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Saturday, 26 December 2015

बाग में नया साल

बनारस के महाराज का एक बहुत बड़ा और बहुत ही सुंदर बाग था. शहर से थोड़ा हटकर जंगल के पास था और उसमें फूलों और फलों के बहुत से पेड़ पौधे लगे हुए थे. पास ही पहाड़ी नदी बहती थी इसलिए सुबह और शाम ठंडी सुहावनी बयार बहती थी. सुबह बहुत से पक्षियों को चहकते देखा जा सकता था. इनमें से बहुत से पक्षियों का बसेरा भी इसी बगीचे में था. महाराज ने बाग़ की देखभाल के लिए एक माली रख छोड़ा था.

फलों के पेड़ हों तो बंदर कैसे दूर रह सकते हैं ? बाग के पास ही बंदरों का एक झुण्ड भी रहता था. उनका अपना एक महाराजा था. बंदर महाराज अपने बंदर समाज के सभी गुणों से संपन्न थे. बन्दर महाराज और बाग के माली के बीच अच्छा तालमेल था. कभी टकराव तो कभी लगाव.

नया साल आने वाला था. इसलिए माली ने बंदर महाराज को बुलवाया और सप्रेम कहा:

- देखो बंदर महाराज कल नया साल है और मुझे अपने बच्चों के साथ मिल कर मनाना है. आज मैं अपने गाँव जाना चाहता हूँ.
- तो जाओ. हमारे समाज में तो कोई नया साल नहीं होता - बंदर महाराज ने जवाब दिया.
-  मुझे वापसी में तीन चार दिन का समय लग जाएगा. इस बीच राजा के बगीचे की देखभाल का जिम्मा तुम्हारा है.
- ठीक है भाई तुम जाओ. और चिंता न करो मैं भी तो महाराजा हूँ और राजपाट चलाना जानता हूँ - बंदर महाराज बोले.
- घड़े रखे हैं, नदी से पानी लेकर पौधों में डलवा देना.
- बहुत आसान काम है ये तो. करवा दूंगा अब तुम निश्चिन्त हो कर नया साल मनाओ - बंदर महाराज बोले.

आश्वस्त हो कर माली नया साल मनाने अपने गाँव की ओर चल पड़ा.

अगली सुबह नया साल आ गया. बंदर महाराज की एक ही घुड़की में सारी वानर सेना इकट्ठी हो गई. महाराज ने आदेश दिया की नदी से घड़ों में पानी भरो और पौधों में डालना शुरू कर दो. आनन फानन में सैनिकों ने नदी की ओर दौड़ लगा दी और पानी भर भर कर पौधों में डालने लगे. पहले तो बंदर महाराज खुश हुए फिर सोच में पड़ गए की सभी पौधों में पानी डालेंगे तो कहीं नदी का पानी ना समाप्त हो जाए. केवल जरूरतमंद पौधों में ही डाला जाये तो ठीक रहेगा. तुरंत घुड़की लगाई और सारे वानर सैनिक फिर हाजिर हो गए.

- इस तरह से पानी डालते रहे तो कमबख्तो नदी सूख जाएगी. पानी पीने के लिए भी नहीं बचेगा. देख तो लो पानी किस पौधे में डालना है और किसमें नहीं.
- परन्तु महाराज ये तो हमें पता नहीं है. हम कैसे पहचानें?
- अरे मूर्खों जिस पौधे की जड़ें लम्बी हैं उसमें मत डालो. और जिस पौधे की जड़ें छोटी हैं सिर्फ उसी में पानी डालो बस.
- ठीक है महाराज अभी जड़ें निकाल कर देख लेते हैं !

* * * * *
बेवक़ूफ़ दोस्त से दोस्ती करने का नतीजा. यह किस्सा मैंने चालू भाषा में लिख दिया है पर यह एक जातक कथा पर आधारित है. जातक कथाएँ 2500 साल पहले गौतम बुद्ध के समय से प्रचलित हुईं. ये कथाएँ गौतम बुद्ध के जीवन से सम्बंधित हैं या उनके द्वारा प्रवचनों में सुनाई गईं हैं. गौतम बुद्ध को 35 वर्ष में ज्ञान प्राप्त हुआ और उसके बाद जीवन पर्यंत याने 80 वर्ष की आयु तक ज्ञान बांटते रहे. अपने प्रवचनों में बहुत से उदाहरण या लघु कथाएं सुनाया करते थे. कुछ कथाएँ दूसरे सिद्ध मह्नुभावों की भी है. यही जातक कथाएँ धम्म प्रचार के साथ साथ बहुत से  देशों - श्री लंका, म्यांमार, तिब्बत, चीन से लेकर ग्रीस तक - पहुँच गईं.

मुर्ख मित्र की मित्रता ठीक नहीं (बंगलुरु के पास शिवासमुद्रम जलप्रपात का एक चित्र)


1 comment:

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2015/12/blog-post_25.html