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Wednesday 28 October 2020

लॉकर में बंद

बैंकों में आजकल लोन के अलावा सोने के सिक्के, इन्शोरेन्स, मेडिक्लैम, म्यूच्यूअल फण्ड भी मिलने लगे हैं. पहले ये सब झमेला नहीं था. अब इसे झमेला ना कह कर  'फाइनेंशियल लिटरेसी' कहा जाने लगा है. याने पैसे कहाँ लगाने हैं और ब्याज ज्यादा कहाँ मिलेगा ये बताया जाता है. 

चालीस बरस बैंक की नौकरी कर ली, मकान बना लिया, बच्चे सेटल कर दिए और बुढ़ापे का भी इंतज़ाम कर लिया पर आज भी अगर ब्रांच में जाएं तो कोई ना कोई 'फाइनेंशियल लिटरेसी' का ज्ञान देने लग जाता है. लच्छेदार लेक्चर सुनने को मिलता है. सुन कर लगता है हम तो 'फाइनेंशियल इल-लिटरेट ही रह गए. जो भी हो अब रिटायरमेंट के बाद तो फिक्स डिपाज़िट ही अच्छी लगती है. और एक चीज़ जो अच्छी लगती है वो है 'माल' जो कभी लॉकर में डाला था. पर उसकी भी चाबी अपनी जेब में नहीं बल्कि श्रीमती के पर्स में होती है. हम तो बॉडीगार्ड की तरह पीछे पीछे चले जाते हैं और ड्राईवर की तरह गाड़ी में बिठा कर वापिस ले आते हैं.  

इसी पर लॉकर का एक किस्सा याद आ गया. कनॉट प्लेस के एक बैंक की शाखा में बहुत से लॉकर थे. कुछ छोटे, कुछ मझोले और कुछ बड़े साइज़ के थे. गिनती में शायद चार हज़ार से कुछ ज्यादा ही होंगे. ये लॉकर एक बहुत बड़े तहखाने में थे. लॉकर की दो भारी केबिनेट पीठ से पीठ मिला कर कतारों में रखी हुई थीं. इन कतारों के बीच में कस्टमर के लिए जगह छोड़ दी गई थी. तहखाने के एक कोने में लकड़ी की पार्टीशन बनी हुई थी जिसमें बैंक की अपनी भारी भरकम तिजोरियां खड़ी थीं. इनमें दिन भर का जमा कैश रखा जाता था. 

ग्राहकों के लिए लॉकर शनिवार को डेढ़ बजे तक बंद कर दिए जाते थे. लगभग उसी समय ब्रांच का कैश मैनेजर और हैड केशियर दोनों एक साथ चाबियाँ लगा कर बंद कर देते थे. उसके बाद लोहे की ग्रिल और लोहे का भारी दरवाज़ा बंद होता था. इस तरह तहखाना बंद करके अंदर की लाइट्स बाहर से बंद कर दी जाती थी. 

शनिवार को लगभग सवा एक बजे एक मेजर साब अपनी पत्नी के साथ पधारे और लॉकर रजिस्टर साइन किया. मेजर साब श्रीमती से बोले - मैं सामने पोस्ट ऑफिस होकर आता हूँ तुम लॉकर देख लो. मैडम और उनके साथ लॉकर अधिकारी अंदर गए, लाकर खोला और अधिकारी बाहर आ गया. मैडम अपने काम में बिज़ी हो गई. उन्हें टाइम का ध्यान नहीं रहा.

उधर मैनेजर और हैड केशियर कैश बंद करने आ गए. जब ये लोग आये तो लॉकर अधिकारी ने सोचा कि अब मेरा क्या काम और वो घर की ओर रवाना हो गया. कैश बंद करने की कारवाई पूरी की गई. पहले गार्ड और चपरासी बाहर निकले, फिर तिजोरी बंद करके मैनेजर और हैड केशियर. ग्रिल गेट बंद किया गया और आखिर में बड़ा भारी भरकम दरवाज़ा भी बंद कर दिया गया. गार्ड ने बिजली का स्विच बंद कर दिया. जैसे ही अँधेरा हुआ तो मैडम अंदर जोर से चिल्लाई - ये क्या है लाइट क्यूँ बंद की? पर बाहर ना आवाज़ निकलनी थी ना निकली. 

तब तक दो बज चुके थे. मेजर साब अपनी मैडम को लेने आ गए. मैडम नदारद. वो भांप गए की गड़बड़ हो गई है. जोर जोर से चिल्लाने लगे. शोर मचा तो ब्रांच का बचा खुचा स्टाफ तहखाने में इकट्ठा हो गया. चाबी वाले मैनेजर साब तो आ गए पर हैड केशियर नदारद! वो तो घर के लिए निकल चुका था. तभी किसी ने बताया की वो अक्सर सड़क के दूसरी तरफ बस लेता है शायद अभी भी खड़ा हो?

दो लोग भागे बाहर की तरफ. हैड केशियर इत्मीनान से बस स्टॉप पर बस की इंतज़ार में खड़ा था. शनिवार और लंच टाइम की वजह से बसें कम चल रही थी. तीनों ब्रांच में वापिस भागे. लाइट जलाई गई और ताले फटाफट खोले गए.  

अन्दर मैडम फर्श पर पड़ी हुई मेजर साब का नाम बुदबुदा रही थी - मेजर बचा लो, मेजर बचा लो. मैडम की आवाज़ सुन कर सबकी जान में जान आ गई. 

सावधानी हटी और दुर्घटना घटी!

लॉकर की चाबी 


16 comments:

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2020/10/blog-post_28.html

Ravindra Singh Yadav said...

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 29 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद Ravindra Singh Yadav. पांच लिंकों का आनंद भी लेंगे.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सार्थक और जानकारीपरक।

Meena Bhardwaj said...

एक बुरा हादसा जो सबकी समझदारी से टल गया । ऐसी घटनाएं कई जगहों पर हो जाया करती है । बहुत बढ़िया लेख।

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद Meena Bhardwaj. कई बैंकों में ऐसा हो चूका है. बिलकुल आखरी घड़ी में आना भरी पद जाता है.

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद डॉ रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'.

दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 29.10.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
धन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क

सुशील कुमार जोशी said...

सुन्दर

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद सुशील कुमार जोशी जी.

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद दिलबागसिंह विर्क. चर्चा मंच पर भी हाजिरी लगेगी

Amrita Tanmay said...

लॉकर में लॉक होने की यह सच्ची घटना सबक सिखा रही है । आभार ।

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद Amrita Tanmay. बैंकर और कस्टमर दोनों को ध्यान रखना चाहिए.

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद पाण्डेय जी

मन की वीणा said...

ओह लापरवाही जान पर बन आती है।
बंद करने से पहले अंदर झांका भी नहीं।
रजिस्टर भी देखना चाहिए कि जो आया है वो वापसी के सिग्नेचर कर गया या नहीं।
अद्भुत है मेरा देश।

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद मन की वीणा
बनकर और कस्टमर , दोनों को सावधान रहना चाहिए.