थार रेगिस्तान में बसा एक शहर है जैसलमेर. यह शहर जयपुर से लगभग 560 किमी दूर और दिल्ली से 780 किमी की दूरी पर है. रेगिस्तान होने के कारण गर्मी में तापमान 45 से ऊपर चला जाता है और सर्दियों में शून्य के नजदीक पहुँच सकता है.
जैसलमेर शहर भाटी राजपूत महारावल ( राजा याने रावल और महाराजा याने महारावल ) जैसल द्वारा 1178 में बसाया गया था. तब से लेकर जैसलमेर राज के भारत में विलय होने तक यहाँ महारावल जैसल के वंशजों का ही राज रहा है. यह भी एक रोचक तथ्य है की इस लम्बे समय के दौरान अरब, तुर्क, मुगल, फिरंगी या किसी पड़ोसी राज्य का जैसलमेर पर कभी कब्ज़ा नहीं हो पाया. हमलों के कारण सीमा रेखाएं जरूर बदलती रहीं.
शहर से 6 किमी दूर बड़ा बाग़ है जिसे महारावल जय सिंह, द्वितीय ने सोलहवीं शताब्दी में बनवाया था. कहा जाता है की आम जनता की राहत के लिए राजा ने पानी का तालाब बनवाया और आसपास बाग़ लगवाया. 21 सितम्बर 1743 को महाराजा जय सिंह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र ने पास वाली पहाड़ी पर पिता की याद में छतरी बनवा दी. उसके बाद राजघराने के कई लोगों की छतरियां या स्मारक या cenotaph यहाँ बनाए गए. गाइड द्वारा बताया गया कि इन छतरियों की कुछ विशेषताएं हैं:
- सभी छतरियां स्थानीय पीले पत्थर की बनी हुई हैं. जो छतरियां पिरामिड-नुमा हैं वो हिन्दू कारीगरों द्वारा बनाई गई हैं और गोल गुम्बद की तरह छतरियां मुस्लिम कारीगरों द्वारा बनाई गई हैं.
- हर छतरी के नीचे तीन चार फुटा एक खड़ा पत्थर लगा है जिस पर घोड़े पर बैठे हुए राजा की नक्काशी है और साथ ही संक्षिप्त जीवनी लिखी हुई है. राजा के पत्थर के साथ एक पत्थर पर पटरानियों और तीसरे पत्थर पर छोटी रानियों के बारे में लिखा हुआ है.
- पत्थर पर उकेरे चित्र पर अगर घोड़े के अगले दोनों पैर उठे हुए हैं तो राजा की मृत्यु युद्ध में हुई थी. अगर घोड़े का एक पैर उठा हुआ है तो राजा किसी युद्ध में घायल हुआ होगा और अगर घोड़े के चारों पैर धरती पर हैं तो जानिये की सामान्य मृत्यु हुई थी.
- अंतिम संस्कार के बाद पुत्र द्वारा एक चबूतरा बना दिया जाता है और पौत्र द्वारा छतरी बनाई जाती है. अगर शादी से पहले ही मृत्यु हो जाती है तो बिना छतरी का केवल चबूतरा ही रह जाता है.
- एक ही परिवार की छतरियों को साथ साथ बनाया गया है और आपस में जोड़ दिया गया है.
सुबह से शाम तक बड़ा बाग़ खुला रहता है. प्रवेश और कैमरे के लिए फीस लगती है. प्रस्तुत हैं कुछ फोटो:
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बड़े बाग़ की छतरियां |
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शाम के धुंधलके में बड़ा बाग़ |
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पिरामिड-नुमा छतरियां |
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गुम्बद-नुमा छतरियां |
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शिव मंदिर से बड़े बाग़ में जाने का रास्ता |
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चबूतरे जिन पर छतरियां ना बन सकीं |
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कुछ गोल छतरियां मरम्मत की इंतेज़ार में |
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आपस में जुड़ी हुई छतरियां |
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बायाँ पत्थर राजा का, बीच वाला पटरानियों का और दाहिने वाला अन्य 6 रानियों का |
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रानी की छतरी जहाँ पूजा की गई है |
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स्तम्भ, मेहराब और छतों पर नक्काशी |
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छतरियों को जोड़ कर बना हुआ बरामदा |
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बरामदा |
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छतरियों के पीछे तालाब |
4 comments:
https://jogharshwardhan.blogspot.com/2017/02/blog-post_19.html
Nice
Thank you Mittal ji.
Nice 👍 Nishchal
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