मंडावा एक छोटा सा ऐतिहासिक शहर है जो कि राजस्थान के झुंझनु जिले में है. दिल्ली से लगभग 250 किमी दूर है और जयपुर से 190 किमी की दूरी पर है. कहा जाता है कि 1740 में यह जगह मांडू जाट का वास या मांडू वास कहलाती थी. कालान्तर में इस जगह का नाम मंडावा हो गया. यह मंडावा आजकल अपनी छोटी बड़ी हवेलियों और उन हवेली की दीवारों पर बनी चित्रकारी fresco के लिए मशहूर है.
झुंझनु और सीकर जिले किसी समय शेखावटी राज का हिस्सा थे जिसे राव शेखा ( जन्म 1433 निधन 1488) ने बसाया था. इन हवेलियों को शेखावटी हवेलियाँ भी कहा जाता है. ज्यादातर हवेलियाँ 100 से 300 साल तक पुरानी हैं. कुछ तो बहुत ही खस्ता हालत में हैं, कुछ में हवेलीदार खुद रहते हैं और कुछ को ठीक ठाक करा के होटल में बदल दिया गया है. देसी सैलानियों के अलावा फिरंगी भी यहाँ काफी आते हैं.
इन हवेलियों के मालिक ज्यादातर धनी व्यापारी थे. झुंझनू, सीकर, बीकानेर, जैसलमेर और जोधपुर अंतर्राष्ट्रीय व्यापारियों के पड़ाव थे. ऊँटों के कारवां कराची, पेशावर और काबुल वगैरा से सोना, चांदी, हीरे जवाहरात, सिल्क, अफीम वगैरा लाते ले जाते थे. 1850 के आसपास कारवां घटने लग गए और व्यापर पानी के जहाजों से होने लग गया था. स्थानीय मारवाड़ी व्यापारी कलकत्ता, मुंबई और चेन्नई बंदरगाहों की तरफ निकल गए. हवेलियाँ धीरे धीरे खाली हो गईं.
झुंझनू जिले की सड़कें बहुत अच्छी हालत में नहीं हैं और हैं भी दो लेन की. आसपास का इलाका ज्यादा विकसित नहीं है. सड़कों पर अक्सर मवेशी घुमते नज़र आ जाते हैं. यदाकदा नीलगाय या जंगली ऊंट भी रास्ता काट सकता है इसलिए गाड़ी सावधानी से चलानी होगी.
वैसे तो मंडावा एक ही दिन में देखा जा सकता है पर अगर रुकना हो तो हवेली में ठहरने की जगह मिल सकती है. अक्टूबर से मार्च तक का समय घूमने के लिए अच्छा है.
दीवारों और छतों पर सुंदर चित्रकारी मेहनत का काम है इसलिए चित्रकारों की दाद देनी होगी. साथ ही पक्के और चटक रंगों का चुनाव भी शानदार है जो दशकों तक टिका रहता है.
प्रस्तुत हैं कुछ चित्र :
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निमंत्रण देती हुई हवेली - पधारो म्हारे देस |
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होटल बनी हवेली
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दीवारें, मुंडेरें और छतें कैनवास मानकर सुंदर और बारीक चित्रकारी की गई है |
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स्नेह राम लडिया की हवेली में एंटीक चीज़ों की सेल |
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पधारो सा |
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हाथी की चित्रकारी करीबन हर हवेली में है शायद शाही सवारी हुआ करती थी इसलिए. जबकि इस इलाके का मौसम हाथियों के बजाए ऊँटों के अनुकूल है
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हवेलियाँ बहुत हैं और चित्रकारी भी इतनी है कि मंडावा को ओपन एयर आर्ट गैलरी भी कहा जाता है |
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हवेली में स्टेट बैंक ऑफ़ बीकनेर एंड जयपुर की शाखा |
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बैंक वाली हवेली की दाहिनी दीवार पर चित्रकारी - अंग्रेजी साइकिल, कार और बग्गी भी |
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हवेलियों के बीच एक चौक |
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होटल में तब्दील हो चुकी एक हवेली |
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अंदर हो या बाहर हवेली की हर दीवार और छत पर चटक रंग बिखरे हुए हैं
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मुनीम जी का कमरा |
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साफ़ सफाई वाली हवेली - या तो होटल है या फिर सेठ जी खुद रहते हैं |
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हवेली की छत से मंडावा का एक दृश्य. पीछे है मंडावा किले की बुर्जी |
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समय के चक्रव्यूह में फंसा मंडावा. कभी अच्छे दिन भी देखे होंगे इन गलियों ने |
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ऐसा लगता है कि साफ़ सफाई की कमी ने मंडावा की टूरिज्म की संभावनाएं कुछ घटा दी हैं |
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मंडावा का मुख्य मार्ग |
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समय के साथ लाख की चूड़ियों का काम भी लगभग ख़त्म हो गया है |
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ठण्ड के दिनों में घेवर का आनंद लें |
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मंडावा किले के चोबदार |
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इस तरह के खम्बों का मतलब मीठे पानी का कुआँ |
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लाल निशान मंडावा दिखा रहा है. पंजाब की हरियाली के नीचे सूखी मरुस्थली धरती |
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