दिसम्बर और जनवरी के महीनों में उत्तर भारत में ठण्ड पूरे जोर पर होती है. और इन दिनों कोहरा भी काफी परेशान करता है. घने कोहरे में यूँ लगता है की बादलों में चल रहे हैं. ठण्ड और कोहरे में ज़िन्दगी की रफ़्तार घट जाती है फिर भी जरूरी जरूरी काम तो चलते ही रहते हैं. ऐसी सर्दी में तेजपाल उर्फ़ तेजू ज्यादातर स्वेटर, मफलर, दस्ताने और कम्बल जैसी चीज़ों की दूकान पटरी बाज़ार में लगाता है. आज सुबह सुबह 25 कम्बल लाला जी से उधारी पर मिल गए थे वही ले कर तेजू वापिस आ रहा था. कॉलोनी का गेट देखकर ब्रेक लगा दी - शायद यहीं बोहनी हो जाए. तेजू की कोशिश है की जल्दी बिक जाएं ताकि मुनाफा भी ज्यादा हो जाए और माल खप जाए. और 10-12 दिनों में अगर धूप खिल गई तो मौसम पलटी खा सकता है और कम्बल को कोई पूछेगा भी नहीं. इसलिए इंतज़ार क्या करनी जहाँ मौका मिले अपनी मोपड़िया खड़ी कर के सेल चालू .
सुबह के 9 बज गए हैं पर अभी सूरज नहीं निकला |
शताब्दी नगर, मेरठ का एक और सीन |
तेजू ने कॉलोनी का गेट देखकर अपनी मोपड़िया रोक दी और दूकान चालू कर दी |
चलती सड़क होने के कारण कुछ लोग रुक कर कम्बल देखने लगे |
तेजू ने डबल कम्बल के दाम मांगे 1200. जवाब मिला '500 ठीक हैं' दोनों में 8-10 मिनट खींच तान हुई पर अंत में 700 में सौदा पट गया |
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