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Saturday, 29 August 2020

नकली फूल

बैंक में नौकरी लग गई तो अब और क्या चाहिए? एक तो जो जूते घिस गए थे उन्हें बदलना चाहिए? लेकिन मम्मी की नज़र में इक श्रीमति चाहिए. ना ना ना मनोहर उर्फ़ मन्नू के विचार में नौकरी के बाद और श्रीमती से पहले एक दुपहिया होना चाहिए जिस पर बैठ कर लम्बी लम्बी सड़कों पर फर्राटे लगाने चाहिए. क्या पता आने वाली दुपहिया पसंद ही ना करे. और अभी तो तनखा इतनी ही है की दुपहिया ही आएगा. दुपहिया में दो पहिये और जोड़ने के लिए समय चाहिए. अब सवाल है की कौन सा दुपहिया लिया जाए? चलो ज़रा दोस्तों यारों से पूछताछ कर लेते हैं. मन्नू को कई तरह के सुझाव मिले पर उसने सोचा क्यूँ ना कपूर साब से भी पूछ लिया जाए.

- कपूर सा आप तो बुलेट पे सवारी करते हो. मैं भी ले लूँ क्या? या स्कूटर ले लूँ कुछ सलाह तो दो.

- अरे तू मुझ से क्या पूछ रहा है? अपन तो माचो गाड़ी पसंद करते हैं. 

- माचो मतलब?

- अबे दमदार मरदाना गड्डी. देखा कैसे धक् धक् दौड़ती है? 

- वो तो देखी है जी. अपना चचेरा भाई है जी कन्नू वो रोज यही फटफटिया चलावे है. तड़के बुलेट पे बीस बीस किलो की दूध की कैनी दोनों साइड बाँध के हलवाई के पहुंचा दे है. सवारी बैठा ले है वो अलग. 

- तूने क्यूँ नौकरी कर ली बैंक में? गाँव में रह जाता. दूध सप्लाई करता और हलवाई की लड़की से शादी कर लेता. 

- देखो जी कपूर सा ब्याह में तो दिल्ली वाली चाहिए. जीन वीन पहन के जब अंग्रेजी बोले तो कसम से भौत जी लगै.

- बस तेरा तो काम हो गया मन्नू. लोन सेक्शन में संध्या बैठी है जीन वीन पहनती है और अंग्रेजी भी बोलती है. जा बुलेट का लोन ले ले उस से. जब गाड़ी आ जाए तो उसे बिठा कर अपना गाँव भी घुमा देना. क्या पता तेरी पत्री मिल जाए?

- अच्छा जी गुरु जी ?!

- पर पहले ज़रा हुलिया भी बदल ले. जीन और टी शर्ट पहन ले,  परफ्यूम लगा ले फिर जाना उसके पास. 

- जी गुरु जी! मन्नू ने पर्स खोल दिया. जीन और टी खरीदी, परफ्यूम खरीदा, नए जूते खरीदे और कागज़ पत्तर लेकर संध्या के सामने बैठ गया. कारवाई पूरी हो गई और बुलेट आ गई. बाकायदा पूरी सजावट के साथ. मन्नू ने लोन सेक्शन में खबर दे दी.

- लो जी संध्या जी गाडी आ गई है. बाहर खड़ी है नजर भी मार लो और गाडी की टेस्टिंग भी करा देता हूँ. 

- ठीक है, ठीक है. देख ली. बहुत काम पड़ा है सीट पर.

- ना जी ना. एक बार तो देख ही लो. ख़ास आप के लिए तो सजाई है. असली फूल भी लगवाए हैं जी. बस एकाध नकली है पीछे. 

- अच्छा चलो. वाओ! हाहाहा अमेज़िंग!

- चलो जी कनाट प्लेस का एक चक्कर लगवा दूं जी. 

- ओके ओके चलो. विल हैव फन!

मन्नू ने फटफटिया स्टार्ट की और संध्या पीछे बैठ गई. बाइक जहां जहां से निकले लोग भी कौतुहल से देख रहे थे. मन्नू मस्त हो रहा था. रोज जीन पहनने वाली संध्या इत्तेफाकन सलवार कमीज़ पहने हुए थी. बाइक ने स्पीड पकड़ी तो चुनरी लहराई और नकली फूलों में उलझ गई. फिर फूल समेत चेन में जा घुसी. इधर चुन्नी चेन में फंसी और उधर फटफटिया की चेन जाम हो गई. चीं करती हुई बुलेट रुक गई. सड़क पर टायर घिसने का काला निशान पड़ गया. वो तो मन्नू ने जैसे तैसे सम्भाल ली वरना दोनों सड़क पर होते. पर तब तक कई तमाशाई भी इकट्ठे हो गए थे. चुन्नी और प्लास्टिक के फूल ग्रीज़ से काले हो गए थे. जब तक मन्नू चेन में से फूल और काली हुई चुन्नी चिंदी चिंदी करके छुड़ाता तब तक संध्या ऑटो में बैठ कर घर चली गई. 

लोन की गाड़ी

Wednesday, 26 August 2020

प्राचीन विदेशी यात्री - चीनी यात्री

चीनी यात्री 

प्राचीन काल में भारतीय उपमहाद्वीप में ज्ञान, विज्ञान, व्यापार, धर्म और अध्यात्म का बहुत विकास हुआ. इस विकास की ख़बरें मौखिक रूप में व्यापारियों के माध्यम से फारस, ग्रीस, रोम तक पहुँच जाती थी. इसकी वजह से व्यापारी, पर्यटक, बौद्ध भिक्खु, और बहुत से हमलावर भी आते रहते थे. इनमें से कुछ ने संस्मरण लिखे. कुछ हमलावर जैसे सिकन्दर, बाबर या गज़नवी अपने साथ कवि और लेखक भी लाए जिन्होंने उस समय के उत्तरी भारत पर लेख लिखे. इस तरह के लेख, किताबें और नक़्शे इतिहास जानने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण सिद्ध हुए हैं. इस लेख के पहले भाग में ग्रीक यात्रियों के बारे में लिखा था अब इस लेख में चीनी यात्रियों का जिक्र है. यह जानकारी इन्टरनेट से एकत्र की है. और अधिक जानकारी के लिए कृपया इतिहास की पुस्तकें पढ़ें.


चीनी यात्रीयों में मुख्यतः बौद्ध भिक्खु ही थे जिन के आने का मुख्य कारण बौद्ध धर्म की जानकारी और गहन अध्ययन था. पर उनका उस समय के रास्ते, गाँव, शहरों और शासन तंत्र के बारे में लिखना इतिहास जानने का अच्छा साधन है. 

फा हियान ( Fa Hien or Faxian ): ये भारत में आने वाला प्रथम चीनी यात्री था. उसका जन्म सन 337 में और मृत्यु सन 422 में हुई थी. फा हियान कम उम्र में ही बौद्ध भिक्खु बन गया था. उसकी बड़ी इच्छा थी की बौद्ध ग्रन्थ 'त्रिपिटक' को मूल भाषा में पढ़ा जाए. इसके लिए अपने साथियों हुई-चिंग, ताओचेंग, हुई-मिंग और हुईवेई के साथ गोबी रेगिस्तान और बर्फीले दर्रे पार करता हुआ पाटलिपुत्र पहुंचा. फा हियान जब पाटलिपुत्र पहुंचा उस समय चन्द्रगुप्त (द्वितीय ) विक्रमादित्य का राज था. ये राज ईस्वी 380 - 412 तक चला था.

हमारे सीनियर सिटीज़न साथी नोट करें की फा हियान 65 बरस की उम्र में चीन से चला था और जब वापिस पहुंचा तो उसकी उम्र 77 साल की हो चुकी थी. फा हियान का रास्ता बड़ा ही दुर्गम था और कैसे उसने यात्रा की होगी इसकी कल्पना करना भी मुश्किल है. उसने अपनी यात्रा शेनशेन, दुनहुआंग, खोटान, कंधार और पेशावर के रास्ते की. वह उत्तरी भारत के बहुत से बौद्ध मठों में रहा और संस्कृत भी सीखी. वापसी में श्रीलंका से समुद्री यात्रा की. रास्ते में तूफ़ान आ गया और लगभग सौ दिनों के बाद जहाज़ जावा ( इंडोनेशिया ) में जा लगा. वहां से चीन पहुँच कर बहुत से बौद्ध ग्रंथों का अनुवाद किया. साथ ही फा हियान ने काफी विस्तार से प्राचीन सिल्क रूट, धर्म, समाज, रीति रिवाजों की चर्चा अपनी पुस्तक 'फा हियान की यात्रा' में की है. इस पुस्तक को 'बौद्ध देशों का अभिलेख' के नाम से भी जाना जाता है. ये पुस्तकें सन 414 में प्रकाशित हुईं. 

चन्द्रगुप्त ( द्वितीय ) विक्रमादित्य के शासन के बारे में उसने लिखा है कि जनता सुखी थी, टैक्स कम थे, शारीरिक या मृत्यु दण्ड नहीं दिया जाता था केवल आर्थिक सजा ही दी जाती थी. 

संयुगन: ये 518 ईस्वी में भारत आया था. इसने तीन वर्ष उत्तरी भारत में स्थित बौद्ध मठों की यात्रा की.  

हूएन त्सांग ( HuenTsang or Xuanzang ): हुएन त्सांग या यवन चांग एक और महत्वपूर्ण चीनी बौद्ध भिक्खु यात्री था जिसके लेखन में उस समय के भारत, धर्म, समाज और रिवाजों की चर्चा मिलती है. अंदाजा लगाया जाता है की इसका जन्म सन 600 के आस पास चीन में हुआ था और लगभग 664 में मृत्यु हुई. मात्र बीस साल की आयु में बौद्ध भिक्खु बन गया था. 

हुएन त्सांग बौद्ध स्थलों की तीर्थ यात्रा के उद्देश्य से 29 साल की आयु में भारत की ओर निकला. हुएन त्सांग का रूट थोड़ा अलग था. वो तुरफान, कूचा, ताशकंद, समरकंद और वहां से हिन्दुकुश होते हुए उत्तर भारत में आया. वो 629 से 645 तक भारत के विभिन्न भागों - कश्मीर, पंजाब, मगध में रहने के बाद दक्षिण भारत में भी गया. हुएन ने नालंदा में संस्कृत और  बौद्ध धर्म का अध्ययन किया. इस कारण हुएन त्सांग का नाम राजा हर्ष वर्धन ( जन्म ईस्वी 590, राजा बना 606 में और मृत्यु 647 ) तक पहुंचा और राजा के निमंत्रण पर उसने काफी समय कन्नौज में बिताया. 

राजकीय पहचान मिलने के कारण हुएन त्सांग का आगे का सफ़र आसान हो गया. वापिस जाते हुए अपने साथ 657 लेख, पुस्तकें और ग्रन्थ ले गया. सन 645 के आसपास हुएन त्सांग ने अपनी 442 पेज की किताब 'हुएनत्सांग की भारत यात्रा' प्रकाशित की. सम्राट हर्ष वर्धन के बारे में उसने लिखा है की उस के राज में अपराध कम थे और अपराधियों को दण्ड में सामाजिक बहिष्कार या आर्थिक दण्ड ही दिए जाते थे. सम्राट की सेना में पचास हजार सैनिक, एक लाख घुड़सवार और साठ हज़ार हाथी थे. वर्ष में कई बार राजा निरीक्षण यात्रा करता था. दिन के पहले भाग में राज कार्य और दूसरे भाग में धार्मिक कार्य करता था. हुएन त्सांग की किताब के हिंदी अनुवाद से एक अंश -

 " टचाशिलो ( तक्षशिला ): तक्षशिला का राज्य 2000 मी विस्तृत है और राजधानी का क्षेत्रफल 10 मी है. राज्यवंश नष्ट हो गया है. बड़े बड़े लोग बलपूर्वक अपनी सत्ता स्थापन करने में लगे रहते हैं. पहले ये राज्य कपीसा के आधीन था परन्तु थोड़े दिन हुए जब से कश्मीर के अधिकार में हुआ है. यह देश उत्तम पैदावार के लिए प्रसिद्द है. फसलें अच्छी होती हैं. नदियाँ और सोते बहुत हैं. मनुष्य बली और साहसी हैं तथा रत्नत्रयी को मानने वाले हैं. यद्यपि संघ बहुत हैं परन्तु सबके सब उजड़े और टूटे फूटे हैं जिनमें साधुओं की संख्या भी नाम मात्र को है. ये लोग महायान सम्प्रदाय के अनुयायी हैं."

इत्सिंग ( I Ching ):

इत्सिंग एक चीनी बौद्ध भिक्खु था जो सन 675 ईस्वी में भारत आया था. उसने अपनी यात्रा पहाड़ों के रास्ते ना करके सुमात्रा से समुद्री यात्रा से की. चीन से यात्रा की शुरुआत तो उसने 37 भिक्खुओं के साथ की थी परन्तु समुद्री यात्रा के समय इत्सिंग अकेला रह गया. इत्सिंग दस वर्षों तक नालंदा विश्विद्यालय में रहा जहां उसने संस्कृत सीखी और बौद्ध धर्म का अध्ययन किया. वापसी में वह अपने साथ सुत्त पीटक, विनय पीटक और अभिधम्म पीटक की 400 प्रतियां ले गया.  सन 700 से 712 ईस्वी तक इत्सिंग ने 56 ग्रंथों का अनुवाद प्रकाशित किया. उसकी एक प्रमुख पुस्तक थी 'भारत और मलय द्वीप पुंज में प्रचलित बौद्ध धर्म का विवरण'. 

पहले चीनी यात्रियों की तरह उसने उत्तर भारत का राजनैतिक और शासन तंत्र का वर्णन नहीं किया लेकिन बौद्ध धर्म और उस समय के संस्कृत साहित्य पर महत्वपूर्ण चर्चा की. उसने लिखा की नालंदा से कुछ दूर नदी तट पर राजा श्रीगुप्त ने एक चीनी मंदिर बनवाया था. राजा हर्ष वर्धन की दानशीलता और धर्म प्रेम की प्रशंसा की है.  

हुएन त्सांग ( चित्र सधन्यवाद khabar.ndtv.com  के सौजन्य से ) 


Sunday, 23 August 2020

प्राचीन विदेशी यात्री - ग्रीक यात्री

भारतीय इतिहास को क्रोनोलॉजी याने कालक्रम के अनुसार मोटे तौर पर चार भागों में बांटा गया है - प्राचीन काल, मध्य काल, आधुनिक काल और 1947 के बाद स्वतंत्र भारत का इतिहास. प्राचीन इतिहास लगभग सात हज़ार ईसापूर्व से सात सौ ईसवी तक माना जाता है. इतने पुराने समय के हालात जानने के लिए खुदाई में मिले बर्तन-भांडे, हथियार, औजार, दबे हुए कंकाल का डीएनए वगैरह की सहायता ली जाती है. इसके अलावा उस समय के यात्रियों के लिखे वर्णन उस समय को समझाने के काम आते हैं.   

भारत में प्राचीन काल में ज्ञान, विज्ञान, धर्म और अध्यात्म बहुत आगे था पर ज्यादातर मौखिक रूप में प्रचलित था. लिपिबद्ध काफी बाद में हुआ. इसके विपरीत पश्चिम की ओर से आने वाले हमलावर जैसे की फारस का दारा ( Darius the great ), ग्रीस का सिकंदर, समरकंद का बाबर और ग़ज़नी का महमूद अपने साथ कवि और लेखक भी लाए. इन लोगों के वर्णन से उस वक़्त के हालात की जानकारी मिलती है.

इसी तरह से यूरोप और मध्य एशिया से विदेशी व्यापारी, पर्यटक, और धार्मिक यात्री आए उन्होंने भी जो नक़्शे बनाए और किताबें लिखीं वो इतिहास जानने में मदद करती हैं. 

सिकंदर से भी पहले के दो ग्रीक-रोमन यात्री काफी मशहूर हैं: पहला है हेरोडोटस: जिसने किताब लिखी 'हिस्टोरिका' जिसमें कई देशों का वर्णन है - ग्रीस, फारस, लीबिया वगैरह. कहा जाता है की वर्णन ज्यादातर लोक कथाओं और कहावतों पर आधारित है. पर इतिहास लिखने की नज़र से यह पहली पुस्तक मानी जाती है. दूसरा है टेसीयस: ये एक राजवैद थे जो उस वक्त के लीबिया और सीरिया के राजा ज़ेरेक्सेस की हाजिरी बजाते थे. इन्होनें भी भारत फारस सम्बन्ध और व्यापार पर काफी कुछ लिखा है. ये दोनों भारत तो नहीं आये पर भारतीय व्यापार पर आधारित जो छवि वहां पेश की वो आकर्षक थी. नतीजतन ईसापूर्व 515 में फ़ारस के राजा दारा प्रथम ( Dariyus the Great ) ने हमला बोल दिया और सिन्धु नदी के पश्चिमी तट तक कंधार से कराची वाला भूभाग कब्जा लिया. ये पहला 'विदेशी' हमला था. 

सम्पन्नता की ख़बरें और आगे फैलीं तो ग्रीक राजा सिकंदर ने लगभग दो सौ साल बाद इस ओर रूख किया. उसने दारा तृतीय को बुरी तरह से हराया. सिकंदर के साथ भी तीन वरिष्ठ सैन्य अधिकारी थे - निर्याकस, अनेसीक्रटस और आस्टिबुलस. इनकी लिखी रिपोर्टें भी उस समय की महत्वपूर्ण जानकारियाँ देती हैं. सिकंदर और पुरु का युद्ध झेलम नदी के किनारे ईसापूर्व मई 326 में हुआ था. 

मैगस्थनीज़ ( Megasthenes ): सिकन्दर के मरने के बाद जनरल सेल्कयुस प्रथम को सीरिया और ईरान का जनरल बनाया गया. पर जल्दी ही उसने खुद को राजा याने निकेटर घोषित कर दिया. उसके 'सेल्युकिड' साम्राज्य में सीरिया, ईरान और झेलम नदी के पश्चिम तक का बड़ा भूभाग शामिल था. सेल्यूकस ने मैगस्थनीज़ नामक ग्रीक को राजदूत नियुक्त कर के भेजा. मैगस्थनीज़ ईसापूर्व 302 से लेकर ईसापूर्व 298 तक चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में रहा. सम्भवतः उत्तरी भारत पधारने वाला ये पहला विदेशी 'सरकारी' यात्री था. उसने उस समय के भारत के बारे में अपने अनुभव 'इंडिका' नामक किताब में कलम बंद किये. इसमें उस वक़्त का भूगोल, समाज, धर्म और शासन तंत्र का वर्णन किया गया है. इस पुस्तक के कुछ ही अवशेष बचे हैं पर इस पुस्तक के कुछ कुछ अंशों को कई अन्य जगहों पर कोटेशन के तौर पर भी पाया गया है. जोड़ तोड़ करके किताब को पुनर्जीवित कर दिया गया है. नीचे लिखा पैरा मैगास्थनीज़ का है जो डायाडोरस ने अपनी किताब में कोट किया है -    

India which is in shape quadrilateral has its eastern as well western side bounded by great sea, but on the northern side it is divided by Mount Ilemodos while fourth or western is bound by the river called Indus

डाईमेकस ( Deimachos ): सीरिया और पश्चिम एशिया के राजा एन्टीयोकस प्रथम ने ( जो सेल्यूकस प्रथम का बेटा था ), डाईमेकस या डायमेचस को राजदूत बना कर राजा बिन्दुसार के दरबार में पाटलिपुत्र भेजा. यह ईसापूर्व तीसरी सदी की बात है.

डायनोसियस: इसके बाद एन्टीयोकस द्वितीय ने डायनोसियस नामक ग्रीक राजदूत को सम्राट अशोक के दरबार में भेजा. अशोक के शिलालेख - 13 में अन्तियोक नाम से यवन राजा का नाम अंकित किया हुआ है. यह शिलालेख अब शाहबाज़गढ़ी, मानसेहरा, पकिस्तान में है. 

हेलिओडोरस: ईसापूर्व 200 के आसपास तक्षशिला के ग्रीक राजा अन्तियलसिदास ने हेलिओडोरस को अपना राजदूत बना कर विदिशा ( मध्य प्रदेश ) भेजा. उस समय उत्तर भारत में शुंग वंश के पांचवें राजा भागभद्र का राज था. हेलिओडोरस भारत में रहते हुए विष्णु भक्त हो गया. कहा जाता है की वह वापिस ही नहीं गया. विदिशा में उसने एक मंदिर भी बनवाया जिसका अब केवल एक खम्बा या दीप स्तम्भ ही बचा है. ये स्थान भोपाल से 62 किमी दूर है. 

इन राजदूतों की वजह से व्यापार और सामाजिक संपर्क फ़ारस, रोम और ग्रीस तक पहुंचा. दूसरी ओर जब सम्पन्नता की खबर फैली तो हमले भी हुए. 

अगले अंक में कुछ और यात्रियों की चर्चा करेंगे.

साँची का स्तूप. कपड़े, टोपियाँ और वाद्य यंत्र बिलकुल अलग हैं संभवत: ग्रीक हैं  


Saturday, 15 August 2020

पिल्ला

बैंक की नौकरी क्या लगी मनोहर नरूला ने अपना गाँव मोर माजरा छोड़ ही दिया. कहाँ गाँव और कहाँ कनॉट प्लेस! बढ़िया बढ़िया रेस्तरां, सजे हुए शोरूम, बार और सिनेमा के इर्द गिर्द मेला वाह क्या बात है कनॉट प्लेस की.  

मनोहर उर्फ़ मन्नू का दिल करता था चौबीस घंटे ब्रांच के आसपास घूमता ही रहूँ. या फिर गोल गोल बरांडे में खटिया गेर के बैठ जाऊं. गोरे काले हिप्पी और फिरंगी देखता रहूँ. पूरे कॉरिडोर में कॉलेज के लड़के लड़कियां मस्त बतियाते घूमते रहते हैं इनमें से किसी छोरी से बात कर लूँ. पर कैसे?

फिर ख़याल आया की इसका समाधान कपूर साब के पास है. बैंक वाला कुंवारा कपूर चालीस साल का है पर कैसा छैला बाबू बना घूमता रहता है. और लेडीज़ को देखो! वो भी उसी कपूर से बात करती हैं मन्नू से नहीं. फिर सोचा - चल मन्नू राय लेने में क्या हर्ज है? 
- कपूर सा आपके आगे पीछे लेडीज़ रहती हैं पर म्हारे को ना पूछती कोई सी. ये क्या बात है?
- बच्चे मन्नू तुझे क्या परेशानी है इसमें? तू अपना काम कर. 
- आप तो बात की जलेबी बणा दो कपूर सा.
- तो तू चाहता क्या है?
- सलाह दो मुझे तो आप. 
- मुफ्त में?
- बियर पिला दूंगा जी. 
- बोल क्या बात है?  
- तड़के को पार्क में सैर करने जाता हूँ जी. पार्क में एक भली सी लड़की आती है पिल्ला लेकर. वो जो वोडाफोन का पिल्ला टीवी पर आता है उसको लेकर. अब उस से बात कैसे हो? मुझे उस कुत्ते से डर लगे है जाने कैसी शकल है सुसरे की. गाय भैंस तो कैसी भी हो संभाल लूँगा पर यो पिल्ला खतरनाक लगे है.
- हूँ! तू भी झुमरू ही है. वो कुत्ता पग कहलाता है. इतने महंगे कुत्ते को तू पिल्ला बता रहा है? अच्छा, पार्क में जाता है तो  क्या पहनता है और वो क्या पहनती है?
- मैं तो जी कुरता पाजामा पहनता हूँ और वो जीन और रंगीन कुर्ती और खेल के जूते. 
- तेरा तो हुलिया बदलना पड़ेगा. सफ़ेद निक्कर, सफ़ेद टी शर्ट और सफ़ेद जॉगिंग वाले शूज़ ले ले. एक पैकेट पैडिग्री ले ले.
- ये कौन सी डिग्री है जी?
- चुप यार. ये कुत्ते के बिस्कुट हैं. पैकेट में से दो-चार छोटे पीस निकाल कर हाफ पैंट की जेब में रख लेना. पहले कुत्ते को हेल्लो बोलना - हेल्लो डोग्गी! फिर लड़की को बोलना - हेल्लो! और उस लड़की से डोग्गी का नाम पूछना. उसके बाद लड़की का नाम पूछना. याद रखना कुत्ते को कुत्ता नहीं बोलना है डोग्गी बोलना है और बोलना है - कितना क्यूट है! पुरानी कहावत सुनी है ना - लैला प्यारी लैला का पिल्ला प्यारा! चल अब दूसरी बियर मंगा ले. 

सफ़ेद निक्कर, सफ़ेद टी और सफ़ेद जूते पहन कर जब मन्नू जी सुबह पार्क में पहुंचे तो अपने आप को मॉडर्न और स्मार्ट समझने लगे. दाहिनी जेब थपथपाई तो उसमें पिल्ले के लिए चुग्गा दाना भी मौजूद था. आश्वस्त हो कर सोचा क्यूँ ना दस मिनट जॉगिंग ही कर ली जाए. दाएं बाएं नज़र मारी तो छोरी अभी आई नहीं थी. नज़र गेट पर ही टिकी थी. जैसे ही लैला पिल्ले के साथ अंदर आती दिखी, मन्नू ने हल्के हल्के क़दमों से उसकी तरफ दौड़ना शुरू कर दिया. इधर दिल ने भी धक् धक् करना शुरू कर दिया. जैसे ही छोरी नज़दीक आने को थी पिल्ले ने मन्नू पर भौंकते हुए हमला बोल दिया. मन्नू हड़बड़ा कर गिर पड़ा.      

पिल्ला मन्नू पर कूद पड़ा. शरीर के पास आते ही शायद उसे डोग्गी बिस्कुट की खुशबू आ गई. अब उसने जेब पर पंजे और दांत मारने शुरू कर दिए. तब तक छोरी ने जंजीर पकड़ ली और पिल्ले को वापिस खींचने लगी.
- ब्रूनो! ब्रूनो! इडियट कम हियर कम हियर!
ब्रूनो चेन के एक दो झटके खा के वापिस लड़की के पास आ गया. मन्नू को ज्यादा नुक्सान नहीं हुआ. बस निक्कर पर मामूली सी खरोंचें और दांत के निशान आ गए थे. और कोहनी पर एक-आध खरोंच गिरने से आ गई. मन्नू मन ही मन बोले,
- स्साले ब्रूनो आज तेरा तो मैं कर देता खूनो और कपूर को करता चकनाचूर
तब तक लड़की बोल पड़ी,
- आपको लगी तो नहीं? चलिए अभी फर्स्ट ऐड कर देती हूँ. घर पास में ही है वो रहा सामने.
आवाज़ सुन कर मन्नू की बेचैनी दूर हुई. घर पहुंचे तो पापा ने डेटोल लगा दी और बोले,
- मनोहर जी ब्रूनो को इंजेक्शन लगे हुए हैं कोई चिंता की बात नहीं है. वैसे भी सिर्फ निक्कर पर ही निशाँ हैं. सॉरी आपको परेशानी हुई. ये बिटिया का शौक है ब्रूनो. आपके पास भी डोग्गी है क्या?
मन्नू इस सवाल से पहले तो हड़बड़ा गया फिर संभल कर बोला,
- जी गाँव में है ना. उसका नाम का‌लू है!    
लड़की बड़ी जोर से हंसी.
- मेरी जेब में डोग्गी का ब्रेकफास्ट भी पड़ा है. ब्रूनो को यहाँ लाइए.
- ओहो इसीलिए ब्रूनो आपकी जेब की तरफ लपका था. आप उसे पेडेग्री पहले ही दे देते तो ये पंगा ही नहीं होता. 
ब्रूनो ने शौक से मन्नू के ब्रेकफास्ट का आनंद लिया. मन्नु और ब्रूनो की दोस्ती हो गई.
- तो आप क्या करते हैं मन्नू जी? बिटिया के पापा ने पूछा.
- जी मैं फलाने बैंक में हूँ.
- वाह वा! और मैं अलाने बैंक में हूँ!

सोफे पर पीठ लगाए और पैर फैलाए मन्नू को पता नहीं चला की लड़की के पापा क्या क्या बोल रहे हैं. ब्रूनो भी कब पैर के पास आकर बैठ गया पता नहीं. लड़की ने चाय का जो प्याला पकड़ाया तो मन्नू जी तो उसी में ही डूब गए. 
मेरा ब्रूनो 



Saturday, 8 August 2020

घंटी

जनरल मैनेजर गोयल साब बैंक से रिटायर हो चुके थे. इस ख़ुशी में पार्टियां दे भी दी और पार्टियां ले भी लीं. अब किसी तरह की नौकरी करने का कतई मन नहीं था. दोनों बच्चे अमरीका चले गए और अब क्या कमाना. पेंशन के मज़े ले रहे हैं. सुबह अखबार के पन्ने उलट पुलट कर रहे थे तभी घंटी बजी. कॉलोनी की सुधार समिति के प्रधान जी दो साथियों के साथ आ गए. 
- नमस्कार जी. गोयल साब कैसे दिन कट रहे हैं? 
- मजे में हैं भई. कभी कभी देश विदेश घूम लेते हैं और कहीं ना जाना हो तो मैगज़ीन अखबार पढ़ लेते हैं. दोस्तों यारों से मोबाइल पर गप्पें मार लेते हैं. 
- बहुत बढ़िया है जी. बहुत बढ़िया. बच्चे सेटल हो जाएं तो बड़ा सुकून रहता है. नौकरी में तो आप व्यस्त रहते होंगे. पर अब तो समय है तो कभी कुछ समाज सेवा की भी इच्छा हुई गोयल साब? बैंक में भी सी एस आर चलता ही होगा?
- कैसी समाज सेवा प्रधान जी? वैसे तो हमारे क्लब में चलती रहती है. बैंक में भी चलती थी. कभी पेड़ लगवा दिए, कभी किसी स्कूल में कंप्यूटर लगवाए, सफाई अभियान, या गेम्स कराने का कार्यक्रम चलता रहता था. 
- हम तो सर इस कॉलोनी में आपका सहयोग चाहते हैं. चाहें तो आप प्रेसिडेंट या सेक्रेटरी की पोस्ट ले लें. आपके आने से एक बड़ा फायदा होगा की हमारी चिठ्ठी पत्री बेहतर हो जाएगी. कभी कमिश्नर को, कभी लोकल अखबार में या कभी थाने वगैरह में चिट्ठी पत्री भेजनी हो तो आलस आ जाता है. पर ये काम आप बढ़िया ढंग से कर लोगे. बाकी तो हम हैं ही. कॉलोनी की बिजली, पानी या सफाई हमारे जिम्मे रहेगी. आपकी लिखी चिठ्ठी में ज्यादा वजन होगा.
- वजन तो इनका पहले से ही ज्यादा है भाई साब, मिसेज़ गोयल ने चाय रखते हुए कहा. 
- हें हें हें भाभी सा भी खूब मज़ाक करती हैं, प्रधान जी बोले.
   
पर तब तक गोयल सा मन ही मन देख रहे थे की वे खुद ऊँची कुर्सी पर बैठे हैं और कॉलोनी की सारी जनता उन्हें सुन रही है और तालियां बजा बजा कर दाद दे रही है. उन्हें लगा की प्रेसिडेंट बनने से उनका नाम होगा. क्या पता कल को एम एल ए या एम पी बनने का चांस मिल जाए? ये सोच के उन्होंने सहमति दे दी. पर उनके जाने के बाद मिसेज़ गोयल ने चेतावनी दे दी,
- छोड़ो जी आप इनकी बातों में ना आओ. हम लोगों को ये काम सूट नहीं करता. 

पर साब ने मन बना लिया था. अगले दिन ही समिति के ऑफिस में जाकर फ़ाइल वगैरा ठीक ठाक कीं, चार चिट्ठियाँ ईमेल कर दीं, नया शिकायत रजिस्टर बनवाया और सभी महकमों के नंबर अपने मोबाइल से खोजकर रजिस्टर में नोट कर दिए. सभी पदाधिकारियों को बात पसंद आई और साब ने वाह वाह लूटी. और अब तो रोज ही मोबाइल या फोन या घर की घंटी बज जाती है - साब ज़रा दस मिनट के लिए आ जाएं!

एक दिन सुबह फोन की घंटी बजी तो साब बाथरूम में थे. मिसेज़ गोयल ने जवाब दे दिया. दस मिनट बाद फिर गेट की घंटी बजी तो मिसेज़ गोयल ने कहा,
- वो बाथरूम में हैं.
- पहले भी आपने कहा था की बाथरूम में हैं? कितनी देर लगाते हैं गोयल साब बाथरूम में?
- क्या? आप कौन?
- सूद.
- जब बाहर आएँगे मैं बात करा दूंगी, बैठना है तो बैठ जाएं. 
- जी नहीं मैं जा रहा हूँ.
साब को मैडम ने सारी बात बताई और बोली - ये कैसा आदमी है सूद? ये कैसे कैसे लोग आते हैं परधान जी!
- हूँ! 

एक बार दोनों ब्रेकफास्ट करने बैठे ही थे गेट की घंटी बजी. बाहर देखा तो मेहरा जी गुस्से में खड़े थे. मैडम बोली,
- आप ही जाओ मेहरा जी बड़े गुस्से में लग रहे हैं.
गोयल साब ने अंदर आने को कहा तो जवाब मिला,
- मैं नहीं अंदर आ रहा गोयल साब. आप बाहर आइये जल्दी से. आपने जो चिट्ठी लिखी थी उसकी वजह से कुत्ते पकड़ने वाली गाड़ी आ गई है. बताइये मेरा टॉमी को भी पकड़ कर गाड़ी में डाल दिया है. उसका पट्टा भी नहीं देखा. छुड़वाने गया तो बोलते हैं प्रधान जी को बुलाओ. वो कहेंगे तब छोड़ेंगे. नगर निगम की गाड़ी मेरे बेटे ने गेट पर रोकी हुई है. आप तुरंत चलो!
मैडम बोली, 
- जाओ परधान जी पहले कुत्ता बचाओ. ब्रेकफास्ट जरूरी नहीं है फिर कभी कर लेना.
- हूँ! 

एक दिन शाम को सात बजे घंटी बजी. 
- प्रेसिडेंट साब घर पर हैं?
- जी हैं बुलाती हूँ.
- कहिये? गोयल साब ने पूछा.
- सर वो एटीएम से पैसे निकाले थे. दो दो हज़ार के पांच नोट निकले. मैंने सोचा आपके पास सौ सौ के होंगे? आप तो बैंक में रहे हैं ना.
- देखता हूँ कितने हैं. ये लीजिये चार हज़ार हैं.
- थैंक यू थैंक यू. मेरा काम बन गया प्रधान जी.

अब परधान जी के प्रति मैडम की तल्खी बढ़ रही थी. वो बोली - उसका काम तो बन गया मेरा बिगड़ गया. अब आप कल सुबह सुबह मुझे चिल्लर ला कर देना परधान जी.
- हूँ!

एक शाम तो गजब हो गया. रात के पौने दस बजे गेट का गार्ड भागता हुआ आया,
- परधान जी गेट पर दो गार्ड आपस में गुत्थम गुत्था हो रे. एक दूसरे पर डंडे चला रहे जी. एक के तो खून बह रहा है. आप जल्दी आ जाओ.
गोयल साब जल्दी से तैयार हुए, कुछ लोगों को मोबाइल से बुलाया और जाकर सुलह सफाई कराई. घर वापिस पहुँच कर घंटी बजाई तो ग्यारह बज रहे थे. बड़े बेमन से और गुस्से में मिसेज़ गोयल ने दरवाज़ा खोला,
- आ गए परधान जी? आइये! बड़े बड़े केस सुलझा रहे हो रात के ग्यारह बजे. एक ये भी सुलझा देना. अभी इसी वक़्त एक डंडा मैं भी चलाती हूँ.

ये कह कर मैडम बाथरूम से वाइपर ले आई. पूरी ताकत से काल बेल पर वाइपर मार दिया. घंटी बेचारी नीचे लटक गई पर मैडम का गुस्सा शांत नहीं हुआ. दुबारा, तिबारा वाइपर मारा तो घंटी फर्श पर गिर पड़ी. अभी भी गुस्सा कम नहीं हुआ तो गिरी हुई घंटी पर फिर वाइपर मारा.

- बोलो परधान जी! इस्तीफ़ा देते हो या नहीं?
बज गई घंटी 

  

Saturday, 1 August 2020

बगीचा

बैंक से रिटायर हुए गोयल सा को तीन महीने हो गए था. वजन पहले ही ज्यादा था अब मशीन में चेक करते हैं तो पता लग रहा है की और बढ़ रहा है. बकौल पत्नी के 'सारा दिन खाते रहते हो और बिस्तर पर पड़े टीवी देखते रहते हो तो वजन कैसे घटेगा?' इस तरह के शब्द चुभते थे इसलिए बड़ी हिम्मत करके सात बजे उठ कर, तैयार हो कर पार्क की तरफ सैर करने निकले. पर तब तक दोस्त यार सैर कर के वापिस आ रहे थे. सारे खिंचाई करने लगे, 
- अरे मियां ज़रा जल्दी उठा करें. सूरज सर पर आ गया है.
- सोने दो यार गोयल साब को आराम बड़ी चीज़ है! 
- भाभी ने हाथ पकड़ लिया होगा साब का?
- अरे किसी ने जूते छुपा दिए होंगे क्यूँ गोयल? 

गोयल सा कन्नी काट गए. सुबह सुबह कौन भिड़े इन कमबख्तों से! पर दिल से आवाज़ आ रही थी गोयल कुछ कर ले सेहत के लिए. सुबह जल्दी उठा नहीं जाता, दिन में कोई काम नहीं है इसलिए नींद आती रहती है और शाम की बियर तो बंद नहीं हो सकती. क्या किया जाए? उधेड़बुन में शाम हो गई और बियर खुल गई. दो घूंट मारे और दिमाग की बत्ती जल उठी और प्लान तैयार हो गया.

सुबह नाश्ते की टेबल पर गोयल सा ने नए प्लान की घोषणा कर दी,
- देखो ये सामने जो जगह है ना जिसमें तुमने आलतू फ़ालतू पौधे और गमले लगा रखे हैं सब हटवा दो. मेरी प्लान के मुताबिक यहाँ सब्जियां लगेंगी. और वो भी आर्गेनिक.
- लो आपके दिमाग में ये क्या नई लहर आ गई? गमले क्यूँ हटाने हैं? हैं? पैसे लगे हैं उन पे सुंदर सुंदर फूल निकलते हैं. कमाल है आज तक तो कभी इस बगीची की तरफ नज़र भी नहीं डाली अब खेती बाड़ी याद आ गई.
- नहीं नहीं हमें अच्छी ताज़ी आर्गेनिक सब्जियां खानी चाहिए. और देश को भी आर्गेनिक चीज़ों की ज़रुरत है. 
- ओहो परिवार की तरफ तो कभी देखा नहीं और अब देश याद आ गया. वाह मुझे नहीं हटाने गमले. 
- देखो जगह तो तुम्हें देनी ही पड़ेगी. मैं आज पूसा रिसर्च में  जाता हूँ बढ़िया बीज और एक ट्रेंड माली लाता हूँ.

लम्बी बहस के बाद पचास फुट के बगीचे का बँटवारा हो गया. बाईं बगीची साब के नाम हो गई और दाईं बगीची मेमसाब के गमलों के लिए छोड़ दी गई. एक माली इधर सब्जी वाला एक उधर फूल वाला. सब्जी वाला नया माली आया तो खेत का साइज़ देख कर हंसा फिर बोला, 
- साब इतने बड़े खेत में क्या लगाऊं और क्या ना लगाऊं?  इसमें लौकी की बेल लगा देता हूँ वो ऊपर रेलिंग पर चली जाएगी और बची हुई जमीन पर कुछ मिर्चें लगा देता हूँ?
- बिलकुल बिलकुल, गोयल सा बोले.      

लौकी की बेल ने बारिश होते ही रफ़्तार पकड़ ली. बहुत जल्दी पहले माले पर पहुँच गई. सारी रेलिंग पर छा गई. देखते देखते नन्हीं सी लौकी भी निकल आई. गोयल सा फुटा ले कर रोज सुबह लौकी की लम्बाई नापते और लौकी का गुणगान करते, 
- 6 इंच, क्या बात है 12 इंच, वाह अब गोल हो रही है. क्या कुदरती रंग है! ओहो 16 इंच! देखो बेल में कितने फूल आ गए हैं.
- इसे तोड़ लो मैं सब्जी बना देती हूँ.
- नहीं नहीं अभी बढ़ने दो. बियर की बोतल जितनी होने दो फिर तोड़ेंगे तब तक दूसरी भी बढ़ जाएगी फिर तीसरी .....
- तुम तो नौकरी में ही ठीक थे!

सुबह सुबह श्रीमती ने उठा दिया,
- उठो जी जल्दी उठो. तुम्हारी लौकी तो गई. दोनों लौकियां गईं.
साब हड़बड़ा कर उठे और बगीचे की तरफ लपके. देखा तो बेल नीचे बिखरी पड़ी है दो गमले भी टूटे पड़े हैं और मिर्च के पौधे तहस नहस हो चुके हैं. चारों तरफ देखा कोई भी नहीं है. गुस्से और खीझ में बोले,
- स्साले को छोडूंगा नहीं.
- किसे पकड़ोगे? अरे लौकी तो गई चोर की हंडिया में. अब शान्त हो जाओ. शोर मत करो अब कोई नहीं पकड़ में आएगा.
-हुंह!
जब दोस्त लोगों के पास खबर पहुंची तो सारे मातम मनाने आ गए.
- ये बड़ा बुरा हुआ. चोरी करना अच्छी बात नहीं है. मांग के ले लेता गोयल साब ने मना थोड़े ही करना था?
- मैं तो कहता हूँ गोयल साब पुलिस को रिपोर्ट कर दो. उनके पास खोजी कुत्ते होते हैं वो चोर को ढूंढ निकालेंगे. यहीं का तो है कोई.
- अरे नहीं यार. ये तो पुरानी कहावत है की 'बोए कोई खाए कोई'. कोई बात नहीं दिल छोटा ना करें जी. गई तो गई.
- भई गोयल जी सीसी टीवी तो लगवा ही लो. लो हम तो बातों में लगे हैं भाभी सा तो चाय भी ले आईं. बहुत बहुत शुक्रिया भाभी सा.

इधर चाय चल रही थी उधर भाभी सा ने छूरी लेकर लौकी की बेल का तना ही काट दिया. ना रहा बांस ना बजेगी बांसुरी. 
लौकी की बेल