थार रेगिस्तान में बसा बीकानेर शहर जयपुर से 330 किमी और दिल्ली से 435 किमी दूर है. शहर की समुद्र तल से उंचाई लगभग 242 मीटर है. शहर में एयर पोर्ट भी हैऔर रेल भी और कई राजमार्ग भी यहाँ मिलते हैं इसलिए यात्रा करने में कठिनाई नहीं है. शहर में हर बजट के होटल उपलब्ध हैं. बीकानेर जिले की सीमा पंजाब, हरयाणा के अलावा पाकिस्तान से भी मिली हुई है.
रेगिस्तान में बसा होने के कारण वार्षिक सामान्य तापमान में काफी फर्क रहता है. गर्मी में पारा 50 तक और सर्दी में 4 डिग्री तक नीचे आ सकता है. बारिश कम होती है इसलिए खेती भी कम है. पर फिर भी इतने बड़े किले, महल और विलासिता थी. इस बारे में काफी पूछताछ की तो पता लगा की थार रेगिस्तान का ये शहर 'सिल्क रूट' पर था. ऊँटों के कारवाँ मध्य एशिया और खाड़ी के देशों से व्यापार करने आते और यहाँ टैक्स देते थे. व्यापार में सिल्क, सोने चाँदी के जेवर और अफीम भी शामिल थी. अफीम अब भी सरकारी दुकानों में यहाँ मिलती है. ऐसा सुना कि पार्टी शार्टी में थोड़ी बहुत आजकल भी चलती है. अफीम के बारे में राजस्थानी कहावत है,
ले रत्ती तो देस मत्ती,
ले मासो तो टाळे पासो,
ले तोलो तो घर घर डोलो!
याने रत्ती भर लोगे तो दिमाग ठीक रहेगा, मासे जितनी लोगे तो बदन दर्द ठीक हो जाएगा और अगर तोले जितनी किसी ने ली तो गलियों में भटकता फिरेगा!
बीकानेर शहर की स्थापना राठोड़ वंशी राजा राव बीका ने 1488 में की थी. उस से पहले यह इलाका जांगलदेश या जांगलू कहलाता था और आबादी नाम मात्र की थी. धीरे धीरे राव बिका ने आसपास का इलाका जीत कर बीकानेर राज की स्थापना की. शहर का स्थापना दिवस अक्षय तृतीय के दिन मनाया जाता है. बीकानेर राज के छठे राजा राव राय सिंह( 1571 - 1611) के समय बीकानेर का नाम ज्यादा प्रसिद्द हुआ. राव राय सिंह अकबर और जहाँगीर के दरबार में ऊँचे ओहदे पर रहे और उन्हें बहुत सी जागीरें इनाम में मिली. इन जागीरों की आमदनी से जूनागढ़ किले का निर्माण 17 फरवरी 1589 के दिन शुरू कराया गया जो 17 जनवरी 1594 को समाप्त हुआ.
किला 5.28 हेक्टेयर में फैला हुआ है और किसी पहाड़ी पर ना होकर जमीन पर ही है. ज्यादातर लाल बालू पत्थर और संगमरमर का बना हुआ है. किले की दीवारों की लम्बाई लगभग 1078 गज है. दीवारें 40 फीट ऊँची और करीब 15 फीट चौड़ी हैं. किले की बाहरी दीवारों के साथ साथ 30 फीट चौड़ी झील भी हुआ करती थी जो अब नहीं नज़र आती. किले में समय समय पर आने वाले राजाओं द्वारा कुछ ना कुछ बनता रहा. ये राजा हैं:
करन सिंह का राज 1631 - 1639 तक रहा और उन्होंने करन महल बनवाया.
अनूप सिंह का राज 1669 - 1698 तक रहा और उन्होंने ज़नानखाना और दीवाने आम 'अनूप महल' बनवाया.
गज सिंह ने 1746 - 1787 तक राज किया और चन्द्र महल बनवाया.
सूरत सिंह ने 1787 - 1828 ने कांच और पेंटिंग के काम करवाए.
डूंगर सिंह ने 1872 - 1887 के दौरान राज किया और बादल महल बनवाया.
गंगा सिंह ने 1887 - 1943 तक राज किया और गंगा निवास महल बनवाया.
राव गंगा सिंह ब्रिटिश राज में नाईट कमांडर रहे और जिस हॉल में अपने राजकाल की स्वर्ण जयंती मनाई उसमें अब संग्रहालय है. उन्होंने एक लालगढ़ महल भी बनवाया जिसमें वे 1902 में शिफ्ट हो गए. उनके पुत्र सदूल सिंह के समय बीकानेर राज का 1949 में भारत में विलय हो गया.
किला और अंदर के महल बहुत सुंदर है और संग्रहालय पुराने हथियार, पालकियों और शाही कपड़ों से भरा हुआ है. आप चाहें तो घंटों बिता सकते हैं. कुछ चित्र पहले भाग में प्रकाशित किये गए थे उन्हें इस लिंक पर देखा जा सकता है:
http://jogharshwardhan.blogspot.com/2017/08/1-2.html
प्रस्तुत हैं कुछ और फोटो :
रेगिस्तान में बसा होने के कारण वार्षिक सामान्य तापमान में काफी फर्क रहता है. गर्मी में पारा 50 तक और सर्दी में 4 डिग्री तक नीचे आ सकता है. बारिश कम होती है इसलिए खेती भी कम है. पर फिर भी इतने बड़े किले, महल और विलासिता थी. इस बारे में काफी पूछताछ की तो पता लगा की थार रेगिस्तान का ये शहर 'सिल्क रूट' पर था. ऊँटों के कारवाँ मध्य एशिया और खाड़ी के देशों से व्यापार करने आते और यहाँ टैक्स देते थे. व्यापार में सिल्क, सोने चाँदी के जेवर और अफीम भी शामिल थी. अफीम अब भी सरकारी दुकानों में यहाँ मिलती है. ऐसा सुना कि पार्टी शार्टी में थोड़ी बहुत आजकल भी चलती है. अफीम के बारे में राजस्थानी कहावत है,
ले रत्ती तो देस मत्ती,
ले मासो तो टाळे पासो,
ले तोलो तो घर घर डोलो!
याने रत्ती भर लोगे तो दिमाग ठीक रहेगा, मासे जितनी लोगे तो बदन दर्द ठीक हो जाएगा और अगर तोले जितनी किसी ने ली तो गलियों में भटकता फिरेगा!
बीकानेर शहर की स्थापना राठोड़ वंशी राजा राव बीका ने 1488 में की थी. उस से पहले यह इलाका जांगलदेश या जांगलू कहलाता था और आबादी नाम मात्र की थी. धीरे धीरे राव बिका ने आसपास का इलाका जीत कर बीकानेर राज की स्थापना की. शहर का स्थापना दिवस अक्षय तृतीय के दिन मनाया जाता है. बीकानेर राज के छठे राजा राव राय सिंह( 1571 - 1611) के समय बीकानेर का नाम ज्यादा प्रसिद्द हुआ. राव राय सिंह अकबर और जहाँगीर के दरबार में ऊँचे ओहदे पर रहे और उन्हें बहुत सी जागीरें इनाम में मिली. इन जागीरों की आमदनी से जूनागढ़ किले का निर्माण 17 फरवरी 1589 के दिन शुरू कराया गया जो 17 जनवरी 1594 को समाप्त हुआ.
किला 5.28 हेक्टेयर में फैला हुआ है और किसी पहाड़ी पर ना होकर जमीन पर ही है. ज्यादातर लाल बालू पत्थर और संगमरमर का बना हुआ है. किले की दीवारों की लम्बाई लगभग 1078 गज है. दीवारें 40 फीट ऊँची और करीब 15 फीट चौड़ी हैं. किले की बाहरी दीवारों के साथ साथ 30 फीट चौड़ी झील भी हुआ करती थी जो अब नहीं नज़र आती. किले में समय समय पर आने वाले राजाओं द्वारा कुछ ना कुछ बनता रहा. ये राजा हैं:
करन सिंह का राज 1631 - 1639 तक रहा और उन्होंने करन महल बनवाया.
अनूप सिंह का राज 1669 - 1698 तक रहा और उन्होंने ज़नानखाना और दीवाने आम 'अनूप महल' बनवाया.
गज सिंह ने 1746 - 1787 तक राज किया और चन्द्र महल बनवाया.
सूरत सिंह ने 1787 - 1828 ने कांच और पेंटिंग के काम करवाए.
डूंगर सिंह ने 1872 - 1887 के दौरान राज किया और बादल महल बनवाया.
गंगा सिंह ने 1887 - 1943 तक राज किया और गंगा निवास महल बनवाया.
राव गंगा सिंह ब्रिटिश राज में नाईट कमांडर रहे और जिस हॉल में अपने राजकाल की स्वर्ण जयंती मनाई उसमें अब संग्रहालय है. उन्होंने एक लालगढ़ महल भी बनवाया जिसमें वे 1902 में शिफ्ट हो गए. उनके पुत्र सदूल सिंह के समय बीकानेर राज का 1949 में भारत में विलय हो गया.
किला और अंदर के महल बहुत सुंदर है और संग्रहालय पुराने हथियार, पालकियों और शाही कपड़ों से भरा हुआ है. आप चाहें तो घंटों बिता सकते हैं. कुछ चित्र पहले भाग में प्रकाशित किये गए थे उन्हें इस लिंक पर देखा जा सकता है:
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प्रस्तुत हैं कुछ और फोटो :
लाल पत्थर के सुंदर खम्बे और मेहराबें |
राव बीकाजी की पेंटिंग |
किले के अंदर महल |
पत्थरों का शानदार उपयोग |
तोप और तोरण |
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थार रेगिस्तान में बीकानेर |
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