पिछले दिनों खबर छपी की उत्तराखंड के मुख्य वन अधिकारी ने पुलिस और यातायात विभाग को शिकायत भेजी की उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों से बंदर लाकर उत्तरखंड में छोड़े जा रहे हैं.
वाह साब वाह उत्तराखंड के साथ सरासर नाइंसाफी है ये. पडोसी प्रदेश अपने अपने बंदरों को संभाल कर क्यों नहीं रखते ? एक तो उनका ध्यान नहीं रखते और दूसरे पकड़-पकड़ कर रात के अँधेरे में उत्तराखंडी जंगलों में छोड़ देते हैं. बहुत नाइंसाफी है रे !
उत्तराखंड से सटे हैं उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश. और पास ही हैं हरयाणा, चंडीगढ़ और पंजाब भी. किसी राज्य में कोई पार्टी राज कर रही है किसी में कोई. क्या जाने कोई राजनैतिक चाल ही ना हो इसके पीछे. इधर के बंदर उधर करना वो भी रात के समय ? जरूर कोई रहस्य है इस चाल में.
अरे साहब यह भी सम्भावना है की इस प्रक्रिया में और गूढ़ रहस्य हो. अगर हम गौर करें तो नेपाल और चीन भी उत्तराखंड से ज्यादा दूर नहीं हैं. मसला अन्तर-राज्यीय ना होकर अन्तर-राष्ट्रीय भी हो सकता है. अगर ऐसा हुआ तो मामला ट्रिब्यूनल में ना जाकर यू एन ओ में ले जाना पड़ सकता है.
अब इसका दारोमदार तो जांच एजेंसी पर ही निर्भर करता है. देश में कई गुप्तचर एजेंसियां है, जाने माने जासूस हैं जिनकी सहायता ली जा सकती है. और नहीं तो हमारे कुछेक मीडिया चैनल भी इस में महारत रखते हैं. दो तीन एंकर तो ऐसे हैं जो सीनियर बंदरों का साक्षात्कार रातों रात पेश कर सकते हैं -
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सबसे पहले !
रहस्य खुला !
एक पहलू ये भी है कि पंछी हों या चौपाये ये सीमाओं को कुछ समझते ही नहीं. इनका तो कहना है की सारे देश, प्रदेश और धरती अपनी ही है. जावेद अख्तर का गाना सुना होगा आपने - "पंछी, नदिया पवन के झोंके कोई सरहद न इन्हें रोके". अब इन बंदरों को प्रदेशों की सरहद कौन समझाए.
पर इस चक्कलस में पड़ने से पहले ये भी तो समझ लेना चाहिए की बंदर स्मार्ट और इंटेलीजेंट भी हैं. आखिरकार हमारे पूर्वज रहे हैं. हो सकता है की कुछ सीनियर बंदर प्रदूषण से बचने के लिए अपनी टोलियाँ लेकर कर पहाड़ों की तरफ प्रस्थान कर गए हों ?
वाह साब वाह उत्तराखंड के साथ सरासर नाइंसाफी है ये. पडोसी प्रदेश अपने अपने बंदरों को संभाल कर क्यों नहीं रखते ? एक तो उनका ध्यान नहीं रखते और दूसरे पकड़-पकड़ कर रात के अँधेरे में उत्तराखंडी जंगलों में छोड़ देते हैं. बहुत नाइंसाफी है रे !
उत्तराखंड से सटे हैं उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश. और पास ही हैं हरयाणा, चंडीगढ़ और पंजाब भी. किसी राज्य में कोई पार्टी राज कर रही है किसी में कोई. क्या जाने कोई राजनैतिक चाल ही ना हो इसके पीछे. इधर के बंदर उधर करना वो भी रात के समय ? जरूर कोई रहस्य है इस चाल में.
अरे साहब यह भी सम्भावना है की इस प्रक्रिया में और गूढ़ रहस्य हो. अगर हम गौर करें तो नेपाल और चीन भी उत्तराखंड से ज्यादा दूर नहीं हैं. मसला अन्तर-राज्यीय ना होकर अन्तर-राष्ट्रीय भी हो सकता है. अगर ऐसा हुआ तो मामला ट्रिब्यूनल में ना जाकर यू एन ओ में ले जाना पड़ सकता है.
अब इसका दारोमदार तो जांच एजेंसी पर ही निर्भर करता है. देश में कई गुप्तचर एजेंसियां है, जाने माने जासूस हैं जिनकी सहायता ली जा सकती है. और नहीं तो हमारे कुछेक मीडिया चैनल भी इस में महारत रखते हैं. दो तीन एंकर तो ऐसे हैं जो सीनियर बंदरों का साक्षात्कार रातों रात पेश कर सकते हैं -
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रहस्य खुला !
एक पहलू ये भी है कि पंछी हों या चौपाये ये सीमाओं को कुछ समझते ही नहीं. इनका तो कहना है की सारे देश, प्रदेश और धरती अपनी ही है. जावेद अख्तर का गाना सुना होगा आपने - "पंछी, नदिया पवन के झोंके कोई सरहद न इन्हें रोके". अब इन बंदरों को प्रदेशों की सरहद कौन समझाए.
पर इस चक्कलस में पड़ने से पहले ये भी तो समझ लेना चाहिए की बंदर स्मार्ट और इंटेलीजेंट भी हैं. आखिरकार हमारे पूर्वज रहे हैं. हो सकता है की कुछ सीनियर बंदर प्रदूषण से बचने के लिए अपनी टोलियाँ लेकर कर पहाड़ों की तरफ प्रस्थान कर गए हों ?
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