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Saturday, 31 December 2016

बावला

मंगलवार को मनोहर ने दो काम करणे थे. एक तो ऑफिस के बाद शाम को मंदिर जाणा था जैसा की वो हर मंगलवार किया करे था. अर दूसरा मंदिर के पास ही रेस्तरां में लड़की से मिलणा था. भई शादी ब्या का मामला था ना जी. अब आप तो जाणो के मंदिर में साधारण कपड़े में भी दिक्कत ना है पर जब छोरी देखणी है तो सूट बूट जरूरी है न जी.

अब इस ठण्ड के मौसम में सूट तो ठीक है पर सूट के साथ बूट भी जरूरी हैं. बूट कमबख्त नए खरीदे हैं यो लोचा हो गया. मंदिर के बाहर से नए जूते चोरी होणे का पूरा खतरा है और बिना जूतों के सूट का मज़ा ना है. चलो शाम को देखा जाएगा. मनोहर उर्फ़ मन्नू ने बालों में सरसों का तेल डाला और बाल सेट कर दिए, खुसबू का फुहारा मारा फुस्स फुस्स अर सूट बूट पहन के चल दिया अपने बैंक.

शाम को मंदिर और रेस्तरां के बीच आ खड्या हुआ. मुँह पे रुमाल फेरा, बालों में कंघी फेरी अर मुँह में छोटी इलायची रख ली. इलायची चबाते चबाते सोचन लाग्या,
- पहले मंदिर जाणा ठीक है या छोरी से मिलणा?
- ना जी पहले छोरी बाद में मंदिर?
- ना जी पहले मंदिर बाद में छोरी?
पर फिर पैर तो रेस्तरां की तरफ मुड़ गे. आटोमेटिक हो गया जी पता ही नहीं लाग्या मन्नू भाई को.

रेस्तरां में छोरी भाई के साथ बैठी थी. भाई ने हाथ मिलाया और दूसरे टेबल पर जा बैठा. वेटर दो समोसे और दो चाय टेबल पर रख गया. मनोहर ने लड़की पर नज़र मारी तो जच गई. बोल्या,
- आप मंदिर जाओ जी ?
- जी सुक्करवार जाऊं मैं तो.
- जी मैं तो मंगल का व्रत रक्खूं. समोसा चाय तो ना ले रा मैं. मंदिर जाण के बाद ही व्रत खोलूँगा. और मंदिर जाण का टाइम भी हो रा कुछ बात पूछनी हो तो बताओ.
- जी आप पहले मंदिर क्यूँ ना गए?
- जा रा जी बस जुत्ते जरा देख लियो. मैं भाग के गया और भाग के आया.
छोरी खड़ी हो गई और कुर्सी पीछे धकेल दी. कुर्सी चीं की आवाज़ करती हुई पीछे सरकी तो सबका ध्यान एक पल के लिए मनोहर की तरफ हो गया.
मनोहर बाहर आ गया. उसकी कनपटी गरम हो गई और चेहरा लाल हो गया. पीछे से उसके कानों में छोरी की आवाज़ पड़ी,
- बावला है यो!

बावला 


2 comments:

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2016/12/blog-post_31.html

Unknown said...

Radhe Radhe