ऐतिहासिक पांवटा साहिब गुरुद्वारा यमुना नदी के किनारे जिला सिरमौर, हिमाचल प्रदेश में स्थित है. देहरादून से पांवटा साहिब 45 किमी की दूरी पर है और चंडीगढ़ से करीब 130 किमी. जाने के लिए बसें और टैक्सी दोनों ओर से उपलब्ध हैं. देहरादून से जाने वाली सड़क अच्छी है पर सिंगल हैं और ट्रैफिक ज्यादा है. दून घाटी के अंतिम छोर पर पांवटा साहिब है. दून घाटी में बहती यमुना नदी उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के बीच की सीमा रेखा है. गुरुद्वारा साहिब के साथ बहती यमुना नदी और आस पास पहाड़ियाँ सुंदर लगती है. पर नदी का पूरा पाट पथरीला होने के कारण दोपहर में तेज़ गर्मी होती है. सुबह पहुंचना आरामदेह रहेगा.
यह शहर दसवें सिख गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज ( जन्म 22 दिसम्बर 1666 - निर्वाण 07 अक्टूबर 1708) का बसाया हुआ है. गुरु महाराज अप्रैल 1685 में यहाँ पधारे थे. कहते हैं की घोड़े से उतर कर उन्होंने अपने पांव यहाँ टिका दिए और इसलिए जगह का नाम पांवटा साहिब पड़ गया. एक दूसरी कहावत के अनुसार उनके पांव में एक जेवर था पांवटा जो यमुना में नहाते हुए खो गया इसलिए इस जगह का नाम पांवटा पड़ गया.
गुरु महाराज यहाँ चार साल से ज्यादा रहे और यहीं पर उन्होंने कई भजन कीर्तन और 'दसम ग्रन्थ' की शुरुआत की जिसे आनंदपुर साहिब में पूरा किया. यहीं उनके पुत्र साहिबज़ादा बाबा अजित सिंह जी का जन्म हुआ था. यहाँ गुरु महाराज ने घुड़सवारी, तैराकी और हथियारों के इस्तेमाल में दक्षता हासिल की और इस तरह से जीवन भर 'संत-सिपाही' रहे.
गुरुद्वारा साहिब परिसर तीन एकड़ में फैला हुआ है. परिसर में दस्तार अस्थान है जिसमें पगड़ी बाँधने का कम्पटीशन कराया जाता था. इसके पास ही कवि दरबार अस्थान है जहाँ शबद कीर्तन और कवि गोष्ठियां होती थीं. और तालाब अस्थान है जहां गुरु महाराज वेतन बांटते थे. एक छोटा म्यूजियम भी है जहाँ गुरु महाराज के हथियार और कलम रखे हुए हैं. यहाँ लगभग 2000 से ज्यादा लोग रोज़ आते हैं. साथ ही एक हॉल में लंगर की सुंदर व्यवस्था है. जब भी जाएं प्रसाद स्वरुप भोजन का आनंद जरूर लें.
प्रस्तुत हैं कुछ फोटो:
यह शहर दसवें सिख गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज ( जन्म 22 दिसम्बर 1666 - निर्वाण 07 अक्टूबर 1708) का बसाया हुआ है. गुरु महाराज अप्रैल 1685 में यहाँ पधारे थे. कहते हैं की घोड़े से उतर कर उन्होंने अपने पांव यहाँ टिका दिए और इसलिए जगह का नाम पांवटा साहिब पड़ गया. एक दूसरी कहावत के अनुसार उनके पांव में एक जेवर था पांवटा जो यमुना में नहाते हुए खो गया इसलिए इस जगह का नाम पांवटा पड़ गया.
गुरु महाराज यहाँ चार साल से ज्यादा रहे और यहीं पर उन्होंने कई भजन कीर्तन और 'दसम ग्रन्थ' की शुरुआत की जिसे आनंदपुर साहिब में पूरा किया. यहीं उनके पुत्र साहिबज़ादा बाबा अजित सिंह जी का जन्म हुआ था. यहाँ गुरु महाराज ने घुड़सवारी, तैराकी और हथियारों के इस्तेमाल में दक्षता हासिल की और इस तरह से जीवन भर 'संत-सिपाही' रहे.
गुरुद्वारा साहिब परिसर तीन एकड़ में फैला हुआ है. परिसर में दस्तार अस्थान है जिसमें पगड़ी बाँधने का कम्पटीशन कराया जाता था. इसके पास ही कवि दरबार अस्थान है जहाँ शबद कीर्तन और कवि गोष्ठियां होती थीं. और तालाब अस्थान है जहां गुरु महाराज वेतन बांटते थे. एक छोटा म्यूजियम भी है जहाँ गुरु महाराज के हथियार और कलम रखे हुए हैं. यहाँ लगभग 2000 से ज्यादा लोग रोज़ आते हैं. साथ ही एक हॉल में लंगर की सुंदर व्यवस्था है. जब भी जाएं प्रसाद स्वरुप भोजन का आनंद जरूर लें.
प्रस्तुत हैं कुछ फोटो:
1 comment:
https://jogharshwardhan.blogspot.com/2015/09/blog-post_19.html
Post a Comment