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Tuesday, 28 February 2017

हरियाली और रास्ता

हस्तिनापुर दिल्ली से लगभग 110 किमी की दूरी पर है. वहां पहुँच कर पता लगा कि गंगा तट लगभग 12 किमी दूर है परन्तु जाने का रास्ता अभी कच्चा ही है. सोचा जाना है तो जाना है. बस गाड़ी उधर की तरफ मोड़ ली हालांकि गाड़ी पहले और दूसरे गियर में ही चल पाई पर चल गई. सुबह नौ सवा नौ का समय था पर हल्का सा कोहरा था और ठंडक भी. रास्ता हरे भरे खेतों के बीच से था. छोटे छोटे पक्षी और हरियाली देखकर बड़ा आनन्द आया. प्रस्तुत हैं कुछ फोटो: 

इन महिलाओं ने बताया कि मछली पकड़ने जा रही हैं 

जहाँ पानी वहाँ बगला भगत 

गेहूं के हरे भरे खेत में दवाई स्प्रे करते हुए किसान  

कार रोक कर फोटो ली पर खम्बे पर बैठा नीलकंठ का जोड़ा उड़ा नहीं 

टेढ़ी मेढ़ी राहें. पता लगा कि पिछले पांच साल से गंगा पर पुल और इस सड़क का काम रुका पड़ा है 

चरी या पशु चारे की कटाई करवा रहे थे अमर सिंह 

तीतर बटेर और छोटी छोटी चिड़ियाँ काफी थीं. तीतर तो जल्दी से खेत में छुप जाते थे. दो काली चिड़ियाँ  इस फोटो में दिखाई पड़ रही  हैं  

माँ बेटी सवारी की इंतज़ार में 

हरियाली का रक्षक!

खोज पर निकले वरिष्ठ यात्री- आगे हैं श्रीमती और श्री हर्षवर्धन और पिछली सीट पर श्रीमती और श्री सर्व मंगल अग्रवाल  


हस्तिनापुर के जैन मंदिरों पर एक फोटो-ब्लॉग देखने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें:

http://jogharshwardhan.blogspot.com/2016/06/blog-post_10.html
हस्तिनापुर के जैन मंदिर



Saturday, 25 February 2017

श्री तनोट माता मंदिर, जैसलमेर

तनोट एक छोटा सा रेगिस्तानी गाँव है जो जैसलमेर शहर से लगभग 150 किमी दूर है. यहाँ से अंतर्राष्ट्रीय सीमा लगभग 25 किमी है. यहीं एक विख्यात मंदिर है श्री तनोट माता मंदिर. कहा जाता है कि हिंगलाज माता का ही रूप तनोट माता हैं और तनोट माता का दूसरा रूप करनी माता हैं. हिंगलाज माता का मंदिर कराची से 250 किमी दूर बलोचिस्तान में हिंगोल नदी के किनारे है और करनी माता का मंदिर बीकानेर जिले में है.

भाटी राजपूत राजा केहर के पुत्र तन्नू राव तनोट माता के भक्त थे और उन्होंने विक्रमी सम्वत 828 याने सन 771 में मंदिर की स्थापना की थी. मंदिर का नाम और मान्यता 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद बहुत बढ़ गई. तब से तनोट मंदिर हर जैसलमेर आने वाले पर्यटक की लिस्ट में शामिल हो गया है.

इस मान्यता की कहानी कुछ इस प्रकार है कि 1965 में तनोट के तीन ओर से पाक सेना ने भारी आक्रमण किया. तनोट की सुरक्षा के लिए 13 ग्रेनेडियर की एक कंपनी और BSF की दो कम्पनियाँ थी जिसके मुकाबले दुश्मन की ब्रिगेड थी ( एक कम्पनी में आम तौर पर 100 से 300 जवान हो सकते हैं और एक ब्रिगेड में 1000 से 3000 तक ). कहा जाता है कि तनोट और उसके आसपास 3000 बम गिराए गए जिनमें से 20% तो फटे ही नहीं और ज्यादातर सुनसान रेगिस्तान की रेत में फटे जिससे जान माल का कोई नुक्सान नहीं हुआ. 450 गोले मंदिर परिसर में या आसपास गिरे पर फिर भी मंदिर का कोई नुकसान नहीं हुआ. इससे सैनिकों में और जोश भर गया और मनोबल ऊँचा हो गया. तीसरे दिन पस्त दुश्मन की बैरंग वापसी हो गई. 1965 के इस युद्ध के बाद मंदिर का इंतज़ाम BSF ने ले लिया.

1971 में तनोट से लगभग 50 किमी दूर लोंगेवाला में पकिस्तान ने टैंकों, बख्तर बंद गाड़ियों और एक पैदल ब्रिगेड लेकर दुबारा हमला किया. वहां भी मुकाबले पंजाब रेजिमेंट की 23 वीं बटालियन की केवल 120 जवानों की कम्पनी थी. इस कम्पनी और चार हंटर विमानों ने 36 टैंक और सैकड़ों गाड़ियां को तहस नहस कर दिया और दुश्मन तीसरे दिन वापसी पर मजबूर हो गया. लोंगोवाला स्मारक में दुश्मन के रेत में धंसे बर्बाद टैंक और गाड़ियाँ जस की तस देखी जा सकती हैं.

जैसलमेर से तनोट > लोंगेवाला > जैसलमेर सड़कें बढ़िया है और ट्रैफिक बहुत ही कम. अपनी गाड़ी हमने 100 से ऊपर खूब दौड़ाई हालांकि भेड़ बकरियों का ध्यान रखना पड़ता है. सुबह तनोट मंदिर जाकर लोंगेवाला स्मारक देखते हुए शाम तक जैसलमेर वापिस आया जा सकता है. बसें, जीपें और टैक्सी जैसलमेर में उपलब्ध हैं. मंदिर परिसर में चाय पानी की सुविधा भी है. पर रास्ते के लिए पानी जरूर रख लें. रेगिस्तानी धूप बड़ी तीखी होती है और वहां हवा भी बहुत तेज़ चलती है इसलिए धूप का चश्मा और सर ढके रखना जरूरी है. पूरे रास्ते में पीली रेत के टीले और छोटी छोटी झाड़ियाँ ही नज़र आती हैं. कहीं कहीं कोई चरवाहा भेड़ बकरियों के साथ दिख जाता है. हो सकता है की हिरन या सांभर दिख जाए पर ज्यादातर इलाका सुनसान बियाबान है.
प्रस्तुत हैं कुछ फोटो:


सुनसान बियाबान रेगिस्तान के बीच श्री मातेश्वरी तनोट माता मंदिर 

अंतर्राष्ट्रीय सीमा से लगभग 25 किमी दूर 

मंदिर की स्थापना विक्रमी संवत 828 ( सन् 771 ) में हुई 

मंदिर का बाहरी हॉल 

अंदरूनी हॉल 

शिव - पार्वती 

तनोट माता 

मंदिर में रखे हुए पाक बमों के खोल जो उस वक्त फटे नहीं थे 

मंदिर से जुड़े हुए पीर बाबा 

मन्नत के धागे और रुमाल 

मंदिर का रख रखाव BSF के पास है 

प्रतीक्षालय 

तनोट की ओर जाती सुनसान सड़क 

तनोट के चारों तरफ है सुनहरी नरम रेत और छोटी छोटी झाड़ियाँ 

दर्शनार्थी 
पत्थर पर लिखा मंदिर का इतिहास 

स्थानीय पीले पत्थर से बना युद्ध स्मारक - तनोट विजय स्तम्भ 



Thursday, 23 February 2017

बाली में रामलीला

इंडोनेशिया में एक बड़ा टापू है बाली. यह द्वीप 5720 वर्ग किमी में फैला हुआ है. ज्वालामुखी की राख से बना ये द्वीप बारिश की बहुतायत की वजह से बहुत हरा भरा है. द्वीप का सबसे उंचा पहाड़ माउंट अगुंग है जिसकी उंचाई 3000 मीटर से ज्यादा है. इस माउंट पर अभी भी एक ज्वालामुखी 'एक्टिव' है.

बाली की जनसँख्या लगभग 42 लाख है. इनमें से 84% हिन्दू हैं और बाकी मुस्लिम, इसाई और बौध धर्म के अनुयायी हैं. कहा जाता है की 914 में यहाँ श्री केसरी वर्मा देवा का राज था. विभिन्न हिन्दू राजाओं का राज 1520 तक चला. उसके बाद बाली और आस पास के द्वीप अलग अलग राजाओं में बंट गए. 1840 में डच ईस्ट इंडीज कम्पनी आ गई. दूसरे विश्व युद्ध में यहाँ जापानी आ गए. जापानियों के सरेंडर के बाद एक बार फिर डच राज रहा जो 1949 में समाप्त हुआ.

बाली और बाली का मौसम गोआ - Goa, से मिलता जुलता है और पर्यटक भी खूब आते हैं. स्वच्छता और सुविधाओं में गोआ से बेहतर है.

बड़ी हिन्दू जनसँख्या और लम्बे समय तक हिन्दू राज रहने के कारण बाली में बहुत से मंदिर हैं और रामलीला का भी चलन है. निचले नक़्शे पर नज़र मारें तो समझ में आता है की भारत से बर्मा, थाईलैंड, इंडोनेशिया और आसपास के देशों में काफी व्यापार चलता होगा. इसी व्यापार के साथ साथ रामायण और महाभारत भी पहुँच गई होगी. रामायण यहाँ 'केचक रामायण' के नाम से प्रचलित है.

रामलीला पर आधारित 3 - 4 एक्ट के छोटे नाटक पर्यटकों के लिए रोज़ ही किये जाते हैं. इन नाटकों में यहाँ राम और रावण के साथ एक एक विदूषक भी होता है - देलेम और तुआलेन. ये दोनों दर्शकों का मनोरंजन करते रहते हैं. बीच में बैठे कुछ लोग मन्त्र और गीत गाते हैं.
प्रस्तुत हैं रामलीला के कुछ दृश्य:

हनुमान लंका में सीता से मिलने जा रहे हैं 

हनुमान के करतब  

हनुमान दर्शकों के बीच से बढ़े सीता की ओर

सीता को हनुमान का प्रणाम 

रावण का चेला तुआलेन

रावण की सीता को धमकियाँ 

रावण और गरुड़ का युद्ध 


ये फोटो-ब्लॉग मुकुल वर्धन  की  प्रस्तुति  है  
* This photo-blog has been contributed by Mukul Wardhan



Sunday, 19 February 2017

बड़ा बाग, जैसलमेर

थार रेगिस्तान में बसा एक शहर है जैसलमेर. यह शहर जयपुर से लगभग 560 किमी दूर और दिल्ली से 780 किमी की दूरी पर है. रेगिस्तान होने के कारण गर्मी में तापमान 45 से ऊपर चला जाता है और सर्दियों में शून्य के नजदीक पहुँच सकता है.

जैसलमेर शहर भाटी राजपूत महारावल ( राजा याने रावल और महाराजा याने महारावल ) जैसल द्वारा 1178 में बसाया गया था. तब से लेकर जैसलमेर राज के भारत में विलय होने तक यहाँ महारावल जैसल के वंशजों का ही राज रहा है. यह भी एक रोचक तथ्य है की इस लम्बे समय के दौरान अरब, तुर्क, मुगल, फिरंगी या किसी पड़ोसी राज्य का जैसलमेर पर कभी कब्ज़ा नहीं हो पाया. हमलों के कारण सीमा रेखाएं जरूर बदलती रहीं.

शहर से 6 किमी दूर बड़ा बाग़ है जिसे महारावल जय सिंह, द्वितीय ने सोलहवीं शताब्दी में बनवाया था. कहा जाता है की आम जनता की राहत के लिए राजा ने पानी का तालाब बनवाया और आसपास बाग़ लगवाया. 21 सितम्बर 1743 को महाराजा जय सिंह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र ने पास वाली पहाड़ी पर पिता की याद में छतरी बनवा दी. उसके बाद राजघराने के कई लोगों की छतरियां या स्मारक या cenotaph यहाँ बनाए गए. गाइड द्वारा बताया गया कि इन छतरियों की कुछ विशेषताएं हैं:

-  सभी छतरियां स्थानीय पीले पत्थर की बनी हुई हैं. जो छतरियां पिरामिड-नुमा हैं वो हिन्दू कारीगरों द्वारा बनाई गई हैं और गोल गुम्बद की तरह छतरियां मुस्लिम कारीगरों द्वारा बनाई गई हैं.
- हर छतरी के नीचे तीन चार फुटा एक खड़ा पत्थर लगा है जिस पर घोड़े पर बैठे हुए राजा की नक्काशी है और साथ ही संक्षिप्त जीवनी लिखी हुई है. राजा के पत्थर के साथ एक पत्थर पर पटरानियों और तीसरे पत्थर पर छोटी रानियों के बारे में लिखा हुआ है.
-  पत्थर पर उकेरे चित्र पर अगर घोड़े के अगले दोनों पैर उठे हुए हैं तो राजा की मृत्यु युद्ध में हुई थी. अगर घोड़े का एक पैर उठा हुआ है तो राजा किसी युद्ध में घायल हुआ होगा और अगर घोड़े के चारों पैर धरती पर हैं तो जानिये की सामान्य मृत्यु हुई थी.
- अंतिम संस्कार के बाद पुत्र द्वारा एक चबूतरा बना दिया जाता है और पौत्र द्वारा छतरी बनाई जाती है. अगर शादी से पहले ही मृत्यु हो जाती है तो बिना छतरी का केवल चबूतरा ही रह जाता है.
- एक ही परिवार की छतरियों को साथ साथ बनाया गया है और आपस में जोड़ दिया गया है.

सुबह से शाम तक बड़ा बाग़ खुला रहता है. प्रवेश और कैमरे के लिए फीस लगती है. प्रस्तुत हैं कुछ फोटो:


बड़े बाग़ की छतरियां 

शाम के धुंधलके में बड़ा बाग़ 

पिरामिड-नुमा छतरियां 

गुम्बद-नुमा छतरियां 

शिव मंदिर से बड़े बाग़ में जाने का रास्ता 

चबूतरे जिन पर छतरियां ना बन सकीं 

कुछ गोल छतरियां मरम्मत की इंतेज़ार में  

आपस में जुड़ी हुई छतरियां 

बायाँ पत्थर राजा का, बीच वाला पटरानियों का और दाहिने वाला अन्य 6 रानियों का  
रानी की छतरी जहाँ पूजा की गई है 

स्तम्भ, मेहराब और छतों पर नक्काशी 

छतरियों को जोड़ कर बना हुआ बरामदा 

बरामदा 

छतरियों के पीछे तालाब 



Thursday, 16 February 2017

फटीचर

सन्डे तो आज अच्छा ही गुज़रना चाहिए, मन्नू उर्फ़ मनोहर नरूला ने सोचा. पूरा हफ्ता बैंक में जनता से मगजमारी के बाद एक दिन आराम का भी तो होना चाहिए. और आज तो शाम को शादी में भी जाना है कुछ दोस्त यार मिलेंगे कुछ गपशप होगी मज़ा आएगा. शादी ज्यादा दूर नहीं है पैदल भी जाया जा सकता है पर सूट बूट पहन कर पैदल जाने वाला रास्ता तो नहीं है.

मन्नू अभी अपनी टाई और शर्ट के कलर मैच कर रहा था कि उसके पापा का फ़ोन बजा. फोन पर जो भी बात हुई उन्होंने मम्मी को बताई. फिर पापा और मम्मी की जो बात हुई मम्मी ने मन्नू को बताई,
- मन्नू बेटा आज शाम शादी में तो जाना ही है तो एक घंटा पहले चले चलियो. वहीं दो चार घर छोड़ के एक लड़की भी है तुझे मिलवा देंगे ठीक है ना?
- ओके ओके ठीके ठीके.

वहां पहुँचने पर पता लगा कि लड़की तो मंदिर गई हुई है और उसे अभी आने में आधा घंटा और लग जाएगा. मम्मी ने जब ये सुना तो उनका ह्रदय तो गद् गद् हो गया,
-वाह लड़की मंदिर भी जाती है! चलो जी भगवान भली करे मेरी तरफ से तो काम हो ही गया. बस अब मन्नू की पतरी मिलने की देर है. इसी मंदिर का परशाद बांटूगी.

मम्मी ने सुझाव दिया कि मन्नू भी मंदिर चला जाए और वो पीछे पीछे आंटी के साथ आ जाएंगी. लड़की जहाँ भी होगी वो इशारे से बता देंगीं. मंदिर से पूजा पाठ कर के निकलेगी तो बातचीत भी हो जाएगी. मन्नू को बात पसंद नहीं आई और वो मम्मी के कान में गुर्राया.
- मम्मी आप कैसे कैसे प्रोग्राम बनाती हो? अब नए जूते उतर के सूट और टाई में मन्दिर जाऊं? अरे उसे आने दो बाद में ही मिल लूँगा ना.
पर मम्मी के बचाव में आंटी ने जवाब दिया,
- अरे बेटा ज़रा सी देर की तो बात है. जाओ चले जाओ.
बड़े बेमन से मंदिर की ओर चल पड़ा मन्नू. ज्यादा नहीं बस 30-35 लोग रहे होंगे मंदिर में. बगीचा पार करके जूते उतर कर रख दिए और जुराबें जूतों में ठूंस दीं. हाथ धोए और सीढियां चढ़ कर हॉल में प्रवेश किया. तीनों मूर्तियों को नमस्कार किया और दस का नोट चढ़ा दिया. अब हॉल में नज़र दौड़ाई. आदमी देखने बेकार थे, महिलाऐं भी देखने की ज़रुरत नहीं थी तो लड़कियां बची 5-7. कौन सी होगी? इतने में मम्मी ने आकर मदद की,
- बाहर साइड में ना केले के पेड़ लगे हुए हैं वहीं बैठी है जा देख ले. बाद में 72 नंबर मकान में आ जइयो.

मन्नू को लड़की तो ठीक लगी. दिया जला के और सिर ढक कर के कुछ मन्त्र पढ़ रही थी. मन्नू ने सोचा अब बाकी बातें बाद में होंगी इसलिए निकलो यहाँ से. बाहर आकर देखा तो ना जूते और ना जुराबें. इधर उधर भीतर बाहर कहीं नहीं. जहाँ जूते उतारे थे वहां दो पुराने मैले स्पोर्ट्स शूज़ मुस्करा रहे थे. कुछ देर दाएं बाएं देखने के बाद निराश हो कर वही पुराने जूते पहन कर मन्नू भाई 72 नंबर मकान की ओर चल दिए. बड़ा नुक्सान हो गया लड़की के चक्कर में. पर वहां चाय पी कर और लड़की से बात करके मन्नू को अच्छा लगा और अपने नए जूते की चोरी भी भूल गई. बाहर आकर घोषणा कर दी 'पसंद है'!

मन्नू के जाने के बाद लड़की ने चाय के बर्तन समेटने शुरू कर दिए और बड़बड़ाने लगी,
- मम्मी कहाँ से बुला लिया इस लड़के को? ज़रा ड्रेस सेंस तो देखो इस लड़के का ! गरम सूट के साथ बिना सॉक्स के स्पोर्ट्स शूज़ और वो भी फटीचर ! पता नहीं बैंक में कैसे भरती हो गया? मेरी तरफ से मना कर दो.

नई जयपुरी मोजड़ी ठीक रहेगी 


Monday, 13 February 2017

रामपुरिया हवेलियां, बीकानेर

बीकानेर थार रेगिस्तान का एक शहर है. यह शहर राव बीका द्वारा 1486 में बसाया गया था. जयपुर से बीकानेर की दूरी 330 किमी है और दिल्ली से लगभग 430 किमी है. मौसम का मिजाज़ गर्मी में पचास डिग्री तक और सर्दी में शुन्य डिग्री तक हो सकता है. मौसम, पानी की कमी और हवाओं की तेज़ी को ध्यान में रखकर मकान और हवेलियाँ बनाए जाते होंगे.

इस पुराने शहर में बहुत सी हवेलियाँ हैं जैसे की रिखजी की हवेली, सम्पतलाला की हवेली, भैरों की हवेली वगैरा. 1925 की बनी भंवर निवास हवेली तो अब एक होटल है. परन्तु बीकानेर की हवेलियों में से रामपुरिया हवेलियों का बड़ा नाम है. इस समूह की हवेलियों में छोटी बड़ी कई हवेलियां हैं और ये सभी लाल पत्थर की बनी हुई हैं. ये हवेलियां 100 से लेकर 400 साल तक पुरानी हैं और चित्रकारी से भरपूर हैं. पुरानी हवेलियों के वास्तुकार थे बालूजी चलवा. प्रसिद्ध लेखक, दार्शनिक अल्डस हक्सले - Aldous Huxley भी यहाँ आये थे और उन्होंने रामपुरिया हवेलियों को बीकानेर की शान कहा था.

ड्योढ़ी, झरोखे, छज्जे, कंगूरे, छतें और दीवारें सभी पर सुंदर नक्काशी है. लकड़ी के दरवाज़े, खिड़कियाँ भी कलाकारी से भरपूर हैं.  कुछ चित्र प्रस्तुत हैं :


रामपुरिया हवेलीयों में से एक  

समय ठहर गया लगता है यहाँ  

दीवारों पर यूरोपियन चेहरे 

गलियों में सीधी धूप कम ही आती है इसलिए ठंडक रहती है 

आर्ट और ड्राइंग के छात्रों के लिए बढ़िया जगह 

पुरानी सांकल और दरवाज़ा  

छत पर की गई सुंदर चित्रकारी 

सुंदर दरवाज़े खिड़कियाँ 

नया पुराना आमने सामने 

गलियां आड़ी तिरछी 

पत्थर हो या लकड़ी सभी पर नक्काशी 

कलाकारी वाले दरवाज़े और मेहराब