माड़ी सी कलम चला दो बस काम हो जाएगा. बच्चे दुआ देंगे जी.
- हाँ हाँ लाओ. गजे सिंह कहाँ है? उस के परिवार की डिटेल लिखवाओ.
- जी गजे तो सिकोरटी डूटी में हरद्वार गया. बाप का नाम सुलतान सिंह और घरआली का नाम अंगूरी और बच्ची का डोली.
- रिसाल सिंह ये ही नाम तो पहले भी लिखवाये थे शायद? या नहीं?
- ठीक कहो जी आप. बाप का नाम सुलतान सिंह और घरआली का नाम अंगूरी.
- पर तुम तो तीन भाई हो रिसाल, नफे और गजे सिंह और पाँच नाम बच्चों के लिखवाए थे और एक नाम अंगूरी का.
- आप ठीक कहो जी हम तीन भाई, म्हारे दो और दो और एक बच्चे. म्हारा बाप तो एकइ है जी सुलतान सिंह और भगवान भला करे म्हारी तीनों की घरआली भी एकइ है जी अंगूरी.

गई भैंस पानी में  


Tuesday, 21 July 2015

हेलिकॉप्टर

हेलीकॉप्टर या चॉपर या कॉप्टर हवा में उड़ते हैं तो किसी फड़फड़ाते पक्षी की तरह लगते हैं. प्राइवेट हेलीकॉप्टर रंग बिरंगे होते हैं इसलिए देखने में और भी सुंदर लगते हैं.

हेलीकॉप्टर शब्द का प्रयोग सबसे पहले 1861 में एक फ़्रेंच अविष्कारक ग़ुस्ताव ने किया और एक भाप चालित मॉडल बना कर दिखाया। 1907 में दो फ़्रेंच भाइयों ने एक हेलीकॉप्टर का मॉडल एक मिनट के लिए दो फ़ुट ऊपर उड़ाया. 1924 में एक फ़्रेंच ने चार पंखों की सहायता से मॉडल को 360 मीटर तक उड़ा दिया जो पहली चॉपर उड़ान मानी जाती है. उसके बाद तो हेलीकॉप्टर में लगातार सुधार होते गए और अब तो भारत में भी बनने लगे हैं.

हेलीकॉप्टर सेवा कटड़ा-वैष्णों देवी, गुप्तकाशी-केदारनाथ, उत्तर पूर्वी राज्यों और लक्षद्वीप वगैरा में उपलब्ध है. दो बार प्राईवेट कॉप्टर  में उड़ान भरने का मौक़ा मिला. आठ सीटर था जिसमें पायलट भी शामिल था. सुरक्षा जाँच भी हुई और वजन भी लिया गया. बिठाने से पहले वजन को बराबर बाँटा भी गया. आपकी मन पसंद सीट का कोई चक्कर नहीं. जहाँ बिठाएँ वहीँ बिराजिये बस. पूरा हेलीकॉप्टर और पूरा शरीर हिचकोले खा रहा था और पंखों का भयंकर शोर हो रहा था. पूरे कॉप्टर में इंजन और ऊपर चल रहे पंखों की वजह से कम्पन हो रहा था. पैर भी हिल रहे थे और पूरा शरीर भी. बात करना तो असंभव हो गया था. अाठ सीटर का मतलब है की जैसे कोई कार सवारियों समेत ऊपर उठ रही हो !

पर मजा भी आया ! 2012 - 13 के कलेक्शन में से प्रस्तुत हैं कुछ फोटो:

फाटा, गुप्तकाशी में उड़न खटोला उतरता हुआ

केदारनाथ मंदिर से लगभग दो किमी दूर हैलीपैड

रंग बिरंगे पक्षी !

कारगिल-लेह मार्ग से नजर अाता कोप्टर संभवत: सेना का रहा होगा

कॉप्टर के अंदर से ली गई सेल्फी!

कॉप्टर के अंदर से लिया गया फोटो 

हेलीकॉप्टर सेवा बुकिंग ऑफिस, केदारनाथ



Saturday, 18 July 2015

एप्पल जूस

अपन के पास प्राचीन काल में एक बुलेट 350 सीसी मोटर साइकिल हुआ करती थी. दरअसल बैंक में अफसर बनने की ख़ुशी में खरीदी थी याने अपने आप को ही गिफ्ट दे दी थी ! नई दिल्ली की सड़कों पर बुलेट चलाने में बड़ा मज़ा आता था. तीन मूर्ति, लोदी रोड, कनाट प्लेस और इंडिया गेट के बड़े बड़े गोल चक्कर और हरियाली देख कर दिल खुश हो जाता था. अब भी होता है पर अब ट्रैफिक बहुत ज्यादा है. बुलेट बांये चलायें या बीच में समझ ही नहीं आता. पहले गाड़ियाँ कम थी और मज़ा ज्यादा था. गोल चक्करों के इर्द गिर्द फर्राटे से भागती बाइक, धग-धग धग-धग करता इंजन, हवा में फड़फड़ाते शर्ट के कालर और जुल्फें लहराती हुई बस इसका आनन्द कुछ अलग ही था ! धाकड़ सवारी और शानदार सवारी ! आजकल की सौ सौ सीसी की फटफटिया पर हेलमेट लगाए बैठे लोग तो बस चिड़ीमार लगते हैं.

मालिश पोलिश से चमकती रहती थी अपन की बुलेट और सात रुपये कुछ पैसे के पेट्रोल से टंकी पूरी टुन्न रहती थी पर कमबखत पिछली सीट खाली.

एक दिन शाम को ब्रांच से काम ख़तम करके निकले, बाइक पर किक मारी और चल दिए डेरे की ओर. पर संसद मार्ग थाने के आगे से निकले तो देखा - अरे वो तो बस स्टॉप पर मिस बी खड़ी है. 15-20 लोग और भी खड़े थे लगता था की काफी देर से बस नहीं आई थी. बादल भी छाए हुए थे. ओ हो तो अपन किस लिए हैं और अपन की फटफटिया किसके लिए है? फ़ौरन यू टर्न मारा और मिस बी के ठीक सामने चीं करके ब्रेक मार दी - 'आइये बैठिये मैं छोड़ देता हूँ'.

मिस बी कुछ मुस्कराईं कुछ शर्माईं. दांये देखा बाएं देखा. मन ही मन पहले ना की, फिर हाँ की, फिर ना की परन्तु फिर बैठ ही गयीं. हाँ में ना थी या ना में हाँ थी ? इन्तेज़ार कर रहे लोगों में से कुछ लोग सारी कारवाई पर गौर कर रहे थे मुस्कराए. बुलेट विजय चौक की तरफ चल दी. विजय चौक पहुंचे ही थे की बारिश की बूंदें पड़ने लगीं. जल्दी से फव्वारे के नीचे रेस्तरां में घुस गए. रेस्त्राँ तो खाली पड़ा हुआ था. हाथ मुंह पोंछ कर बैठ गए और आर्डर दे दिया- 'एप्पल जूस'.

याद नहीं क्या क्या बातें हुई होंगी शायद मौसम की, शायद नौकरी की, शायद गंजे बॉस की या शायद उस वक़्त की किसी फिल्म की. आधे घंटे बाद बारिश रुकी तो वेटर को बिल लाने को कहा. उसने तुरंत पकड़ा दिया 11.75 रुपये. झट से पर्स निकाला - ओ तेरे की चार रूपये? दूसरी जेब - ओ तेरे की निल बटा निल, तीसरी जेब - ओ तेरे की निल बटा निल, शर्ट की जेब - एक एक रूपये के दो सिक्के.

सांस रुक गई, पसीने छुट गए, महसूस हुआ की इज्ज़त मिट्टी में मिल गयी, बैंक की अफसरी धराशाई हो गई, बुलेट के दोनों टायर पंक्चर हो गए. वेटर की तिरछी मुस्कराहट दिल को चीर गई.

खैर छोड़िये साहब इस तरह की घटनाएँ कभी-कभी हो जाती हैं. फिर भी आपको साफ़-साफ़ बता दूं की अब भी मेरा पर्स मेरे पास ही होता है पर नोट अब भी मिस बी के पर्स में ही होते हैं.

तब की मिस बी या अब की मिसेज़ बी, एक ही तो बात है.





Friday, 17 July 2015

सुबाथू कैंट, हिमाचल

शिमला हिल्स में बसा सुबाथू एक छोटा सा लगभग दो सौ साल पुराना कैंट है. अब सुबाथू कैंट जिला सोलन हिमाचल प्रदेश का एक हिस्सा है. यह करीबन 4500 फीट की ऊंचाई पर है और शिमला से 60 किमी दूर ठंडा और शांत पहाड़ी इलाका है. सुबाथू पहुँचने के लिए शिमला, सोलन और धरमपुर से बसें और टैक्सी मिलती हैं. यहाँ होटल साधारण और कम हैं क्यूंकि सैलानी कम ही आते हैं. 

सुबाथू कैंट की स्थापना एंग्लो-नेपाल युद्ध (1814-1816) जीतने के बाद हुई. जीत के बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने यहाँ छावनी डाल दी और प्रथम गोरखा रायफल्स स्थापित की. आजकल यहाँ 14 वीं गोरखा का प्रशिक्षण केंद्र है. इस प्रशिक्षण केन्द्र में एक सुंदर कालिका देवी मंदिर है जिसकी स्थापना 1958 में की गई थी। कुछ फोटो प्रस्तुत हैं :


रेजीमेन्टल कालिका मंदिर का प्रवेश द्वार
मंदिर का एक द्रश्य 
धर्मपुर मार्ग से नज़र आता मंदिर
रंगरूट ट्रेनिंग पर जाते हुए 
प्रशिक्षण केंद्र 



Tuesday, 14 July 2015

प्रमोशन की पुड़िया

परसों रविवार था और घर से शाम 4 बजे गाड़ी लेकर निकले. फ्लाईओवर पर चढ़ तो गए नीचे उतरते ही जाम में जा फँसे. आगे भी गाड़ियाँ और पीछे भी गाड़ियाँ जो इस बात की निशानी थी की देश का जी डी पी बढ़ रहा है. बूंदा बंदी की वजह से ज्यादातर गाड़ियों की खिड़कियाँ बंद थीं लोग गाने सुन रहे थे बतिया रहे थे और दो चार मिनट के अंतर पर जरा जरा सा आगे खिसक रहे थे. तीन किमी चलने में पूरे 35 मिनट लग गए. ये दिल्ली का मानसूनी जाम था.

इसी मानसूनी जाम में रेंगते हुए आगे बढ़ रहे थे की एक ऑटो के पीछे लगे पोस्टर पर नज़र पड़ी. 'बॉस से परेशान?' पोस्टर ने कमबख्त बॉस याने कमबख्त रीजनल मैनेजर की याद दिला दी जो न खुद खुश हुआ न हमें होने दिया. और तब ये पोस्टर भी नज़र नहीं आया की कमबख्त रीजनल मैनेजर को खुश करने की पुड़िया ले लेते.

बात तो पुराने ज़माने की है जब अपन झुमरी तलैय्या के ब्रांच मैनेजर हुआ करते थे और तब गोयल साब अपने रीजनल मैनेजर हुआ करते थे. आपको उनका परिचय दे दूं - साँवला रंग, सुनहरे फ्रेम का चश्मा, बियर पी पी के मटके सा मोटा हुआ पेट और गंजा सिर. पर सिर के तीन ओर बालों की एक झालर थी जिसे कभी कभी काले रंग से रंग देते थे. दिन में सात आठ बार छोटी सी कंघी से झालर को सेट कर लेते थे. पचपन साल की उमर थी पार्टी वार्टी के शौक़ीन थे और हम जैसे मैनेजरों से उम्मीद रखते थे की हम शनिवार शाम या फिर इतवार शाम पार्टी में बुलाया करें. हमें ये लगता था की इस कमबख्त गंजे बॉस से थोड़ा दूर ही रहें और बस यही दूरी मार गई.

मैनेजर से चीफ मेनेजर की प्रमोशन का इंटरव्यू आ गया था. खूब पढाई की बैंक के सर्कुलर रट मारे, ब्रांच के बजट पूरे किए और गंजे बॉस के सारे सवालों के जवाब भी दे दिए. पर लिस्ट निकली तो नाम गायब. खैर कुछ समय गुज़रा तो गंजे बॉस की ट्रान्सफर हो गई. नए बॉस आ गए. पर बैंक की कार पर ड्यूटी बजाने वाला ड्राईवर पुराना ही था. एक दिन मिला तो बोला:
- सर इस बार आप रह गए इंटरव्यू में?
- अरे यार अगली बार हो जायेगा.
- थोड़ी सी कमी रह गई सर.
- कमी?
- सर आप साब और मेमसाब का जन्मदिन ढंग से नहीं मनाते थे.
- अरे यार सुबह सुबह गुलदस्ते तो भेज देता था और क्या करता?
- अरे सर गुलदस्ते के साथ सोने की चेन भी तो देनी थी जैसे औरों ने दी थी. वे तो निकल गए आप ही रह गए.

कम्बखत प्रमोशन की पुड़िया का राज़ देर से खुला.

बॉस से परेशान?



Sunday, 12 July 2015

हेमिस मठ लद्दाख की तांत्रिक चित्रकारी (Hemis Monastery Laddakh)

लेह से लगभग 45 किमी दूर एक क़स्बा है जिसका नाम है हेमिस. यहाँ एक बौध मठ है जिसे हेमिस मठ या हेमिस गोम्पा या Hemis Monastery कहते हैं. यह हेमिस मठ लगभग 12000 फुट की ऊंचाई पर स्थित है और सिन्धु नदी के पश्चिमी किनारे पर है. कहा जाता है की यहाँ गोम्पा ग्यारवीं सदी से भी पहले का है और इसका जीर्णोधार 1672 में लद्दाखी राजा सेन्ग्गे नामग्याल द्वारा कराया गया था. यह गोम्पा महायान बौध समुदाय के द्रूक्पा शाखा से सम्बन्ध रखता है. और मठों के मुकाबले यह सबसे बड़ा और सबसे सम्पन्न मठ है.

गोम्पा में की गई तांत्रिक चित्रकारी आध्यात्मिक और रहस्यवाद पर आधारित है. गोम्पा के ये भित्तिचित्र बहुत ही सुंदर और आकर्षक है. गोम्पा से लिए गए कुछ चित्र प्रस्तुत हैं मुकुल वर्धन के सौजन्य से है.









Wednesday, 8 July 2015

सब कुछ नकली

अब तक तो नकली नोट, नकली डिग्री और नकली दवाइयां सुनते आये थे पर अब तो नकली यूनिवर्सिटी भी सामने आ गई हैं. विश्विद्यालय अनुदान आयोग याने UGC ने पिछले दिनों उन यूनिवर्सिटीस की लिस्ट जारी की जो जाँच करने पर नकली पाई गईं हैं. इस पर तो यही याद आता है की - हैरां हूँ दिल को रोऊँ या पीटूं जिगर को मैं!

जिन्होंने भी ये नकली संस्थाएं बनाई उन महानुभावों ने इनके नाम भी अजब गजब के रखे हैं पढ़ कर अच्छे भले लोग लोचा खा जाएँ. गाँधी, इंडिया और गुरुकुल जैसे शब्द इस्तेमाल किये हैं जो भ्रामक हैं. नमूने के तौर पर गौर फरमाइए जरा :

1. United Nations University, Delhi - यूनाइटेड नेशनस यूनिवर्सिटी, दिल्ली. छोटे मोटे नाम रखने का क्या फायदा जनाब? जब नाम रखना ही है तो दुनिया की मशहूर संस्था पर क्यूँ न रखा जाये? कम से कम ऐसा तो लगे की जैसे UNO ने दिल्ली में एक शाखा खोल दी है. बस पढाई करो और पढ़ाई करके सीधा बिना रुके न्यू यॉर्क !

2. Indian Institute of Alternative Medicine - इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ अल्टरनेटिव मेडिसिन, कोलकोता. इन्हें इंडिया से लगाव हो न हो पर Indian शब्द से काफी लगाव रहा होगा. पढ़ कर लगता है की भारत सरकार का कोई नया उपक्रम खुला है! इसमें शायद नए किस्म के डॉक्टर बन कर निकलेंगे. यहाँ का पढ़ा हुआ डॉक्टर शीर्षासन करते हुए मन्तर पढ़ेगा " आलतू जल्लालतू आई बला को टालतू " और बस बिना दवाई खाए आप दौड़ने लग जाएँगे.

3. Commercial University Ltd. Delhi - कमर्शियल यूनिवर्सिटी लिमिटेड दिल्ली. इन महानुभाव ने तो संस्था को कम्पनी बना डाला वो भी भारत सरकार की नाक के नीचे दिल्ली में. बहुत उच्च स्तरीय कॉमर्स पढ़ाने का इरादा होगा इनका. अब तो क्या पढ़ा पाएँगे पर अपना कॉमर्स शायद पूरा कर लिया होगा.

 नक़ल और नकली के फायदे
अगर नक़ल या नकली या नकलची पर गौर करें तो लगता है की तीनों फायदे की चीज़ें हैं.
नक़ल तो हम फ़ोटोस्टेट मशीन से रोज ही करते रहते हैं. फिर उन दस्तावेजों की नक़ल को अटेस्ट कर के असल में तब्दील कर लेते हैं. नक़ल के और नमूने देखिये बॉलीवुड की बहुत सी फिल्मों में जो हॉलीवुड में बनी फिल्मों में से की जाती हैं. गानों, संगीत और डांस की भी नक़ल कर ली जाती है. पर आपका मनोरंजन तो होता ही है!

अब रिटायर होने के बाद असली डॉक्टर से नकली  दांत लगवाये हैं. भई कमाल की नकली दांत हैं जो असली से ज्यादा काम कर रहे हैं. नक़ल के मामले में कुदरत भी कम नहीं है. वो ऐसे की हाथी के दांत देखिये खाने के और दिखाने के और! गिरगिट को देखिये कैसे कैसे नकली रंग बदलता है.

नकलची भी असल से ज्यादा कामकर जाते हैं. इन नकलची या कॉमेडियन के शो भी धड़ल्ले से चल रहे हैं जिसमे असली नेता और अभिनेता की नक़ल का मजा दिलाते हैं.

किसान को देखिये खेत में नकली इंसान खड़ा कर देता है ताकि चिड़ियाँ बीज न चुग लें!

तो साब नक़ल और नकली चीजें व्यापक रूप से फैलती जा रही हैं. और अब समय आ गया है एक असली-नकली जाँच मंत्रालय बनाने का जो पूरी तहकीकात करने के लिए तैयार हो याने दूध का दूध और पानी का पानी करने को तैयार हो. बेहतर होगा की दूध से निकले पानी का भी उपयोग भी कर ले. यह मंत्रालय जासूसों, स्पाई कैमरे वगैरा से पूरी तरह लैस हो ताकि शिकायत मिलने पर तुरंत गुप्त तरीकों से करवाई कर सके.

पर हाँ इस 'असली-नकली जांच मंत्रालय' का प्रभारी मंत्री असली डिग्री वाला हो !

असली या नकली ?



Friday, 3 July 2015

चलते चलाते - सुबाथू से कुछ फोटो

हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले में एक छोटा लगभग दो सौ साल पुराना शहर है सुबाथू. यहाँ कैंट के अलावा सिविलियन जनसंख्याँ दस हजार से भी कम है. पर इस छोटे से पहाड़ी कसबे में तीन चर्च, एक मस्जिद, एक दरगाह, एक गुरुद्वारा और कई मंदिर हैं. कुछ फोटो :

St Francis of Assisi RC Church, Subathu

Wesleyan Methodist Church established in 1877 in Subathu

सनातन धर्म मंदिर सुबाथू