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Wednesday, 23 December 2015

गोमतेश्वर


बाहुबली की मूर्ति, श्रवणबेलगोला, कर्णाटक 

गोमतेश्वर या बाहुबली की ये विशाल और सुंदर मूर्ति कर्णाटक के जिला हासन में श्रवणबेलगोला में स्थित है. यह स्थान बंगलुरु से 160 किमी और मैसूरू से लगभग 60 किमी की दूरी पर है. करीबी रेलवे स्टेशन श्रीरंगापतन है और नजदीकी हवाई अड्डा बंगलुरु में है.

श्रवणबेलगोला का अनुवाद कन्नड़ से हिंदी में इस तरह से कर सकते है : श्रवण (बाहुबली के लिए सादर संबोधन ) + बेल ( श्वेत ) + गोला ( सरोवर ).  और कन्नड़ में गोमत के माने विशाल हैं जिससे नाम पड़ा गोमतेश्वर. संस्कृत में इस जगह को श्वेतसरोवर या धवलसरोवर के नाम से भी पुकारा गया है और इन्हीं पहाड़ियों में चट्टानों पर ये नाम खुदे हुए पाए गए हैं. नीचे चित्र में आप सरोवर देख सकते हैं जो दो पहाड़ियों - चंद्रगिरी और विन्ध्यगिरी के बीच में है. विन्ध्यगिरी ज्यादा बड़ी पहाड़ी है. बल्कि ऐसा लगता है की एक ऊँची और विशालकाय चट्टान धरती से 470 फीट ऊपर उठ गई हो.

इसी ऊँचे पत्थर पर चढ़ने के लिए चट्टान में ही 660 सीढियाँ खोदी गई हैं जिन पर नंगे पाँव चढ़ कर ऊपर स्थित जैन मंदिर में दर्शन किये जा सकते हैं. चोटी पर पहुँच कर 57 फीट ऊँची एक ही पत्थर में तराशी हुई बाहुबली की भव्य मूर्ति बनी हुई है. मूर्ति के सबसे नीचे उकेरे गए शब्दों के अनुसार यह मूर्ति 981 में स्थापित की गई, इसके लिए धन की व्यवस्था राजा रचमल्ला ने की और उनके सैन्य मंत्री चावुंडाराय  ने इसे अपनी माँ के लिए बनवाया. मूर्ति 12 साल में तैयार हुई और इसके शिल्पकार थे अरिष्ठानेमी. एक ही पत्थर से तराशी यह मूर्ति विश्व में विशालतम मूर्ति है.

हर 12 साल में बाहुबली का अभिषेक धूमधाम किया जाता है. यह महामस्तकाभिषेक कहलाता है. अगला अभिषेक 2018 में होगा. अभिषेक में मूर्ति को नारियल पानी, सभी नदियों के जल, दूध घी इत्यादि से स्नान कराया जाता है. अंत में हेलीकाप्टर से पुष्प-वर्षा भी की जाती है.

सागर तल से श्रवणबेलगोला की ऊंचाई लगभग 3350 फीट है. मौसम ज्यादातर सुहाना रहता है और बंगलुरु की तरह हवा लगातार चलती रहती है. तापमान लगभग 18 से लेकर 30 डिग्री तक के बीच रहता है. चारों तरफ हरियाली और पहाड़ियां होने के कारण दृश्य सुंदर और मनमोहक हैं.

चलते चलो 

भगवान बाहुबली की बड़ी रोचक कथा है. अयोध्या के राजा, जो बाद में तीर्थंकर आदिनाथ ऋषभ कहलाये की दो रानियाँ थीं. पहली रानी सुमंगला से ज्येष्ठ पुत्र भरत का जन्म हुआ और दूसरी रानी सुनंदा से द्वितीय पुत्र बाहुबली का जन्म हुआ. राजा ने संन्यास लेने की घोषणा के बाद अयोध्या का राज्य बड़े पुत्र भरत को सौंप दिया. बाहुबली को पौडनपुर का हिस्सा दे दिया गया.

राजा भरत बहुत ही महत्वाकांशी थे और चक्रवर्ती सम्राट बनना चाहते थे. उन्होंने बहुत से राजा रजवाड़ों को जीत लिया और फिर अपने ही भाई बाहुबली को ललकारा की वो या तो आत्मसमर्पण कर के राज्य दे दे या युद्ध के लिए तैयार हो जाए. बाहुबली ने आत्मसमर्पण से या राज्य देने से इनकार कर दिया. अब युद्ध होना अवश्यम्भावी हो गया था.

बड़े बुजुर्गों ने हस्तक्षेप किया और कहा की दोनों ओर से जान माल का बहुत नुकसान होगा. इसलिए यह तय हुआ की केवल भरत और बाहुबली में ही युद्ध होगा और इस युद्ध की शर्तें इस प्रकार से होंगी :
1. द्र्ष्टियुद्ध - दोनों भाई एक दुसरे को बिना पलक झपकाए देखेंगे. पहले पलक झपकाने वाला पराजित माना जाएगा.
2. मल्लयुद्ध - फिर दोनों की कुश्ती होगी. और अंत में
3. जलयुद्ध - दोनों भाई एक दुसरे के मुख पर पानी फेंकेगे और जो पहले मुख मोड़ लेगा वो पराजित माना जाएगा.
बाहुबली ने तीनों युद्ध जीत लिए. पर अचानक भरे दरबार में भरत ने बाहुबली पर चक्र फेंका. पर दर्शक अवाक् रह गए जब चक्र ने बाहुबली का चक्कर काटा और बिना वार किये दाहिनी ओर गिर पड़ा. बाहुबली को इन घटनाओं से आघात लगा. वे सोच में पड़ गए और फिर राजपाट त्याग कर जंगल की ओर प्रस्थान कर दिया.

एक साल तक घनघोर तप चला. शरीर पर बाम्बियाँ बन गई और लताएँ चढ़ गई. इस बीच भगवान बाहुबली की बहनें ब्राह्मी और सुंदरी ने पिता तीर्थंकर आदिनाथ ऋषभ से भाई के बारे में पूछताछ की. उन्होंने बताया की बाहुबली ज्ञान प्राप्ति से कुछ क्षणों की दूरी पर हैं. पर अहंकार और अभिमान आड़े आ रहा है. वह किसी के आगे हाथ नहीं जोड़ना चाहता क्यूंकि राजा जो था - 'अभी वह हाथी पर खड़ा है'. बहनों ने बाहुबली से निवेदन किया 'ओ मोरे भाई अवि तो गज ती उतरो' (भाई हाथी से नीचे उतरो). यह सुनकर बाहुबली को पश्चाताप हुआ और अभिमान और अहंकार त्याग दिया. वह चलकर पिता के सम्मुख उपस्थित हुए और दंडवत प्रणाम किया. इसके बाद बाहुबली धर्म अध्यापन में लग गए.

जो चक्रवर्ती राजा बन सकता था वो सन्यासी बन गया.

तपस्या में शरीर से लिपटती लताएं 

चरणों की सुंदर बनावट 

उँगलियों और पत्तों का बारीक और सुंदर काम 
पूजा की जा रही है. सांप देखिये - बांयी ओर से पैर की नीचे बिल में जा रहा है और दांयी ओर अक्षरों के ऊपर निकल कर फन फैला रहा है  


पूजा से सम्बंधित एक विडियो youtube में देखा जा सकता है. उसका लिंक है:
https://youtu.be/83rS5T3a_AI



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