- हेल्लो कौन?
- नमस्ते भाईसाहब आप ठीक हैं? मैं कह रहा था सन्डे सुबह नौ बजे घर पर हवन करा रहे हैं भाभी जी को लेते आना.
- कोई खुशखबरी?
- नहीं भाईसाहब ये आपका चहेता भतीजा मानता ही नहीं वरना खुशखबरी में देर नहीं है. अच्छी नौकरी लगी हुई है, पन्द्रा लाख का पैकेज है, तीस साल की उम्र हो गई है पर दिमाग में क्या फितूर है पता नहीं. हम बोलें तो शादी के लिए मना कर देता है और वैसे शनिवार को कोई ऑफिस की लड़की को लेकर आ गया. सुधा बड़ी खुश हो गई पर गिरीश कहने लगा कोई चक्कर नहीं है वो तो इसे बाज़ार से मोबाइल खरीदवाने के लिए साथ गया था. पिछले महीने किसी दूसरी को इसने मोबाइल दिलवाया था. इस बार तो सुधा जनम पत्री लेकर पंडित जी के पास चली गई बस पंडित जी ने कुछ मशवरा दिया और इसीलिए कल हवन है.
- हाहाहा! याने हवन का धुआं जैसे ही गिरीश के दिमाग में जाएगा वो शादी के लिए 'हाँ हाँ' करने लगेगा. बोलेगा 'जल्दी मेरी शादी करो!' अरे यार किस चक्कर में उलझे हो? पत्रा पत्री अब कौन देख रहा है? आजकल शादी की उमर 35 तक जा पहुंची है और तुम अभी पंडितों के चक्कर में पड़े हो. एनी-वे हम लोग पहुँच जाएंगे.
जब हम भाई के घर पहुंचे तो पंडित जी हवन का सामान सजा रहे थे. मेहमान आने थे 15 पहुंचे थे केवल दो. नौ बजे का कार्यक्रम पौने दस बजे शुरू हुआ. मेहमान आते, गंभीरता से हाथ जोड़ कर नमस्ते करते और महिलाएं एक तरफ और पुरुष एक तरफ बैठते जाते. महिलाएं बेहतर कपड़ों और जेवरों से सजी हुई और पुरुष लापरवाही से पहनी हुई जीन और कुरते पाजामों में. इन दोनों वर्गों के बीच दरी पर एक पगडण्डी बन गई थी. यूँ लग रहा था की महिलाएं सत्ता पक्ष में हैं और पुरुष पगडण्डी के दूसरी तरफ कमजोर विरोधी पक्ष में.
इधर पंडित जी ने गिरीश और उसके मम्मी डैडी के हाथों में पानी डाला और उच्चारण शुरू कर दिया - ॐ केशवाय नम:, ॐ नारायणाय नम: ... उधर बड़ी मामी ने छोटी मामी के कान में धीरे से पूछा,
- बड़ा सुंदर पेंडल है पहले नहीं देखा? कब लिया?
- अभी दिवाली में तो लिया था. अच्छा लगा? इन्होंने कुछ शेयर बेचे थे मेरे अकाउंट में बस मैं अड़ गई की कुछ लेना है.
- हाँ ऐसे ही चीज़ बनती है वरना आदमियों को तो अपने आप ख़याल आता ही नहीं है. बहुत अच्छा किया.
जब हवन कुंड में से धुंआ निकलने लगा तो आँखों में लगने लगा. लोग थोड़ा बहुत कसमसाने लगे. चाचाजी ने ताऊजी को इशारा किया और दोनों बाहर निकल लिए. चाचाजी बोले,
- यार ये धुआं ना आँखों को तंग करता है. बाई द वे ये हवन है किसलिए?
- अरे यार हवन है इसमें तो बैठ जाया कर बेचैन आत्मा. दो अक्खर कान में पड़ गए तो कोई हर्ज नहीं. खैर कोई मन्नत शन्नत मांगी होगी इन्होंने मुझे नहीं पता. तू बता तेरा शेयर बाज़ार कैसा रहा? दिवाली में कुछ प्राप्ति हुई के नहीं?
- दिवाली ठीक रही भाईसाहब कमाई हो गई थी.
हवन के धुंए से छोटी मौसी की आँखों में पानी आने लगा तो उन्होंने बड़ी मौसी को हिलाकर बताया की मैं बाहर जा रही हूँ. बड़ी मौसी भी पीछे पीछे बाहर आ गई और बोली,
- तेरे बच्चे भी नहीं आये?
- कहाँ आते हैं बच्चे ऐसे कामों में? किसी को पढ़ने जाना है तो किसी ने खेलने जाना है. दोनों को बोल आई हूँ कि खाने के वक़्त जरूर आ जाना और पिज़्ज़ा विज्ज़ा मत मंगवाना.
- सच ज़रा सा खाना मनपसंद ना हो बाज़ार से मंगाने के लिए तैयार रहते हैं. अमरीका में ये सब घट रहा है और यहाँ बढ़ रहा है. और सब ठीक है ना?
खाना शुरू हो गया तो हमने भी अपनी प्लेट लगाई और गिरीश को पकड़ा,
- अरे तुझे अक्कल दिलाने के लिए हवन हो रहा है क्या?
- हाहाहा! अंकल ये मम्मी के काम हैं. आप उन्हीं से पूछो.
- अरे तू मुझे बता तेरा चक्कर क्या है.
- अंकल मम्मी की कज़न की एक लड़की है पर वो मुझे पसंद नहीं है. जब मम्मी ज्यादा शोर मचाती है तो मैं कोई ऑफिस की लड़की पकड़ कर ले आता हूँ थोड़े दिन शांति हो जाती है. पर अब तो शान्ति के लिए हवन भी शुरू हो गया है!
- तो तेरी पसंद कौन सी है? वो बता दे मम्मी को? पापा को पता है?
- अंकल जी ज़रा सी सांवली है साउथ की है ना और चश्मिश है मम्मी को बताने से से डर लगता है.
- तो पापा को बोल. चश्मा लगाती है तो क्या हुआ अब तो तेरे मम्मी पापा दोनों चश्मिश हैं.
- पापा को क्या बोलूं उन्हें भी तो मम्मी से डर लगता है! शोर मचेगा और मम्मी अपनी चॉइस की घंटों तारीफ़ करती रहेंगी.
- अरे तेरी मम्मी को समझाता हूँ मैं कि साउथ की शादियों में सौ दो सौ ग्राम सोना नहीं मिलता बल्कि किलो दो किलो मिलता है. फिर देख मज़ा!
- अंकल मरवा दोगे आप.
- ओ तू फिकरनॉट. अब वहां से मिले ना मिले तू तो इकठ्ठा करना शुरू कर दे. तेरा पन्द्रा लाख का पैकेज कब काम आएगा? हैं? किसी सन्डे को लड़की और उसके मम्मी पापा और तू और तेरे मम्मी पापा सब को लेकर आजा हमारे घर. अब हम हवन करेंगे!
- नमस्ते भाईसाहब आप ठीक हैं? मैं कह रहा था सन्डे सुबह नौ बजे घर पर हवन करा रहे हैं भाभी जी को लेते आना.
- कोई खुशखबरी?
- नहीं भाईसाहब ये आपका चहेता भतीजा मानता ही नहीं वरना खुशखबरी में देर नहीं है. अच्छी नौकरी लगी हुई है, पन्द्रा लाख का पैकेज है, तीस साल की उम्र हो गई है पर दिमाग में क्या फितूर है पता नहीं. हम बोलें तो शादी के लिए मना कर देता है और वैसे शनिवार को कोई ऑफिस की लड़की को लेकर आ गया. सुधा बड़ी खुश हो गई पर गिरीश कहने लगा कोई चक्कर नहीं है वो तो इसे बाज़ार से मोबाइल खरीदवाने के लिए साथ गया था. पिछले महीने किसी दूसरी को इसने मोबाइल दिलवाया था. इस बार तो सुधा जनम पत्री लेकर पंडित जी के पास चली गई बस पंडित जी ने कुछ मशवरा दिया और इसीलिए कल हवन है.
- हाहाहा! याने हवन का धुआं जैसे ही गिरीश के दिमाग में जाएगा वो शादी के लिए 'हाँ हाँ' करने लगेगा. बोलेगा 'जल्दी मेरी शादी करो!' अरे यार किस चक्कर में उलझे हो? पत्रा पत्री अब कौन देख रहा है? आजकल शादी की उमर 35 तक जा पहुंची है और तुम अभी पंडितों के चक्कर में पड़े हो. एनी-वे हम लोग पहुँच जाएंगे.
जब हम भाई के घर पहुंचे तो पंडित जी हवन का सामान सजा रहे थे. मेहमान आने थे 15 पहुंचे थे केवल दो. नौ बजे का कार्यक्रम पौने दस बजे शुरू हुआ. मेहमान आते, गंभीरता से हाथ जोड़ कर नमस्ते करते और महिलाएं एक तरफ और पुरुष एक तरफ बैठते जाते. महिलाएं बेहतर कपड़ों और जेवरों से सजी हुई और पुरुष लापरवाही से पहनी हुई जीन और कुरते पाजामों में. इन दोनों वर्गों के बीच दरी पर एक पगडण्डी बन गई थी. यूँ लग रहा था की महिलाएं सत्ता पक्ष में हैं और पुरुष पगडण्डी के दूसरी तरफ कमजोर विरोधी पक्ष में.
इधर पंडित जी ने गिरीश और उसके मम्मी डैडी के हाथों में पानी डाला और उच्चारण शुरू कर दिया - ॐ केशवाय नम:, ॐ नारायणाय नम: ... उधर बड़ी मामी ने छोटी मामी के कान में धीरे से पूछा,
- बड़ा सुंदर पेंडल है पहले नहीं देखा? कब लिया?
- अभी दिवाली में तो लिया था. अच्छा लगा? इन्होंने कुछ शेयर बेचे थे मेरे अकाउंट में बस मैं अड़ गई की कुछ लेना है.
- हाँ ऐसे ही चीज़ बनती है वरना आदमियों को तो अपने आप ख़याल आता ही नहीं है. बहुत अच्छा किया.
जब हवन कुंड में से धुंआ निकलने लगा तो आँखों में लगने लगा. लोग थोड़ा बहुत कसमसाने लगे. चाचाजी ने ताऊजी को इशारा किया और दोनों बाहर निकल लिए. चाचाजी बोले,
- यार ये धुआं ना आँखों को तंग करता है. बाई द वे ये हवन है किसलिए?
- अरे यार हवन है इसमें तो बैठ जाया कर बेचैन आत्मा. दो अक्खर कान में पड़ गए तो कोई हर्ज नहीं. खैर कोई मन्नत शन्नत मांगी होगी इन्होंने मुझे नहीं पता. तू बता तेरा शेयर बाज़ार कैसा रहा? दिवाली में कुछ प्राप्ति हुई के नहीं?
- दिवाली ठीक रही भाईसाहब कमाई हो गई थी.
हवन के धुंए से छोटी मौसी की आँखों में पानी आने लगा तो उन्होंने बड़ी मौसी को हिलाकर बताया की मैं बाहर जा रही हूँ. बड़ी मौसी भी पीछे पीछे बाहर आ गई और बोली,
- तेरे बच्चे भी नहीं आये?
- कहाँ आते हैं बच्चे ऐसे कामों में? किसी को पढ़ने जाना है तो किसी ने खेलने जाना है. दोनों को बोल आई हूँ कि खाने के वक़्त जरूर आ जाना और पिज़्ज़ा विज्ज़ा मत मंगवाना.
- सच ज़रा सा खाना मनपसंद ना हो बाज़ार से मंगाने के लिए तैयार रहते हैं. अमरीका में ये सब घट रहा है और यहाँ बढ़ रहा है. और सब ठीक है ना?
खाना शुरू हो गया तो हमने भी अपनी प्लेट लगाई और गिरीश को पकड़ा,
- अरे तुझे अक्कल दिलाने के लिए हवन हो रहा है क्या?
- हाहाहा! अंकल ये मम्मी के काम हैं. आप उन्हीं से पूछो.
- अरे तू मुझे बता तेरा चक्कर क्या है.
- अंकल मम्मी की कज़न की एक लड़की है पर वो मुझे पसंद नहीं है. जब मम्मी ज्यादा शोर मचाती है तो मैं कोई ऑफिस की लड़की पकड़ कर ले आता हूँ थोड़े दिन शांति हो जाती है. पर अब तो शान्ति के लिए हवन भी शुरू हो गया है!
- तो तेरी पसंद कौन सी है? वो बता दे मम्मी को? पापा को पता है?
- अंकल जी ज़रा सी सांवली है साउथ की है ना और चश्मिश है मम्मी को बताने से से डर लगता है.
- तो पापा को बोल. चश्मा लगाती है तो क्या हुआ अब तो तेरे मम्मी पापा दोनों चश्मिश हैं.
- पापा को क्या बोलूं उन्हें भी तो मम्मी से डर लगता है! शोर मचेगा और मम्मी अपनी चॉइस की घंटों तारीफ़ करती रहेंगी.
- अरे तेरी मम्मी को समझाता हूँ मैं कि साउथ की शादियों में सौ दो सौ ग्राम सोना नहीं मिलता बल्कि किलो दो किलो मिलता है. फिर देख मज़ा!
- अंकल मरवा दोगे आप.
- ओ तू फिकरनॉट. अब वहां से मिले ना मिले तू तो इकठ्ठा करना शुरू कर दे. तेरा पन्द्रा लाख का पैकेज कब काम आएगा? हैं? किसी सन्डे को लड़की और उसके मम्मी पापा और तू और तेरे मम्मी पापा सब को लेकर आजा हमारे घर. अब हम हवन करेंगे!
हवन की तैयारी |
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https://jogharshwardhan.blogspot.com/2017/08/blog-post.html
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